श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 32 – मनोज के दोहे

(बरसे, होलिका, होली, छैला, महान)

बरसे

गाँवों की चौपाल में, बरसे है रस-रंग।

बारे-बूढ़े झूमकर, करते सबको दंग।।

होलिका

जली होलिका रात में, हुआ तमस का अंत।

अपनी संस्कृति को बचा, बने जगत के कंत।।

होली

कवियों की होली हुई, चले व्यंग्य के बाण।

हास और परिहास सुन, मिला गमों से त्राण।।

छैला

छैला बनकर घूमते, गाँव-गली में यार।

बनें मुसीबत हर घड़ी, कैसे हो उद्धार।।

महान

हाथ जोड़कर कह रहा, भारत देश महान।

शांति और सद्भाव से, हो मानव कल्यान।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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