हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #129 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल – 16 – “हमने उनके ख़्वाबों को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हमने उनके ख़्वाबों को …”)

? ग़ज़ल # 15 – “हमने उनके ख़्वाबों को …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

 

मुहब्बत वाले क़यामत की नज़र रखते हैं,

महबूब को हो तकलीफ़ तो ख़बर रखते हैं।

 

हमने उनके ख़्वाबों को आँखों पर सजाया,

हमपर आई सख़्त धूप वो शजर रखते हैं।

 

उन्होंने हमारी रातों को ख़्वाबों से सजाया,

उनकी यादें हम दिल में हर पहर रखते हैं।

 

ग़ज़ल सिर्फ़ आपही लिखना नहीं जानते हो,

हम रदीफ़ संग क़ाफ़िया ओ बहर रखते हैं।

 

हमने तो लुटा दी जन्नत उनकी चाहत में

वो हमेशा मिल्कियत पर तेज नज़र रखते हैं।

 

फ़लक से तोड़ तारे बिछाए तेरी रहगुज़र,

खुद के लिए टूटे प्यालों में ज़हर रखते हैं।

 

उन पर होवे इनायात की बारिश हर पहर,

आतिश उनकी मुसीबतों से बसर रखते हैं।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 11- गुडी पडवा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 11 – गुडी पडवा ??

गुडी पडवा :

नववर्ष सदा नये संकल्पों को ऊर्जा प्रदान करने का दिन होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर की वैश्विक मान्यता के बाद भी हर सांस्कृतिक समुदाय में अपने नववर्ष का विशेष महत्व है। भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को  मनाया जाता है। महाराष्ट्र और अनेक राज्यों में इसे गुड़ी पडवा के रूप में सम्बोधित सम्बोधित किया जाता है।

पडवा, प्रतिपदा का अपभ्रंश है जबकि गुडी ब्रह्मध्वज के लिए उपयोग किया जाता है। लंबे बाँस के एक छोर पर हरा या पीला जालीदार वस्त्र बांधा जाता है। इस पर नीम की पत्तियाँ, आम की डाली, चाशनी से बनी आकृतियाँ और लाल पुष्प बांधे जाते हैं। इन पर तांबे या चांदी का कलश रखा जाता है।  सूर्योदय की बेला में विधिवत पूजन कर इस ब्रह्मध्वज को घर के आगे स्थापित किया जाता है।

माना जाता है कि इस शुभ दिन वातावरण में विद्यमान प्रजापति तरंगें गुडी के माध्यम से घर में प्रवेश करती हैं। ये तरंगेें घर के वातावरण को पवित्र एवं सकारात्मक बनाती हैं।

आधुनिक समय में अलग-अलग सिग्नल्स प्राप्त करने के लिए एंटीना का इस्तेमाल करने वाला समाज इस संकल्पना को बेहतर समझ सकता है। सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा तरंगों की वैज्ञानिकता इस परंपरा को सहज तार्किक स्वीकृति देती है।

बाँस में ब्रह्मध्वज सजाने की प्रथा का भी सीधा संबंध प्रकृति से ही आता है। बांस में गांठे होती हैं। अतः इसे मेरुदंड के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है।

जरी के हरे पीले वस्त्र यानी साड़ी और चोली, नीम और आम की माला, चाशनी के पदार्थों के गहने, कलश याने मस्तक। निराकार अनंत प्रकृति का साकार रूप में पूजन है गुडी पडवा।

कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में इसे उगादि कहा जाता है मान्यता वही कि ब्रह्मदेव ने इस दिन सृष्टि का निर्माण किया था। केरल का विशु उत्सव, असम का मुकोली बिहू , बंगाल का पोहिला बैसाख, तमिलनाडु का पुथांडू , नानकशाही पंचांग का होला मोहल्ला, पंजाब की बैसाखी, सिंधी समाज का चेटीचंड, कश्मीर का नवरेह इत्यादि न्यूनाधिक अंतर के साथ भारतीय नववर्ष के ही भिन्न-भिन्न नाम हैं। 

इसी दिन से चैत्र नवरात्र भी आरंभ होते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य अपनी  बारह राशियों में अपनी परिक्रमा आरंभ करने के लिए मेष राशि में प्रवेश करते हैं। प्रथम नवरात्रि को आदिशक्ति प्रकट हुई थी। उनके कहने से ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी। तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मनुष्य अवतार लेकर पृथ्वी पर सजीवों को जन्म दिया। विज्ञान भी कहता है कि जलचर पहला सजीव था। नवमी तिथि को भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जन्म लिया।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा 68 ☆ गजल – ’माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 68 ☆ गजल – ’माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

खबरें सुनाती हर दिन आँसू भरी कथायें

दुख-दर्द भरी दुनियाँ, जायें तो कहाँ जायें ?

बढ़ती ही जा रही है संसार में बुराई

चल रही तेज आँधी हम सिर कहाँ छुपायें ?

उफना रही है बेढब बेइमानियों की नदियॉ

ईमानदारी डूबी, कैसे उसे बचायें ?

सद्भाव, प्रेम, ममता दिखती नहीं कहीं भी

है तेज आज जग में विद्वेष की हवायें।

है जो जहाँ भी, अपनी ढपली बजा रहा है

लगी आग है भयानक, जल रहीं सब दिशाएं।

दिखता न कहीं कोई सच्चाई का सहारा

अब सोचना जरूरी कैसे हो कम व्यथायें।

सब धर्म कहते आये है, प्रेम में भलाई

पर लोगों ने किया जो किसकों व्यथा सुनायें ?

बीता समय कभी भी वापस नहीं है आता

सीखा न पर किसी ने कि समय न गँवायें।

माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है

कैसे ’विदग्ध’ ऐसे में, चैन कहाँ पायें ?          

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #79 – कस्तूरी कुण्डल बसे, मृग ढूँढे बन माँहि!! ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #79 – कस्तूरी कुण्डल बसे, मृग ढूँढे बन माँहि!! ☆ श्री आशीष कुमार

 एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए। लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यावहारिक मुश्किलें आ रही थीं। कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता,तो भगवान के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता। उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता। भगवान इससे दुखी हो गए थे।

अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले- देवताओं !! मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं। कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता है, जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं,न ही तपस्या कर सकता हूं। आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।

प्रभू के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए।

गणेश जी बोले- आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं।

भगवान ने कहा- यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में है। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा।

इंद्रदेव ने सलाह दी कि वह किसी महासागर में चले जाएं।”

वरुण देव बोले आप अंतरिक्ष में चले जाइए।

भगवान ने कहा- एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा।

भगवान निराश होने लगे थे। वह मन ही मन सोचने लगे- क्या मेरे लिए कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं है, जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूं ?

अंत में सूर्य देव बोले- प्रभू !! आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं। मनुष्य अनेक स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा। पर वह यहाँ आपको कदापि न तलाश करेगा।

ईश्वर को सूर्य देव की बात पसंद आ गई। उन्होंने ऐसा ही किया। वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए। उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए ईश्वर को ऊपर, नीचे, दाएं,बाएं,आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं रहे। मनुष्य अपने भीतर बैठे हुए ईश्वर को नहीं देख पा रहा है।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (61-65) ॥ ☆

सर्गः-12

लंका में हनुमान ने देखी सीता दीन।

राक्षसी विष लतिकाओं के घिरी सुधैव मलीन।।61।।

 

देख राम की मुद्रिका चिर परिचित पहचान।

सीता ने आँसू बहा किया स्नेह सम्मान।।62।।

 

सीता को दे सान्त्वना सुना राम-संदेश।

‘हनु’ ने मारा ‘अक्ष’ को जारा लंका देश।।63।।

 

सीता-चूड़ामणि लिये जब लौटे हनुमान।

कुशल-कार्य सम्पन्न सुन हरषे राम महान।।64।।

 

सिय-चूड़ामणि हाथ ले, मूँद नयन कपि ओर।

प्रिया मिलन सम सुख समझ हो गये आत्मविभोर।।65।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १२ फेब्रुवारी – संपादकीय – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? १२ फेब्रुवारी –  संपादकीय  ? 

पद्मा गोळे 

पद्मा गोळे यांचा जन्म १० जुलै १९१३ चा. तासगाव येथील पटवर्धन राजघराण्यात त्यांचा जन्म झाला. त्या मराठी कवयित्री, लेखिका व नाटककार होत्या.

त्यांचा पाहिला कवितासंग्रह प्रीतीपथावर १९४७ साली प्रकाशित झाला. रायगडावरील एक रात्र, स्वप्न, नवी जाणीव इ. नाटिका त्यांनी लिहिल्या . वाळवंटातील वाट ही त्यांची कादंबरी.

तर आकाशवेडी, श्रावणमेघ, निहार, स्वप्नजा हे त्यांचे कवितासंग्रह.

एका संवेदनाशील, अंतर्मुख स्त्री मनाचे विविध विलोभनीय आविष्कार त्यांच्या कवितेत दिसतात. त्यांच्या रसिक, चिंतनशील आणि स्वप्नदर्शी, व्यक्तिमत्वाचा प्रत्यय त्यातून येतो. स्निग्ध सूर, संपन्न निसर्ग प्रतिमा, आणि शालीन संयम ही त्यांच्या कवितांची लक्षणीय वैशिष्ट्ये.

स्वप्नजा या त्यांच्या काव्यसंग्रहाला व रायगडावरील एक रात्र आणि इतर नाटिका या बालनाटिका या पुस्तकांना महाराष्ट्र राज्य शासनाचा पहिला पुरस्कार मिळाला आहे.

१२ फेब्रुवारी १९९८ ला त्यांचे निधन झाले. आज त्यांचा स्मृतीदिन. त्या निमित्ताने त्यांच्या प्रतिभेला विनम्र  श्रद्धांजली ?

☆☆☆☆☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

ई – अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : शिक्षण मंडळ कर्‍हाड: शताब्दी दैनंदिनी, विकिपीडिया, इंटरनेट    

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ आंधळा ☆ श्री रवींद्र सोनावणी

श्री रवींद्र सोनावणी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ आंधळा ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆ 

 आंधळा होतास मनुजा, आजही तू आंधळा,

पाऊले चंद्रावरीं, पण तू मनाने पांगळा ||धृ||

 

वास्तवाशी खेळता तू, आंधळी कोशिंबीरी,

अंधश्रद्धा जोजवितो, आपल्या मनमंदीरी,

चालल्या वाटा पुढे, अन तूच मागे चालला  ||१ ||

 

भूवरी ग्रह तारकांची, झेलूनी तू सावली,

धरुनिया वेठीस त्यांना, मांडितो तू कुंडली,

देव दैवा शोधणारा, तू कसा रे वेंधळा?||२||

 

सोडूनी वाटा रूढींच्या, जाऊ या क्षितिजाकडे,

सप्तपाताळात गाडू , अंधश्रध्देचे मढें,

जोडूनी नाते भ्रमाशी, तू कशाला थांबला?||३||

 

© श्री रवींद्र सोनावणी

निवास :  G03, भूमिक दर्शन, गणेश मंदिर रोड, उमिया काॅम्पलेक्स, टिटवाळा पूर्व – ४२१६०५

मो. क्र.८८५०४६२९९३

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ लक्ष्मण रेषा ☆ कवयित्री पद्मा गोळे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ लक्ष्मण रेषा ☆ कवयित्री पद्मा गोळे ☆ 

सीतेपुढे  एकच ओढली रेषा

लक्ष्मणाने

तिने ती ओलांडली

आणि झाले

 रामायण

आमच्या पुढे दाही दिशा

लक्ष्मंणरेषा

ओढाव्याच लागतात

रावणांना सामोरे जावेच लागते

एवढेच कमी असते

कुशीत घेत नाही

भुई दुभंगून.

 कवयित्री पद्मा गोळे

 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 89 – आनंदाने नाचू या ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 89 – आनंदाने नाचू या ☆

 

आनंदाने नाचू या।

खूप खूप मज्जा करू या।।धृ।।

 

आज शाळेला सुट्टी लागली।

झिलमिल दिव्यांची दिवाळी आली।

दोस्त सारे जमवू या।।१।।

 

दिव्या दिव्यांनी ज्योत पेटवू।

रांगोळ्यांनी अगण सजवूं ।

आकाशी कंदील लावू या।।२।।

 

तेल, सुगधी उटणे लावू।

मोती साबण अगं ण  लावू।

नवीन कपडे घालू या।।३।।

 

सुंदर तोरण दारा लावू।

मातीचे रे किल्ले बनवू।

लक्ष्मी पुजन करू या।।४।।

 

चकली करंज्या शकंरपाळी।

चिवडा लाडू पुरण पोळी।

छान छान फराळ खाऊ या ।।५।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ अमर लता ☆ श्री विकास जोशी

?विविधा ?

☆ अमर लता ☆ श्री विकास जोशी ☆

अमर लता

‘लता’ या अफाट कर्तृत्वाच्या उत्तुंग व्यक्तिमत्त्वाचं अस्तित्व ही आपली श्रीमंती होती, अभिमान होता. रसिकांच्या हृदयात स्थान हे केवळ लिहिण्याची गोष्ट नाही तर प्रत्येकासाठीचं आनंददायी वास्तव होत.

लता म्हणजे सच्चा सुरांचा सश्रद्ध साधक. कोमलतेसह आवाजातील ऋतुजा जपणारी, गाण्याला भावमाधुर्यानं  सजवणारी, नाद सौंदर्यानं आरासणारी, प्रभाव-परिणामकतेनं नटवणारी, स्वयंभू शैलीची गायिका!शब्दांना स्वरार्थ देणारी, चालीला भावार्थ देणारी, गाण्याला परिपूर्णता देणारी.  ऐकता ऐकता सहजतेनं काही शिकणं घडावं असा संवादी रसाविष्कार रसिकांच्या अभिरुचीला उन्नत करणारा.  गाण्यात सर्व इमान ओतण्याचा ध्यास घेतलेलं, संघर्षात संयम राखणारं, प्रसिद्धीत विनय सांभाळणारं, वैभवात औदार्य जपणारं, प्रतिष्ठेला आदराचं वलय लाभलेलं प्रसन्न व्यक्तिमत्त्व. 

जणू साक्षात सरस्वतीनच धारण केलेली चैतन्याकृती. पहिल्या गाण्यापासून तीस हजाराचा गाण्यापर्यंत अभिजाततेशी बांधिलकी मानणारी. दिगंत कीर्ती मिळूनही देव, देश, धर्मापायी निष्ठा वाहणारी एकमेवाद्वितीय लता.

‘अमर लता’

© श्री विकास जोशी

गाणगापूर

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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