मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆  शुद्धीकरणाचे ११ प्रकार.… ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर ☆

? वाचताना वेचलेले ?

☆  शुद्धीकरणाचे ११ प्रकार ✨ ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर ☆ 

१. शरीर शुद्ध होते, पाणी आणि  व्यायामामुळे !

२. श्वसन शुद्ध होते, प्राणायाम केल्यामुळे !

३. मन शुद्ध होते, ध्यान आणि प्रार्थनेमुळे !

४. विद्वत्ता ही अधिक शुद्ध होते, ज्ञानामुळे !

५. स्मरणशक्ती शुद्ध होते, चिंतन आणि मननामुळे !

६. अहंभाव शुद्ध होतो, सेवा केल्यामुळे !

७.”स्वभाव” शुद्ध होतो, मौनामुळे !

८. अन्न शुद्ध होते, श्लोक म्हटल्यामुळे !

९. संपत्तीचे शुद्धीकरण होते, दान केल्यामुळे !

१०. भावनांचे शुद्धीकरण होते, प्रेमामुळे !

‌११. शेवटी अंतःकरण शुद्धीकरण होतं, सद्गुरुकृपेने !

संग्राहक : श्री अनंत केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ गुरूदेव दत्त… ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

☆ ? गुरूदेव दत्त… ? ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक 

कटी नेसून पितांबर

उभे दत्तात्रय गाभारी,

शांत प्रकाश समयांचा

तेज विलसे मुखावारी !

अशा प्रसन्न मंदिरात

दत्त भजावा परोपरी,

जाता शरण मनोभावे

चिंता कशास उरे उरी !

छायाचित्र – दीपक मोदगी, ठाणे.

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

२१-०२-२०२३

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086

ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #171 – नवगीत – दूर जड़ों से हो कर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण नवगीत – “दूर जड़ों से हो कर……”)

☆  तन्मय साहित्य  #171 ☆

☆ नवगीत – दूर जड़ों से हो कर… 

घर छूटा, परिजन छूटे

रोटी के खातिर

एक बार निकले

नहीं हुआ लौटना फिर।

 

वैसे जो हैं वहाँ

उन्हें भी भूख सताती

उदरपूर्ति उनकी भी

तो पूरी हो जाती,

 

घी चुपड़ी के लिए नहीं

वे हुए अधीर….।

 

दूर जड़ों से होकर

लगा सूखने स्नेहन

सिमट गए खुद में

है लुप्त हृदय संवेदन,

 

चमक-दमक में भटके

बन कर के फकीर….।

 

गाँवों सा साहज्य,

सरलता यहाँ कहाँ

बहती रहती है विषाक्त

संक्रमित हवा,

 

गुजरा सर्प, पीटने को

अब बची लकीर….।

 

भीड़ भरे मेले में

एक अकेला पाएँ

गड़ी जहाँ है गर्भनाल

कैसे जुड़ पाएँ,

 

बहुत दूर है गाँव

सुनाएँ किसको पीर…।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “बची रहेंगी निशानियां” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

  ☆ कविता ☆ “बची रहेंगी निशानियां ? ” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

राजधानी में हूँ 

भरा पड़ा है

नेताओं के चेहरों से

सब जैसे

एक दूसरे से ज्यादा

लोकप्रिय दिखने की होड़ में !

पहले कुछ घाट,  कुछ समाधियां आईं

समर्थकों ने संभाली इनकी स्मृतियां जैसे !

कितनी कोशिश रहती है इंसान की

अपनी निशानियां छोड़ने की !

बड़े बड़े राजे महाराजा भी

यही करते आये !

सब मिट्टी में मिलता रहा !

पिरामिड के अंदर भी

कुछ न मिला

और ताजमहल के भीतर भी खालीपन !

काल पात्र तक !

कोई निशानी न बची किसी की !

फिर हम

किस अंधी दौड़ में शामिल हैं ?

क्या पाने के लिए ?

जैसे पानी में कंकर फेंकते हैं

वैसे ही मैं पूछता हूँ खुद से

कोई जवाब नहीं

बस पानी की तरंगों

जैसी हलचल है !!!

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि –एक दिन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – एक दिन ??

“एक दिन मेरे पास चार-छह एकड़ में फैला बंगला होगा।….एक दिन मेरे पास दुनिया की सबसे महंगी कार होगी।…. एक दिन मेरे पास अपना चार्टर्ड प्लेन होगा….एक दिन मेरे पास ये होगा…एक दिन मेरे पास वो होगा…।”

दिन आते रहे, दिन जाते रहे। विचार को कर्म का आधार नहीं मिला। विचार बस विचार रहा, व्यवहार में नहीं उतरा। उस एक दिन की प्रतीक्षा में दिन-रात एक तरह की नींद में बीतते रहे। नींद का एक्सटेंशन होता रहा।

एकाएक एक दिन, सचमुच वो एक दिन आ गया। उस दिन वह मर गया।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 कृपया आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना जारी रखें। होली के बाद नयी साधना आरम्भ होगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 57 ☆ स्वतंत्र कविता – भोर का आगमन… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण स्वतंत्र कविता “भोर का आगमन”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 57 ✒️

?  भोर का आगमन… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

(स्वतंत्र कविता)

चांदनी रात,

उस पर तुम्हारा साथ ।

कह गई पवन ,

अनकही सी बात ।।

 

अधर है टेसू से,

चंचल चितवन ।

रात है भीगी सी

भीगा हुआ है मन की ।।

 

देह की महक,

बहकती हुई सांसें ।

थरथराती,

बाहों में बाहें ।।

 

विहग चहचहाये,

सिहर उठे हम ।

जगाये नेह से,

भोर का आगमन ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “शिवालय” ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ कविता ☆ “शिवालय”  ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

ओ दूर है शिवालय, शिवका मुझे सहारा

शिव के बिना यहा तो, कोई मुझे न प्यारा

जा ना सके वहा तो, दिल में उसे बिठाकर

हर साँस को बनालो, शिव नाम एक नारा

ये जान धूल मिट्टी, आकार तू बनाया

हर एक आदमी को, तूने किया सितारा

कैलाश घर तुम्हारा, दिल मे किया बसेरा

जाने कहा कहा पर, संसार है तुम्हारा

कश्ती तुफान में थी, मैंने तुम्हे पुकारा

आँखे खुली खुली थी, था सामने किनारा

भगवान दान माँगे, मैने नही सुना था

सजदा किया हमेशा, सौदा किया न यारा

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “तू और चाँद” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता ☆ “तू और चाँद”  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

इतराता है चाँद तो, पा तुझ जैसा रूप।

सच,तेरा मुखड़ा लगे, हर पल मुझे अनूप।।

 

चाँद बहुत ही है मधुर, इतराता भी ख़ूब।

जो भी देखे,रूप में, वह जाता है डूब।।

 

कभी चाँद है पूर्णिमा, कभी चाँद है ईद।

कभी चौथ करवा बने, करते हैं सब दीद।।

 

जिसकी चाहत वह सदा, इतराता है नित्य।

आसमान,तारे सुखद, चाँद और आदित्य।।

 

इतराने में है अदा, इतराने में प्यार।

इतराना चंचल लगे, अंतस का अभिसार।।

 

इतराकर के चाँद तो, देता यह पैग़ाम।

जो तेरे उर में बसा, प्रीति उसी के नाम।।

 

इतराकर के चाँद तो, ले बदली को ओट।

पर सच उसके प्यार में, किंचित भी नहिं खोट।।

 

कितना प्यार चाँद है, कितना प्यारा प्यार।

नेह नित्य होकर फलित, करे सरस संसार।।

 

छत से देखो तो करे, चाँद आपसे बात।

कितना प्यारा दोस्त की, मिली हमें सौगात।।

 

अमिय भरा है चाँद में, किरणों का अम्बार।

चाँद रखे युग से यहाँ, अपनेपन का सार।।

           

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ स्वातंत्र्यवीर सावरकर… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆

श्री रवींद्र सोनावणी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ स्वातंत्र्यवीर सावरकर… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆ 

(पुण्यतिथी)

प्रखर देशभक्ती त्यागाचे तुम्ही मंगलधाम

हिंदभूमीच्या शूर सुपुत्रा तुम्हास कोटी प्रणाम

गोदातीरी नाशिक नजीक भगूर ग्राम सुरेख

तिथे जन्मले दामोदर सुत वीर पुरुष एक

 

भारतमाता दास्यशृंखले मधी बंदिवान

सळसळणाऱ्या तारुण्याला मिळे नवे आव्हान

जनतेवर अन्याय निरंतर ब्रिटीश सत्ता जुल्मी

विनायकांच्या मनी उसळल्या स्वातंत्र्याच्या उर्मी

 

विद्याविभुषीत युवक निश्चयी ध्येयधुंद झाला

बॕरिस्टर बिरुदावली मिळवुन लंडनहून परतला

स्वातंत्र्याचा ध्यास अंतरी हाती शस्त्र धरा

शस्त्रावाचुन व्यर्थ लढाई सावरकर देती नारा

 

टणत्कार धनुषाचा आणी तलवारीची धार

शब्द तयांचे करु लागले सत्तेवरती प्रहार

विद्रोही ठरवून तयांवर चालविला अभियोग

दोन जन्मठेपांची शिक्षा कठिण कर्मभोग

 

मार्सेलिसची समिंदर उडी भीषण कारावास

थरथरणाऱ्या भिंती सांगती ज्वलंत इतिहास

ग्रंथसंपदा विपुल तयांची भाषा प्रत्ययकारी

उर्दूवरही त्यांची हुकूमत लिहिल्या गझला भारी

 

जात-पात-विरहित धर्माचा केला त्यांनी प्रसार

नजरकैदही रोखु न शकली धमन्यांतील एल्गार

अन्न औषधे त्यागुन त्यांनी मृत्युस आमंत्रिले

धगधगणारे यज्ञकुंड ते स्वेच्छेने शांतविले

 

© श्री रवींद्र सोनावणी

निवास :  G03, भूमिक दर्शन, गणेश मंदिर रोड, उमिया काॅम्पलेक्स, टिटवाळा पूर्व – ४२१६०५

मो. क्र.८८५०४६२९९३

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 171 ☆ मी… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 171 ?

☆ मी… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

स्वतःस  पुसते हळूच कोण कोण कोण मी ?

जळात दिसते मलाच, एक दीप द्रोण मी

कुठून वाहे तरंगिणी ? कशास आस ही ?

असाच लागे जिवास, जो उदात्त ध्यास  मी

मला न समजे कधीच, कोणता तरंग मी

नभात विहरे मजेत जो, तसा पतंग मी

अफाट वक्ते असोत, भोवती महंत ही

नसेन कोणासारखी परि जातिवंत मी

नगण्य मी धूळ ही, असेन अल्प स्वल्पही

तुला कधी झेपला नसेल, तो प्रकल्प मी

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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