संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है कुबेर नाथ राय जी की पुस्तक “मन पवन की नौका” की समीक्षा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 112 ☆
☆ “मन पवन की नौका” … कुबेर नाथ राय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक – मन पवन की नौका
लेखक – कुबेर नाथ राय
प्रकाशक – प्रतिश्रुति प्रकाशन कोलकाता
मूल्य – ₹३५०
पृष्ठ – १४४
ललित निबंध साहित्य की वह शैली है जिसमें कविता सा लालित्य, निबंध का ज्ञान, उपन्यास सा प्रवाह, कहानी सा आनन्द सम्मलित होता है. यदि निबंधकार कुबेर नाथ जी जैसा महान साहित्य मर्मज्ञ हो जिसके पास अद्भुत अभिव्यक्ति का कौशल हो, अथाह शब्द भंडार हो, इतिहास, संस्कृति, समकालीन अध्ययन हो तो सचमुच निबंध ललित ही होता है. हजारी प्रसाद द्विवेदी से ललित निबंध की परम्परा हिनदी में देखने को मिलती है, कुबेरनाथ जी के निबंध उत्कर्ष कहे जा सकते हैं. प्रतिश्रुति का आभार कि इस महान लेखक के निधन के बीस से ज्यादा वर्षो के बाद उनकी १९८३ में प्रकाशित कृति मन पवन की नौका को आज के पाठको के लिये सुंदर कलेवर में प्रस्तुत किया गया है. ये निबंध आज भि वैसे ही प्रासंगिक हैं, जैसे तब थे जब वे लिखे गये. क्योकि विभिन्न निबंधो में उन भारतीय समुद्रगामी अभीप्साओ का वर्णन मिलता है जिसकी बैजन्ती अफगानिस्तान से जावा सुमात्रा तक ख्याति सिद्ध है. जिसके स्मारक शिव, बुद्ध, राम कथाओ, इनकी मूर्तियो लोक संस्कृति में अब भी रची बसी है. मन पवन की नौका पहला ही निबंध है, सिन्धु पार के मलय मारुत, अगस्त्य तारा, एक नदी इरावदी, जल माता मेनाम, मीकांग्ड गाथा, जावा के देशी पुराणो से, बाली द्वीप का एक ब्राह्मण, क्षीर सागर में रतन डोंगियां, यायावर कौण्डिन्य निबंधो में ज्ञान प्रवाह, सांस्कृतिक विवेचना पढ़ने मिलती है. किताब पढ़ना बहुत उपलब्धि पूर्ण है.
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख – “रिएलिटी शोज : कितने रियल ?”।)
☆ आलेख ☆ रिएलिटी शोज : कितने रियल ? ☆ श्री राकेश कुमार ☆
मनोरंजन के साधन में जब से इडियट बॉक्स( टीवी) ने बड़े पर्दे ( सिनेमा) को पछाड़ कर प्रथम स्थान प्राप्त किया, तो उसमें रियलिटी शोज का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्षों चलने वाले सीरियल्स जब ज्यादा ही सीरियस / स्टीरियो टाइप होने लगे तो दर्शकों ने रिएलिटी शोज को सरताज़ बना डाला हैं। वैसे अंग्रेजी की एक कहावत है कि “majority is always of fools”.
विगत एक दशक से अधिक समय से तो संगीत, नृत्य और विविध प्रकार के रियलिटी शोज का तो मानो सैलाब सा आ गया हैं।
अधिकतर भाग लेने वाले बच्चे गरीब घरों से होते हैं, या उनकी गरीबी और पिछड़ेपन से दर्शकों की भावनाओ के साथ खिलवाड़ किया जाता है। कोई अपने घर की एक मात्र आजीविका गाय पशु को बेच कर मायानगरी में आकर सितारा बनना चाहता है, तो कोई ऑटो चालक का बच्चा ऑटो की बलि देकर मुंबई आता है। क्या माध्यम या उच्च वर्ग के बच्चे इन कार्यक्रमों में कीर्तिमान स्थापित नहीं कर सकते हैं?
कार्यक्रम के प्रायोजक/ चैनल विजेता बनने के लिए अपनी शर्तें और नियम का हवाला देकर आपको जीवन भर या लंबे समय के लिए “बंधुआ मज़दूर” बनने के लिए मजबूर कर देते हैं।
अब लेखनी को विराम देता हूं, क्योंकि मेरे सब से चहेते कार्यक्रम का फाइनल जी नही फिनाले का समय हो गया है। टीवी पर रिमाइंडर आ गया है, इसलिए मिलते है, अगले भाग में।
☆ प्यार और कुर्बानी के इलावा माँ के मसलों को भी याद करें – वानप्रस्थ (वरिष्ठ नागरिकों की संस्था) का आयोजन ☆
हिसार। मई 9.
मैं सीता नहीं बनूंगी, किसी को अपनी पवित्रता का प्रमाण पत्र नहीं दूंगी , आग पर चल कर…..
मैं राधा नहीं बनूंगी, किसी की आंख की किरकिरी बन कर…
मैं यशोधरा भी नहीं बनूंगी, इंतज़ार करती हुई, ज्ञान की खोज में निकल गए किसी बुद्ध का..
मैं गांधारी भी नहीं बनूंगी, नेत्रहीन पति की साथी बनूंगी पर आंखों पर पट्टी बांध कर नहीं..
प्रो राज गर्ग ने यह कविता सुनाते हुए कहा कि आज की नारी बदल रही है, वह देवी रूप नहीं चाहती, केवल समानता और सम्मान चाहती है।
विश्व मातृत्व दिवस पर रविवार की शाम वानप्रस्थ संस्था द्वारा आयोजित वेबिनार में एक तरफ जहां माँ के असीम प्यार और कुर्बानी को याद किया गया, वहीं मां के उन मसलों को भी उल्लेखित किया गया जिन्हें लेकर सन 1908 में एक अमेरिकी महिला ने इसकी शुरुआत की थी।
प्रो सुनीता श्योकंद का कहना था कि मां अनथक रोबोट या मशीन नहीं है जो हर वक्त सेवा में लगी रहे, वह भी इंसान है, उसे भी आराम की जरूरत है और उसके भी सपने हैं।
इसी तरह माँ से जुड़े मुद्दे अन्य ने भी उठाए। कुरुक्षेत्र से जुड़े प्रो दिनेश दधीचि ने कहा,
घर घर चूल्हा चौका करती, करती सूट सिलाई माँ,
बच्चों खातिर जोड़ रही है, देखो पाई पाई माँ,
घटते घटते आज बची है, केवल एक तिहाई माँ
सिरसा से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार बी के दिवाकर ने कहा,
माँ मरी ते रिश्ते मुक गए,
पेके हुंदे मावां नाल
माँ पर शायरी करने वाले मुन्नवर राणा की शायरी का भी खूब जिक्र हुआ।
अजीत सिंह ने तरन्नुम में उनकी ग़ज़ल के कुछ शेर पढ़े।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ बहुत गुस्से में होती है, तो रो देती है
प्रो स्वराज कुमारी ने पार्टीशन की पृष्ठभूमि पर लिखा राणा का यह शेर पढ़ा,
बीवी को तो ले आए,
मां को छोड़ आए हैं..
प्रो सुरेश चोपड़ा ने भी राणा के कई शेर पढ़े..
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
डी पी ढुल ने भी मां पर एक मार्मिक कविता पढ़ी।
युगों युगों से मां ने तो भगवानों को भी पाला है,
उसकी गोद जन्नत है,
गिरजाघर और शिवाला है
कुरुक्षेत्र से जुड़ी प्रो शुचि स्मिता का गीत था,
मां सुना दो मुझे वो कहानी,
जिसमें राजा न हो न हो रानी
प्रो शमीम शर्मा की कविता थी,
मां बुहारे हुए आंगन का सबूत,
मां अंधेरे में मुंडेर पर टंगा सूरज है
वेबीनार में शामिल बहुत से सदस्यों ने मां पर आधारित फिल्मी गीत भी सुनाए।
रोहतक से जुड़े प्रो हुकम चंद ने मान की लोरी पेश की। चंदा ओ चंदा, किसने चुराई तेरी मेरी निंदिया, जागे सारी रैन, तेरे मेरे नैन…
प्रो एस एस धवन का गीत था, मां तेरी सूरत से अलग, भगवान की सूरत क्या होगी
डॉ सत्या सावंत ने गाया, चलो चलें मां, सपनों की छांव में..
पुणे से जुड़ी दीपशिखा पाठक की प्रस्तुति थी, तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, ओ मां, ओ मां
वीणा अग्रवाल पंजाबी गीत, मांवां ते धीयां रल बैठियां नी माए.. गाते हुए भावुक हो गईं, उनका गला रुंध गया और वे गीत पूरा न कर सकीं।
(मदर डे पर आयोजित वानप्रस्थ की गोष्ठी का दृश्य)
लगभग तीन घंटे चली वैब गोष्ठी में करीबन 30 सदस्यों ने भाग लिया तथा एक से बढ़कर एक माँ केंद्रित रचनाएं प्रस्तुत की। दूरदर्शन हिसार के पहले डायरेक्टर रहे एस एस रहमान अजमेर से गोष्ठी में जुड़े और हिसार निवास की यादों को ताज़ा किया।
ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ १० मे -संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी)
यदुनाथ थत्ते:
पू.साने गुरूजींचा ज्यांचावर प्रभाव होता असे यदुनाथ थत्ते हे साहित्यिक,पत्रकार,संपादक आणि स्वातंत्र्यसेनानी होते.त्यांनी 1942 च्या ‘भारत छोडो’ आंदोलनात सक्रीय सहभाग घेतला होता.
थत्ते यांची साहित्य संपदा:
बालसाहित्य – आटपाट नगर होते,चिरंतन प्रकाश देणारी ज्योत म.गांधी,रेशमा.
चरित्र – आपला वारसा,भारतरत्न बाबासाहेब आंबेडकर,साने गुरुजी,
माहितीपर – पुढे व्हा भाग 1ते 3,यशाची वाटचाल
उपदेशपर – समर्थ व्हा,संपन्न व्हा.
व्यक्तीचित्रण – साने गुरूजी जीवन परिचय
संपादित – स्वातंत्र्यगीते
1998 साली वयाच्या 76 व्या वर्षी त्यांचे निधन झाले.त्यांच्या स्मृतीस अभिवादन.
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निनाद बेडेकर :
निनाद बेडेकर हे इतिहासाचे गाढे अभ्यासक होते.जगभर अनेक ठिकाणी त्यांनी प्रवास केला व अनेक पुरातन,कागद पत्रांचा अभ्यास केला .त्यासाठी त्यांनी अरेबिक,पर्शियन भाषा ही शिकून घेतल्या.यावरून इतिहासाचा सखोल अभ्यास करण्याची त्यांची तळमळ दिसून येते.
छत्रपती शिवाजी महाराज व मराठ्यांचा इतिहास हे त्यांचे विशेष आवडीचे व अभ्यासाचे विषय होते.शिवाजी महाराजांच्या व्यवस्थापनाची कौशल्ये समजावीत म्हणून त्यांनी एम्.बी.ए.च्या विद्यार्थ्यांसमोर इग्लिश मधून व्याख्याने दिली होती.गड किल्ले प्रत्यक्ष जाऊन पाहण्याची मोहीम त्यांनी यशस्वीपणे राबवली.राज्य सरकारच्या या संबंधीच्या समितीचे ते प्रमुख मार्गदर्शक होते.
पुण्याच्या स्व-रूप वर्धिनी या संस्थेचा ‘स्वा. विवेकानंद मातृभूमी पुरस्कार’ त्याना प्राप्त झाला होता.
श्री.बेडेकर यांचे 2015 मध्ये,वयाच्या 66वर्षी निधन झाले.
या इतिहासप्रेमी साहित्यिकाला मानाचा मुजरा !
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नागोराव घनश्याम देशपांडे:
ना.घ.देशपांडे या नावाने प्रसिद्ध असलेले कवी, नागपंचमी चा जन्म म्हणून नागोराव ! जन्म, शिक्षण, व्यवसाय विदर्भातच. मेहकर येथे त्यांनी सत्र न्यायालयात वकिली केली. तसेच काही वर्षे आकाशवाणीवर सल्लागार म्हणून काम केले. त्यावेळी स्त्री निवेदिका असल्या पाहिजेत कारण त्यांचा स्वर पुरूषांच्या स्वरापेक्षा उंच असतो .हे त्यांनी सरकारला पटवून दिले. तेव्हापासून स्त्री निवेदिकाना आकाशवाणीवर स्थान मिळाले.
1929 साली त्यांनी शीळ ही कविता लिहिली व त्यांचे मित्र गोविंदराव जोशी यांनी ती गायली. ही कविता प्रचंड लोकप्रिय झाली. पुढे 1932मध्ये एच.एम.व्ही.ने त्याची ध्वनीमुद्रिका काढली. तेव्हापासून भावगीताचे युग मराठीत सुरू झाले. शीळ हा कवितासंग्रह 1954मध्ये प्रकाशित झाला.
त्यांच्या अभिसारिका या काव्य संग्रहाला राज्य पुरस्कार मिळाला व खूणगाठी ला साहित्य अकादमीचा पुरस्कार मिळाला आहे. गुंफण हा त्यांच्या सुरूवातीपासूनच्या अप्रकाशित कवितांचा संग्रह आहे.
त्यांचे अन्य साहित्य:
कंचनीचा महालः चार दीर्घकविता
सुगंध उरले, सुगंध उरले
आत्मकथन: फुले आणि काटे
गाजलेली गीत:
अंतरीच्या गूढगर्भी, काळ्या गढीच्या जुन्या, घर दिव्यात मंद तरी, डाव मांडून भांडून, तुझ्याचसाठी कितीदा, नदीकिनारी गं, मन पिसाट माझे अडले रे, रानारानात गेली बाई शीळ
वर उल्लेख केलेल्या पुरस्काराशिवाय त्यांना गदिमा पुरस्कार, अनंत काणेकर पुरस्कार, साहित्य वाचस्पती उपाधी, विदर्भ साहित्य संघाचा जीवनव्रती पुरस्कार प्राप्त झाला होता. त्यांच्या अमृतमहोत्सवी वर्षानिमित्त मेहकर येथे खास साहित्य संमेलन आयोजित करण्यात आले होते.
रानारानातील शीळ कानाकानापर्यंत पोहोचवणारा हा कवी 2000साली वयाच्या 91 वर्षी डाव सोडून गेला. या भावकवीच्या स्मृतीस विनम्र अभिवादन.
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श्री सुहास रघुनाथ पंडित
ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ
मराठी विभाग
संदर्भ : विकिपीडिया, आधुनिक मराठी काव्यसंपदा.
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈