श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हास्य और व्यंग्य।)  

? अभी अभी ⇒ हास्य और व्यंग्य? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

हास्य, हंसने की चीज है, व्यंग्य समझने की चीज है। किसी बात को बिना समझे भी हंसा जा सकता है, और किसी बात को समझने के बाद हंसी गायब भी हो सकती है। यूं तो हास्य और व्यंग्य का चोली दामन का साथ है लेकिन अगर अंडे मुर्गी की तरह पूछा जाए कि पहले हास्य आया या व्यंग्य, तो शायद हास्य ही बाज़ी मार ले जाए।

व्यंग्य को बुरा भी लग सकता है कि जीवन में हास्य को व्यंग्य से अधिक महत्व  क्यों दिया गया है। जिस प्रकार हास्य और व्यंग्य की जोड़ी है, वैसे ही हंसी और खुशी की भी जोड़ी है। अगर आप हंस रहे हैं और खुश नहीं हैं, तो यह फीकी हंसी है। इसी तरह जो व्यंग्य आपमें निराशा अथवा अवसाद की उत्पत्ति करे, वह भी व्यंग्य नहीं है। सकारात्मकता हास्य और व्यंग्य दोनों के आवश्यक तत्व हैं। हास्य अगर आपको हंसा सकता है तो व्यंग्य आपको गुदगुदा भी  सकता है और चिकौटी भी काट सकता है, लेकिन आपको आहत नहीं कर सकता, आपकी आत्मा को कष्ट नहीं पहुंचा सकता। ।

एक नवजात शिशु, अपनी मां के पास लेटा है। रात का वक्त है, मां गहरी नींद में सो रही है। अचानक बालक की आंख खुलती है, उसके शरीर में हलचल होती है। उसने बाबा रामदेव का न तो नाम सुना है और न ही कोई योग की ट्रेनिंग ली है। कुछ ही समय में वह उघाड़ा पड़ा हुआ, हाथ पांव चला चलाकर व्यायाम कर रहा है और ज़ोर ज़ोर से किलकारी मार रहा है।

मां की नींद खुलती है, किंकर्तव्यविमूढ़ हो वह उसे प्यार से अपने आंचल में छुपा लेती है। इस किलकारी का कोई मोल नहीं। हास्य और व्यंग्य इसके आगे पानी भरते हैं।

अक्सर बच्चे बात बात पर ताली बजाकर हंसते रहते हैं। उनका हंसना, खिलखिलाना, एक कली का मुस्कुराना है, एक फूल का खिलना है। बच्चों में ज़िन्दगी की सुबह है, बुढ़ापे में ज़िन्दगी की शाम है। अगर जीवन में हास्य बोध है तो ज़िन्दगी की शाम भी रंगीन है। ।

किसी पर हंसना अथवा किसी का अपमान करना या उस पर ताने कसना , न तो हास्य की श्रेणी में आता है और न ही व्यंग्य की श्रेणी में। नवरस में हास्य को भी रस माना गया है। विसंगति में भी रस की निष्पत्ति जहां है, वह व्यंग्य है। व्यंग्य एक साहित्यिक विधा है, हास्य , एक स्वस्थ जीवन का निचोड़ है।

अपने कई हास्य फिल्म देखी होगी। व्यंग्य फिल्माया नहीं जा सकता। सिनेमा और नाटक में हास्य कलाकार और विदूषक होते हैं, व्यंग्य कलाकार नहीं। पंच मारा जा सकता है। पंच पर भी ताली ठोकी जा सकती है।

हास्य को अंग्रेजी में laughter कहते हैं। एक कहावत भी है – Laughter is the best medicine. अनावश्यक हंसना अथवा मौके की नज़ाकत को देखे बिना हंसना, पागलपन की निशानी है। जीवन में हास्य बोध होना बहुत ज़रूरी है। जिन लोगों में sense of humour नहीं है, लोग उनसे दूर रहना ही पसंद करते हैं। क्या भरोसा, कब खसक जाए। ।

जब भी व्यंग्य की चर्चा होगी, कबीर को अवश्य याद किया जाएगा। सहज शब्दों में गूढ़ार्थ एवं शब्दों की मार एक साथ और कहीं देखने को नहीं मिलती। धार्मिक पाखंड और अंध विश्वास पर मुगल शासन में प्रहार कोई जुलाहा ही कर सकता है। काहे का ताना, काहे का बाना। समाज की विसंगतियां ही व्यंग्य को समृद्ध करती हैं। कांग्रेस का कुशासन व्यंग्य के लिए वरदान सिद्ध हुआ। अब सुशासन में व्यंग्य चुभने लगा है। हास्य बोध का स्थान आक्रोश और क्रोध ने ले लिया है। व्यंग्यकार को सकारात्मक व्यंग्य की ऐसी  विधा तलाशनी पड़ेगी जो सत्ता को भी नाखुश ना करे।

अभी कुछ दिन पहले कपिल के कॉमेडी शो पर अनुपम खेर और सतीश कौशिक का पदार्पण हुआ। क्या हंसी के ठहाके लगे हैं, दोस्ती दुश्मनी की मीठी यादों की चाशनी में सराबोर, दोनों कलाकारों ने ऐसा समां बांधा कि लगा बहुत दिनों बाद कोई अच्छा प्रोग्राम देखने को मिला है। अपनी असफलताओं पर हंसना कोई सतीश कौशिक से सीखे।

खुद पर हंसना श्रेष्ठ है। मिल जुलकर हंसना स्वस्थ रहने की निशानी है। विकृत राजनीति के चलते हंसी खुशी का स्थान निंदा स्तुति ने ले लिया है। जब आप साल भर बुरा मानते रहे हैं, तो होली पर बुरा न मानो होली है, का भी क्या औचित्य ? किलकारी न सही, कहकहे तो लग सकते हैं, खुले मन से अट्टहास तो किया जा सकता है। हास परिहास ही जीवन है। किसने कहा, हंसना मना है। ।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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