मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – मातीत मुळे रुजताना… – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– मातीत मुळे रुजताना…– ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

मूळास ओटीपोटी धरूनी

माती मजला उठ म्हणाली

फोडून  माझे अस्तर वरचे

पानोपानी हळू फुट म्हणाली

मी न सोडीन मूळास कधीही

तुझ्या कुवतीने वाढ म्हणाली

नभास पाहंन हरकून मीही

पिसार्‍यासम फुलत राहीली

काही दिसानी सर्वांगावरती

इवले इवले कळे लागले

क्षणाक्षणांनी कणाकणांनी

ते ही हळूहळू वाढू लागले

पहाटे अवचित  जागी होता

गंधाने मी पुलकीत झाले

अय्या आपला चाफा फुलला

आनंदाने कुणी ओरडले

भराभरा घरातील सगळे

माझ्या भवती झाले गोळा

फुलवती मी गंधवती मी

मीअनुभवला गंध सोहळा

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 139 – आकर ऐसे चले गये… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आकर ऐसे चले गये।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 139 – आकर ऐसे चले गये…  ✍

आकर ऐसे चले गये तुम

ज्यों बहार का झोका

मत जाओ प्रिय, रुक जाओ प्रिय

मैंने कितना रोका।

 

मैं बैठा था असुध अकेला

दी आवाज सुनाई,

जैसे गहरे अंधकूप में

किरन उतरती आई।

रोम रोम हो गया तरंगित, लेकिन मन ने टोका।

 

तुम आये तो विहँस उठा मैं

आँख अश्रु से घोई

जैसे कोई पा जाता है

वस्तु पुरानी खोई ।

मिलन बना पर्याय विरह का, मिलन रहा बस धोखा।

 

जाना दिखता पर्वत जैसा

धीरज जैसे राई

इतना ही संतोष शेष है

केवट की उतराई ।

आश्वासन जो दिया गया है, बार बार वह धोखा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 138 – “नियत तिथी की तैयारी में…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  नियत तिथी की तैयारी में)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 138 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

नियत तिथी की तैयारी में 

आँखों भरे उजास

खीर पूड़ी का स्वप्न नया

पिण्डदान के लिये

रामजस परसों गया, गया

 

लौट बाप की बरसी का

वह पुण्य लाभ लेगा

कुछ ज्यादा होगा कर्जा

पर फर्ज चुका देगा

 

राम रतन ने अपने

दद्दा की तेरहवीं में

मालपुये खिलवाये घी

के खालिश, तसमई में

 

इस विचार को लिये

रामजस बैठा गाड़ी में

नाम कमाना भी आवश्यक

जीवन में कृपया

 

फिर उधेडबुन को

सुलझाता पहुँचा बनियेके

बडी आरजू मिन्नत से

समझा पाया वह, ये –

 

एक एक पैसा चुकता

कर दूँगा मैं तेरा

खडी फसल है गेहूँ की

कर तू यकीन मेरा

 

कर्जे का मिलना भी तो है

एक बड़ी राहत

जब कि फँसा लोगों को

बनिया करता है, मृगया

 

नियत तिथी की तैयारी में

जुटा समूचा घर

क्या , कैसा, होना होगा

अच्छा, इस मौके पर

 

इधर गाँव के लोग कर्ज के

धन पर ध्यान रखे

और कल्पनाओं में सब

डूबे मशगूल दिखे

 

लोगों ने तय किया

रामजस का कर्जे का धन

सारा खर्चा जाये जिसमें

बचे न  इक रुपया

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

11-05-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – कविता ??

चलो

कुछ न करें

और रचें एक कविता…

 

सुनो,

कुछ न करने से

क्या रची जा सकती है

एक कविता..?

 

भगीरथ के

अथक परिश्रम से

पृथ्वी पर उतरी थी गंगा,

साठ हजार कुदालों के

स्वेद-कणों से

धारा बन बही थी गंगा,

अनुभूति की निर्मल

भगीरथी जब

सरस्वती होती है,

कविता

मन-मस्तिष्क से

कागज़ पर

अवतरित होती है…

 

कविता

कर्मठता की उपज है,

कर्म, निरीक्षण

और

चिंतन-मनन की समझ है,

तो फिर तुम्हीं कहो

कुछ न करते हुए

कैसे रची जा सकती है

एक कविता..?

 

और सुनो-

बिना अनुभव के

कैसी पढ़ी और समझी

जा सकती है कविता..?

© संजय भारद्वाज 

(गुरुवार दि. 2 जून 2016, संध्या 7:10 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ “अन्तरराष्ट्रीय मदर्स डे (मातृदिन) – एक पहलू ऐसा भी…” ☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆

डॉक्टर मीना श्रीवास्तव

☆ “अन्तरराष्ट्रीय मदर्स डे (मातृदिन) – एक पहलू ऐसा भी…” ☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆

नमस्कार पाठकगण,

अन्तरराष्ट्रीय मदर्स डे (मई महीने का दूसरा रविवार) अर्थात मातृदिन की सबको शुभकामनाएं! 🌹

यह मातृदिन आज के ही दिन क्यों मनाया जाता है, इस प्रश्न का उत्तर ढूंढते हुए मुझे कुछ दिलचस्प और साथ ही विचारणीय जानकारी हाथ लगी| मदर्स डे का सबसे पुराना इतिहास ग्रीस के साथ जुड़ा है| वहाँ ग्रीक देवी देवताओं की माता की आदर सहित पूजा की जाती थी| माना जाता है कि, यह मिथक भी हो सकता है | परन्तु आज अस्तित्व में रहे मदर्स डे की शुरुवात करने का श्रेय ज्यादातर लोग अॅना रीव्ह्ज जार्विस (Anna Reeves Jarvis) को ही देते हैं| उसका अपनी माता के प्रति (अॅन मारिया रीव्ह्ज- Ann Maria Reeves) अत्यधिक प्रेम था| जब उसकी माता का ९ मई १९०५ को निधन हुआ, तब अपनी माता तथा सभी माताओं के प्रति आदर और प्रेम व्यक्त करने हेतु एक दिन होना चाहिए ऐसा उसे बहुत तीव्रता से एहसास होने लगा| इसलिए उसने बहुत अधिक प्रयत्न किये और वेस्ट व्हर्जिनिया में आन्दोलन की शुरुवात की| तीन साल के बाद (१९०८) अँड्र्यूज मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च में प्रथम अधिकृत मदर्स डे सेलिब्रेशन का आयोजन किया गया| वर्ष १९१४ को अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष वुड्रो विल्सन ने अॅना जार्विस की कल्पना को मान्यता देते हुए मई महीने के प्रत्येक दूसरे रविवार को राष्ट्रीय अवकाश (छुट्टी) को मान्यता देनेवाले विधेयक पर हस्ताक्षर किये| फिर यह दिन धीरे धीरे अमरीका से युरोपीय और अन्य देशों में और बाद में सारे जगत में अन्तरराष्ट्रीय मदर्स डे के रूप में मान्य किया गया|

कवी तथा लेखिका ज्यूलिया वॉर्ड होवे (Julia Ward Howe) ने इस आधुनिक मातृदिन के कुछ दशक पहले अलग कारण के लिए ‘मातृशांति दिन’ मनाये जाने के लिए प्रचार किया। अमरीका और युरोप में युद्ध के चलते हजारों सैनिक मारे गए, अनेक प्रकार से जनता ने कष्ट और पीड़ा झेली और आर्थिक हानि हुई सो अलग| इस पार्श्वभूमि पर एकाध दिन युद्धविरोधी कार्यकर्ताओं ने एक साथ आकर मातृदिन मनाये जाने की कल्पना जग में फैलनी चाहिए, ऐसा ज्यूलिया को लग रहा था| उसकी कल्पना यह थी कि, महिलांओं को वर्ष में एक बार चर्च या सोशल हॉल में एकत्रित होने के लिए, प्रवचन सुनने के लिए, अपने विचार प्रकट करने के लिए , ईश्वरभक्ति के गीत प्रस्तुत करने के लिए और प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और उनके लिए ऐसा एकाध दिन तय करना चाहिए। इस कृति से शांति में वृद्धि होगी और युद्ध का संकट टल जायेगा, ऐसा उसे लग रहा था|

परन्तु ‘एकसंध शांतता-केंद्रित मदर्स डे’ मनाये जाने के ये प्रारंभिक प्रयत्न पीछे रह गए क्योंकि, तब तक व्यक्तिगत रूप से मातृदिन मनाया जाने की दूसरी संकल्पना ने जोर पकड लिया था| इसका कारण था व्यापारीकरण! नॅशनल रिटेल फेडरेशन द्वारा २०१९ में प्रकाशित हुए आंकड़ों के अनुसार आजकल मदर्स डे अमरीका में $२५ अरब जितना महँगा अवकाश का दिन बन गया है| वहाँ लोग इस दिन मां पर सबसे अधिक खर्चा करते हैं| ख्रिसमस और हनुक्का सीझन (ज्यू लोगों का ‘सिझन ऑफ जॉय’) को छोड़ मदर्स डे के लिए सब से अधिक फूल खरीदे जाते हैं| आलावा इसके गिफ्ट कार्ड, भेंट की चीजें, गहने, इन पर $५ अरब से भी अधिक खर्चा किया जाता है| इसके अतिरिक्त विविध स्कीम के अंतर्गत स्पेशल आउटिंग भी बहुत लोकप्रिय है|

अॅना रीव्ह्ज जार्विस को इसी कारण मातृप्रेम पर आधारित उसकी कल्पना के बारे में दुःख हो रहा था| उसके जीवन काल में, वह फ्लोरिस्ट्स (फूल बेचने वाली इंडस्ट्री) के आक्रमक व्यापारीकरण के विरोध में अकेले लडी. परन्तु दुर्भाग्य ऐसा था कि, इस बात के लिए उसे ही जेल जाना पडा| इस अवसर पर माता के प्रति भावनाओं का गलत तरीके से राजनितिक लाभ उठाना, धार्मिक संस्थाओं के नाम पर निधि इकठ्ठा करना, ये बातें भी उसकी आँखों के सामने घटित हो रही थीं|  जार्विस ने वर्ष १९२० में एक अत्यंत महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किया| उसने कहा, ‘यह विशेष दिन अब बोझिल और फालतू बन गया है| माँ को महंगे गिफ्ट देना, यह  मदर्स डे मनाने का योग्य मार्ग नहीं है|’  वर्ष १९४८ में, ८४ की उम्र में, जार्विस की एक सॅनेटोरियम में एकाकी रूप में मृत्यु हुई| तब तक उसने अपना सारा पैसा मदर्स डे की छुट्टी के व्यापारीकरण के खिलाफ लडने के लिए उपयोग कर खर्च कर दिया था| इस बहादुर और उन्नत विचारों की धनी वीरांगना स्त्री को आज के मातृदिवस पर मैं नतमस्तक हो कर प्रणाम करती हूँ| उसका छायाचित्र लेख के साथ जोडा है|

मित्रों, जब मैंने यह जानकारी पढी तब मेरे मन में विचार आया कि, क्या सचमुच ही माँ की ऐसी महँगी अपेक्षाएं रहती हैं? सच में देखें तो, अपेक्षा रहित प्रेम करना ही स्थायी मातृभाव होता है| फिर उसे व्यक्त करने के लिए इस खालिस व्यापारिक रवैये को बढ़ावा देकर पुष्ट करना क्या ठीक है? बहुतांश माताओं को ऐसा लगता है कि, इस दिन उनके बच्चों ने उन्हें केवल अपना समय देना चाहिए, उनसे प्रेम के दो शब्द बोलना चाहिए, माँ के साथ बिताए सुंदर क्षणों की यादें ताज़ातरीन करनी चाहिए। गपशप करना और साथ रहना, बस! इसमें एक ढेले का भी खर्चा नहीं होगा। मेरे विचार में यहीं सबसे बहुमूल्य गिफ्ट होगा आज के मदर्स डे का अर्थात मातृदिन का!

धन्यवाद!  🌹

डॉक्टर मीना श्रीवास्तव

दिनांक – १४ मई २०२३

फोन नंबर: ९९२०१६७२११

(टिपण्णी- इस लेख के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी उपयोग किया है| कृपया लेख को अग्रेषित करना हो तो मेरा नाम एवं फोन नंबर उसमें रहने दें!)

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 40 ⇒ लाखों का सावन…☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लाखों का सावन ।)  

? अभी अभी # 40 ⇒ लाखों का सावन? श्री प्रदीप शर्मा  ?  ०००

 एक वह भी ज़माना था, (आप समझ गए) हाँ, वह कांग्रेस का ज़माना था, जब सावन लाखों का होता था, और नौकरी दो टके की, यानी 90-ढाई की ! मास्टर गाँव में पड़ा रहता था, और नई नवेली बहू शहर में सास-ससुर की सेवा करते हुए आनंद बक्षी का यह गीत सुनकर पति-परमेश्वर को कोसा करती थी।

उसे भी अपने मायके के सावन के झूले याद आया करते थे।

अब वह न घर की थी, न नाथ की।

समय बदलते देर नहीं लगती।

जो नौकरी कभी टके की थी, वह लाखों की हो गई, और लाखों का सावन टके का हो गया। सावन लगने पर किसी को आज उतनी खुशी नहीं होती, जितनी तनख्वाह में इन्क्रीमेंट लगने पर होती है।

तब भी सावन लगने से ज़्यादा खुशी हमें गुरुवार को शहर के थिएटर में नई फिल्म लगने पर होती थी। आज भी अच्छी तरह से याद है कि आया सावन झूम के जब रिलीज़ हुई थी, तो झूमकर बारिश हुई थी। जिनके पास छाते नहीं थे, वे सावन का मज़ा झूमकर ही नहीं भीगकर भी ले रहे थे। ।

कितनी फुरसत थी, जब सावन आता था ! श्रावण सोमवार को गाँधी-हॉल का बगीचा खचाखच महिलाओं और बच्चों से भर जाता था। पेड़ों पर झूले बाँध दिये जाते थे, जिन पर युवतियां जोड़े से झूला करती थी। ऊपर जाना, नीचे आना, ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव को हँसते-हँसते झेलना, यही तो ज़िन्दगी का मेला होता था। बच्चों के लिए तो पुंगी और फुग्गे ही काफी थे। घास में लोटना और कोड़ा-बदाम छाई खेलना। घर की बनाई पूरी/पराँठे के साथ आलू/भिंडी की सब्जी, प्याज-अचार, और गाँधी-हॉल के गेट से दो रुपये का नमकीन मिक्सचर। बगीचे की घास पर मूँगफली के बचे हुए छिलके थे। बस, यही लाखों का सावन था।

समय ने करवट बदली ! सियासत ने अपना रंग बदला, ढंग बदला।

सावन की जगह बदले का मौसम आ गया। 60 साल से सोलह साल तक का पागल मन तलत का यह गीत गुनगुनाने लग गया !

बदली, बदली दुनिया है मेरी। वह बादल की बदली की नहीं, डिजिटल इंडिया की बात कर रहा है, वह सावन की बारिश में भीगकर बंद एटीएम तक नहीं जाना पसंद करता। paytm का आनंद लेता है, और  रेडियो मिर्ची पर मन की बात सुना करता है।

आजकल की फिल्मों ने भी सावन का दामन छोड़ दिया है,

संगीत ने मधुरता खो दी है,

तो गानों ने अर्थ खो दिया है।

व्यर्थ की फिल्में करोड़ों कमा रही है तो पद्मिनी पद्मावत बनी जा रही है। सावन कहीं प्यासा है तो  कहीं अभी से ही सावन-भादो की झड़ी लगी जा रही है। संगीत की स्वर-लहरियां मेरे कानों में गूँज रही हैं। नेपथ्य में फ़िल्म आया सावन झूम के का गाना बज रहा है। मन भी आज यही कह रहा है, सावन आज भी लाखों का है, सावन को आने दो।।

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ माइक्रो व्यंग्य # 188 ☆ बैठे-ठाले — “जेंडर चेंज…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक माइक्रो व्यंग्य  – ——)

☆ माइक्रो व्यंग्य # 188 ☆ बैठे-ठाले — “जेंडर चेंज…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

आंख खोलकर जब दुनिया देखता हूं तो बड़ी विषमता नजर आती है। अमीर है गरीब है, नर है नारी है, युद्ध है शान्ति है। बैठे – ठाले सोचा कि इन दिनों नारी सशक्तिकरण के नाम से खूब योजनाएं चल रहीं हैं।  अगले गणतंत्र दिवस परेड में तो अब सिर्फ महिलाएं ही परेड करेंगी ऐसी बात चल रही है। कहीं एक हजार महीना मिल रहा है, कहीं फ्री सिलेंडर मिल रहे हैं, कहीं आवास बन रहे, कहीं साइकल, तो कहीं लैपटाप, कहीं दहेज का समान और न जाने क्या क्या…! ऐसे अनेक तरह के फायदे का लाभ उठाने के लिए सोचा, बैठे ठाले क्यों न जेंडर चेंज करा लूं।

सुना है यूक्रेन के खिलाफ एक साल से भी लंबे समय से चल रही जंग में बार्डर पर जाने से बचने के लिए रूस के पुरुष जेंडर चेंज कराकर महिला बन रहे हैं। रूस में जेंडर चेंज कराना बड़ा आसान है।  जेंडर चेंज कराने के लिए किसी तरह के आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती।

अपने यहां तो बिना आपरेशन ऐसा हो नहीं सकता, अपने यहां आम आदमी की थथोलने की प्रवृत्ति है। रूस में तो जेंडर चेंज करने के लिए सिर्फ मनोवैज्ञानिक टेस्ट होता है। इस टेस्ट में यह पाए जाने पर कि कोई व्यक्ति खुद को मानसिक तौर पर महिला महसूस करता है तो उसे कानूनन महिला मान लिया जाता है। उन्हें महिलाओं के मिलने वाले हर अधिकार मिल जाते हैं।  अपने यहां ऐसा हो जाए तो नेता लोग तुरंत जेंडर चेंज करवा कर वोट मांगने पहुंच जाएंगे, और महिलाओं को मिलने वाले हर अधिकार पर कब्जा कर लेंगे। रूस में कानून इतने सरल हैं कि कोई पुरुष सुबह उठता है और सोचता है कि अब वह महिला बनना चाहता है तो शाम तक बन जाता है। अपने यहां ऐसे होने लगे तो ये 140 करोड़ का देश एक दिन में ‘महिला राष्ट्र’ बन जाएगा, पर बजरंगबली यहां ऐसा होने नहीं देंगे।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 129 ☆ # हमने साथ साथ… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# हमने साथ साथ… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 129 ☆

☆ # हमने साथ साथ… # ☆ 

हमने गुजारा है

यह वक्त साथ साथ

वक्त के थपेड़ो को

झेला है साथ साथ

 

तूफानों ने कोई

कसर नही छोड़ी

जब भी मौका मिला

कश्ती मेरी तोड़ी

हमने बनाया है

नयी कश्ती को साथ साथ

 

एक वक्त ऐसा आया

अपनों ने साथ छोड़ा

सुनहरे सपनों को

बेरहमी से तोड़ा

हमने नये सपनों को

फिर देखा है साथ साथ

 

जिन पौधों को लगाया था

कि खिलेंगे फूल यहां

वो खुशबू बिखेरेंगे, महकेंगे

गुलशन में वहां

हमें कांटे मिले, जिसे चुना है

हमने साथ साथ

 

खुशियां उधार की

जमाने में बहुत मिली

उनकी उमर छोटी थी

कुछ देर तक चली

खुशियां ढूंढते रहे

हम जीवन भर साथ साथ

 

यह रिश्ते नाते, दिखावे का प्यार

एक खूबसूरत भरम है

बुजुर्ग मां-बाप, एक बोझ है

कहते बेशरम है

पति पत्नी का रिश्ता अटूट है

जो हम निभा रहे हैं साथ साथ/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचना/Information ☆ रा.तु.म. नागपुर विश्वविद्यालय के भाषा विभाग द्वारा महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत साहित्यकार सम्मानित”– अभिनंदन ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

(सुश्री इन्दिरा किसलय जी सम्मानित)

? रा.तु.म. नागपुर विश्वविद्यालय के भाषा विभाग द्वारा महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत साहित्यकार सम्मानित”– अभिनंदन ?  

विदर्भ में ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ यही विषय था विचार गोष्ठी का जो राष्ट्रसन्त तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के भाषा विभाग द्वारा आयोजित किया गया था। जिसमें सर्व श्री मनोज पाण्डेय, डाॅ वीणा दाढ़े, श्री श्रीपाद भालचंद्र जोशी, श्री राजेन्द्र पटोरिया ने प्रतिपाद्य विषय पर बहुकोणीय चिन्तन पेश किया।

कार्यक्रम के उत्तर अंश में महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत साहित्यकारों का सम्मान- पत्र देकर सत्कार किया गया।

इस शानदार पहल के श्रेयार्थी हैं नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग प्रमुख डाॅ मनोज पाण्डेय

इस गरिमामय अवसर पर उपस्थित थे सर्व श्री–संतोष पाण्डेय बादल,अविनाश बागड़े,नरेन्द्र परिहार,बालकृष्ण महाजन,कृष्णकुमार द्विवेदी, कृष्ण नागपाल, नीरज श्रीवास्तव,श्री सूर्यवंशी, डाॅ विनोद नायक, डाॅ कृष्णा श्रीवास्तव,डाॅ सुरेखा ठक्कर, सुश्री यामिनी रामपल्लीवार, डाॅ प्रभा ललित सिंह, नेहा भंडारकर, सुधा काशिव, प्रभा मेहता, दीप्ति कुशवाह, सुरेखा देवघरे, मधु शुक्ला तथा इन्दिरा किसलय

? ई-अभिव्यक्ति की ओर से इस अभूतपूर्व उपलब्धि के लिए सभी सम्मानित साहित्यकारों का अभिनंदन एवं हार्दिक बधाई ?

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मधुमालती… ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

सुश्री विभावरी कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मधुमालती… ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

फुललेली मधुमालती सुंदर दिसते

मंद सुगंध सगळीकडे पसरते

साधे पणाने मन प्रफुल्लित करते

पण तिला देवघरात स्थान नसते

 

कधी केसात वेणी बनून असते

कधी मुलांचे खेळणे बनते

कधी नुसतीच पायदळी जाते

कधी कचरा म्हणून हिणवली जाते

 

तरीही रोज रोज फुलते

आनंदाने बहरत जात असते

बघणाऱ्यांना आनंद देत असते

जणू आपल्याला संदेशच देत असते

 

कुणी कसेही वागले

कुठेही स्थान नसले

कोणी काळजी घेणारे नसले

तरीही आपण आपला धर्म सोडू नये

घेतला वसा टाकू नये

आनंद व सुगंध देणे थांबवू नये

 

© सुश्री विभावरी कुलकर्णी

सांगवी, पुणे

मोबाईल नंबर – ८०८७८१०१९७

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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