संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे – बसंत”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन)हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं। इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है भारत के संविधान पर आधारित एक विचारणीय कविता ‘संविधान गीत …’।)
☆ संविधान गीत… ☆ श्री अजीत सिंह, पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन ☆
मेरा देश हिंदुस्तान,
मेरा बढ़िया संविधान
मेरी आन, मेरी शान,
इस पर जान भी कुर्बान।
संविधान से बना है भारत, संप्रभुता संपन्न।
संविधान ने दिया है हम को, प्रजातंत्र।
संविधान से मिला है हमको,
सर्व धर्म सम्भाव।
संविधान ने दिया है हमको,
समाजवाद का भाव।
संविधान ने दिए हैं,
तीन स्तंभ सरकार के,
विधायिका,
न्यायपालिका,
कार्यपालिका ,
ये हैं तीन स्तंभ सरकार के।
संविधान से मिलता,
इंसाफ,
सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक इंसाफ।
संविधान है देता आज़ादी, विचारों की,
धर्मों की, पूजा की,
त्योहारों की।
संविधान देता अवसर बराबरी के,
शिक्षा के, रोजगार के,
प्रगति के, व्यापार के।
ऊंच नीच का भेद न होगा,
गरीब अमीर का छेद न होगा,
कहीं किसी को खेद न होगा।
व्यक्ति का सम्मान होगा,
मूलभूत अधिकार होंगे।
समाज में भाईचारा होगा,
अनेकता में एकता से,
देश मेरा यह न्यारा होगा।
संसद कानून बनाएगी,
पर संविधान का मूल ढांचा,
संसद भी बदल न पाएगी।
सुप्रीम कोर्ट न्याय करेगा,
प्रशासन हुकम बजाएगा,
कानून से राज चलाएगा।
राज करेगी,
भारत की जनता ।
सरताज रहेगी,
भारत की जनता।
यही है संदेश सबको
26 जनवरी का,
समझो और समझाओ मकसद,
26 जनवरी का।
संविधान है रूपरेखा,
हमारे आदर्शों की,
हमारे मूल्यों की,
हमारे सिद्धांतों की।
सुप्रीम कोर्ट प्रहरी
हमारे संविधान का,
हर नागरिक है रक्षक
इसकी आन बान का
मेरे देश का संविधान,
मेरे सपनों की उड़ान,
मंजिल बेशक दूर बड़ी है,
मुश्किल भी अगम खड़ी है
अभी तो बस दो कदम चले हैं,
अभी तो कदम कदम से मिले हैं।
रास्ता नहीं आसान,
फिर भी दिल में है अरमान
छूना चाहूं आसमान,
जब तक तन में है ये जान
देखूं सच्चा संविधान।
सही रास्ता दिखाया,
डॉक्टर अंबेडकर ने ,
बढ़िया संविधान बनाया,
डॉक्टर अंबेडकर ने ।
मेरे देश का संविधान,
मेरी आन, मेरी शान,
इस पर जान भी कुर्बान
जीवे मेरा संविधान
जीवे मेरा हिंदुस्तान।
जीवे मेरा संविधान
जीवे मेरा हिंदुस्तान।
भारत माता की जय।
☆ ☆ ☆ ☆ ☆
The song संविधान गीत is based on the Preamble of the Constitution of India given below ☆
WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN, SOCIALIST, SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens:
JUSTICE, social, economic and political;
LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship;
EQUALITY of status and of opportunity; and to promote among them all
FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation.
IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twenty-sixth day of November 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION.
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
💥 माँ सरस्वती साधना संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से हम आपको शीघ्र ही अवगत कराएँगे। 💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख – पाठको की तलाश।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 193 ☆
आलेख – पाठको की तलाश
पिछले जमाने की फिल्मो के मेलों में भले ही लोग बिछड़ते रहे हों पर आज के साहित्यिक परिवेश में मुझे पुस्तक मेलो में मेरे गुमशुदा पाठक की तलाश है, उस पाठक की जो धारावाहिक उपन्यास छापने वाली पत्रिकाओ के नये अंको की प्रतीक्षा करता हो, उस पाठक की जो खरीद कर किताब पढ़ता हो, जिसे मेरी तरह बिना पढ़े नींद न आती हो, उस पाठक की जो भले ही लेखक न हो पर पाठक तो हो, ऐसा पाठक जो साहित्य के लिये केवल अखबार के साहित्यिक परिशिष्ट तक ही सीमित न हो,उस पाठक की जो अपने ड्रांइग रूम की अल्मारी में किताबें सजा कर भर न रखे वह उनका पाठक भी बने, ऐसा पाठक आपको मिले तो जरूर बताइयेगा.
आज साहित्य जगत के पास लेखक हैं, किताबें हैं, प्रकाशक हैं चाहिये कुछ तो बस पाठक ।
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 19 ☆ श्री राकेश कुमार ☆
परदेश – महंगाई
जब से होश संभाला है, दिन में सैकड़ों बार “महंगाई” शब्द सुनते आ रहे हैं। ऐसा लगता है, इस शब्द के बहुत अधिक उपयोग से ही तो कहीं वस्तुओं और सेवाओं के दाम नहीं बढ़ जाते हैं।
बचपन में जब माता/ पिता कहते थे, बिजली बेकार मत चलाओ, महंगी हो कर चार आने यूनिट भाव हो गया है। हमने भी बच्चों को चार रुपए यूनिट की दुहाई देकर समझाया था। ये पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहेगा।
अर्थशास्त्र के ज्ञानी मुद्रास्फीति को अपस्फीति से कहीं बेहतर मानते हैं।
यहां विदेश में भी बढ़ी हुई महंगाई के लक्षण प्रतीत हुए। सात वर्ष पूर्व गैस स्टेशन (पेट्रोल) के बाहर तीन अमरीकी रूपे और कुछ पैसे का भाव दिखाई देता था, अब पांच रूपे और पैसे दर्शाता है। पेट्रोल और अन्य तरल पदार्थ यहां पर गैलन प्रणाली में मापे जाते हैं।
यहां के गरीबों की एक दुकान “डॉलर स्टोर” के नाम से प्रसिद्ध है, उनके भाव भी अब सवा डॉलर कर दिया गया हैं। हमारे देश में भी हर माल एक रूपे में के नाम से चलती थी, अब दस रूपे से कम कुछ नहीं मिलता है। स्थानीय लोगों से जानकारी मिली कि यहां भी कोई ना कोई “महंगाई डायन” कार्यरत रहती है। वर्तमान में यूक्रेन की डायन चल रही है। जब हमने बताया की यहां तो यूक्रेन की सहयता के पोस्टर देखे हैं, और पास में एक चर्च भी यूक्रेन के नाम से ही है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, ये सिद्धांत यहां यूक्रेन पर भी लागू होता होगा।
हम जब एक माह पूर्व देश से आए तो पिछतर का पहाड़ा याद करके आए थे, लेकिन बेकार हो गया, और डॉलर अस्सी का जो हो गया है। किसी भी वस्तु का मूल्य भारतीय मुद्रा में परिवर्तित करके अपना अंकगणित जो सुधार रहे हैं।
(ई-अभिव्यक्ति ने समय-समय पर श्रीमदभगवतगीता, रामचरितमानस एवं अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के भावानुवाद, काव्य रूपांतरण एवं टीका सहित विस्तृत वर्णन प्रकाशित किया है। आज से आध्यात्म की श्रृंखला में ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री हनुमान चालीसा के अर्थ एवं भावार्थ के साथ ही विस्तृत वर्णन का प्रयास किया है। आज से प्रत्येक शनिवार एवं मंगलवार आप श्री हनुमान चालीसा के दो दोहे / चौपाइयों पर विस्तृत चर्चा पढ़ सकेंगे।
हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध एवं विद्वान पाठकों से स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। आपके महत्वपूर्ण सुझाव हमें निश्चित ही इस आलेख की श्रृंखला को और अधिक पठनीय बनाने में सहयोग सहायक सिद्ध होंगे।)
☆ आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 2 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
☆
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
अर्थ-
हे हनुमान जी आप ज्ञान और गुण के सागर हैं। आप की जय जय कार होवे। हे वानर राज आपकी कीर्ति आकाश पाताल एवं भूलोक तीनों लोक में फैली हुई है।
आप रामचंद्र जी के दूत है, अतुलित बल के स्वामी हैं, अंजनी के पुत्र हैं और आप का एक नाम पवनसुत भी है।
भावार्थ-
यहां पर हनुमान जी की तुलना समुद्र से की गई है । समुद्र का यहां पर आशय है कि वह जगह जहां पर अथाह जल हो। जहां पर सभी जगह का जल आकर मिल जाता हो। इसी प्रकार हनुमान जी भी ज्ञान और गुण के सागर हैं। जिस प्रकार सागर से अधिक पानी कहीं नहीं है उसी प्रकार हनुमान जी से अधिक ज्ञान और कहीं नहीं है । इसके अलावा सब जगह का ज्ञान और गुण आकर के हनुमान जी में मिल जाता है।
हनुमान जी रूद्र अवतार हैं इसलिए कपीश भी हैं। वे जहां पर रहते हैं वहां पर सदैव प्रकाश रहता है अंधेरा वहां से बहुत दूर भाग जाता है।
हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए तुलसीदास जी पुनः कहते हैं कि आप रामचंद्र जी के दूत हैं। आप अतुलनीय बल के स्वामी हैं। अंजनी और पवन देव के पुत्र हैं।
संदेश-
श्री हनुमान जी से बलशाली कोई नहीं है। हनुमान जी प्रभु श्री राम के सेवक हैं । फिर उनके पास बहुत सी शक्तियां है, जो उन्होंने अपने परिश्रम और अच्छे कर्मों से अर्जित की हैं। इसलिए उनके पराक्रम की चर्चा हर ओर होती है। इससे संदेश मिलता है कि बल अपने पराक्रम से अर्जित किया जा सकता है। फिर चाहे राजा हो या सेवक।
चौपाई को बार-बार पढ़ने से होने वाला लाभ-
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
हनुमान चालीसा की इन दोनों चौपाइयों का बार बार पाठ करने से हनुमत कृपा तथा आत्मिक और शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।
विवेचना-
हम सभी जानते हैं की बाहु बल, धन बल और बुद्धि बल तीन प्रकार के बल होते हैं। यह क्रमशः एक दूसरे से ज्यादा सशक्त होते हैं। ज्ञान बल को बाहुबल का ही एक अंग माना गया है। बुद्धि बल से आज का इन्सान नई-नई खोज करके मानव सभ्यता को श्रेष्ठतम ऊंचाइयों पर पहुंचाने की कोशिश में लगा है। उसका बुद्धि बल ही उसे साधारण मानव से महान बना रहा है। इसी बुद्धिबल से हम सब निकलकर समाज में व्याप्त बुराइयों को सरलता से दूर कर सकते हैं।
हनुमान जी बुद्धि बल में अत्यंत सशक्त है यह बात माता सीता ने भी अशोक वाटिका में उनको फल फूल खाने की अनुमति देने के पहले देखा था :-
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥17॥
हनुमान जी को बुद्धि और बल में निपुण देखकर जानकी जी ने कहा- जाओ। हे तात! श्री रघुनाथ जी के चरणों को हृदय में धारण करके मधुर फल खाओ॥
हनुमान जी ने ज्ञान प्राप्त करने के लिए सूर्य भगवान को अपना गुरु बनाया था। भगवान सूर्य की शर्त थी कि वह कभी रुकते नहीं है। हनुमान जी को भी उनके साथ साथ ही चलना होगा। हनुमान जी ने भगवान सूर्य के रथ के साथ चलकर सूर्य भगवान से सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त किया।
पृथ्वी पर निवासरत सभी प्राणियों को सबसे ज्यादा ऊर्जा सूर्य देव से प्राप्त होती है। भगवान सूर्य से ज्ञान प्राप्त करने के उपरांत हनुमान जी की ऊर्जा भी सूर्य के समान हो गयी। इस प्रकार हनुमान जी इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा ऊर्जावान और ज्ञानवान हुए। जिस प्रकार सूर्य अपने ऊर्जा से सभी को ऊर्जावान करता है उसी प्रकार हनुमान जी के तेज से सभी प्रकाशमान होते हैं।
इस चौपाई में हनुमान जी के बारे में कई बातें बताई गई हैं। जिसमें पहला संदेश है कि हनुमान जी रामचंद्र जी के दूत हैं। केवल हनुमान जी को ही रामचंद्र जी का दूत माना गया है। अन्य किसी को यह अधिकार प्राप्त नहीं है। रामचंद्र जी जैसे अवतारी पुरुष के दूत के पास बहुत सारे गुण होने चाहिए। ये सभी गुण पृथ्वी पर हनुमान जी को छोड़कर और किसी के पास न थे और ना है। श्रीलंका में दूत बनकर जाते समय सबसे पहले उन्होंने महासागर को पार किया। यह सभी जानते हैं कि शत योजन समुद्र को पार करने के लिए हनुमान जी के पास ताकत थी। राम जी के प्रति उनकी अनुपम भक्ति ने उनके अतुलित बल को अक्षय ऊर्जा दी थी। हनुमान जी ने समुद्र को पार करने के पहले ही अपने आत्मविश्वास के कारण कार्य सिद्ध होने की भविष्यवाणी कर दी थी। रामचरितमानस में उन्होंने कहा है :-
“होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥”
समुद्र को पार करते समय उनके अनुपम बल का परिणाम था कि जिस पर्वत पर उन्होंने पांव रखा वह पाताल चला गया। रामचरितमानस में बताया गया है :-
“जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥”
हनुमान जी के जाने के बारे में रामायण में लिखा है :-
” जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।।”
इसके उपरांत उन्होंने श्रीलंका पहुंचकर अपने रूप को छोटा या छुपने योग्य बनाया। वहां पर उन्होंने लंकिनी को हराकर अपनी तरफ मिलाया। उन्होंने लंकिनी से अपने शर्तों पर संधि की। यह उनके शत्रु क्षेत्र में जाकर शत्रुओं के बीच में से एक प्रमुख योद्धा को अपनी तरफ मिलाने की कला को भी दर्शाता है।
श्रीलंका में घुसने के उपरांत उन्होंने विभीषण जी से संपर्क किया जिसके कारण वे सीता जी तक पहुंचने में सफल हुए। यह उनके विदेश में जाकर शासन से नाराज लोगों को अपनी तरफ मिलाने की कला को प्रदर्शित करता है।
श्री लंका में सीता जी के पास पहुंच कर वहां पर उन्होंने सीता जी के हृदय में रामचंद्र जी के सेना के प्रति विश्वास पैदा किया। यह उनकी तार्किक शक्ति को बताता है। अंत में अपने वाक् चातुर्य के कारण, रावण के दरबार को भ्रमित कर, उनसे संसाधन प्राप्त कर लंका को जलाया। यह उनके अतुल बुद्धि और अकल्पनीय शक्ति को दिखाता है।
लंका दहन के उपरांत हनुमान जी पहले मां जानकी से मिलने जाते हैं तथा उनको प्रणाम करने के उपरांत वे माता जानकी से श्री रामचंद्र जी के लिए संदेश मांगते हैं तथा कोई ऐसी वस्तु मानते हैं जिसको वह प्रमाण सहित रामचंद जी को सौंप सकें :-
हनुमान जी ने कहा- हे माता! मुझे कोई चिह्न (पहचान) दीजिए, जैसे श्री रघुनाथ जी ने मुझे दिया था। तब सीता जी ने चूड़ामणि उतारकर दी। हनुमान जी ने उसको हर्षपूर्वक ले लिया॥
इसके उपरांत सीता जी को प्रणाम कर वे श्री रामचंद्र जी के पास चलने को उद्धत हुए और और पर्वत पर चढ़ गए :-
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥
हनुमान जी ने जानकी जी को समझाकर बहुत प्रकार से धीरज दिया और उनके चरण कमलों में सिर नवाकर श्री राम जी के पास चल दिए।।
हनुमान जी के बल की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है । बार-बार श्री रामचंद्र जी ने स्वयं हनुमान जी को सर्व शक्तिशाली बताया है । इसके अलावा अगस्त ऋषि सीता जी और अन्य ने भी उन्हें अति बलशाली माना है।
बाल्मीकि रामायण में उदाहरण आता है जिसमें भगवान राम ने अपने श्री मुख से हनुमान जी के गुणों का वर्णन अगस्त मुनि से किया है। जिसमें वे बताते हैं कि हनुमान जी के अंदर शूरता, दक्षता, बल, धैर्य, बुद्धि, नीति, पराक्रम और प्रभाव यह सभी गुण हैं। रामचंद्र जी ने यह भी कहा कि “मैंने तो हनुमान की पराक्रम से ही विभीषण के लिए लंका पर विजय प्राप्त किया और सीता, लक्ष्मण और अपने बंधुओं को भी हनुमान जी के पराक्रम की वजह से प्राप्त कर पाया।”
एतस्य बाहुवीर्यण लंका सीता च लक्ष्मण।
प्राप्त मया जयश्रेच्व राज्यम मित्राणि बांधेवाः।।
(वा रा/उ का /35/9)
बाल्मीकि रामायण के उत्तराखंड के 35 अध्याय के 15 श्लोक में अगस्त मुनि ने हनुमान जी के लिए कहा है:-
सत्यमेतद् रघुश्रेष्ठ यद् ब्रवीषि हनूमति।
न बले विद्यते तुल्यो न गतौ न मतौ परः ॥
(उत्तरकाण्डः ३५/१५)
हम सभी जानते हैं कि वे माता अंजनी के पुत्र हैं। हनुमान जी के जीवन में माता अंजनी के पुत्र के होने के क्या मायने हैं। माता अंजनी कौन है ? सभी जानते हैं कि माता अंजनी का विवाह वानर राज केसरी से हुआ था। फिर हनुमानजी पवनसुत कैसे कहलाते हैं ? आखिर क्या रहस्य है ?
यह पूरा रहस्य पौराणिक आख्यानों में छुपा हुआ है। माता अंजनी पहले पुंजिकास्थली नामक इंद्रदेव की दरबार की एक अप्सरा थीं। उनको अपने रूप का बड़ा घमंड था। पहली कहानी के अनुसार उन्होंने खेल खेल में तप कर रहे ऋषि का तप भंग कर दिया था। जिसके कारण ऋषिवर ने उनको वानरी अर्थात रूप विहीन होने का श्राप दे दिया था। दूसरी कहानी के अनुसार दुर्वासा ऋषि इंद्रदेव के सभा में आए थे। वहां पर पुंजिकास्थली नामक अप्सरा ने दुर्वासा ऋषि जी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए कुछ प्रयोग किए। जिस पर ऋषिवर क्रोधित हो गए और उनको वानरी अर्थात रूप विहीन होने का श्राप दिया। इसके उपरांत माता अंजना का विराज नामक वानर के घर जन्म हुआ। माता अंजनी को केसरी जी से प्रेम हुआ और दोनों का विवाह हुआ। हनुमान जी को आञ्जनेय, अंजनी पुत्र और केसरी नंदन भी कहा जाने लगा।
परंतु यहां तुलसीदास जी ने “अंजनी पुत्र पवनसुत नामा” कहा है। उन्होंने केसरी नंदन नहीं कहा। बाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में हनुमान जी ने रावण को अपना परिचय देते हुए कहा- “मेरा नाम हनुमान है और मैं पवन देव का औरस पुत्र हूँ। “
अहम् तु हनुमान्नाम मारुतस्यौरसः सुतः।
( वा रा /सु का / 51/15-16)
अगर हम रामचरितमानस पर ध्यान दें तो उसमें एक प्रसंग आता है जो यों है।
रावण के मृत्यु के बाद रामचंद जी वापस अयोध्या लौटना प्रारंभ कर देते हैं तब उनको ख्याल आता है यह संदेश भरत जी के पास तत्काल पहुंच जाना चाहिए। उन्होंने यह कार्य हनुमान जी को सौंपा। पवन पुत्र ने पवन वेग से इस कार्य को तत्काल संपन्न किया।
इन दोनों चौपाइयों के समदृश्य राम रक्षा स्त्रोत का यह मंत्र है। :-
इस श्लोक में कहा गया है की मैं श्री हनुमान की शरण लेता हूँ जो मन से भी तेज है और जिनका वेग पवन देव के समान है। जिन्होंने अपनी इंद्रियों को जीत लिया है अर्थात उनकी सभी इंद्रियां उनके बस में हैं वे इंद्रियों के स्वामी है। वे परम बुद्धिमान, और वानरों में मुख्य हैं। जो पवन देवता के पुत्र हैं (जो उनके अवतार के दौरान श्री राम की सेवा करने के लिए अवतरित भगवान शिव के अंश थे) मैं उनको दंडवत करके उनकी शरण लेता हूँ।
श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” को रघुनाथ प्रसाद विकल शिखर बालसाहित्य सम्मान 2023 शिखर सम्मान – अभिनंदन
रतनगढ़। हिंदी बाल साहित्य शोध संस्थान बनौली दरभंगा बिहार अपनी स्थापना की छठी वर्षगांठ पर कालिदास रंगालय गांधी मैदान पटना में छठी स्थापना दिवस समारोह में देशभर के प्रतिष्ठित शिक्षक साहित्यकारों के साथ-साथ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ को आपके बालसाहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए रघुनाथ प्रसाद विकल शिखर बालसाहित्य सम्मान 2023 प्रदान कर सम्मानित करेगा। यह सम्मान बिहार की राजधानी पटना में गांधी मैदान के प्रांगण में आयोजित भव्य समारोह में प्रदान किया जाएगा।
स्मरणीय है कि इस वर्ष 2023 को नगर परिषद रतनगढ़ द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर नगर के प्रमुख साहित्यकार तथा हिंदी समर्थक मंच गाजियाबाद के द्वारा नव वर्ष 2023 के अवसर पर हिंदी गौरव सम्मान 2022 आपको प्रदान कर सम्मानित किया गया है।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
नवीन घरं लावतांना अनेक जुन्या गोष्टी बाद करुन त्याची जागा नवीन वस्तू घेतात. काही वेळी खरोखरच जुन्या वस्तू ह्या बाद झाल्याच्या सिमारेषेवरच असतात फक्त आपल्या भावना त्यात अडकल्याने त्या अजून हद्दपार झालेल्या नसतात.
परंतु आपल्या वस्तुंबाबत त्याच भावना नेक्स्ट जनरेशन वा दुसऱ्या व्यक्तीच्या नसल्याने त्या वस्तू बदलायला आपण सोडून बाकी सगळे जणू सरसावून तयारच असतात.
ह्या सगळ्या गोष्टींमध्ये “शू रँक” बदलायची ठरली. आजकाल संपूर्णपणे झाकल्या जातील अशा ” शू रँक ” आँनलाईन पण भरपूर मिळतात. पूर्वी अगदी छोटासा चप्पलस्टँड सहज पुरून जायचा. कारण सहसा घरी जितकी मंडळी तितके चपलांचे जोड असं साधं सोप्प समीकरण होतं.
आता मात्र सगऴ गणित, समीकरण जणू पालटूनच गेलयं. एकाच व्यक्तीचे किमान चार पाच जोडं हे पादत्राणांचे असतातच असतात. अर्थातच हे सरासरी गणित हं. बाहेर घालायच्या चप्पल,वाँकसाठी सँडल्स वा शूज, घरात घालायच्या स्लीपर्स, आणि एखादा नवाकोरा एक्स्ट्रा जोड.असो. काळ खूप बदललायं हे खरं. आपल्या दोन पिढ्या आधी सरसकट सर्वांना कायम चप्पल मिळायच्याच असं नाही. बराच काळ ते अनवाणी काढायचे.आता अनवाणी हा शब्द कुणाच्याही डिक्शनरीतच नाही. आपल्या आधीच्या पिढीला एक जोड मिळायचा तो वर्षभर म्हणा वा अगदी झिजून झिजून तुटेपर्यंत वापरावा लागायचा.आपल्या पिढीला एक नेहमीचा आणि एक एक्स्ट्रा जोड मिळायचा शिवाय हरवल्या तर मार न बसता नुसती शाब्दिक बोलणी खावी लागायची. आताच्या पिढीला तर काही बोलूच नये.त्यांच्या पादत्राणांचा स्टाँक बघितला तर आपले फक्त डोळे विस्फारल्या जातात, शब्द मात्र फुटत नाही. असो.
ह्या चप्पल वरुन आठवलं, “चप्पल”नावाची एक मस्त मराठी शाँर्टफिल्म मी नुकतीच बघितली. फिल्म बघतांना आपोआपच डोळे पाणवतात हेच त्या फिल्मचे यश. सोबत लिंक देतेयं.वेळ मिळाल्यास बघून घ्या. ह्या फिल्ममध्ये एक गोष्ट प्रकर्षाने जाणवली. शेवटी माणसं,नाती हीच आपली खरी इस्टेट. त्यांना जपलं,त्यांच मनं ओळखलं, त्यांच्यासाठी जे काही आपण करु त्याच्या दुप्पट कधी ना कधी आपल्याकडे रिबाँड येईलच.