मराठी साहित्य – प्रवासवर्णन ☆ चला आसाम मेघालयाला… भाग -1 ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

✈️ प्रवासवर्णन ✈️

☆ चला आसाम मेघालयाला… भाग -1 ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

कोव्हीड थोडा आटोक्यात आला.

गेली दोन वर्ष मनात या विषाणूने भयाचे घर केले होते.  आता थोडे मुक्त झाले आणि पर्यटन खुले झाल्यामुळे प्रवास प्रेमींनी  प्रवासाचे बेत आखण्यात सुरुवात केली.

देशाच्या उत्तर-पूर्व विभागातल्या आसाम मेघालय ला भेट देण्याचे आम्हीही ठरवले.  एका वेगळ्याच भौगोलिक आणि सांस्कृतिक राज्याची ही सफर खूपच अविस्मरणीय ठरली,  या सफरीची सुरुवात आसाममधील गुवाहाटी या व्यापारी शहराच्या, लोकप्रिय गोपीनाथ बॉर्दोलोई या आंतरराष्ट्रीय विमानतळापासून सुरुवात झाली.  आम्ही मुंबई छत्रपती शिवाजी विमानतळावरून इंडिगो फ्लाइट ६४३४ ने इथे आलो.  सोबत वीणा वर्लड ग्रुपचे आकाश व इतेश हे अतिशय उत्साही आणि या भागातले माहितगार असे सफर मार्गदर्शक आमच्या बरोबर होते.  आमचा २६ जणांचा समूह होता.

गुवाहाटी ते शिलॉंग हा आमच्या प्रवासाचा पहिला टप्पा होता. आमच्यासाठी विमानतळावर टॅक्सीज उभ्याच होत्या. मेघालय हे भारतातील उत्तर पूर्व राज्य असून शिलॉंग ही या राज्याची राजधानी आणि सर्वात मोठे शहर आहे,  त्याच्या उत्तर व पूर्व भागात आसाम राज्य तर पश्चिमेस व दक्षिणेस बांगलादेश आहे.  १९७२ साली मेघालय राज्य आसाम पासून वेगळे झाले.

गुवाहाटी ते शिलाँग हा ड्राइव्ह अतिशय सुखद होता दुतर्फा उंच उंच पहाड, बांबूची बने, उंच उंच सुपारीच्या बागा, केळीच्या बागा, सुखद गारवा आणि डोंगरावर उतरलेले ढग असा सृष्टीचा नजारा अतिशय लोभस होता.  वाटेत उमीअम या मानव निर्मित विशाल तलावास  भेट दिली.  शीलाँग पासून हे ठिकाण साधारण १५ किलोमीटर अंतरावर आहे आणि पर्यटकांचे खास आकर्षण आहे. याचा विस्तार जवळजवळ २२० स्क्वेअर मीटर आहे  चहूबाजूला डोंगर, खासी वृक्ष, आणि तलावाचे अनोखे निळे पाणी तिथे आपल्याला खिळवून ठेवतात.  आमचे तसेच झाले. पउल निघतच नव्हते पण पुढे जायचे होते., .पूर्वी या तलावावर एक हायड्रो प्रोजेक्ट होता परंतु सध्या तो बंद आहे असे समजले,

एलिफन्टा फॉलस

या राज्यांचे  मेघालय हे नाव किती सार्थ आहे हे जाणवत होतं. उंच उंच डोंगर आणि त्यावर विहरणारे काळे मेघ हेच या राज्याचे वैशिष्ट्य!  हे सारे बघत असताना मनात येत होतं की आपल्या देशात किती विविधता आहे! सृष्टीची विविध रूपे पाहताना थक्कच व्हायला होते,  अंतराअंतरावर बदलणारी मानव संस्कृती पोशाख खाद्य,जीवन पद्धती ही खरोखरच अचंबित करते.

मेघालय मध्ये फिरताना जाणवले ते सृष्टीचे अनेक चमत्कार,  इथे अनेक नैसर्गिक गुहा आणि धबधबे पाहायला मिळतात.  वर्षा ऋतूचे अजून आगमन झाले नव्हते तरीही उंच डोंगरावरून कोसळणारे धबधबे डोळ्यांचे पारणे फेडतात.

एके ठिकाणी रबर प्लांटची मुळे वाढून एकमेकात अशा पद्धतीने गुंतली गेली आहेत की त्याचा एक मोठा पूल तयार झाला आहे, यास रूट ब्रिज असेच म्हणतात. एका नैसर्गिक ब्रीज वरुन चालताना सृष्टीच्या या दिव्य कामगिरीचा अचंबा वाटत होता. मात्र रुटब्रीजला प्रत्यक्ष पाहण्यासाठी काही अवघड चढउतार पार करावे लागतात.

१८९७ साली  मेघालयात प्रचंड भूकंप झाला होता. डोंगर कोसळले होते. इतस्ततः दगड दगड पसरले होते, ज्यावेळी ही विस्कळीत स्थिती पूर्ववत करण्यात येत होती त्यावेळी तिथे एक भलामोठा दगड एका छोट्या दगडावर व्यवस्थित स्वतःला तोलून स्थिर असलेला आढळला.  तो तसाच ठेवला गेला.  आजही तो तसाच आहे आणि आता हे पर्यटकांचे खास आकर्षण आहे.  या दगडास बॅलन्सिंग रॉक असेच म्हणतात निसर्गाचे आणखी एक नवलच म्हणावे !!

क्रमश:…

© सौ. राधिका भांडारकर

पुणे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 100 ☆ शांति और सहयोग ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना  “शांति और सहयोग…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 100 ☆

☆ शांति और सहयोग… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’  

मैंने कुछ कहा और बुद्धिजीवियों ने उसे संशोधित किया बस यहीं से अहंकार जन्म लेता है कि आखिर मुझे टोका क्यों गया। सीखने की प्रक्रिया में लगातार उतार- चढ़ाव आते हैं। जब हम सुनना, गुनना और सीखना बंद कर देते हैं तो वहीं से हमारी बुद्धि तिरोहित होना शुरू कर देती है। क्या सही है क्या गलत है ये सोचने समझने की क्षमता जब इसके घेरे में आती है तो वाद- विवाद होने में देर नहीं लगती है। कदम दर कदम बढ़ाते हुए व्यक्ति बस एक दूसरे से बदला लेने की होड़ में क्या- क्या नहीं कर गुजरता।  होना ये चाहिए कि आप अपनी रेखा निर्मित करें और उसे बढ़ाने की ओर अग्रसर हों। सबको जोड़ते हुए चलने में जो आंनद है वो अन्य कहाँ देखने को मिलेगा।

आजकल यूट्यूब और इंस्टाग्राम में पोस्ट करने का चलन इस कदर बढ़ गया है कि हर पल को शेयर करने के कारण व्यक्ति कोई भी थीम तलाश लेता है। उसका उद्देश्य मनोरंजन के साथ ही लाइक व सब्सक्राइब करना ही होता है। यू टयूब के बटन को पाने की होड़ ने कुछ भी पोस्ट करने की विचारधारा को बलवती  किया है। तकनीकी ने एक से एक अवसर दिए हैं बस रोजगार की तलाश में भटकते युवा उसका प्रयोग कैसे करते हैं ये उन पर निर्भर करता है।

एप का निर्माण और उसे  अपडेट करते रहने के दौरान अनायास ही संदेश मिलता है कि समय के साथ सामंजस्य करने का हुनर आना चाहिए। कदम दर कदम बस चलते रहना है। एक राह पर चलते रहें, मनोरंजन के अवसर मिलने के साथ ही रोजगार परक व्यवसाय की पाइप लाइन बनाना भी आना चाहिए। सभी बुद्धिजीवी वर्ग को इस बात की ओर ध्यान देना होगा कि सबके विकास को, सबके प्रयास से जोड़ते हुए बढ़ना है। एक और एक ग्यारह होते हैं इसे समझते हुए एकता की शक्ति को भी पहचानना होगा। संख्या बल केवल चुनावों में नहीं वरन जीवन हर क्षेत्र में प्रभावी होता है। कैसे ये बल हमारी उन्नति की ओर बढ़े इस ओर चिन्तन मनन होना चाहिए।

आजकल जाति वर्ग के आधार पर निर्णयों को प्रमुखता दी जाती है। इसे एकजुटता का संकेत माने या अलगाव की पहल ये तो वक्त तय करेगा।किन्तु प्रभावी मुद्दे मीडिया व जनमानस की बहस का हिस्सा बन कर सबका टाइम पास बखूबी कररहे हैं। आक्रोश फैलाने वाली बातों पर चर्चा किस हद तक सही कही जा सकती है। इन पर रोक होनी चाहिए। कार्यों का होना एक बात है किन्तु बिनाबात के हल्ला बोल या ताल ठोक जैसे कार्यक्रम किसी भी हद तक सही नहीं कहे जा सकते हैं। इन सबका असर जन मानस  पर पड़ता है सो सभी को एकजुटता का परिचय देते हुए सहयोगी भाव से  सही तथ्यों को स्वीकार करना चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मुक्तक – किसी के काम आना ही…☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना किसी के काम आना ही…।)

☆ मुक्तक – ।। किसी के काम आना ही जीवन की परिभाषा है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

जाने क्यों आदमी इतना मगरूर रहता है।

जाने कौन से नशे में वो चूर रहता है।।

पानी के बुलबुले सी होती है जिंदगी।

फिर भी अहम में भरपूर रहता है।।

[2]

हर काम स्वार्थ को नहीं सरोकार से करो।

मत किसी का अपमान तुम अहंकार से करो।।

उबलते पानी मेंअपना चेहरा भी दीखता नही है।

जो भी करो बस तुम सही व्यवहार से करो।।

[3]

कुछ पाकर इतरांना ठीक होता नहीं है।

अपनो से ही कतराना ठीक होता नहीं है।।

जाने कौन किस मोड़ पर काम आ जाये।

किसी को यूँ ठुकराना ठीक होता नहीं है।।

[4]

तुम्हारी वाणी ही तुम्हारे दिल की भाषा है।

किसी के लिए कुछ करना सच्ची अभिलाषा है।।

हर कोई आशा करता है सहयोग की।

किसीके काम आना ही जीवन की परिभाषा है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तत्त्वमसि ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – तत्त्वमसि ??

अनुभूति वयस्क तो हुई

पर कहन से लजाती रही,

आत्मसात तो किया

किंतु बाँचे जाने से

कागज़ मुकरता रहा,

मुझसे छूटते गये

पन्ने कोरे के कोरे,

पढ़ने वालों की

आँख का जादू ,

मेरे नाम से

जाने क्या-क्या

पढ़ता रहा…!

 

© संजय भारद्वाज

प्रात: 9:19 बजे, 25.7.2018

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 157 ☆ आलेख  – शिव लिंग का आध्यात्मिक महत्व… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है  एक विचारणीय  आलेख  शिव लिंग का आध्यात्मिक महत्व…! इस आलेख में वर्णित विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं जिन्हें सकारात्मक दृष्टिकोण से लेना चाहिए।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 157 ☆

? आलेख  – शिव लिंग का आध्यात्मिक महत्व.. ?

सनातन संस्कृति में भगवान शिव को सर्वशक्तिमान माना जाता है।  भगवान शिव की पूजा  शिवलिंग के स्वरूप में भी की  जाती है।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश, ये तीनों देवता सृष्टि की स्थापना , लालन पालन , तथा प्रलय के सर्वशक्तिमान देवता हैं।

दरअसल, भगवान शिव का कोई स्वरूप नहीं है, उन्हें निराकार माना जाता है। शिवलिंग के रूप में उनके इसी निराकार रूप की आराधना की जाती है।

शिवलिंग का अर्थ:

‘लिंगम’ शब्द ‘लिया’ और ‘गम्य’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ ‘आरंभ’ और ‘अंत’ होता है। दरअसल, मान्यता  है कि शिव से ही ब्रह्मांड प्रकट हुआ है और यह उन्हीं में मिल जाएगा।

शिवलिंग में ब्रम्हा विष्णु महेश तीनों देवताओ का वास माना जाता है। शिवलिंग को तीन भागों में बांटा जा सकता है। सबसे निचला हिस्सा जो आधार होता है, दूसरा बीच का हिस्सा और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है।

निचला हिस्सा ब्रह्मा जी (सृष्टि के रचयिता), मध्य भाग विष्णु (सृष्टि के पालनहार) और ऊपरी भाग भगवान शिव (सृष्टि के विनाशक) हैं। अर्थात शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है।

अन्य मान्यता के अनुसार,  शिव लिंग में  शिव और शक्ति,का एक साथ में वास माना जाता है।

पिंड की तरह आकार के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक, दोनों कारण है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो शिव ब्रह्मांड के निर्माण के आधार मूल हैं। अर्थात शिव ही वो बीज हैं, जिससे पूरा संसार बना है। वहीं अगर वैज्ञानिक दृष्टि से बात करें तो ‘बिग बौग थ्योरीज कहती है कि ब्रह्मांड का निमार्ण  छोटे से कण से हुआ है। अर्थात शिवलिंग के आकार को इसी से  जोड़कर  देखा जाता है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – ‘शॉप-वरदान’ – प्रभा पारीक ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है प्रभा पारीक जी के कथा संग्रह  “शॉप-वरदान” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – ‘शॉप-वरदान’ – प्रभा पारीक ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

पुस्तक:  शॉप-वरदान

लेखिका:  प्रभा पारीक

प्रकाशक: साहित्यागार,धामणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर- 302013

मोबाइल नंबर : 94689 43311

पृष्ठ : 346

मूल्य : ₹550

समीक्षक : ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

☆ शॉप-वरदान की अनूठी कहानियाँ – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

किसी साहित्य संस्कृति की समृद्धि उसके रचे हुए साहित्य के समानुपाती होती है। जिस रूप में उसका साहित्य और संस्कृति समृद्ध होती है उसी रूप में उसका लोक साहित्य और समाज सुसंस्कृत और समृद्ध होता है। लौकिक साहित्य में लोक की समृद्धि संस्कार, रीतिरिवाज और समाज के दर्शन होते हैं।

इस मायने में भारतीय संस्कृति में पुराण, संस्कृति, लोक साहित्य, अलौकिक साहित्य आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। समृद्ध काव्य परंपरा, महाकाल, ग्रंथकाव्य, पुराण,  वेद, वेदांग उपाँग और अलौकिक-लौकिक महाकाव्य में हमारी समृद्ध परंपरा को सहेज कर रखा है। इसी के द्वारा हम गुण-अवगुण, मूल्य-अमूल्य, आचरण-व्यवहार, देव-दानव आदि को समझकर तदनुसार कार्य-व्यवहार, भेद-अभेद, शॉपवरदान आदि का निर्धारण कर पाते हैं।

अमृत परंपरा का अध्ययन, चिंतन-मनन व श्रम साध्य कार्य करके उसमें से शॉप और वरदान की कथाओं का परिशीलन करना बहुत बड़ी बात है। यह एक श्रमसाध्य कार्य है। जिसके लिए गहन चिंतन-मनन, विचार-मंथन, तर्क-वितर्क और आलोचना-समालोचना की बहुत ज्यादा जरूरत होती है।

तर्क, विचार और सुसंगतता की कसौटी पर खरे उतरने के बाद उसका लेखन करना बहुत बड़ी चुनौती होता है। इसके लिए गहन अध्ययन व चिंतन की आवश्यकता होती है। इस कसौटी पर प्रभा पारीक का दीर्धकालीन अध्ययन, शोध, चिंतन एवं मनन उनके लेखन में बहुत ही सार्थक रूप से परिणित हुआ है।

वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, रामायण, भगवत आदि में वर्णित अधिकांश शॉप उनके वरदान के परिणीति का ही प्रतिफल है। हर शॉप उनके वरदान को पुष्ट करता है। इसी द्विकार्य पद्धति को प्रदर्शित करती पुस्तक में शॉप और वरदान की अनेकों कहानियां हैं जो हमारी भारतीय संस्कृति के अनेक पुष्ट परंपराओं और रीति-रिवाजों को हमारे समुख लाती है। इसी पुस्तक के द्वारा इन्हीं कथाओं के रूप में हमारे सम्मुख सहज, सरल, प्रवहमय भाषा में हमारे सम्मुख रखने का कार्य लेखिका ने किया है।

वेद, पुराण, श्रीमद् भागवत आदि का ऐसा कोई प्रसंग, कथा, कहानी, शॉप, वरदान नहीं जिसका अनुशीलन लेखिका ने न किया हो। प्रस्तुत पुस्तक इसी दृष्टि से बहुत उपयोगी है। साजसज्जा उत्तम हैं। त्रुटिरहित छपाई, आकर्षक कवर ने पुस्तक की उपयोगिता में चार चांद लगा दिए हैं। 346 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य ₹550 वर्तमान युग के हिसाब से वाजिब है।

पुस्तक की उपयोगिता सर्वविदित हैं। साहित्य के क्षेत्र में इसका सदैव स्वागत किया जाएगा।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

30-03-2022

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 110 ☆ बाल कविता – क्यों न मैं तुलसी बन जाऊँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 110 ☆

☆ बाल कविता – क्यों न मैं तुलसी बन जाऊँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

क्यों न मैं तुलसी बन जाऊँ

सारे जन के रोग मिटाऊँ।

घर – आँगन को कर दूँ  पावन

जीवन अपना सफल बनाऊँ।।

 

मैं हूँ रामा, मैं हूँ कृष्णा।

मैं हूँ श्वेत और विष्णु भी।

मैं होती हूँ वन तुलसी भी।

मैं होती नींबू तुलसी भी।

 

पाँच तरह की तुलसी बनकर

खूब ओषजन मैं फैलाऊँ।।

 

एंटी बायरल, एंटी फ्लू

एंटीबायोटिक मैं हूँ होती।

एंटीऑक्सीडेंट बनकर

एंटीबैक्टीरियल होती।।

 

एंटीडिजीज बनकर मित्रो

परहित में ही मैं लग जाऊँ।।

 

खाँसी, सर्दी या जुकाम भी

सब रोगों में काम मैं करती।

कालीमिर्च, अदरक, गिलोय सँग

काढ़ा बन अमृत बन दुख हरती।।

 

हर मुश्किल का करूँ सामना

जीवनभर उपहार लुटाऊँ।।

 

मैं लक्ष्मी का रूप स्वरूपा

मैं हूँ आर्युवेद में माता।

पूरा भारत करता पूजा

कोई मेरा ब्याह रचाता।।

 

मैं श्रद्धा का दीपक बनकर

सदा पुण्य कर मैं मुस्काऊँ।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 17 (76-81)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (76 – 81) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

 

यदपि दिग्विजय कामना थी पर हित प्रतिकूल।

तदपि अश्वमेघ चाह थी उचित धर्म-अनुकूल।।76।।

 

शास्त्रविहित पथ मानकर चल नियमों के साथ।

इंद्र-देव के देव सम बना राज-अधिराज।।77।।

 

गुण समानता से हुआ वह पंचम दिक्पाल।

महाभूत में षष्ठ औं अष्ट्म भू भृतपाल।।78।।

 

जैसे सुनते देव सब विनत इंद्र आदेश।

तैसेहि सब राजाओं को थे उसके संदेश।।79।।

 

अश्वमेघ में याज्ञिकों को कर दक्षिणा प्रदान।

‘अतिथि’ धनद अभिधान से बना कुबेर समान।।80।।

 

इंद्र ने वर्षा की, यम ने रोगों का रोका बढ़ाव।

वरूण ने जलमार्ग दे दिखाये मित्रभाव।

कोष में रघु-राम के युग सी कुबेर ने वृद्धि की,

लोकपालों ने अतिथि की, भय से सब समृद्धि की।।81।।

सत्रहवां सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १९ मे – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ १९ मे -संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

विजय धोंडोपंत तेंडुलकर

साहित्याच्या विविध प्रांतात आपल्या लेखणीने विजय संपादन करणारे विजय तेंडुलकर यांचा आज स्मृतीदिन!तेंडुलकर म्हटले की आठवते ते घाशीराम कोतवाल आणि सखाराम बाइंडर ही गाजलेली नाटके. पण त्यांची साहित्यिक कारकिर्द इतकी विस्तृत आहे की आजच्या दिवशी थोडीफार माहिती करून घेणे उचित ठरेल.

विजय तेंडुलकर यांचा जन्म मुंबईतला, पण त्यांचे शिक्षण मुंबई, पुणे व कोल्हापूर येथे झाले. शिक्षणात व्यत्यय आला तरी घरातील वातावरण साहित्याला अनुकूल असे होते. कारण त्याचे वडील पुस्तक विक्रेते, प्रकाशक, हौशी नाट्य कलाकार व दिग्दर्शक होते. त्यामुळे मुद्रिते तपासणे, पुस्तके हाताळणे हे आपोआपच होऊ लागले. वाचनाची आवड व सवय लागली. वि. वा. बोकिल, दि. बा.

मोकाशी  आणि शिवराम वाशीकर यांच्या लेखनाचा आणि संवाद लेखनाचा त्यांच्यावर प्रभाव पडला. पुणे आणि मुंबई येथे वास्तव्य झाले असले तरी ते दीर्घ काळ मुंबईतच होते. तेव्हा त्यांचा रंगायन, आविष्कार, अनिकेत,

इत्यादी नाट्यक्षेत्राशी संबंधित संस्थांशी संबंध आला. त्यांचे सुरूवातीचे लेखन हे वृत्तपत्रिय व नियतकालिकांच्या संपादनाचे होते. पण नंतर मात्र ते प्रामुख्याने नाटककार म्हणूनच नावारुपास आले.

श्री. गो. म. कुलकर्णी यांनी त्यांच्या विषयी लिहीताना म्हटले आहे की तेंडुलकर हे मूलतः वास्तववादी परंपरेचे नाटककार होते. त्यानी कल्पनारम्यतेचा आश्रय केला तोही वास्तवाच्या बळकटीसाठीच. सर्वसामान्यांची सुखदुःखे विशेषतः दुःखेच त्यांच्या चिंतनाचे विषय होते. त्यांच्या लेखनात काव्य आणि कारूण्यही दिसून येते. तंत्रदृष्ट्या नवे प्रयोग हे त्यांच्या नाटकांचे वैशिष्ट्य आहे. “

तेंडुलकर यांची साहित्य संपदा:

कथा

काचपात्रे, द्वंद्व, फुलपाखरू, मेषपात्रे इ.

कादंबरी

कादंबरी एक, कादंबरी दोन, मसाज

बालनाट्ये

पाटलाच्या पोरीचं लगीन, चिमणा बांधतो बंगला, चांभारचौकशीचे नाटक   इ.

एकांकिका संग्रह

 रात्र आणि इतर एकांकिका, भेकड आणि इतर एकांकिका, अजगर आणि गंधर्व.

अनुवादपर नाट्यलेखन

वासनाचक्र, आधेअधुरे, तुघलक

पटकथा

सामना, निशांत, शांतता कोर्ट चालू आहे

या तिनही पटकथाना पुरस्कार मिळाले आहेत.  शिवाय. .

अर्धसत्य, आक्रीत, आक्रोश,

उंबरठा, सिंहासन, कमला, गहराई, प्रार्थना, मंथन, शांतता कोर्ट चालू आहे, 22जून 1897

नाटक

श्रीमंत(1955पहिले नाटक)

माणूस नावाचे बेट, मधल्या भिंती, चिमणीचं घर होतं मेणाचं, मी जिंकलो मी हरलो, कावळ्यांची शाळा, सरी गं सरी , अशी पाखरे येती, गिधाडे, सखाराम बाइंडर, घाशीराम कोतवाल आणि शांतता कोर्ट चालू आहे.

शांतता. . . . . . या नाटकानेच त्यांना राष्ट्रीय किर्ती मिळवून दिली. त्याला कमलादेवी चट्टोपाध्याय पारितोषिक प्राप्त झाले होते.

अशा या चतुरस्त्र लेखकाला मानाचा मुजरा.   🙏

☆☆☆☆☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : मराठी विश्वकोश, विकासपिडीया, विकिपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ राधेला नाही कळला… ☆ श्री तुकाराम दादा पाटील ☆

श्री तुकाराम दादा पाटील

? कवितेचा उत्सव ?

☆ राधेला नाही कळला… ☆ श्री तुकाराम दादा पाटील ☆ 

राधेला नाही कळला

हा मुरलीधर ही नटवा

ती धरते त्याच्या वरती

मनमानी लटका रुसवा

 

सांजेला अवखळ कान्हा

येतोच तिला भेटाया

ती आहे वेडी त्याची

सखयानो तिजला सजवा

 

का राग धरावा कोणी

कोणावर कळले नाही

पण नकळत काही थोड्या

घडतात चुका हे पटवा

 

प्रेमाने प्रेमालाही

समजून जरासे सांगा

आनंद पुन्हा मिळवाया

गमतीने नुसते हसवा

 

घर आहे साधे पण ते

सजवाच कला कुसरीने

सांगावा धाडायाला

वा-याला वार्ता कळवा

 

ठरलेल्या भेटी साठी

आतूर मनाने थांबा

त्याच्या ही वाटे वरती

फुलबाग फुलांची फुलवा

 

जुळतात सुखाचे धागे

मग भाव खुणांचे सारे

स्पर्शाने येतो तेव्हा

अंगावर काटा हळवा

 

भेटीत तुम्हाला कळते

हा स्वर्ग सुखाचा असतो

मग सिंहासन हृदयाचे

सोन्याने पुरते मढवा

 

© श्री तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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