(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम साहित्यकारों की पीढ़ी ने उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। आपने लघु कथा को लेकर कई प्रयोग किये हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक लघुकथा ‘‘भाग कोरोना भाग’’।)
☆ लघुकथा – भाग कोरोना भाग☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल ☆
सुबह-सुबह पार्क पहुंचा तो हतप्रभ रह गया। पार्क पूरी तरह जनशून्य था, भुतहा लग रहा था। मैं सिर पर पैर रखकर भाग खड़ा हुआ।
बाजार की तरफ रुख किया तो बाजार बंद मिला। पुलिस वाले डंडा ठोक रहे थे। एक पुलिस वाला बोला-चल भाग यहां से, मरना है क्या?
मैं सीधा घर आकर रुका।
जनशून्य सड़कें भयावहता पैदा कर रही थी। मुर्धनी सी छाई हुई थी। मौत का तांडव चल रहा था। कब कहां रुकेगा पता नहीं था।
बुरा समय दरवाजे पर दस्तक दे रहा था। जान बचाने की उम्मीद कम बिल्कुल कम प्रतीत हो रही थी।
मेरी निराशा में इजाफा होता चला गया। मुझे लगा कि कोरोना मेरे गले से लिपट गया है। मर्मान्तक पीड़ा हो रही है।
बाहर से घंटा घड़ियाल की आवाजें आ रही थी, शंख बज रहे थे। बूढ़े बच्चे स्त्रियां सभी मिलकर कोरोना को भगाने का प्रयत्न कर रहे थे।
यह दृश्य चौकानेवाला था। मुझे उन पर हंसी आ रही थी। मैं अपना डर भूल चुका था और जोर-जोर से हंसने लगा था।
(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीयएवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।
आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।
आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण स्वतंत्र कविता“पुनर्जन्म…”।
🍁।। स्मृतिशेष डॉ. विजया के अमृत महोत्सवी वर्ष पर “शब्दसृष्टि” द्वारा “विजयिता” ग्रंथ का लोकार्पण
एवम
“डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद व अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन संपन्न ।।🍁
” शब्दसृष्टि” प्रतिष्ठान की सहसंस्थापक व पत्रिका की संस्थापक-संपादक तथा हिंदी की चर्चित लेखिका, कवयित्री, समीक्षक व अनुवादक के रूप में सुपरिचित स्मृतिशेष डॉ. विजया जी के पचहत्तरवें जन्मदिन (अमृत महोत्सवी वर्ष) के अवसर पर “शब्दसृष्टि” की परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ लेखिका व विख्यात हिंदी कथाकार मा. डॉ. सूर्यबाला जी के करकमलों द्वारा ” विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा रचना-संसार) ग्रंथ का प्रकाशन हुआ तथा “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ पत्रकार व “नवनीत” (हिंदी मासिक पत्रिका) के संपादक मा. श्री विश्वनाथ सचदेव जी द्वारा “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद एवं अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन हुआ. समारोह का अध्यक्षस्थान “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ अनुवादक मा. प्राचार्य श्रीप्रकाश अधिकारी जी ने विभूषित किया. इस समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में “शब्दसृष्टि” के प्रमुख परामर्शदाता तथा हिंदी-मराठी के सांस्कृतिक सेतु अनुवाद तपस्वी मा. श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी उपस्थित थे.
“राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाषावैविध्य के यथार्थ ने अनुवाद-कार्य का महत्त्व पहले ही सिद्ध है. इन दोनों स्तरों पर उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होते हुए परस्पर संपर्क ने अनुवाद की आवश्यकता को और भी विकसित किया है. यही कारण है कि वर्तमान काल को ‘अनुवाद युग’ कहा जाता है. ‘जो भी हवा चलती है, वह अनुवाद से गुजरती है’ कहकर अनुवाद-क्षेत्र की व्यापकता और सार्वत्रिकता को अधोरेखित किया जा सकता है.” यह वक्तव्य ज्येष्ठ व श्रेष्ठ अनुवादक तथा “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता मा. प्रो. डॉ. गजानन चव्हाण जी ने “शब्दसृष्टि प्रतिष्ठान” व ” मनोहर मीडिया” की ओर से स्मृतिशेष डॉ. विजया जी के पचहत्तरवें जन्मदिन (28.01.2023) के शुभ अवसर (अमृत महोत्सवी वर्ष) पर आयोजित ग्रंथ-प्रकाशन व केंद्र-उद्घाटन समारोह को शुभकामनाओं के साथ दिया. उन्होंने प्रसन्नता जाहिर की और कहा कि “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद एवं अनुसंधान केंद्र” की स्थापना कर “शब्दसृष्टि” परिवार ने इस क्षेत्र में कार्य हेतु अनुवादकर्ता तथा अनुवाद-अध्येताओं के लिए व्यापक अवसर के द्वार खोल दिए हैं. केंद्र द्वारा जो प्रमुख गतिविधियां संपन्न की जा सकती है, इस पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला.
समारोह के प्रारंभ में, विगत काल में स्मृतिशेष हुए “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ साहित्यिक-समीक्षक-संशोधक आदरणीय डॉ. नागनाथ कोत्तापल्ले जी को “भावपूर्ण श्रद्धांजलि” अर्पित की गयी.
“शब्दसृष्टि” के संस्थापक-अध्यक्ष व “मनोहर मीडिया” के संचालक तथा “विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा संसार) ग्रंथ के मुख्य संपादक प्रा. डॉ. मनोहर जी ने अपने प्रास्ताविक में कहा कि— “डॉ. विजया अमृत महोत्सवी वर्ष” का यह प्रथम समारोह है. जिसमें “विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा रचना-संसार), “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद एवं अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन तथा “डॉ. विजया स्मृति जीवन गौरव सम्मान” प्रदान करना सम्मिलित है. इस वर्ष में उनका संपूर्ण साहित्य “दस खंडात्मक डॉ. विजया समग्र” रूप में प्रकाशित होगा तथा संगोष्ठियों का आयोजन, आदि संपन्न किया जाएगा. इसके पश्चात उन्होंने डॉ. विजया जी के जीवन व साहित्य यात्रा पर विस्तृत प्रकाश डाला. “विजयिता” ग्रंथ के संदर्भ में, सम्मान के संदर्भ में तथा “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद एवं अनुसंधान केंद्र” के संदर्भ में अपनी बात रखी.
“विजयिता” ग्रंथ का प्रकाशन करते हुए मा. डॉ. सूर्यबाला जी ने डॉ. विजया जी के संदर्भ में अपने अनुभव कथन किए और उनकी समीक्षात्मक दृष्टि पर प्रकाश डाला . “अंतरराष्ट्रीय अनुवाद व अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन करते हुए मा. श्री विश्वनाथ सचदेव जी ने केंद्र की संभाव्य गतिविधियों के संदर्भ में सटीक मार्गदर्शन के साथ केंद्र की उर्जितावस्था व सफलता के लिए शुभकामनाएं प्रेषित की.
“विजयिता” ग्रंथ पर मा. प्रो. डॉ. उषा मिश्र तथा मा. डॉ. श्यामसुंदर पांडेय जी ने अपने समीक्षात्मक वक्तव्य प्रस्तुत किया. केंद्र के निदेशक मा. डॉ. सतीश पावडे जी की केंद्र व पत्रिका के संदर्भ में उनकी भूमिका उनकी अनुपस्थिति में केंद्र के सहनिदेशक मा. प्रशांत देशपांडे जी ने प्रस्तुत की.
समारोह के अध्यक्ष मा. प्राचार्य श्रीप्रकाश अधिकारी जी ने समयोचित वक्तव्य देते हुए डॉ. विजया के कर्तृत्व पर प्रकाश डाला. इस अवसर पर “शब्दसृष्टि” के प्रमुख परामर्शदाता श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी के करकमलों द्वारा मा. डॉ. प्रेरणा उबाळे जी व मा. प्रशांत देशपांडे जी को “उपनिदेशक” पद के नियुक्ति पत्र” प्रदान किए गए.
अतिथियों का स्वागत मा. डॉ. हूबनाथ पांडेय जी ने व आभार-ज्ञापन मा. डॉ. प्रेरणा उबाळे जी ने किया तथा संपूर्ण समारोह का सूत्र-संचालन “शब्दसृष्टि” के न्यासी-कार्याध्यक्ष व “विजयिता” ग्रंथ के संपादक मा. प्राचार्य मुकुंद आंधळकर जी द्वारा कुशलतापूर्वक किया गया तथा “शब्दसृष्टि” की न्यासी-मानद सचिव व “विजयिता” ग्रंथ की संपादक सुश्री आशा रानी जी ने “संपादकीय मनोगत” के साथ-साथ “सम्मानपत्र वाचन” भी किया.
इस समारोह का तकनीकी संयोजन समन्वयन “शब्दसृष्टि” प्रतिष्ठिन के उपाध्यक्ष व पत्रिका के डिजिटल संपादक डॉ. अनिल गायकवाड जी तथा मा. डॉ. शेखर चक्रबर्ती जी ने किया. इस समारोह में अनुवाद जगत की महनीय हस्तियां तथा शोधछात्र-छात्राएं तथा अभ्यासकों ने उपस्थित रहकर समारोह की शोभा बढ़ायी.
प्रस्तुति : सुमन सागर (मनोहर मीडिया)
साभार – डॉ. प्रेरणा उबाळे
सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर, पुणे ०५
🍁 ।। वेद राही जी को “डॉ. विजया स्मृति जीवन गौरव सम्मान-2021” – अभिनंदन ।। ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे 🍁
मुंबई, दिनांक 30 जनवरी— भारतीय साहित्य, कला व सांस्कृतिक प्रतिष्ठान ‘शब्दसृष्टि’ का तृतीय ”डॉ. विजया स्मृति जीवन गौरव सम्मान” विख्यात भारतीय साहित्यकार (डोगरी-उर्दू-हिंदी-अंग्रेजी-फ़ारसी भाषा में लेखनरत कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार व अनुवादक) तथा फिल्मकार (फिल्म-धारावाहिक निर्माता, निर्देशक, पटकथा-संवाद लेखक) श्री वेद राही जी को ‘शब्दसृष्टि’ प्रतिष्ठान की सहसंस्थापक व पत्रिका की संस्थापक-संपादक तथा हिंदी की चर्चित लेखिका, कवयित्री, समीक्षक व अनुवादक के रूप में सुपरिचित स्मृतिशेष डॉ. विजया जी के पचहत्तरवें जन्मदिन (अमृत महोत्सवी वर्ष) के अवसर पर शनिवार, दिनांक 28 जनवरी 2023 को “शब्दसृष्टि प्रतिष्ठान” तथा “मनोहर मीडिया” द्वारा ठाणे में (वेद राही जी के निवास पर) आयोजित छोटेखानी समारोह में “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ पत्रकार व “नवनीत” (हिंदी मासिक पत्रिका) के संपादक मा. श्री विश्वनाथ सचदेव जी के करकमलों द्वारा प्रदान किया गया. समारोह का अध्यक्षस्थान “शब्दसृष्टि” के प्रमुख परामर्शदाता व अनुवाद तपस्वी श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी ने विभूषित किया.
श्रद्धेय वेद राही जी ने डॉ. विजया जी के स्मृति को प्रणाम करते हुए अपना “मनोगत” व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि— प्रत्येक व्यक्ति के कई परिचय होते है: एक परिचय उसका वह है जो लोग उसके बारे में सोचते हैं. दूसरी पहचान उसकी वह है जो वह खुद अपने बारे में सोचता है और तीसरा परिचय वह है जो वास्तव में वह है. जो वास्तव में वह है उसकी मूर्ति उसके कामों ने घड़ी होती है. उस कामों की प्रेरणा उसे अपने अंदर से उपलब्ध होती है. आज तक मैंने जो लिखा है वह अपने अंदर की प्रेरणा से लिखा है. उस प्रेरणा की बात उन्होंने कही.
उन्होंने कहा— व्यक्ति अपने बारे में ही गलतफैहमी का शिकार होता है. अपने आपको धोखा देना सब से सरल और दिलचस्प काम है. यह जानते हुए भी मैं यह रिस्क इस समय ले रहा हूं.
अपनी अंदरूनी प्रेरणा का सुराग पाने के लिए मैंने एक कविता लिखी थी, जिसका शीर्षक था— “आदमखोर”.
“मैं हूं आदमखोर अपने आपको रखता हूं घूंट घूंट पीकर उम्र प्यास बुझाता हूं श्वास श्वास में लगी है आग जलता ही जाता हूं, जलता ही जाता हूं जब न रहेगी आग, जब न रहेगी प्यास, जब न रहेगी भूख तब न रहूंगा मैं तब न रहूंगा मैं तब न रहूंगा मैं.“
“सोच की ऐसी शिद्दत मुझमें कैसे पैदा हुई यह कहना कठिन है.” कहकर वे अपना ‘जम्मू से मुंबई तक का सफ़रनामा’ प्रस्तुत करते हुए थोड़े भावुक हुए. उन्होंने कहा कि— “मुझे लगता था मैं एक भूलभुलैया में फंस गया हूं. अपने आसपास की हर चीज मुझे धोखा लगती थी. गली में चलते-चलते मैं अक्सर खड़ा हो जाता था. सामने तो वही देखी-भाली हुई गली नजर आती थी पर मुझे पीछे छोड़ी हुई गली का भरोसा नहीं था कि वह वहां है. लगता था पीछे छूटा हुआ सब गायब हो रहा है. बड़ी बेचैनी और बेयकीनी का आलम था. धीरे-धीरे मैं उन भूलभलैयों से बाहर निकल आया पर भीतरी मनोवृत्तियों का अंत कभी नहीं हुआ. उन्हें महाकवि निराला की एक पंक्ति याद आती है— “बाहर कर दिया गया हूं, भीतर भर दिया गया हूं.”
अपने “मनोगत” के अंत में उन्होंने अपनी कुछ कविताओं का पाठ किया, जिसमें फरवरी, 2023 के “नवनीत” अंक में प्रकाशित चार कविताओं का (अंधेरा, प्यार, आदि) का समावेश था.
समारोह के प्रारंभ में ‘शब्दसृष्टि’ के संस्थापक-अध्यक्ष व “मनोहर मीडिया” के संचालक मा. प्रा. डॉ. मनोहर जी ने अपना समयोचित प्रास्ताविक किया. इसके बाद ‘शब्दसृष्टि’ प्रतिष्ठान की न्यासी-मानद सचिव व “विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा रचना-संसार) की संपादक मा. सुश्री आशा रानी जी ने 28 जनवरी 2023 को मा. डॉ. सूर्यबाला जी के करकमलों द्वारा प्रकाशित “विजयिता” ग्रंथ की प्रति श्रद्घेय श्री वेद राही जी को भेंट-स्वरूप दी तथा “सम्मान पत्र” का पठन किया. समारोह के प्रमुख अतिथि मा. विश्वनाथ सचदेव जी तथा अध्यक्ष मा. श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी द्वारा हुए समयोचित वक्तव्यों में मा. श्री वेद राही जी के व्यक्तित्व व कर्तृत्व के विविध पहलूओं पर प्रकाश डाला.
“शब्दसृष्टि प्रतिष्ठान के उपाध्यक्ष व समारोह के संयोजक मा. डॉ. अनिल यादवराव गायकवाड जी ने आभार-ज्ञापन किया तथा संपूर्ण समारोह का कुशलतापूर्वक सूत्र-संचालन “शब्दसृष्टि” प्रतिष्ठान के न्यासी-कार्याध्यक्ष व “विजयिता” ग्रंथ के संपादक मा. प्राचार्य मुकुंद आंधळकर जी ने किया. समारोह में मा. श्री वेद राही जी के परिवार के सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे.
प्रस्तुति : सुमन सागर (मनोहर मीडिया)
साभार – डॉ. प्रेरणा उबाळे
सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर, पुणे ०५
आज दादा वहिनीला श्री.श्रीधर कुलकर्णी यांचेकडे लग्नाचे आमंत्रण आहे. कुलकर्णी काका म्हणजे आमचे चुलत घराणे. खूप श्रीमंत.पैशाचा धबधबा पडतो की काय त्यांच्या घरी ?? असं वाटतं.त्यातच मुलांचीही बिझनेस मधे मदत झाली.••• म्हणतात ना,•••• “पैसा पैशाला ओढतो.”••••
ते काकांकडे बघून पटत. ••••
म्हंटल तर मुलं खूप शिकलेली नाही.पण पिढी दर पिढी चालत आलेला बिझनेस मात्र उत्तम सांभाळतात. सोन्याचा चमचा तोंडांत घेऊन जन्माला आलेली ही मुलं, आपल्या बिझनेस मधे चोख आहेत.सरस्वती खूप प्रसन्न नसली तरी लक्ष्मीने मात्र आपला वरदहस्त त्यांच्यावर छान ठेवलेला आहे.•••••
श्रीमंतीची सर्व लक्षणे दिसतात. मोठा बंगला, दारासमोर चार गाड्या,घरात नोकर माणसे,म्हणजे घरच्या बायकांना साधारण बायकांसारखे काम करायची गरज पडत नाही. उठणे बसणे पण अशाच लोकांबरोबर. ••••••
पैशाचा माज चढला आहे, असं म्हणता येणार नाही. कदाचित ते सहज बोलत असावेत, वागत असावेत. पण ते आपल्या सारख्या सामान्य माणसांना कुठे तरी खटकत.,मनाला लागत. असे आमच्या दादाचे नेहमी म्हणणे असते. वहिनीला काही ते पटत नाही व आवडत तर त्याहुनही नाही. ••••
मागे दादाच्या मुलाच्या लग्नाचे आमंत्रण द्यायला दादा वहिनी त्यांच्या घरी गेले असताना, त्यांना मिळालेली वागणूक वहिनी अजूनही विसरलेली नाही. प्रत्त्येक भेटीची वहीनीची काही तरी खास आठवण आहेच. नातं असलं तरी सांपत्तिक परिस्थिती मधे तफावत आहे. तरीही काही महत्वाच्या कार्यक्रमात दादा वहिनी जातातच.आपलं नातं टिकवण्यासाठी, कसलाही विचार न करता हजेरी लावतात.•••••
तेंव्हा अनघा लहान होती,ती पण आई बाबांबरोबर जायची. काही प्रसंग तिच्या बालमनावर चांगले कोरले गेले होते. घरी अलमारी भरून क्रोकरी असताना,आम्हा तिघांना वेगवेगळ्या आकाराच्या स्टील प्लेट, वाटी मधे चिवडा दिल्याचा प्रसंग तिला आठवतो. दुर्लक्ष केलेले ही आठवते. त्यानंतरची आईची कुरकुर,वाईट वाटणे,कधी कधी आईचे रडणे,तिच्या चांगले लक्षात होते. एकदा पूजेला गेले असताना, पूजेचे महत्व कमी व श्रीमंत लोकांचा कौतुक समारंभच जास्त वाटत होता.वहीनी खूप खुशीने तेथे कधीच गेली नाही. •••
दादा ची परिस्थिती सामान्य होती. येथे लक्ष्मी नाही,पण सरस्वती मात्र खूप प्रसन्न होती.दादाची मुल शिक्षणात हुशार होती,म्हणून त्यांच्या शिक्षणाकरिता दादा वहिनीने कधी काही कमी पडू दिले नाही.•••
अनघा ने ग्रॅज्युएशन नंतर स्टेट लेवल, नॅशनल लेवल च्या परीक्षा दिल्या.’ UPSC ‘ पास केली.आज ती पोलीस खात्यात उच्च अधिकारी आहे.••••
आज कुलकर्णी काकांकडे लग्नाला जायचे आहे.अनघा म्हणाली मी पण येईन. ती अशा एका दिवसाची वाट बघतच होती.••••
अचानक तिच्या समोर फ्लॅश बॅक सुरू झाला. आईच्या डोळ्यातील अश्रु आठवले.
“आपण नेहमी चांगले वागायचे”. असा बाबांचा नियम आहे. त्यामुळे नाइलाजाने आई,बाबांबरोबर जात असे.•••
अनघा रंगाने सावळी व जेमतेम उंची, म्हणून तिच्या वर तेथे कटाक्ष व्हायचे.कसं होईल हिचे ??? ही काळजी तिच्या आई बाबांपेक्षा त्यांनाच जास्त होती. त्यांच्या घरी आई बाबांकडे दुर्लक्ष करतात. ही गोष्ट तिच्या मनात घर करून बसली होती. काही दुःख सारख आपलं डोकं वर काढतात.व तुम्हाला त्याची सतत आठवण करून देत राहतात. व प्रत्त्येक आठवणीबरोबर ती सल वाढतच जाते.••••
आई बाबा लग्नाला जायला निघाले.अनघा आॅफिस मधून सरळ हॉलवर येणार होती.•••
तसं अनघाला सहज सुट्टी घेता आली असती, व छान तयार होऊन लग्नाला जाता आले असते. पण तिला काळया सावळ्या अनघाचा ‘रूबाब ‘ दाखवायचा होता. खरं तर हे असे वागणे तिच्या स्वभावात बसत नव्हते. पण जुन्या प्रसंगाची आठवण व आई बाबांना मिळालेली वागणूकही ती विसरली नव्हती. आज आई बाबांना खासकरून आईला तिची प्रतिष्ठा मिळवून द्यायची होती. त्यांच्या अपमानाचा बदला घ्यायचा होता. ••••
पोलिस अधिकारी च्या युनिफॉर्म मधे अनघा हॉलवर पोचली. मस्त कडक युनिफॉर्म त्यावर ACP rank चे लागलेले स्टार्स, डोक्यावर लावलेली cap,हातात स्टीक, चकचकीत बूट, कमरेवर बेल्ट.डोळयांवर काळा चष्मा. तिला आॅफिसकडून मिळालेल्या गाडीतून अनघा आली.लगेच ड्रायव्हर ने कारचा दरवाजा उघडला. अदबीने बाजूला उभे राहून, एक कडक सॅलूट मारला.•••
” व्वा !!!काय शान होती अनघाची.”
तेथील सर्व लोक बघतच राहिले. लहान मुले तर जवळ येऊन बघू लागली.अनघाचा मोबाईल कारमधेच राहिला होता, तेंव्हा ड्रायव्हर ने तो तिला आणून दिला व पुन्हा एकदा तसाच कडक सॅलूट मारला.•••
हाॅलमधील सुंदर महागड्या पैठणी निसून, दागिन्यांनी लदलेल्या, ब्युटी पार्लर मधून सरळ हॉलवर आलेल्या so called smart, श्रीमंत बायका बघतच राहिल्या. आता आकर्षणाचा केंद्रबिंदू पोलिस अधिकारी ‘अनघा ‘ होती.••••
श्रीधर काकां काकू,व त्यांच्या घरचे इतरही सर्व, अनघाच्या स्वागतासाठी लगेच आले. ••••
अनघाने वेळ कमी असल्यामुळे मी सरळ आॅफिसमधूनच आले व लगेच मला जावे लागेल. असे सांगितले.••••आज सर्वांशी भेट होईल, म्हणून मी आले.••••पुर्वी लहान असताना मी आई बाबांबरोबर येत असे. •••पण या मधल्या काळात मला येणे जमलेच नाही.•••तिने सर्वांची विचारपूस केली.••• सर्वांना आनंदाने भेटली. वर वधू ला भेटली. फोटोग्राफर ने तिचे आवर्जून बरेच फोटो काढले. आपल्यामुळे वर वधू कडे दुर्लक्ष व्हायला नको, म्हणून तिने लगेच निघायचे ठरविले •••••
लगेच अनघाच्या जेवणाची सोय झाली. तिच्या ड्रायव्हरला ही आदराने जेवण दिल्या गेले..आई बाबा हे सर्व डोळे भरून बघत होते.आजही आईच्या डोळ्यात अश्रू आलेच. पण ते मुलीचे कौतुक बघून, तिचा होणारा मानसन्मान बघून.••••
अनघाच्या आई-बाबांना लग्न घरात सर्वांसमोर मान मिळाला. आईच्या मनातील सल दूर झाली होती.अनघाचा उद्देश्य पूर्ण झाला होता,तो ही बाबांचा नियम सांभाळून,”आपण नेहमी चांगले वागावे”. ••••
निघताना अनघा आई बाबांना म्हणाली,••••आई-बाबा जास्त उशीर करू नका. अंधाराच्या आत घरी पोहचा. ••••
श्रीधर काकांची पंधरा वर्षांची नात ‘ राधा’ अनघा जवळ येऊन म्हणाली,ताई मला पण तुझ्या सारखे पोलिस अधिकारी बनायचे आहे. बाबा,माझा ताई बरोबर फोटो काढा ना.तो मी माझ्या स्टडी टेबल वर ठेवेन.••••
अनघा म्हणाली,••• हो का ??
मग छान अभ्यास कर.मी तुला वेळोवेळी guidance देईन. ••••
एकंदरीत अनघाचा प्रभाव जबरदस्त होता.•••
“वक्त वक्त की बात हैं।
वो भी एक वक्त था ।
आज भी एक वक्त हैं।”••••
आज कुलकर्णी काकांच्या ड्रायव्हर ने आई-बाबांना घरी पोहचविले.••••
म्हणतात ना,•••
“Your greatest test is how you handle people who have mishandled you.” ••••
‘मुलांनो, मला असं वाटतं, यावेळी शेतकर्यां वर संशोधन प्रबंध हाती घ्यावा.’
‘फारच छान!’
‘मग सगळ्यात आधी नामवंत लेखकांकडून या विषयावरच्या कथा मागवून घ्याव्या.’
‘ठीक आहे सर, पण याबाबतीत एक गोष्ट मनात येतेय.’
‘अरे, नि:संकोचपणे सांग.’
‘सर, शेतकर्यांणवर संशोधन प्रबंध हाती घेत आहोत, तर त्यावरील कथांची गरज आहे का?’
‘म्हणजे काय? संशोधनासाठी कथेत शेतकरी हे पात्र असायलाच हवं.’
‘मला म्हणायचय, प्रत्यक्षात शेतकरी काय करतोय, कसा जगतोय, याचं वर्णन यायला नको का?’
‘अजबच आहे तुझं बोलणं! वास्तवातल्या पात्रांवर कधी संशोधन झालय?’
‘ पण सर, संशोधनात नवीन गोष्टी यायला हव्यात नं?’
‘ओ! समजलं तुला काय म्हणायचय!’
‘मग काय त्याबद्दल माहिती गोळा करूयात?’
अरे बाबा, आपल्याला, लेखकाच्या लेखणीच्या टोकाच्या परिघात असलेल्या कथांमधील शेतकरी पात्रांवर संशोधन करायचय. त्यांच्याबद्दल वाचल्यानंतर अश्रूंसह दयाभव जागृत व्हायला हवा. शेत सोडून रस्त्यावरून ट्रॅक्टर फिरवणार्यां वर आपल्याला संशोधन करायचं नाहीये.’
‘पण असं तर ते आंदोलन करण्यासाठीच करताहेत नं!’
‘हे बघ, ज्या शेतकर्यां्बद्दल तू बोलतोयस, त्यातील एक तरी अर्धा उघडा, अस्थिपंजर शरीर असलेला आहे का?’
‘पण सर, आता काळ बदललाय. प्रत्येक जण प्रगती करतोय.’
‘बाबा, एक गोष्ट लक्षात ठेव, संशोधनासाठी शोषित असलेलीच पात्र योग्य ठरतात. अशा पात्रांच्या कथाच काळावर विजय मिळवणार्याट ठरतात.
मूळ कथा – शोध – मूळ – मूळ लेखिका – सुश्री अर्चना तिवारी
मराठी अनुवाद – सौ उज्ज्वला केळकर मो. ९४०३३१०१७०
संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.- 9403310170ईमेल – kelkar1234@gmail.com
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
☆ ‘मन्मन’चे निरागस कर्मयोगी मनोहर गोखले… भाग – 2 ☆ श्री श्रीकांत कुलकर्णी ☆
(मी म्हटले मला तू ऑपरेशन करताना एकदा बघावे लागेल.”) इथून पुढे …
“त्याने मला एकदा ऑपरेशन करताना बोलावले. जवळ जवळ ४ तास ऑपरेशन चालले. मी शांतपणे तो काय करतो ते बघत होतो. तेव्हा काही आत्ता सारखी मोबाईलवर व्हिडीओ घेण्याची सोय नव्हती. मोजमाप देखील घेता येणार नव्हते. मी फक्त निरीक्षण केले आणि २ महिन्यांच्या प्रयत्नाने एक साधे मेदूची कवटी पकडणारे उपकरण बनवले, ते भावास दिले. त्याने ते पुढच्या ऑपरेशनसाठी वापरले आणि त्याला खूप आवडले आणि उपयुक्त देखील वाटले. त्याचे ऑपरेशन निम्म्या वेळात झाले. मुख्य म्हणजे परदेशी उपकरणाच्या तुलनेत फक्त १०% किमतीत हे उपकरण तयार केले ह्यात आमचा प्रॉफिट देखील आला.”
“ही बातमी हा हा म्हणता अनेक शल्यकर्मीपर्यंत पोहचली. हळूहळू अनेक डॉक्टर्स मला भेटून विविध प्रकारची उपकरणे बनवून घेऊ लागली. यात orthopedic आले, पोटाचे, किडनीचे अशा सर्व प्रकारच्या स्पेशालीस्टना मी वेगवेगळी उपकरणे करून देऊ लागलो. मला तो नादच लागला कोणतेही ऑपरेशन करताना निरीक्षण करायचे आणि वर्कशॉप मध्ये उपकरण बनवायचे. अशा शेकडो शस्त्रक्रिया मी ऑपरेशन थियेटर मध्ये जाऊन बघत असे. यातून मी अशा प्रकारची शेकडो उपकरणे बनवली. देशात असे कोणतेही मोठे हॉस्पिटल आणि सर्जन नसेल ज्याला माझे नाव माहीत नाही. तुम्हाला एक गंमत सांगतो हल्ली मेंदूतल्या ट्युमरची शस्त्रक्रिया करण्यास सर्व कवटी उघडावी लागत नाही. जिथे ट्युमर अथवा दोष असेल त्याच्या वर कवटीला एक भोक पाडतात आणि शस्त्रक्रिया करून ती जागा पुन्हा बंद करतात. ह्या मेंदूच्या कवटीस ड्रील करण्याचे मशीन आम्ही बनवतो. आता एक विचार करा कुलकर्णी, हे ड्रील मेंदूत एक मायक्रॉन देखील घुसलेही नाही पाहिजे आणि अर्धवट ड्रील करून देखील चालणार नाही. असे अवघड उपकरण मी डिझाईन केले आहे आणि अनेक शस्त्रक्रियेत ते वापरले जाते.” माझ्या अंगावर सणकून शहारा आला. गोखलेसाहेब हे अगदी सहज सांगत होते.
गोखलेसाहेब या व्यवसायात पडले, ते देखील वयाच्या पन्नाशीत. पुण्याच्या कुस्रो वाडिया इंस्टीटयूटमधून draftsman चा कोर्स करून ते भोपाळच्या BHEL मध्ये नोकरी केली. ती नोकरी सोडून पुढे पुण्याच्या टाटा मोटर्समध्ये (तेव्हाची टेल्को) आले. तिथे ते ट्रेनिंग विभाग बघू लागले. जेआरडी जेव्हा जेव्हा पुण्याला भेट देत तेव्हा ते प्रथम या विभागास भेट देऊन मगच पुढच्या कामास जात. जेआडींच्या या सवयीमुळे हा विभाग कायम व्यवस्थित ठेवण्याची सवय लागली. गोखल्यांच्या क्रिएटिव्ह स्वभावामुळे जेआरडी त्यांना नेहमी विचारत गोखले यावेळी नवीन काय? गोखले एखादी नवीन केलेली गोष्ट त्यांना दाखवत. नवीन काहीतरी शोधण्याचा त्यांना ध्यासच लागला. त्यातून अनेक गोष्टी निर्माण होऊ लागल्या. त्यांच्या बंधुंमुळे यातूनच पुढे विविध शल्यसामग्री डिझाईन करून बनवू लागले. आता व्याप वाढू लागला आणि टेल्कोची आरामाची नोकरी सोडून पूर्णपणे व्यवसायात झोकून दिले. सदाशिवपेठेतली जागा कमी पडू लागली तर अरण्येश्वर रोड वर उपकरणे बनवण्यासाठी एक वर्कशॉप सुरु केले. मुलगा समीर ते वर्कशॉप बघत असे. नावही मोठे गमतीचे ठेवले “समीरचे वर्कशॉप” घरचे इतर देखील सर्व त्यांना उद्योगात मदत करू लागले. पण मध्येच एका अपघातात समीरचे तरुण उमद्या वयात निधन झाले. ज्या बंधुंमुळे ते या व्यवसायात आले तो डॉक्टर भाऊ देखील अकाली गेला. पण गोखले साहेब त्या आघातातून सावरले.
“गोखले हे “मन्मन” ही काय भानगड आहे ? नुसतं मन का नाही?” मला सतावणारा प्रश्न मी शेवटी विचारलाच. त्याच काय आहे कुलकर्णी, मी असे समजतो आपल्याला दोन मने असतात. एक बाहेरचे मन जे चंचल असते. सारखं सुख, दुखः, बरे, वाईट याचा विचार करते. ते स्वार्थी असते, दुसऱ्याला पीडा देण्याचा विचार करते, हे हवंय, ते हवंय असा हव्यासी विचार करते. पण त्या मनाच्या आत एक आणखीन मन असते ते निरागस असते, क्रिएटिव्ह असते. ते मनाचे मन असते. तिथे चांगले विचार निर्माण होतात. तिथे वेगवेगळी डिझाईन घडतात. त्या बाहेरच्या चंचल मनाचे जे अंतर्मन ते “मन्मन.” हे अंतर्मन जागे असले, तर उत्तम कल्पना सुचतात. मी एखाद्या डॉक्टरचे ऑपरेशन बघतो तेव्हा माझे हे मन्मन मला ते उपकरण कसे बनवायचे ते सुचवते आणि मी ते फक्त प्रत्यक्षात आणतो. मला drawing काढावे लागत नाही. ते आतूनच येते. कसे येते ते माहित नाही पण सुचत जाते. परमेश्वराने दिलेली देणगी आहे. मी निमित्तमात्र करता करविता तोच, विधाता.” गोखल्यांमधला निगर्वी उद्योजक बोलत होता. मीपणाचा स्पर्शही नाही. पेशाने इंजिनीअर असलेले गोखले किती कविमनाचे तत्वचिंतक कलाकार आहेत ह्याचे मी प्रत्यंतर घेत होतो.
त्यावर्षीचा अनुकरणीय उद्योजकाचा शोध संपला होता. इथे सगळेच अनुकरणीय होते. गोखलेसाहेब इंजिनिअर आहेतच, पण कलाकार, गुरु, तत्वचिंतक, सेवाभावी शिवाय एथिकल आणखीन काय काय होते. त्यांना सगळ्यात शेवटी माझा येण्यातला स्वार्थ सांगितला आणि तळवलकरसरांच्या नावाने अनुकरणीय उद्योजक हा पुरस्कार त्यांना देणार असे सांगितले. त्यांना अतिशय आश्चर्य वाटले. काही क्षण ते बोलू शकले नाही. अहो मी फार छोटा माणूस
मला कसले पारितोषिक? माझ्यापेक्षा कितीतरी महान लोक या जगात आहेत? त्यांच्या मृदू स्वभावाला साजेल अशी शंका त्यांनी उपस्थित केली. त्यांना तळवलकरसरांविषयी सांगितले. ते म्हणाले मी त्यांना ओळखायचो कारण, मी देखील कुस्रो वाडीयाचाच ना. मला ते शिकवायला नव्हते पण त्यांची शिस्त माहीत होती. पुरस्कार स्वीकारणार असे त्यांनी कबूल केले. प्रत्यक्ष कार्यक्रमाची तारीख जवळ आली तर त्यांनी मला फोन केला कुलकर्णी मी पुरस्कार स्वीकारणार आहे, पण ते भाषण वगैरे मला जमणार नाही. मी कधी असे लोकांसमोर बोललो नाही. तर ते जरा टाळता आले तर बघा. मी त्यांना समजावले गोखले आमच्याशी जे बोललात तेच सांगा लोकांना आवडेल. भाषण करावेच लागेल. होय नाही करता तयार झाले. परत एकदा माझ्या ऑफिसमध्ये आले म्हणाले भाषण लिहून आणलंय तुम्ही ऐका. मी ऐकले. छान लिहिले होते. त्यावर्षी जी चार भाषणे झाली त्यात गोखल्यांनी बाजी मारली. प्रत्यक्ष भाषण करताना लिहून आणलेले भाषण तसेच राहिले आणि फार उत्कट आणि उत्स्फूर्त बोलले. जेष्ठ विचारवंत विद्याताई बाळ अध्यक्षा होत्या त्या भान हरपून ऐकत होत्या. त्यांनी त्यांच्या भाषणात गोखल्यांचे मनापासून कौतुक तर केलेच, पण पुढे त्यांच्या ऑफिसमध्ये देखील जाऊन आल्या.
खरे म्हणजे गोखल्यांचे भाषण एव्हडे नितांत सुंदर झाले कारण, ते त्यांच्या मन्मनातून आले होते. आतून आले होते आणि ते सर्व श्रोत्यांच्या मन्मनात खोलवर भिडले. मनोहर गोखल्यांचा जीवनपट निरागस कर्मयोगी जीवन जगण्याचा एक वस्तुपाठ आहे.
☆ भविष्यातील ऊर्जा स्त्रोत : अणु संमीलन ☆ श्री राजीव गजानन पुजारी ☆
अनादी काळापासून मनुष्याला त्याच्या विविध कार्यांसाठी ऊर्जेची गरज भासत आली आहे. आपण जे अन्न सेवन करतो त्याचे रासायनिक प्रक्रियेद्वारे कायिक ऊर्जेत रूपांतर होते. वादळाच्या वेळी झाडाच्या दोन फांद्या एकमेकांवर घासून पेट घेतलेले मानवाने बघितले, त्यावरून दोन गारगोट्या एकमेकांवर घासून मानवाने अग्नि निर्माण केला. त्याचा उपयोग मनुष्य अन्न शिजविण्यासाठी करू लागला. बाष्प शक्तीचा शोध लागल्यावर औद्योगिक क्रांती झाली, दळणवळण वेगाने सुरू झाले. त्यानंतर जीवाश्म इंधन वापरून मानवाने प्रगतीचा पुढचा टप्पा गाठला. धरणाद्वारा पाणी अडवून त्या पाण्याचा वापर करून मानवाने वीज निर्माण केली. जीवाश्म इंधनांचा साठा संपत आला आहे तसेच जीवाश्म इंधनामुळे पर्यावरणाची हानी होते हे लक्षात आल्यावर मानवाने ऊर्जा निर्मितीसाठी इतर पर्यायांचा विचार करायला सुरुवात केली. त्यात सौरऊर्जा, पवन ऊर्जा, अणुभंजनाद्वारे निर्मिलेली ऊर्जा, आदींचा समावेश होतो. सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा मिळवणे जरी पर्यावरणास अनूकूल असले तरी त्यांची कार्यक्षमता हवामानावर अवलंबून असते; तर अणुभंजनामुळे ऊर्जा निर्माण होताना सयंत्रात काही अडचण आली तर किरणोत्सर्गाचा धोका निर्माण होण्याची शक्यता असते. दुसरे म्हणजे अणूभंजन झाल्यावर जे अवांतर पदार्थ तयार होतात त्यांची विल्हेवाट शास्त्रोक्त पद्धतीने लावणे महत्त्वाचे असते. त्यामुळे स्वच्छ व मुबलक ऊर्जा मिळवण्यासाठी अणुसंमीलनाचा वापर कसा करता येईल याविषयी जगभरातील शास्त्रज्ञ गेली अनेक दशके विविध प्रयोग व चाचण्या करत होते. या प्रयोगांच्या फलस्वरूप पाच डिसेंबर २०२२ रोजी अमेरिकेच्या कॅलिफोर्निया राज्यातील द लॉरेन्स लिव्हरमोर नॅशनल लॅबोरेटरी (LLNL) ला अणू संमीलन करण्यास प्रायोगिक पातळीवर यश मिळाले. हा प्रयोग एल.एल.एन.एल.च्या नॅशनल इग्निशन फॅसिलिटीमध्ये करण्यात आला. प्रयोगादरम्यान एका सेकंदाच्या शंभर ट्रिलीलनव्या भागापेक्षा कमी काळ टिकणाऱ्या एका क्षणात २.०५ मेगाज्यूल ऊर्जा म्हणजे अंदाजे एक पौंड टीएनटीच्या समतुल्य ऊर्जेचा हायड्रोजनवर भडीमार करण्यात आला. त्यामुळे न्यूट्रॉन कणांचा पूर आल्यासारखी स्थिती झाली. हा फ्युजनचा परिणाम होता. त्यातून सुमारे ३.१५ मेगाज्यूल ऊर्जा बाहेर पडली. म्हणजे १.१ मेगाज्यूल उर्जा वाढली. मानवाने आतापर्यंत सामना केलेल्या अत्यंत अवघड वैज्ञानिक आव्हानांपैकी हे एक आव्हान होते अशी प्रतिक्रिया या प्रयोगशाळेचे संचालक किम बुदिल यांनी दिली आहे. हे अत्यंत उल्लेखनीय यश असून राष्ट्रीय सुरक्षेसाठी आणि स्वच्छ उर्जेसाठी याचा निश्चितपणे फायदा होईल असे अमेरिकेच्या ऊर्जा विभागाने म्हटले आहे.
या प्रयोगामध्ये केंद्रस्थानी एक प्रोटॉन व एक न्यूट्रॉन असणारे हायड्रोजनचे समस्थानिक ( isotopes ) ड्यूटेरियम, हे केंद्रस्थानी एक प्रोटॉन व दोन न्यूट्रॉन असणाऱ्या ट्रिटीयम या हायड्रोजनच्या दुसऱ्या समस्थानिकाशी सांधण्यात (fusion) आले. या क्रियेमुळे केंद्रस्थानी दोन प्रोटॉन्स व दोन न्यूट्रॉन्स असणारे हेलियम हे दुसरे मूलद्रव्य तयार झाले. तयार झालेल्या हेलियमचे वस्तुमान हे ड्यूटेरियम व ट्रीटीयम यांच्या संयुक्त वस्तुमानापेक्षा कमी भरले. उर्वरित वस्तुमान ऊर्जेच्या स्वरूपात परिवर्तित झाले. ही मुक्त झालेली ऊर्जा अणू संमिलन घडवून आणण्यासाठी वापरण्यात आलेल्या ऊर्जेपेक्षा जास्त होती. LLNL प्रयोगशाळेतील शास्त्रज्ञांनी १९२ अति शक्तिशाली लेसर्सचा रोख हायड्रोजन समस्थानिकांनी भरलेल्या अंगठ्याएवढ्या आकाराच्या कुपीच्या दिशेने करत त्यांचा मारा केला व प्रयोग सिद्ध केला. सूर्य व इतर तार्यांमध्ये न्युक्लिअर फ्युजन द्वाराच ऊर्जेची निर्मिती केली जाते. हलके हायड्रोजन अणू एकत्र येऊन हेलियम हे मूलद्रव्य तयार होते. या प्रक्रियेत प्रकाश आणि उष्णतेच्या स्वरूपात अफाट ऊर्जा बाहेर पडते.
अमर्यादित ऊर्जा निर्मितीसाठीच्या प्रयोगातले हे पहिले यश आहे. या ऊर्जेची औद्योगिक पातळीवर निर्मिती करून त्याचा प्रत्यक्ष उपयोग करण्यासाठी अद्याप बराच पल्ला गाठावा लागणार आहे, असे एल.एल.एन.एल.या प्रयोगशाळेने स्पष्ट केले आहे.