(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है श्री कृष्ण मोहन झा जी की पुस्तक “महानायक मोदी” की समीक्षा।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 113 ☆
☆ “महानायक मोदी” … श्री कृष्ण मोहन झा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
किताब… महानायक मोदी
लेखक… कृष्ण मोहन झा
प्रकाशक… सरोजनी पब्लिकेशन, नई दिल्ली ११००८४
मूल्य… ५०० रु,
पृष्ठ… १६० सजिल्द
युवा पत्रकार श्री कृष्ण मोहन झा इलेक्ट्रानिक व वैचारिक पत्रकारिता का जाना पहचाना नाम है. देश के अनेक बड़े राजनेताओ से उनके व्यक्तिगत संबंध हैं. उन्होने भारतीय राजनीति में पार्टियों, राज्य व केंद्र के सत्ता परिवर्तन बहुत निकट से देखे और समझे हैं. उनकी लेखनी की लोकप्रियता बताती है कि वे आम जनता की आकांक्षा और उनके मनोभाव पढ़ना वे खूब जानते हैं. श्री झा को उनकी सकारात्मक पत्रकारिता के प्रारम्भ से ही मैं जानता हूं. विगत दिनों मुझे उनकी पुस्तक महानायक मोदी के अध्ययन का सुअवसर मिला. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जन प्रतिनिधि के नेतृत्व में असाधारण शक्ति संचित होती है. अतः राजनीति में नेतृत्व का महत्व निर्विवाद है. जननायको के किचित भी गलत फैसले समूचे राष्ट्र को गलत राह पर ढ़केल सकते हैं. विगत दशको में भारतीय राजनीति का पराभव देखने मिला. चुने गये नेता व्यक्तिगत स्वार्थों में इस स्तर तक लिप्त हो गये कि आये दिन घपलों घोटालों की खबरें आने लगीं. नेतृत्व के आचरण में इस अधोपतन के चलते सक्षम बुद्धिजीवी युवा पीढ़ी विदेशों की ओर रुख करने लगी, अधिकांश आम नागरिक देश से पहले खुद का भला तलाशने लगे. इस दुष्कर समय में गुजरात की राजनीति से श्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण किया. उन्होने स्व से पहले समाज का मार्ग ही नही दिखलाया बल्कि हर पीढ़ी से सीधा संवाद स्थापित करने का प्रयास करते हुये राष्ट्र प्रथम की विस्मृत भावना को नागरिकों में पुर्जीवित किया. स्वयं अपने आचरण से उन्होने एक अनुकरणीय नेतृत्व की छवि स्थापित करने में सफलता पाई. वो महात्मा गांधी थे जिनके एक आव्हान पर लोग आंदोलन में कूद पड़ते थे, लाल बहादुर शास्त्री थे जिनके आव्हान पर लोगों ने एक वक्त का खाना छोड़ दिया था.
दशकों के बाद देश को एक अनुकरणीय नेता मोदी जी के रूप में मिला है. वे विश्व पटल पर भारत की सशक्त उज्जवल छवि निर्माण में जुटे हुये हैं, उन्होने भगवत गीता, योग, दर्शन को भारत के वैश्विक गुरू के रूप में स्थापित करने हेतु सही तरीके से दुनिया के सम्मुख रखने में सफलता अर्जित की है. जन संवाद के लिये नवीनतम टेक्नालाजी संसाधनो का उपयोग कर उन्होने युवाओ में अपनी गहरी पैठ बनाने में सफलता अर्जित की है. देश और दुनिया में वैश्विक महानायक के रूप में उनका व्यक्तित्व स्थापित हो चला है. ऐसे महानायक की सफलताओ की जितनी विवेचना की जावे कम है, क्योंकि उनके प्रत्येक कदम के पारिस्थितिक विवेचन से पीढ़ीयों का मार्गदर्शन होना तय है. मोदी जी को कोरोना, अफगानिस्तान समस्या, यूक्रेन रूस युद्ध, भारत की गुटनिरपेक्ष नीती के प्रति प्रतिबद्धता बनाये रखने वैश्विक चुनौतियों से जूझने में सफलता मिली है. तो दूसरी ओर उन्होंने पाकिस्तान पोषित आतंक, काश्मीर समस्या, राममंदिर निर्माण जैसी समस्यायें अपने राजनैतिक चातुर्य व सहजता से निपटाई हैं.
देश की आजादी के अमृत काल का सकारात्मक सदुपयोग लोगों में राष्ट्रीयता जगाने के अनेकानेक आयोजनो से वे कर रहे हैं. समय समय पर लिखे गये अपने ३४ विवेचनात्मक लेखों के माध्यम से श्री झा ने मोदी जी के महानायक बनने के सफर की विशद, पठनीय, तथा तार्किक रूप से आम पाठक के समझ में आने वाली व्याख्या इस किताब में की है. निश्चित ही यह पुस्तक संदर्भ ग्रंथ के रूप में शोधार्थियों द्वारा बारम्बार पढ़ी जावेगी. मैं श्री कृष्नमोहन झा को उनकी पैनी दृष्टि, सूक्ष्म विवेचनात्मक शैली, और महानायक मोदी पर सामयिक कलम चलाने के लिये बधाई देता हूं व आपसे इस किताब को खरीदकर पढ़ने की अनुशंसा करता हूं.
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख – “पोस्ट कार्ड”।)
☆ आलेख ☆ पोस्टकार्ड ☆ श्री राकेश कुमार ☆
संदेश भेजने का सबसे प्रचलित साधन जिसका उपयोग लंबे समय तक चला।ये तो संचार क्रांति ने पोस्ट कार्ड का जीवन ही समाप्त सा कर दिया। साठ के दशक में छः पैसे या इक्कनी प्रति पोस्ट कार्ड हुआ करता था। उस समय दो पोस्ट कार्ड जुडे़ हुए रहते थे, जिसको जवाबी कार्ड कहा जाता था। पोस्ट कार्ड भेजने वाला ही एक जवाबी कार्ड साथ में अपना पत्ता लिख कर भेजता थ। शिक्षा की कमी के कारण पोस्टमैन अपनी लेखनी से पूछ कर जवाब लिख देता था। शिक्षा के प्रसार के कारण कुछ वर्ष पूर्व जवाबी कार्ड बंद हो गया हैं, वैसे अब पोस्ट कार्ड देखे हुए भी दशक से अधिक समय हो चुका हैं।
बाल्य काल में पिताजी के नाम से उर्दू भाषा में लिखा हुआ पोस्ट कार्ड आता था, तो अंदाज लगाते थे किस नातेदार का होगा। यदि उस पर हल्दी के छीटें होते थे तो खुशी का समाचार होता था। किनारे से थोड़ा सा फटा हुआ कार्ड किसी दुःख की खबर वाला होता था। जिसको पढ़ने के बाद तुरंत नष्ट कर दिया जाता था। कारण ये ही रहा होगा। बार बार आंखों के सामने आने से मन दुःखी होता होगा।
व्यापार में भी पोस्ट कार्ड का भरपूर उपयोग हुआ। कम कीमत के कारण व्यापारी इसका बहुत उपयोग करते थे। बाद में सरकार ने छपे हुए कार्ड की कीमत में वृद्धि कर इसके व्यापारिक उपयोग को सीमित करने में सफलता प्राप्त की थी। कम आय या गरीब व्यक्ति इसी के सहारे अपने से दूर रहने वाले से जुड़ा रहता था।
वर्ष नब्बे में भिलाई शाखा की बिल्स सीट में कार्यरत रहते हुए शाखा प्रबंधक की सहमति से पोस्ट कार्ड छपवा कर बिल भेजने वाली कम्पनी को बैंक का बिल क्रमांक लिख कर पावती भेज देते थे। डाक किताब में प्रवष्टि पर समय खर्च बचाने के लिए पूरा खर्च प्रिंटिंग मद में डाल दिया गया था। इस सिस्टम से बिल भेजने वाली कंपनियों के काम काफी हद तक सुचारू और सुविधाजनक हो गए थे। एक शहर में तो कुकिंग गैस की बुकिंग करने के लिए भी हमने पोस्ट कार्ड का उपयोग किया था। आजकल तो शायर भी ऐसी बातें करने लगे हैं।
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श एवं परिस्थिति जन्य कथानक पर आधारित एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना “अमृतवाणी…”। )
ई-अभिव्यक्ती -संवाद ☆ १७ मे -संपादकीय – श्रीमती उज्ज्वला केळकर– ई – अभिव्यक्ती (मराठी)
कमल पाध्ये
कमल पाध्ये या वैचारिक लेखन करणार्याड मराठी लेखिका होत्या. त्या माहेरच्या गोठोसकर. मुंबईतील रामवाडीतील विनायक पांडुरंग गोठोसकर यांच्या त्या कन्या. १९४० साली पत्रकार प्रभाकर पाध्ये यांच्याशी त्यांचा विवाह झाला. बंध- अनुबंध या त्यांनी लिहिलेल्या आत्मचरित्राला अफाट लोकप्रियता मिळाली. याशिवाय त्यांनी भारतीय मुसलमानांचा राजकीय इतिहास १८५८ ते १९४७ हे अनुवादीत पुस्तक लिहिले. मूळ पुस्तक ‘द इंडियन मुस्लीम’ हे असून त्याचे मूळ लेखक आहेत, राम गोपाल. ‘भारतातील स्त्रीधर्माचा आदर्शवाद’ हेही पुस्तक त्यांनी लिहिले आहे.
कमल पाध्ये यांचा आज स्मृतीदिन. त्या निमित्त त्यांना भावपूर्ण श्रद्धांजली.
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श्रीमती उज्ज्वला केळकर
ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ
मराठी विभाग
संदर्भ : साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी, गूगल विकिपीडिया
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈