हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मुखौटे ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मुखौटे ? ?

मुखौटों की

भीड़ से घिरा हूँ,

किसी चेहरे तक

पहुँचूँगा या नहीं

प्रश्न बन खड़ा हूँ,

मित्रता के मुखौटे में

शत्रुता छिपाए,

नेह के आवरण में

विद्वेष से झल्लाए,

शब्दों के अमृत में

गरल की मात्रा दबाए,

आत्मीयता के छद्म में

ईर्ष्या से बौखलाए,

बार-बार सोचता हूँ

मनुष्य मुखौटे क्यों जड़ता है..

भीतर-बाहर अंतर क्यों रखता है..?

मुखौटे रचने-जड़ने में

जितना समय बिताता है,

जीने के उतने ही पल

आदमी व्यर्थ गंवाता है,

श्वासोच्छवास में मत्सर

मानो विष का घड़ा है,

गंगाजल-सा जीवन रखो मित्रो,

पाखंड में क्या धरा है..?

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 11.52 बजे, 15.10.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ – Limitless – ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

 

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem ~ Limitless ~ We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

? ~ Limitless ~ ??

Those, measuring the

vibrations and oscillations,

expansion and contraction

of the sea waves,

got perplexed as they

hit a roadblock

when they probed

deep into my mind…

 

The rise and fall of the

wave crests in my mind,

proved to be way beyond their

grasp and measurement..!

~Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 113 – सड़कों पर उड़ती है धूल… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  आपकी भावप्रवण कविता “सड़कों पर उड़ती है धूल…” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 113 – सड़कों पर उड़ती है धूल…

सड़कों पर उड़ती है धूल।

खिला बहुत कीचड़ में फूल।।

मजहब का बढ़ता है शोर,

दिल में चुभे अनेकों शूल।

मँहगाई का है बाजार,

खड़ी समस्या कबसे मूल।

नेताओं की बढ़ती फौज,

दिखे कहाँ कोई अनुकूल।

सीमाओं पर खड़े जवान,

बँटवारे में कर दी भूल।

हुए एक-जुट भ्रष्टाचारी,

राजनीति में उगा बबूल।

जाति-पाँति की फिर दीवार,

हिली एकता की है चूल।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 260 ⇒ प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा…।)

?अभी अभी # 260 ⇒ प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आओ सखी,

हे री सखी, मंगल गाओ रे ..

इंतजार अब नहीं, इंतजार अब और नहीं, आखिर वो शुभ घड़ी आ ही गई, जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता के इतिहास में हमेशा के लिए स्वर्णाक्षरों में दर्ज होने जा रही है। जन्म जन्म के वे प्यासे भक्त जो त्रेता युग में अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक नहीं देख पाए, आज वे उसी अयोध्या में अपने आराध्य रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने जा रहे हैं।

अंबानी, अडानी, टाटा, सिंघानिया, कंगना, हेमा, जया, मोदी, योगी, बिग भी, सूची बहुत लंबी है, जिनमें मैं जाहिर रूप से शामिल नहीं हूं, लेकिन मेरे जैसे करोड़ों ऐसे भक्त हैं, जो अपने घर आंगन, दफ्तर और दुकान में समर्पित भाव से टीवी के माध्यम से ही इस ऐतिहासिक क्षण के भागी बन गए हैं। यह प्रतिष्ठा का नहीं, प्राण प्रतिष्ठा का अवसर है।।

बड़े भाग, मानुस तन पायो, कितना सार्थक सिद्ध हुआ है आज यह कथन। इतने भाग्यशाली तो तुलसीदास जी भी नहीं होंगे। लेकिन उनकी स्थिति हमने कई गुना ऊंची और अच्छी थी, क्योंकि केसरीनंदन हनुमान की तरह ही प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण उनके हृदय में हर पल विराजमान थे।

उनका कवि हृदय कितना विशाल होगा, जो जन जन को रामचरितमानस जैसा अद्भुत ग्रंथ समर्पित कर गया। यह होती है एक भक्त की अपने आराध्य की हृदय में प्राण प्रतिष्ठा, जो जब मथुरा और वृन्दावन जाते हैं तो यह प्रण लेकर जाते हैं, कि अगर सांवरा कृष्ण कन्हैया मुझे दरस देना चाहता है, तो उसे मेरे आराध्य के समान धनुष धारण करना पड़ेगा। और भगत के वश में भगवान को उसकी हर मांग पूरी करनी ही पड़ती है। भक्त तुलसीदास की भेद बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। राम, कृष्ण में कोई अंतर नहीं, कोई भेद नहीं।

मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी ना दीखे सूरत तेरी, यह केवल वही नरसिंह भगत कह सकता है, जिसके प्राण में अपने इष्ट घनश्याम प्रतिष्ठित हो गए हैं, विराजमान हो गए हैं। इसीलिए भक्त उसे घट घट वासी मानता है। वह दयानिधान, कृपासिंधु, सबका पालनहार आपको खेत में, खलिहान में और हर मजदूर किसान की झोपड़ी में मिलेगा।।

मुझे मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम को अपने प्राणों में प्रतिष्ठित करना है, मेरा रामलला और कृष्ण कन्हैया एक ही है। बस मुझे उनकी लीलाओं में अपने आपको डुबोए रखना है।

बहुत आसान है कहना,

तेरा नाम तेरे मन में है,

मेरा नाम मेरे मन में है।

कलयुग नाम अधारा तो है ही, राममय होने का अवसर है, मत चूके चौहान ;

मेरे प्रभु तू आ जा

मन में मेरे समा जा।

मैं ढूंढता तुझे हूं

आ जा, तू अब तो आ जा।।

राम, राम, राम,

सीता राम राम राम

जय श्रीराम ..

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 178 – आन विराजे राम लला – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर रचित एक गीत “आन विराजे राम लला”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 178 ☆

☆ 🌹 आन विराजे राम लला 🌹 

[1]

हे रघुकुल नायक, हो सुखदायक, पावन सुंदर, राम कथा।

जो ध्यान धरें नित, काज करें हित, राम सिया प्रभु, हरे व्यथा ।।

ये जीवन नैया, पार लगैया, आस करें सब, शीश नवा।

सुन दीनदयाला, जग रखवाला, राम नाम की, बहे हवा।।

[2]

बोले जयकारा, राम हमारा, वेद ग्रंथ में, लिखा हुआ।

लड़- लड़ के हारे, झूठे सारे, हार गये जब, करे दुआ।।

है सत्य सनातन, धर्म रहे तन, बीते दुख की, अब बेला।

उठ जाग गये सब, मंगल हो अब, राम राज्य की, है रेला। ।

[3]

हे ज्ञान उजागर, वंशज सागर, दशरथ नंदन, ज्ञान भरो।

हे भाग्य विधाता, जन सुखदाता, इस जीवन के, पाप हरो।।

ले बाम अंग सिय, धनुष बाण प्रिय, शोभित सुंदर, मोह कला।

शुभ सजे अयोध्या, बजे बधैया, आन विराजे, राम लला।।

🙏 🚩🙏

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 67 – देश-परदेश – पालतू पालक ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – पालतू पालक” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 67 ☆ देश-परदेश – पालतू पालक ☆ श्री राकेश कुमार ☆

उपरोक्त फोटो घर के निकट की एक दुकान का है। दुकानदार से बातचीत हुई की आपने पालतू और बच्चों से संबंधित दोनों के लिए कैसे जुगल बंदी कर दी। उसने बताया कि जिन परिवारों में बच्चे नहीं है, वे श्वान या बिल्ली पाल लेते हैं। पालतू पालक और बच्चे वाले दोनों ही हमारे ग्राहक हैं। पूर्व में सिर्फ श्वान का चलन था, लेकिन उसका क्रय मूल्य अधिक होने से बिल्ली पालन के चलन में तेज़ी आ गई हैं।

कुछ दशक पूर्व तक बिल्लियां दीवार फांद कर लोगों के घर में रखे हुए दूध में मुंह मार लिया करती थी। जब से ये फ्रिज चल पड़े है,  उनको पेट भरना कठिन हो गया और था। इसलिए बिल्लियां कम हो गई हैं। अब कुछ वर्षों से इनको पालतू बना कर घर में पाला जाता हैं। श्वान तो सदियों से स्वामी भक्त के टाइटल से भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं।

जोधपुर शहर में कल ही दो बच्चों का ट्रेन के नीचे आ जाने  से दुखद निधन हो गया,  क्योंकि चार पालतू जर्मन शेफर्ड नामक प्रजाति के श्वान बच्चों को काटने लगे तो बच्चे रेल लाइन की तरफ बच कर भाग गए जिससे ये दुर्घटना हो गई। श्वान मालिक का कहना है,  इसमें श्वानो की कोई गलती नहीं हैं। बच्चों को रेल पटरी पार करते समय ट्रेन को देखना चाहिए था। दिल्ली शहर में भी खूंखार प्रजाति पिट बुल के श्वान ने एक बुजर्ग से उसके छोटे से पोते को छीन कर गंभीर रूप से जख्मी कर दिया है।

ऐसा व्यवहार श्वान क्यों कर रहे है, कुछ विशेषज्ञों का मत है, उनकी मूलभूत सुविधाओं जैसे की बिजली के खंभों में कमी होना भी हो सकता है। आजकल बिजली की लाइन भूमिगत हो रही हैं।

कुछ पालक अपने पालतू के लालन पालन और तीमारदारी के लिए तन मन और धन से लग जाते हैं। प्राणी सेवा एक अच्छा कार्य हैं। परंतु कभी-कभी तो ये पालक अपने परिजनों का उतना ख्याल नहीं रखते हैं, जितना वे अपने पालतू का रखते हैं। ये भी हो सकता है, वे  पालतू के पूर्व जन्म के कर्म होंगे, जिनकी वजह से पालतू योनि में जन्म लेकर भी इतनी सुख सुविधा प्राप्त हुई।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – गीत – राम अवध हैं लौटते – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ – गीत – राम अवध हैं लौटते  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

वायु सुगंधित हो गई, झूमे आज बहार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

सरयू तो हर्षा रही, हिमगिरि है खुश आज।

मंगलमय मौसम हुआ, धरा कर रही नाज़।।

सबके मन नर्तन करें, बहुत सुहाना पर्व।

भक्त कर रहे आज सब, इस युग पर तो गर्व।।

सकल विश्व को मिल गया, एक नवल उपहार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

जीवन में आनंद अब, दूर हुई सब पीर।

नहीं व्यग्र अंत:करण, नहीं नैन में नीर।।

सुमन खिले हर ओर अब, नया हुआ परिवेश।

दूर हुआ अभिशाप अब, परे हटा सब क्लेश।।

आज धर्म की जीत है, पापी की तो हार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

आज हुआ अनुकूल सब, अधरों पर है गान।

आज अवध में पल रही, राघव की फिर आन।।

आतिशबाज़ी सब करो, वारो मंगलदीप।

आएगी संपन्नता, चलकर आज समीप।।

बाल-वृद्ध उल्लास में, उत्साहित नर-नार।।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

जीवन अब अनुरागमय, सधे सभी सुर आज।

प्रभु राघव का हो गया, हर दिल पर तो राज।।

भक्तों ने हनुमान बन, किया राम का काज।

दुष्टों पर आवेग में, गिरी आज तो गाज।।

साँच और शुभ रीति से, चहके हैं घर-द्वार।।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

तुलसी बाबा खुश हुए, त्रेता का यह दौर।

सारे सब कुछ भूलकर, करें राम पर गौर।।

दौड़ रहे साकेत को, बोल रहे जय राम।

प्रभुदर्शन में बस गया, दिव्य ललित आयाम।।

आओ राघव! आपका, बार-बार सत्कार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #221 ☆ आले राघव… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 221 ?

☆ आले राघव… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

आयोध्येला पुन्हा एकदा आले राघव

अजब दिवाळी मंदिरातील घंटा वाजव

*

चूक जाहली लेखी देती करती क्षालन

मुस्लिम बांधव या गोष्टीचे करोत पालन

बाबर वंशज क्षमा मागुनी झाले मानव

*

वचनासाठी चौदा वर्षे भोगलीस तू

राजा असुनी सत्ता होती त्यागलीस तू

सत्तेसाठी धर्म त्यागती त्यांना जागव

*

हिंदू झाले तुझेच रामा वैरी काही

धर्माबद्दल त्यांचे काही वाचन नाही

कलियुगातील हेच खरेतर असती दानव

*

देशोदेशी आज चालला तुझाच जागर

जिथे पाहतो तेथे आहे तुझाच वावर

धर्म सोडुनी दूर चालले त्यांना थांबव

*

शंका नाही रामराज्य हे येइल आता

या विश्वाचा दुसरा नाही कोणी दाता

भटक्यांनाही सद्मार्गाचा रस्ता दाखव

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ जननी ध्यास… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ जननी ध्यास… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीरामाविन व्याकुळ जननी

जानकी पतिव्रता जप मनी   //

*

मर्यादा पुरुषोत्तम राम

कुणी आळवी राधिकेय शाम

धन्य अयोध्या, रघुवीरे ऋणी

जानकी पतिव्रता जप मनी //

*

कौश्यलेचा सत्य’सुपूत्र

शबरी ,जांबुवंत,जटायू

हनुमान रक्षका भक्त गुणी

जानकी पतिव्रता जप मनी //

*

श्रीगणेश उद्धारित प्रारब्धे

भुलोकी रामायण पुण्य शब्दे

साकार साक्षात वाल्मिकी मुनी

जानकी पतिव्रता जप मनी //

© श्रीशैल चौगुले

मो. ९६७३०१२०९०.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ नांदो रामराज्य… ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

? कवितेचा उत्सव  ?

☆ नांदो रामराज्य… ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के 

तन गुंतले संसारी

मन अयोध्यानगरी

आधी स्पर्शली प्रेमाने

देवालयाची पायरी

*

स्पर्श  पायरीला होता

मनी भक्तीभाव  दाटे

मन गाभारी जाऊनी

रामरायालागी भेटे

*

 मना भेटे रामराया

 गेले सीतामायी पाशी

 भक्तिभावाने ठेविली

ठोई तिच्या चरणाशी

*

 रामराम सिताराम जपी

 मन रंगुनीया जाई

 नांदो रामराज्य यापुढे

  बाकी मागणे न काही

©  सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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