हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #188 – 74 – “भगवान जाने…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “भगवान जाने…”)

? ग़ज़ल # 74 – “भगवान जाने…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

पहली बार गर्मी को लोग तरस रहे हैं,

सावन के बादल झूम कर बरस रहे हैं।

कूलर बोरियत सी महसूस करने लगे हैं,

लू के मौसम में चलने को तरस रहे हैं।

बाज़ार ए सी बिल्कुल ठंडा पड़ गया है,

गन्ना चरखियाँ पूरी तरह नीरस रहे हैं।

लोग जतन में लस्सी के इंतज़ार में थे,

भजिया और पकौड़ा खाकर हरस रहे हैं। 

भगवान जाने क्या माया फैलाई आतिश,

पाकिस्तानी बादल भारत में बरस रहे हैं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी ⇒ हास्य और व्यंग्य… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हास्य और व्यंग्य।)  

? अभी अभी ⇒ हास्य और व्यंग्य? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

हास्य, हंसने की चीज है, व्यंग्य समझने की चीज है। किसी बात को बिना समझे भी हंसा जा सकता है, और किसी बात को समझने के बाद हंसी गायब भी हो सकती है। यूं तो हास्य और व्यंग्य का चोली दामन का साथ है लेकिन अगर अंडे मुर्गी की तरह पूछा जाए कि पहले हास्य आया या व्यंग्य, तो शायद हास्य ही बाज़ी मार ले जाए।

व्यंग्य को बुरा भी लग सकता है कि जीवन में हास्य को व्यंग्य से अधिक महत्व  क्यों दिया गया है। जिस प्रकार हास्य और व्यंग्य की जोड़ी है, वैसे ही हंसी और खुशी की भी जोड़ी है। अगर आप हंस रहे हैं और खुश नहीं हैं, तो यह फीकी हंसी है। इसी तरह जो व्यंग्य आपमें निराशा अथवा अवसाद की उत्पत्ति करे, वह भी व्यंग्य नहीं है। सकारात्मकता हास्य और व्यंग्य दोनों के आवश्यक तत्व हैं। हास्य अगर आपको हंसा सकता है तो व्यंग्य आपको गुदगुदा भी  सकता है और चिकौटी भी काट सकता है, लेकिन आपको आहत नहीं कर सकता, आपकी आत्मा को कष्ट नहीं पहुंचा सकता। ।

एक नवजात शिशु, अपनी मां के पास लेटा है। रात का वक्त है, मां गहरी नींद में सो रही है। अचानक बालक की आंख खुलती है, उसके शरीर में हलचल होती है। उसने बाबा रामदेव का न तो नाम सुना है और न ही कोई योग की ट्रेनिंग ली है। कुछ ही समय में वह उघाड़ा पड़ा हुआ, हाथ पांव चला चलाकर व्यायाम कर रहा है और ज़ोर ज़ोर से किलकारी मार रहा है।

मां की नींद खुलती है, किंकर्तव्यविमूढ़ हो वह उसे प्यार से अपने आंचल में छुपा लेती है। इस किलकारी का कोई मोल नहीं। हास्य और व्यंग्य इसके आगे पानी भरते हैं।

अक्सर बच्चे बात बात पर ताली बजाकर हंसते रहते हैं। उनका हंसना, खिलखिलाना, एक कली का मुस्कुराना है, एक फूल का खिलना है। बच्चों में ज़िन्दगी की सुबह है, बुढ़ापे में ज़िन्दगी की शाम है। अगर जीवन में हास्य बोध है तो ज़िन्दगी की शाम भी रंगीन है। ।

किसी पर हंसना अथवा किसी का अपमान करना या उस पर ताने कसना , न तो हास्य की श्रेणी में आता है और न ही व्यंग्य की श्रेणी में। नवरस में हास्य को भी रस माना गया है। विसंगति में भी रस की निष्पत्ति जहां है, वह व्यंग्य है। व्यंग्य एक साहित्यिक विधा है, हास्य , एक स्वस्थ जीवन का निचोड़ है।

अपने कई हास्य फिल्म देखी होगी। व्यंग्य फिल्माया नहीं जा सकता। सिनेमा और नाटक में हास्य कलाकार और विदूषक होते हैं, व्यंग्य कलाकार नहीं। पंच मारा जा सकता है। पंच पर भी ताली ठोकी जा सकती है।

हास्य को अंग्रेजी में laughter कहते हैं। एक कहावत भी है – Laughter is the best medicine. अनावश्यक हंसना अथवा मौके की नज़ाकत को देखे बिना हंसना, पागलपन की निशानी है। जीवन में हास्य बोध होना बहुत ज़रूरी है। जिन लोगों में sense of humour नहीं है, लोग उनसे दूर रहना ही पसंद करते हैं। क्या भरोसा, कब खसक जाए। ।

जब भी व्यंग्य की चर्चा होगी, कबीर को अवश्य याद किया जाएगा। सहज शब्दों में गूढ़ार्थ एवं शब्दों की मार एक साथ और कहीं देखने को नहीं मिलती। धार्मिक पाखंड और अंध विश्वास पर मुगल शासन में प्रहार कोई जुलाहा ही कर सकता है। काहे का ताना, काहे का बाना। समाज की विसंगतियां ही व्यंग्य को समृद्ध करती हैं। कांग्रेस का कुशासन व्यंग्य के लिए वरदान सिद्ध हुआ। अब सुशासन में व्यंग्य चुभने लगा है। हास्य बोध का स्थान आक्रोश और क्रोध ने ले लिया है। व्यंग्यकार को सकारात्मक व्यंग्य की ऐसी  विधा तलाशनी पड़ेगी जो सत्ता को भी नाखुश ना करे।

अभी कुछ दिन पहले कपिल के कॉमेडी शो पर अनुपम खेर और सतीश कौशिक का पदार्पण हुआ। क्या हंसी के ठहाके लगे हैं, दोस्ती दुश्मनी की मीठी यादों की चाशनी में सराबोर, दोनों कलाकारों ने ऐसा समां बांधा कि लगा बहुत दिनों बाद कोई अच्छा प्रोग्राम देखने को मिला है। अपनी असफलताओं पर हंसना कोई सतीश कौशिक से सीखे।

खुद पर हंसना श्रेष्ठ है। मिल जुलकर हंसना स्वस्थ रहने की निशानी है। विकृत राजनीति के चलते हंसी खुशी का स्थान निंदा स्तुति ने ले लिया है। जब आप साल भर बुरा मानते रहे हैं, तो होली पर बुरा न मानो होली है, का भी क्या औचित्य ? किलकारी न सही, कहकहे तो लग सकते हैं, खुले मन से अट्टहास तो किया जा सकता है। हास परिहास ही जीवन है। किसने कहा, हंसना मना है। ।

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सीढ़ियाँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सीढ़ियाँ ??

आती-जाती

रहती हैं पीढ़ियाँ,

जादुई होती हैं

उम्र की सीढ़ियाँ,

जैसे ही अगली

नज़र आती है,

पिछली तपाक से

विलुप्त हो जाती है,

आरोह की सतत

दृश्य संभावना में,

अवरोह की अदृश्य

आशंका खो जाती है,

जब फूलने लगे साँस,

नीचे अथाह अँधेरा हो,

पैर ऊपर उठाने को

बचा न साहस मेरा हो,

चलने-फिरने से भी

देह दूर भागती रहे,

पर भूख-प्यास तब भी

बिना नागा लगाती डेरा हो,

हे आयु के दाता! उससे

पहले प्रयाण करा देना,

अगले जन्मों के हिसाब में

बची हुई सीढ़ियाँ चढ़ा देना!

मैं जिया अपनी तरह,

मरुँ भी अपनी तरह,

आश्रित कराने से पहले

मुझे विलुप्त करा देना!

© संजय भारद्वाज 

प्रातः 8:01 बजे, 21.4.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 66 ☆ ।।काँटों के बीच भी गुलाब सा खिलना सीख लो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक  ☆ ।।काँटों के बीच भी गुलाब सा खिलना सीख लो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

आईने सी जिंदगी मुस्कायो  तो मुस्काती  है।

बाँट कर देखो खुशी  दुगनी होकर आती है।।

जीकर देखो सब के संग साथ जरा मिल कर।

यह जिंदगी सौगातों की झोली खोल जाती है।।

[2]

शिकवा शिकायत नहीं  शुकराना सीख जायो।

हर किसीके आदर में झुक जाना सीख जायो।।

कुछ धीरज और कुछ प्रभु   पर विश्वास रखो।

ईश्वर की मर्जी में राजी हो  पाना सीख जायो।।

[3]

आदमी को हराना नहीं दिल जीत जाना सीखो।

किताबें पढ़ कर उसे  आचरण मे लाना सीखो।।

तुम्हारे कर्म शब्दों  से  अधिक   होते हैं प्रभावी।

आत्मा मन वाणी बस प्रेम की भाषा लाना सीखो।।

[4]

बसा कर प्यार का शहर नफरत मिटाना सीख जायो।

समय पर हर आदमी के काम आना सीख जायो।।

इसी जमीं पर स्वर्ग सी बन सकती तुम्हारी दुनिया।

बस काँटों बीच गुलाब सा खिलखिलाना सीख जायो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 130 ☆ “किसी को मधुर गीतों सी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित ग़ज़ल – “किसी को मधुर गीतों सी…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #130 ☆ ग़ज़ल – “किसी को मधुर गीतों सी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

दुनिया में मोहब्बत भी क्या चीज निराली है।

रास आई तो अमृत है न तो विषभरी प्याली है।।

 

इसने यहाँ दुनियामें हर एक को लुभाया है

पर दिल है साफ जिनका उनकी ही खुशहाली है।

 

सच्चों ने घर बसाये, झूठों के उजाड़े हैं

नासमझों के घर रहते सुख-शांति से खाली हैं।

 

जिनसे न बनी वह तो उनके लिये गाली है।

जो निभ न सके संग मिल, वे जलते रहे दिल में

जिनने सही समझा है घर उनके दीवाली है।

 

कुछ के लिये ये मीठी मिसरी से सुहानी है

पर कुछ को कटीली ये काँटों भरी डाली है।

 

मन के जो भले उनको यह रात की रानी है

जो स्वार्थ पगे मन के, उनको तो दुनाली है।

 

जिसने इसे जो समझा उसके लिये वैसी है

किसी को मधुर गीतों सी, किसी को बुरी गाली है।

 

जग में ’विदग्ध’ दिखते दो रूप मोहब्बत के

कहीं चाँद सी चमकीली कहीं भौंरे से काली है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान एवं रियाज़ संस्था की ओर से महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी से पुरस्कृत साहित्यकार सम्मानित ☆ प्रस्तुति – सुश्री इंदिरा किसलय ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान एवं रियाज़ संस्था की ओर से महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी से पुरस्कृत साहित्यकार सम्मानित🌹

विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान एवं रियाज़ संस्था की ओर से महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी की ओर से पुरस्कृत साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।

उस अवसर पर हिन्दी मराठी एवं बांग्ला उपन्यासों पर विशद चर्चा संपन्न हुई। हिन्दी उपन्यासों की श्रृंखला में प्रासंगिक रूप से गीतांजलि श्री के उपन्यास “रेत समाधि” पर डाॅ वीणा दाढ़े ने महीन विश्लेषण श्रोताओं के समक्ष रखा। डाॅ भट्टाचार्य ने बांग्ला उपन्यासों की भूमिका स्पष्ट की।

सुप्रिया अय्यर के उपन्यास पर एक अति उत्कृष्ट नाटिका पेश की गयी।पुरस्कृत साहित्यकारों की ओर से दो शब्द कहते हुये इन्दिरा किसलय ने भाषायी सौहार्द्र की दृष्टि से अनुवाद की महत्ता रेखांकित की। इतिहास में चलें तो शाहजहां के बेटे दाराशिकोह ने काशी से पंडित बुलाकर उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करवाया था और स्वयं गीता का अनुवाद फारसी में किया था।

अगर जर्मन विद्वान गेटे न होते तो कालिदासकृत अभिज्ञानशाकुन्तलम् के सौंदर्य से विश्व वंचित रह जाता। रूसी विद्वान वारान्निकोव न होते तो रूस में रामचरितमानस और प्रेमचंद की कृतियों की महत्ता प्रकाश में आने से रह जाती।

भारत में 10 करोड़ मराठीभाषी हैं।12 वीं शती से अपना इतिहास दर्ज करनेवाली मराठी एक सक्षम भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी है।

हिन्दी एवं मराठीभाषी रचनाकारों के मध्य सेतु निर्माण का सारा श्रेय रियाज़ के अध्यक्ष श्री दिलीप म्हैसाळकरजी को जाता है।

साभार –  सुश्री इंदिरा किसलय 

नागपुर, महाराष्ट्र   

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ स्वास्थ्य संसद 2023: अमृत तत्व-1 ☆ प्रस्तुति – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹स्वास्थ्य संसद 2023: अमृत तत्व-1 ☆ प्रस्तुति – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव🌹

पत्रकार पुरोहित की तरह होते हैः स्वामी ज्ञानेश्वरी

भविष्य की बीमारियों को बताएगा जीनोम सिक्वेंसिंग: गौरव श्रीवास्तव

  • 140 करोड़ लोगों के बीच में मात्र 11 हॉस्पिस
  • 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने में जिनोम सिक्वेंसिंग हो सकता है सहायक
  • 77 हजार तकनीकि विशेषज्ञों पर सरकार ने किया है निवेश

नयी दिल्ली/भोपाल। भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के न्यू कैंपस में स्वस्थ भारत (न्यास) के 8 वें वर्षगांठ पर तीन दिवसीय ‘स्वास्थ्य संसद 2023 का आयोजन हुआ। इस आयोजन में देश भर के स्वास्थ्य संचारक, विचारक एवं अकादमिक लोगों ने भाग लिया। तीन दिनों तक चले मैराथन अमृत-मंथन में अमृतकाल में भारत का स्वास्थ्य एवं मीडिया की भूमिका विषय पर अमृत-चिंतन हुआ। इस चिंतन से निकले अमृत तत्व की पहली किस्त में आज आप पढिए हॉस्पिस, जबलपुर की संस्थापिका स्वामी ज्ञानेश्वरी दीदी एवं हैस्टेक एनालिटिक्स के सीओओ गौरव श्रीवास्तव के विचारों को। 

हास्पिस अस्पताल की संस्थापिका स्वामी ज्ञानेशवरी दीदी ने कहा कि, ‘अभाव में चलते हुए और हर दिन एक नई समस्या का सामना करते हुए भी भाई आशुतोष कुमार सिंह और उनकी पत्नी प्रियंका एवं उनके साथियों ने स्वास्थ्य संसद के रूप में इतना बड़ा एक मंच तैयार किया है, जहां से आज भारत के आखिरी व्यक्ति के स्वास्थ्य समस्या के समाधान पर विचार और उपाय निकालने के लिए हम सभी यहां एकजुट हुए है।’ स्वामी ज्ञानेश्वरी दीदी ने आगे कहा कि, ‘उनके गुरु पूजनीय श्री बांवरा जी महाराज कहते थे कि मीडिया एक पुरोहित की तरह है। जैसे हर घर का पुरोहित होता है वो जो किसी कार्य और उत्सव के लिए दिन और तिथि बताता है और हम उस पर विश्वास करके मानते है। पत्रकार भी उसी पुरोहित की तरह हैं।’

उन्होंने अपने अस्पताल के बारे में बताते हुए कहा कि, हमारा अस्पताल कैसर पीड़ित उन मरीजों को समर्पित हैं जिन्हें डॉक्टर और परिजन भी त्याग देते हैं। यानी अंतिम घड़ी आने पर। यह अमेरिका और ब्रिटेन में काफी चलन में है। हमने 2013 में विराट हॉस्पिस शुरू की। अभी तक भारत में केवल 11 हॉस्पिस है जबकि आबादी 140 करोड़ से अधिक। हास्पिस के जिक्र का मकसद यह है कि मीडिया इस मंच से उठे ऐसी व्यवस्था पर भी सरकार का ध्यान खीचने में मदद करें। मीडिया को कृषि क्षेत्र पर भी फोकस करने की जरूरत है ताकि फसल उत्पादन में जानलेवा खाद का उपयोग बंद हो। ऐसे अन्न और सब्जियां या दूषित दूध का सेवन तो कैंसर की ही सौगात देगा। रोगमुक्त जीवन के लिए जरूरत जैविक खाद के प्रयोग की है।

जिनोम सिक्वेंसिंग के क्षेत्र में काम कर रही अग्रणी कंपनी हेस्टैक ऐनलिटिक्स, मुंबई के को फाउंडर गौरव श्रीवास्तव ने कहा कि आयुष्मान भारत के संकल्प को पूरा करने में जिनोमिक्स तकनीक की अहम भूमिका रहेगी। उन्होंने कहा कि देश में टीबी के निर्मूलन और उपचार के क्षेत्र में एडवांस जिनोमिक्स तकनीक लाखों मरीज़ों को सटीक उपचार की ओर ले जाने की क्षमता विकसित कर सकती है। पहले भी इसका लाभ हज़ारों मरीज़ों को मिल चुका है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके इनोवेटिव आइटी समाधान को ग्राहम बेल अवार्ड तथा स्टार्ट अप ऑफ द ईयर का सम्मान दिया जा चुका है।

उन्होंने आगे बताया कि यह तकनीक आने वाले सालों में जीनोम सीक्वेंस् का अध्ययन कर मरीज पर प्रभाव डालने वाले वायरस, बैक्टीरिया और बीमारी से कौन दवा बचायेगी और किस बीमारी में कौन ज्यादा कारगर होगी, का चुनाव करने में काफी कारगर साबित होगी। मसलन बैक्टीरिया जनित रोग टीबी में मरीज को 4 एंटीबॉयटिक खाने होते हैं। इसमें ज्यादातर मामलों में बैक्टीरिया तीन दवा के प्रति रीज़िस्टेंस पावर अर्जित कर लेता है। ऐसे में 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य पूरा करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए यूके और यूएस में सफल हो चुकी जीनोम सीक्वेंस तकनीक को भारत में लॉन्च करके हेस्टैक एनलिटिक्स ने ना केवल सरकार के सपने को बल्कि आम जनता को भी सही इलाज दिलाने में कारगर पहल की है।

गौरव श्रीवास्तव ने कहा कि, यह काफी हर्ष का विषय है कि भारत के स्वास्थ्य और तकनीक विकास की ओर पूरी दुनिया देख रही है। आने वाला समय भारत का और भारत की तकनीक का है। कोविड में भारत ने न केवल वैक्सीन बनायी बल्कि विकसित देशों में भी भेजी। भारत में लगभग 4000 स्टार्ट-अप ऐसे हैं जो नई तकनीक पर काम कर रहे है। सरकार ने पिछले 10 साल में 77  हजार लोकल तकनीकी विशेषज्ञों पर निवेश किया है। उम्मीद है कि भारत आने वाले 25 वर्षों में विश्व के स्वास्थ्य के लिए तकनीकी और हेल्थ केयर सर्विस में क्रांति लाने वाला देश बन जायेगा। तब भारत ही दुनिया को लीड करेगा।

इसके पूर्व स्वस्थ्य संसद के सभापति एवं एमसीयू के कुलपति प्रो. (डॉ.) के.जी.सुरेश, उपसभाति एस.के.राउत (से.नि. डीजीपी,मध्य प्रदेश), स्वस्थ भारत (न्यास) के चेयरमैन एवं स्वास्थ्य संसद के संयोजक आशुतोष कुमार सिंह, सी-20 समाजशाला के आउटरिच समन्वयक एवं वरिष्ठ विज्ञान संचारक डॉ.मनोज पटेरिया, स्वामी ज्ञानेश्वरी दीदी, गौरव श्रीवास्तव एवं अन्य गणमान्यों ने दीप प्रज्ज्वलन कर स्वास्थ्य संसद का उद्घाटन किया।

साभार –  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

भोपाल, मध्यप्रदेश

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मराठी कौतुकै…. ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मराठी कौतुकै… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

आवडते मज आवडते

मराठीचे हे गौरव गाणे

चिमण्या टिपती दाणे-दाणे

तसे शब्द जणू शुध्दत्वाने

आवडते मज आवडते.

 

पंख वाणीला सरस्वतीचे

माया-ममता या भाषीयेचे

अवीट गोडीत ज्ञानेशाचे

आवडते मज आवडते.

 

लुकलुक चांदणे गगनी

चंद्र शीतल मराठी मनी

तेज तिमीरा भेद अज्ञानी

आवडते मज आवडते.

 

आरती मंदिरी आत्मभक्ती

मराठीचीये तेवती ज्योती

संतांशी ग्रंथ  जोडिती नाती

आवडते मज आवडते.

 

भारतभुमी भिन्न भाषीका

तया मराठी श्रेष्ठ रसिका

मधुर बोल रचे कवणिका

आवडते मज आवडते.

© श्रीशैल चौगुले

मो. ९६७३०१२०९०.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 151 – देहरक्षा ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 151 – देहरक्षा ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

देहरक्षेचे महत्त्व वेश्येला नसते ।

शब्दांनी मन क्रूरतेने चिरते।

वेश्याही माणूस असते।

तिलाही मन आसते।

पोट हीच अडचण नसते।

परतीची वाट बंदच असते।

आयुचे गणित विचित्र असते।

इथे रिटेक तरी कुठे असते।

एक पायारी चुकली की

उत्तर चुकलेलेच असते।

दोष कुणाचाही असो

नेहमी तिच चुकीची असते।

कोवळ्या कळ्या क्रूरपणे

कुस्करतात ते शरीफ ।

कधी प्रेमाच्या जाळ्यात

पकडतात तेही शरीफ।

लग्नाचा बाजार

मांडतात तेही शरीफ ।

बदनाम फक्त तिच असते

मुली पळवणारे सज्जन ।

त्याची दलालही सज्जन

तिथे जाणारेही सज्जन

पूनर्वसनाला काळीमा

फासणारेही सज्जन

बळी पडणारीच !!! दुर्जन

नुसतीच का ठोकायची।

वेश्यांच्या देहरक्षणाची

आहेका हिंमत स्विकारण्याची

ना काम तरी देण्याची

ना नजरा बदलण्याची ।

ढोंगी जगात जगणे नसते।

प्रेम बंधन कुठेच नसते।

जीवन संपवायची हिंमत सार्‍यांना कुठे असते ।

रोजचीच ती मरत असते बदनामी जगत असते ।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ “ढवळी…” ☆ सौ. अमृता मनोज केळकर ☆

? विविधा ?

☆ “ढवळी…” ☆ सौ. अमृता मनोज केळकर ☆

“कोजागरी पौर्णिमेच्या रात्रीचा जन्म आहे म्हणून अमृता इतकी गोरी आहे!” हे माझ्या आईचं लोकांनी विचारलेल्या “इतकी कशी गोरी हो तुमची पोर?” या प्रश्नाला ठरलेलं उत्तर होतं.😅 लहानपणी काहीही वाटत नव्हतं. पण जसजशी समज येत गेली तसतशी गोऱ्या रंगाच्या तोट्यांची कल्पना यायला लागली.😐

जरा मोठी झाल्यावर तर फारच भयानक अनुभव यायला लागले… एका बाईनं चक्क मला विचारलं “तुला कोड आहे का गं?” मला तर त्या वयात कोड म्हणजे काय हेही माहीत नव्हतं. 😂 आणि हो, हे विचारणारी ती एकटीच नव्हती… अनेकांनी अनेकदा मला हाच प्रश्न विचारलेला आहे…🤣 अगदी लहान असताना माझ्या अंगी असलेल्या रेसिस्टपणाचं हे फळ आहे असं मला नेहमी वाटत आलंय. ते कारण म्हणजे माझे बाबा मला माझ्या लहानपणीचा एक किस्सा सांगतात… बाबांना भेटायला त्यांचा एक पोलिस मित्र येणार होता. नेहमीप्रमाणे आईने मला बाबांच्या कडेवर पार्सल केलेलं त्यामुळे ते आणि त्यांच्या कडेवर मी असे आम्ही दोघे त्यांच्या मित्राला भेटायला गेलो. त्यावेळेस मी दोन वर्षांची  असेन… मला बघून बाबांच्या मित्राला आनंद झाला… “प्रमोद किती गोड आहे रे तुझी पोर!” असं म्हणून त्या सावळ्या माणसाने माझ्या गालाला स्पर्श केला. मला ते आवडलं नसावं कदाचित म्हणून मी माझ्या हाताने माझा गाल पुसला आणि बाबांना म्हंटले, “बाबा त्याला सांगा हात नको लावू त्याचा रंग लागेल…” बाबा हसून बेजार झाले… तो इन्स्पेक्टर अगदी ओशाळला… “प्रमोद अरे माझ्यासमोर मान वर करायची हिम्मत होत नाही लोकांची आणि तुझ्या पोरीने पार लाजच काढली माझी एका वाक्यात…”😂

शाळेत गेल्यावर तर आणखी वेगळी तऱ्हा… मी कधीच बॅकबेंचर नव्हते. अगदी पहिल्या बेंचवर बसायला आवडायचं म्हणून वर्गात सगळ्यात आधी येऊन बसायचे. मी बसायचे तिथे नेमकी वर्गाच्या दारातून उन्हाची तिरीप माझ्या चेहऱ्यावर पडायची. एकदा शिकवता शिकवता मध्येच बाईंनी मला उठून मागच्या बेंचवर जाऊन बसायला सांगितलं… मला कळलं नाही की काय झालं… बाई म्हणाल्या, “तुझा चेहरा आणि घारे डोळे मांजरीसारखे चमकतात उन्हात ते बघून शिकवण्यात लक्ष लागत नाहीय.”🤣 काय बोलणार यापुढे? बिच्चारी मी बसले गपचुप मागच्या बेंचवर!😅

अजून एक अनुभव आला तो लग्न ठरल्यावर. लग्न ठरलं की ब्युटी पार्लर हा पर्याय अपरिहार्य असतो हे माझ्या मनावर ठसविण्यात माझी मोठी बहीण यशस्वी झाली होती. त्यामुळे पैसे देऊन भुवया बिघडवून घ्यायला मी पार्लर मध्ये गेलेली असताना माझ्या सोबतच एक बाई तिच्या आठ – नऊ वर्षांच्या मुलाला घेऊन आलेली होती.  तिने पार्लर मधल्या काकुंना विचारलं “मी चेहऱ्याचा काळपटपणा जाण्यासाठी कोणत्या ब्रँडचं क्रीम वापरू?” काकू म्हणाल्या, ” हर्बल क्रीम वापरा एखादं” बाई म्हणाली”मी फेअर अँड लव्हली वापरू का?” काकू म्हणाल्या, “अजिबात नको! चांगलं नाहीये ते स्किन साठी.”  हा सुखसंवाद चाललेला असताना त्या बाईचा मुलगा एकाएकी माझ्याकडे बोट दाखवून तिला म्हणाला, “आई तू कोणतंही क्रीम लावलंस तरी या ताईसारखी गोरी नाही होणार!” हा घरचा आहेर मिळाल्यावर बाई पेटलीच एकदम… माझ्यावरच घसरली… “काही कामधंदे नसतील त्या ताईला… आम्ही उन्हा तान्हात काम करून रापतो!” माझं हसू मी दाबून ठेवण्याच्या नादात तिला प्रत्युत्तर द्यायचं राहूनच गेलं…🤣 तात्पर्य: मुलांना पार्लर मध्ये आणू नये ती खूप खरं बोलतात.😬

माझ्या लग्नात पण “कशी दिसतेय जोडी, अगदी ब्लॅक अँड व्हाईट!” असं चिडवणारी भावंड मागल्याजन्मीचं उट्टं काढायला आलेली पितरं असावीत असा विचार मनात येऊन गेला…😅 नवऱ्याचे मित्र देखील कमी नव्हते त्यात – “पार्लरचा खर्च वाचवलास लेका!” असं म्हणणारे!

एकदा आईसोबत पुण्यात तिच्या एका मैत्रिणीकडे जायचं होतं. एक रात्र मुक्काम करावा लागणार होता. गप्पा, जेवणं वगैरे उरकल्यावर मी माझं अंथरूण आईच्या बेडशेजारी जमिनीवर अंथरलं. झोपून गेले. रात्री तहान लागली म्हणून पाणी प्यायला उठले तर लक्षात आलं की आईची मैत्रीण पण उठून बसली आहे आणि आपल्याकडे विस्मयाने एकटक पाहत आहे! माझी घाबरगुंडी उडाली! हे काय आता… या बाईला वेड – बीड लागलं आहे की काय? पाणी न पिता तशीच गपचुप झोपून गेले. सकाळी उठल्यावर घडलेला प्रकार आईला सांगितला. आईने तिला विचारलं का बघत होतीस रात्री अमृताकडे? तर ती म्हणाली, “अगो नीलांबरी, तुझ्या मुलीचा चेहरा रात्री चमकत होता. खूप तेज दिसत होतं तिच्या चेहऱ्यावर! रुक्मिणीस्वयंवरात जसं वर्णन आहे अगदी तसंच!” मग मी “नाही हो, तो बाहेरचा प्रकाश शोकेसच्या काचेवर पडून माझ्या तोंडावर रिफ्लेक्ट होत होता.” असं सांगून समजावण्याचा निष्फळ प्रयत्न केला. दुपारपर्यंत माझ्या चेहऱ्यावरचं ‘ तेज ‘ पहायला त्यांच्या आणखी काही अध्यात्मिक मैत्रिणी जमल्या. आई मात्र माझ्याकडे पाहून गालातल्या गालात हसत होती…😂

आमच्याकडे सैरंध्री नावाची एक आजी धुणी- भांडी करायला येत होती. माझी आणि तिची चांगली गट्टी होती… खूप प्रेमळ होती ती… सैरंध्री लांबूनच मला पहायची. मी दिसले नाही अंगणात तर लगेच आजीला विचारायची “तुमची ढवळी कुठाय वैनी?” तिने केलेलं माझं ‘ ढवळी ‘ हे नामकरण मला अजिबात आवडत नव्हतं. मी आईला विचारलं, आई ढवळी म्हणजे काय गं? आई म्हणाली, “खूप गोरी”…

ढवळी! खरंच कितीतरी रंग आणि अंतरंग पहायला मिळाले या एका गोऱ्या रंगामुळे! कधी अगदी डांबरट तर अगदी साधीभोळी रंगाने कितीही सावळी असली तरी मनाने अगदी शुभ्र, निर्मळ. काय भुललासी वरलिया रंगा… या अभंगासारखी अभंग! त्यामुळे परमेश्वराच्या कृपेने कधीही गोऱ्या रंगाबद्दल अहं मनात डोकावला नाही. तसंच मिळालेल्या वर्णाबाबत कधी वैषम्य सुद्धा वाटलं नाही. कधीकधी सैरंध्रीची हाक आठवते… “ढवळे, चुलिपाशी जाऊ नको बाय अंगाला काळं लागेल गो!” मी मोठी झाल्यावर मला कळलं की सैरंध्रीची नात साथीच्या रोगात वारली होती. ती माझ्याइतक्याच वयाची होती. मला बघून डोळ्यांत पाणी यायचं तिच्या! अनेक वेळा वाटलं असेल तिला मला उचलून कडेवर घ्यावंसं माझ्या चेहऱ्यावरून मायेनं हात फिरवावा असं… पण परत नाही अडकली ती त्या मायेच्या स्पर्शात… आता वाटतं चुलिपाशी जाऊन अंग राखेने माखून घेतलं असतं तर कदाचित सैरंध्रीने मला उचलून घेतलं असतं… माझा ढवळा रंग तिला नक्की लागला असता…

✍️ सौ. अमृता मनोज केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares