मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ आत्मपरीक्षण… ☆ प्रस्तुती – श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे ☆

श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे

? वाचताना वेचलेले ?

☆ आत्मपरीक्षण…  ☆ प्रस्तुती – श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे ☆

आपल्या जीवनात आपण योग्य मार्गावर असण्यासाठी वेळोवेळी स्वतःचे तटस्थपणे आत्मपरीक्षण करता आले पाहिजे.एकदा एक गोष्ट वाचण्यात आली…..

एक तरुण मुलगा पब्लिक फोन ठेवलेल्या दुकानात येतो.

तरुण : दुकानदार काका, मी एक फोन करू का ?

तरुणाचे आदबशीर वागणे पाहून दुकानदार खूश होतो. तो तरुण फोन नंबर फिरवून रिसिव्हर कानाला लावतो.

तरुण : बाईसाहेब, तुमच्या बागेच्या सफाईचे काम मला द्याल का ? मी माळीकाम खूप छान करतो.

महिला :  नको. मी एका महिन्यापूर्वीच एकाला ठेवले आहे.

तरुण: बाई, प्लिज, मला फार गरज आहे हो, आणि तुम्ही त्याला जितका पगार देता त्याच्या निम्म्या पगारात काम करायला मी तयार आहे !

महिला : पण माझ्याकडे जो आहे, त्याच्या कामावर मी समाधानी आहे. मग त्याला का काढून टाकू ?

तरुण : बाई, बाग कामासोबतच मी तुमच्या घरातले सफाईचे काम फ्री करेन. प्लिज मला कामावर घ्या न !!

महिला : तरीही नको बाबा !! दुसरीकडे काम पहा !! माझ्याकडे नाही !!

तरुण हसत हसत फोन ठेवून निघाला.

दुकानदाराने त्याला थांबवले. आणि विचारले की, “तू प्रयत्न केलास, पण नोकरी मिळाली नाही ना ? मला तुझा स्वभाव आवडला. कष्ट करण्याची तयारी आवडली. वाटल्यास तू माझ्या दुकानात नोकरी करू शकतोस.”

यावर पुन्हा हसून तो तरुण म्हणाला, “मला नोकरी नकोय. नक्की नकोय.”

दुकानदार : मग आत्ता तर त्या फोनवर इतक्या विनवण्या करत होतास न ?

तरुण : मी खरेतर त्या बाईंना काम मागत नव्हतो. तर स्वतःचे काम तपासत होतो. मीच त्या बाईंच्या बागेचे काम करतो. मी करत असलेले काम माझ्या मालकाला आवडतेय की नाही, हे चेक करत होतो.

असे म्हणून तो तरुण निघतो, दुकानदार त्याच्या पाठमोऱ्या आकृतीकडे चकित होऊन पाहत राहतो.

सांगण्याचे तात्पर्य म्हणजे अधूनमधून आपण स्वतःच स्वतःचे आत्मपरीक्षण करणे गरजेचे आहे. तुम्ही नोकर असा की मालक. ते महत्वाचे नाही. तर तुम्ही करत असलेले काम चांगले होतेय का, हे महत्वाचे आहे. आणि ते सर्वात जास्त कोण ओळखू शकतो?तर आपण स्वतः !!

जो स्वतःला तटस्थपणे पाहून परीक्षण करू शकतो, तो नक्कीच इतरांपेक्षा पुढे जातो.

संग्राहक : श्यामसुंदर धोपटे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 126 – गीत – आपके हम कुछ नहीं… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – आपके हम कुछ नहीं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 126 – गीत – आपके हम कुछ नहीं…  ✍

मत गलत हमको समझ लेना कहीं

आपके हम कुछ नहीं है, कुछ नहीं।

 

मीत कह हमको पुकारा

यह बड़ा अहसान है

पूछते हैं लोग अब तो

आपसे पहचान है

आपसे पहचान है बस कुछ नहीं।

 

आपसे परिचय हुआ है

और अब क्या चाहिये

देर तक बातें हुई हैं

कब कहा अब जाइये

जानता औकात अपनी कुछ नहीं।

 

मोम सा है आपका दिल

संग दिल हम क्यों कहें

हम नहीं नीरज ये माना

अब कहाँ जाकर रहें

है कहीं कोई जगह या फिर नहीं।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 126 – “क्या-क्या द्वन्द्व बतायें…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  “क्या-क्या द्वन्द्व बतायें…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 126 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ क्या-क्या द्वन्द्व बतायें… ☆

दरवाजे आ लौट गई क्यों

तितली की बहिने

लोग बोलते दिखे  “वाह भैये

क्या हैं कह ने!”

 

पिछले दिन का जो इतिहास

बचा बाकी बस था

वह तो कथित क्रमोत्तर शब्दों

की तैराकी था

 

पानी की व्यवहल तरंग सा

उसी किनारे पर

यह प्रसंग कह रहा नदी को

जल में ही रहने

 

घर की छप्पर पर कुछ

चिडियाँ तत्पर जाने को

कहती अबभी बचा समय

है इस अफसाने को

 

जिस के पूर्व राग में

बाहर थकी उड़ाने थीं

ठिठकी है . विश्वास

जुटाये धारा में बहने

 

क्या-क्या द्वन्द्व बतायें

फूलों के घर का उन को

दिखे बगीचा फूला-फूला

यहाँ सभी जनको

 

किन्तु यहाँ जो पेड पत्तियाँ

है विश्वासों के

लगे सहज ही गिर जाने को

या किंचित ढहने

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-11-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वचन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना संपन्न हुई । अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जाएगी  💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  वचन ??

तराजू के पलड़े पर

रख दी हैं हमने

संतुष्टि और संवेदना,

दूसरे पलड़े पर

तुम रख लो

संपदा, शक्ति, जुगाड़,

वगैरह, वगैरह..,

जिस दिन

तुम झुका लोगे पलड़ा

अपनी ओर,

शब्द प्राण फूँकना

छोड़ देंगे,

यह वचन रहा,

हम लिखनेवाले

लिखना छोड़ देंगे…!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:06 बजे, 3.3.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Farming of flowers… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem Farming of flowers…  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

?~ Farming of flowers… ~??

Millions of lamps burn

on the eyelids of the twilight,

ushering the countless dreams

in the unfathomable depths

of the imagination…

As the hands raise in prayers continually

An avalanche of cosmic waves

keep turning them

into celestial flowers…

Divine fragrance spreads around

enveloping the lives around…

Alas! It still can’t reach

the merchants of death—

who are obsessed with

the demonic desires to

grow the crops of gunpowder,

laced with the blood of the innocents

Will someone explain it to them

that with the little effort

Flower farming is more profitable;

and your existence starts

smelling  with the divine fragrance

along with the whole universe..!

 

~Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 175 ☆ “आज के व्यंग्य लेखक के सामने चुनौती…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – आज के व्यंग्य लेखक के सामने चुनौती)

☆ व्यंग्य  # 175 ☆ चिन्तन – “आज के व्यंग्य लेखक के सामने चुनौती…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

आज के व्यंग्य लेखक के सामने सबसे बड़ी चुनौती सन् 2024 सामने है। आज डरे हुए व्यंग्य लेखकों का समय आ गया है। व्यंग्य लेखकों पर नजर रखी जा रही है। तीखे मारक व्यंग्य छापने वाले अखबार पत्रिकाओं के मालिकों पर नजर है। धीरे धीरे प्रिंट मीडिया व्यंग्य से परहेज़ करने लगे हैं। कुछ अखबारों से डेली आने वाले कार्य को बंद किया जा रहा है। बड़े नामी गिरामी व्यंग्यकार चिंतित हैं कि क्या 2024 के बाद व्यंग्य की ठठरी बंध जाएगी ? आज व्यंग्य लिखने वाले लोग डरे हुए क्यों लग रहे हैं ? आज सत्ता के पक्ष में लिखने वालों की भीड़ क्यों पैदा हो रही है ? आज के व्यंग्य लेखक के सामने व्यंग्य का  स्वरूप, लक्ष्य  और प्रयोजन अदृश्य क्यों हो गए हैं  ?

आज हर कवि और कहानीकार अचानक व्यंग्य लिखकर यश कमाना चाह रहा है। भीड़ बढ़ रही है और भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता। मीडिया बिक चुका है कभी कभार कोई अच्छा व्यंग्य लिखा जाता है तो प्रिंट मीडिया में बैठे ठेकेदार उस अच्छे व्यंग्य में कांट छांट कर व्यंग्य की हत्या कर देते हैं।आचरण दूषित होने का फल आज सबसे ज्यादा कुछ व्यंग्यकारों पर दिख रहा है। 

सत्ता-विरोधी तेवर दिखाने वाले ज्यादातर व्यंग्यकार व्यवहार में किसी पुरस्कार, पद, सम्मान के लोभ में उसी सत्ता के चरणों में झुके नजर आने लगे हैं।  वह सत्ता फिर चाहे व्यक्ति की हो या पार्टी की।ऐसे लोगों ने शर्म बाजार में बेच दी है। आज अधिकांश व्यंग्य लेखक तटस्थता के चालाकी भरे चिंतन से प्रभावित हो रहे हैं। 

तटस्थ आदमी को समयानुसार इधर या उधर, कहीं भी सरकने में आसानी होती है। वाट्स एप यूनिवर्सिटी में एडमिन बनकर बैठे तथाकथित व्यंग्यकार अपने अपने ज्ञान देकर व्यंग्य  को मिक्सी में भी पीस रहे हैं। व्यंग्य का लेखक ‘इसकी सुने कि उसकी सुने’ के साथ भ्रमित है। कुल मिलाकर आज व्यंग्य के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद व्यंग्य है। लेखक लिख देता है और पाठक के ऊपर छोड़ देता है कि पाठक तय करें कि लिखा गया व्यंग्य है या नहीं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 117 ☆ # अभी हम जिंदा है… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# अभी हम जिंदा है … #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 117 ☆

☆ # अभी हम जिंदा है … # ☆ 

यार मुस्कराओ की

अभी हम जिंदा है

हमारी जिंदादिली पर

मौत भी शर्मिंदा है

 

जो मिला खूब मिला

नहीं हमें किसी से गिला  

जिंदगी मस्ती में कटी

मस्त हर एक बंदा है

 

बाप की परवरिश व्यर्थ गयी

बहू-बेटे में शर्म नहीं रहीं

मां-बाप बोझ बन गए हैं यहां

रिश्ते दिखावे का धंधा है

 

अमीर देश में रोज बढ़ रहे हैं

नंबरों की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं

सरकार लोगों से कह रही है

भाई व्यापार बहुत मंदा है

 

रसूखदार उड़ा रहे हैं मज़ा

शोषित पीड़ित भुगत रहे सज़ा

न्याय पिंजरे में बंद है

कानून यहां पर अंधा है

 

कल का फकीर हवा में उड़ता है

ऐश्वर्य को देख नशे में झूमता है

कायदे कानून कदमों के दास है

सियासत का खेल बहुत गंदा है

 

हमारी सारी विरासतें

बिक रही है रोज़ देखते-देखते

हिसाब कौन मांगें गा

हम तो दे रहे रोज़ चंदा है/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत 🌹

(विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

🌹🌹

केन्द्र के प्रतिनिधि होगें गोस्वामी

मप्र राष्ट्र भाषा समिति के कार्यकारी मंत्री संचालक सुरेन्द्र  बिहारी गोस्वामी ने 12वें विश्व  हिन्दी सम्मेलन  में  भाग  लेने प्रस्थान किया।जहाँ वे ‘,भाषाई ज्ञान परम्परा का वैश्विक  संदर्भ  और हिन्दी विषय पर एक सत्र में संबोधित करेगे।

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अठारवीं शरद व्याख्यान माला एवं सम्मान समारोह सम्पन्न

हिन्दी भवन में अठारहवीं शरद व्याख्यान  माला एवं सम्मान  समारोह  सम्पन्न  हुआ। व्याख्यान माला का विषय था -भारतीय ज्ञान परम्परा -युवापीढ़ी और सम्प्रेषण  की समस्या। इस विषय पर श्री रामेश्वर  मिश्र पंकज,प्रो.संजय द्विवेदी,,श्री मनोज श्रीवास्तव ,डाॅ.चारूदत्त  पिंगले,प्रो.के.जी.सुरेश और प्रो.सुधीर कुमार (चण्डीगढ़ से आनलाइन) के व्याख्यान  हुए।इस समारोह में श्री अग्निशेखर,डाॅ.कुसुम लता केडिया,प्रभा पारीख,,डाॅ,प्रभा पारीक ,डाॅ आनंदकुमार सिंह,श्रीमती रीता वर्मा,सुश्री अमिता नीरव तथा सुश्री सुषमा मुनीन्द्र को सम्मानित  किया गया अंत में श्री अग्निशेखर ने सम्मानित की ओर से उत्तर दिया। समारोह  का संचालन श्रीमती जया केतकी ने किया।

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‘उत्कर्ष पाठशाला ‘ आयोजित

‘उत्कर्ष पाठशाला ‘ में अनुराधा शंकर ने कहा – युवा वही जिसमें ऊर्जा के साथ जानने के साथ जानने सीखने की भी ललक हो।

‘सप्रे संग्रहालय द्वारा पत्रकारिता की नई पीढ़ी के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य  के लिये महिने के दूसरे शनिवार  को ‘उत्कर्ष  पाठशाला ‘का आयोजन  किया जाता है।गाँधीवादी विचारक के अलावा जैव विविधता विशेषज्ञ बाबूलाल दहिया तथा करियर संचालक अभिषेक  खरे ने भी बच्चों का मार्गदर्शन  किया।

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‘आधुनिक  समस्याओं का मनोदार्शनिक समाधान’ विषय पर वार्ता

‘मनोर्दाशनिक समाधान ‘विषय पर डा. हरि सिंह गौर विवि सागर के दर्शनशास्त्र और मनोविज्ञान   विभाग के एचओडी डाॅ.अम्बिका दत्त शर्मा  ने  शासकीय हमिदिया कालेज में ‘आधुनिक  समस्याओं का मनोदार्शनिक समाधान’ विषय पर वक्तव्य  दिया ‘हम जैसा ज्ञान उत्पादित करते हैं,वैसी हमारी दुनियां बनती है।’

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राष्ट्रीय अलंकरण समारोह  एवं कवि गोष्ठी  का आयोजित

अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन एवं श्रीमती सुमन चतुर्वेदी मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अलंकरण समारोह  एवं कवि गोष्ठी  का आयोजन दिनांक 17 फरवरी को किया गया।जिसके मुख्य अतिथि थे-  श्री विश्वास सारंग जी माननीय मंत्री,चिकित्सा शिक्षा एवं राहत पुनर्वास  विभाग, मध्य प्रदेश।  सारस्वत अतिथि  थे डॉ. यतीन्द्र नाथ राही, वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि एवं विशिष्ठ अतिथि डॉ. रामवल्लभ आचार्य,वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि थे। अध्यक्षता डॉ. वीरेंद्र सिंह,राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय  भाषा साहित्य सम्मेलन द्वारा की गई।

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तुलसी साहित्य अकादमी की काव्यगोष्ठी सम्पन्न  

तुलसी साहित्य अकादमी की काव्यगोष्ठी  रविवार को सफलतापूर्वक  सम्पन्न  हुई जिसमें बडी संख्या  में कवि कवयित्रियों ने भाग लिया

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डॉ जवाहर कर्नावट को भारत सरकार का विश्व हिन्दी सम्मान  

भोपाल  के प्रसिद्ध  साहित्यकार  डॉ  जवाहर कर्नावट को भारत सरकार का विश्व हिन्दी सम्मान  फिजी में आयोजित  विश्व  हिन्दी सम्मेलन  में प्रदान किया गया।यह सम्मान  वैश्विक  स्तर  पर हिन्दी को समृद्ध  करने एवं 25देशों की 120वर्षो  की हिन्दी पत्रकारिता पर गहन शोध करने के लिए दिया गया।

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‘अच्छी कविता हमेशा लोकतान्त्रिक  मूल्यों के साथ खड़ी रहती है – राजेश जोशी

मध्यप्रदेश  हिन्दी साहित्य  सम्मेलन  में कवि लेखक राजेश जोशी ने जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित  ‘उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश कविता की जमीन दो ‘के उद्घाटन  सत्र को संबोधित करते हुए कहा -‘अच्छी कविता हमेशा लोकतान्त्रिक  मूल्यों के साथ खड़ी रहती है।

‘कविता में उत्तर प्रदेश ‘ विषय पर केन्द्रित  अपने शोधपरक वक्तव्य में प्रो.नलिन रंजन सिंह ने उत्तर प्रदेश की गौरवशाली काव्य परम्परा में समय और समाज की आवाज  की विवेचना की।

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‘यंग थिंकर्स फोरम ‘के रीडर्स  क्लब द्वारा पुस्तक चर्चा

‘यंग थिंकर्स फोरम ‘के रीडर्स  क्लब द्वारा विक्रम संपत की पुस्तक  ‘सावरकर ‘तथा जय नंद  कुमार की पुस्तक ‘लोक बिंयोन्ड फोक ‘पर बरकततुल्ला यूनिवर्सिटी की सहायक  अध्यापिका सविता सिंह भदोरिया द्वारा  समीक्षा की गई।बाद में समूह परिचर्चा भी की गई।

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धर्मपाल शोधपीठ द्वारा व्याख्यान आयोजित

स्वराज  वीथि में धर्मपाल शोधपीठ द्वारा विचारक एवं इतिहास विद धर्मपाल जी की जयंति पर व्याख्यान  आयोजित  किया गया जिसका विषय था ‘धर्मपाल  की दृष्टि :वर्तमान  राष्ट्रीय  परिवेश में ‘।विषय के विभिन्न  पहुलुओं पर प्रो.रामेश्वर मिश्र ‘पकंज ‘ ने अपना वक्तव्य  दिया।

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हिन्दी लेखिका संघ द्वारा काव्य गोष्ठी आयोजित 

हिन्दी लेखिका संघ  द्वारा आयोजित  काव्य गोष्ठी सफलतापूर्वक  सम्पन्न  हुई जिसमें बडी संख्या में लेखिका संघ  की सदस्याओं ने कविता पाठ  किया l गोष्ठी की अध्यक्षा जया आर्य  ने की।मुख्य  अतिथि श्री चरणजीत  सिंह कुकरेजा तथा विशिष्ट  अतिथि गोकुल सोनी थे।यह गोष्ठी महर्षि दयानंद सरस्वती एवं छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्पित थी।

इस गोष्ठी का शुभारंभ  संघ की अध्यक्षा कुमकुम गुप्ता के स्वागत  भाषण  से हुई।संचालन  कमल चन्द्रा द्वारा किया गया

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सलैया में  बनेगा ‘पर्यावरण साहित्य  केन्द्र 

सलैया में  बनेगा ‘पर्यावरण साहित्य  केन्द्र  ‘इसकी घोषणा पर्यावरण शिक्षा एवं संरक्षण  समिति के अध्यक्ष  आनंद  पटेल ने की।इस केन्द्र  का फायदा विद्यार्थियो को  होगा जहाँ वे पर्यावरण  से संबंधित  पत्र पत्रिकाएं एवं पुस्तकें पढ़ सकेगे।

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वरिष्ठ नागरिक  मंच की भोपाल  इकाई  द्वारा आनलाइन  मासिक काव्यगोष्ठी सम्पन्न

वरिष्ठ नागरिक  मंच की भोपाल  इकाई  द्वारा आनलाइन  मासिक काव्यगोष्ठी सफलतापूर्वक  सम्पन्न  हुई। जिसके मुख्य अतिथि   गणेशदत्त  बजाज तथा विशिष्ट  अतिथि मोहन तिवारी थे। मंच की अध्यक्षा  जया आर्य के स्वागत  भाषण  के बाद बीज वक्तव्य  संतोष  श्रीवास्तव  द्वारा दिया गया।गोष्ठी का  सुदंर संचालन जनक कुमारी  ने किया।

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न्यू साहित्यिक और सांस्कृतिक  संस्था द्वारा काव्य गोष्ठी सम्पन्न

न्यू साहित्यिक और सांस्कृतिक  संस्था  ने  हिन्दी भवन में संस्था प्रमुख  रमेशनंद के नेतृत्व में काव्य गोष्ठी का आयोजन  किया जिसमें राजुरकर  राज को श्रध्दांजलि  दी गई।गोष्ठी की अध्यक्षता रीवा के अवध बिहारी पांडेय अवध ने की।मुख्य अतिथि डाॅ.रामसरोज द्विवेदी  थे। संचालन आजम खान ने  किया।

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राजुरकर राज जी को विनम्र श्रद्धांजलि

रविवार  को दुष्यन्त  संग्रहालय  में राजुरकर राज को भारी संख्या मे उनके प्रशंसकों ने श्रंद्धाञ्जली अर्पित  की। प्रशंसकों में  बुद्धिजीवियों  के अतिरिक्त  समाज के सभी वर्गो के सदस्य  बड़ी संख्या में उपस्थित  थे।

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मध्यप्रदेश  लेखक संघ का उन्नतीसवा साहित्यकार सम्मान समारोह सम्पन्न  

रविवार को मध्यप्रदेश  लेखक  संघ  का उन्नतीसवा साहित्यकार  सम्मान  समारोह  मानस भवन में हुआ,जिसमें चौबीस   साहित्यकारों को सम्मानित  किया गया।समारोह  की अध्यक्षता पूर्व  सासंद  रघुनन्दन शर्मा द्वारा की गई।मुख्य अतिथि थे टैगोर विश्वविद्यालय  के कुलाधिपति संतोष  चौबे तथा सारस्वत  अतिथि  के रूप में सप्रे संग्रहालय  के संस्थापक,वरिष्ठ  पत्रकार  विजयदत्त  श्रीधर

मंचपर प्रदेशाध्यक्ष  डाॅ.रामवल्लभ  आचार्य ,राजेन्द्र  गट्टानी,कवि ऋषि श्रंगारी,प्रभुदयाल मिश्र तथा सुनील चतुर्वेदी   भी उपस्थित  रहे।सम्मान  समारोह  में प्रादेशिक संयुक्त  सचिव  डाॅ..प्रीति प्रवीण खरे  कीउपस्थित   उल्लेखनीय  रही।

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साभार – सुश्री मनोरमा पंत, भोपाल (मध्यप्रदेश) 

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ काफिल्याची खूण… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆

श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ काफिल्याची खूण… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆ 

(षडाक्षरी)

              होते गुंतलेले

              जेथे पंचप्राण

              झालो हद्दपार

              त्याच गावातून

 

              अनवाणी पाय

              भेगाळली भूई

              वाटले फाटले

              आभाळच डोई

 

              काळजावरती

              ठेवोनिया हात

              अनाम दिशांना

              होतो मी हिंडत

 

              वाटेवर एका

              प्रवासी भेटले

              नव्हती ओळख

              तरीही थांबले

 

              सोडले उसासे

              वाचून कहाणी

              कौतुके ऐकली

              भंगलेली गाणी

 

              दिली प्रेमभरे

              पाठीवर थाप

              वाटून घेतले

              झोळीतील शाप

 

              शांतावले दुःख

              त्यांच्या संगतीत

              आसूत हासले

              जीवनाचे गीत

 

              सगळ्यांच्या अंती

              भिन्न झाल्या वाटा

              वळणावरती

              उभा मी एकटा

 

              पावलांचे ठसे

              दिसती अजून  

              डोळियात चिंब

              काफिल्याची खूण !

© श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 118 ☆ अभंग… साधना करावी, एकांक साधावा…☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 118 ? 

☆ अभंग…  साधना करावी, एकांक साधावा

स्थिर ठेवा चित्त, छान होय पित्त

असेल हो वित्त, योग्य जागी.!!

 

साधना करावी, एकांक साधावा

अबोला धरावा, काहीकाळ.!!

 

स्वतःचा विचार, स्वतःच करावा

लिलया साधावा, मोक्षमार्ग.!!

 

मनुष्य जन्माचे, पारणे करावे

मुखाने जपावे, कृष्ण-नाम.!!

 

कवी राज म्हणे, ऐसा नेम व्हावा

हसत संपावा, आयु-भाग.!!

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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