मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ अप्रूप पाखरे – 23 – रवींद्रनाथ टैगोर ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? वाचताना वेचलेले ?

☆ अप्रूप पाखरे – 23– रवींद्रनाथ टैगोर ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆ 

[१०९]

हल्ली हल्ली

माझ्याकडे

तरंगत तरंगत

हे जे ढग येतात

ते बसण्यासाठी नाही

की वादळाची वर्दी देण्यासाठीही नाही

ते येतात

माझ्या सायंकालीन आभाळाला

रंग देण्यासाठी

 

[११०]

दिवस ढळला की 

यावंच लागेल मला तुझ्यासमोर

पहाशील तेव्हा सारे ओरखडे

खुणा आणि व्रणसुद्धा  

आणि

उमगतील तुला

माझ्या जखमांची उत्तरं

माझी मीच शोधलेली

 

[१११]

रस्त्याच्या कडेने

मुसमुसणार्‍या गवता

एकदा तरी

आकाशातल्या त्या तार्‍यावर

मनोभावे प्रेम कर.

तेव्हाच तुझी स्वप्ने

फुलं बनून येतील

आणि लहरतील तुझ्यावर

 

[११२]

तुझ्या नि:शब्द गाभ्याशी

घेऊन चल मला

मग ओसंडतील

काळजातून माझ्या

लक्ष लक्ष गाणी

 

मूळ रचना – स्व. रविंद्रनाथ टैगोर 

मराठी अनुवाद – रेणू देशपांडे (माधुरी द्रवीड)

प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #116 ☆ व्यंग्य – कलियुग में चमत्कार ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘कलियुग में चमत्कार। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 11 ☆

☆ व्यंग्य – कलियुग में चमत्कार 

एस.पी.साहब दूसरे शहर से बदली होकर आये थे। चार महीने बाद उनके पुत्र की शादी हुई। इंस्पेक्टर प्रीतमलाल को बुलाया, कहा, ‘शामियाना, केटरिंग और रोशनी का इंतज़ाम करो। जो भी पेमेंट बनेगा कर दिया जाएगा। एडवांस देना ज़रूरी हो तो वह भी दिया जा सकता है। इंतज़ाम बढ़िया होना चाहिए।’                       

प्रीतमलाल ने सैल्यूट मारा, कहा, ‘हो जाएगा, सर,बढ़िया इन्तज़ाम हो जाएगा। आप निश्चिंत रहें।’

प्रीतमलाल मोटरसाइकिल लेकर पंजाब टेंट हाउस के सरदार जी के पास पहुँचे। कहा, ‘एस पी साहब के यहाँ अगली पच्चीस की शादी है। इन्तज़ाम करना है। नोट कर लो।’

सुनकर सरदार जी का मुँह उतर गया। कुछ सेकंड मुँह से बोल नहीं निकला। गला साफ करके ज़बरदस्ती प्रसन्नता दिखाते हुए बोले, ‘हो जाएगा, साब, बिलकुल हो जाएगा। आप फिकर मत करो। आप का काम नहीं होगा तो किसका होगा?’

इंस्पेक्टर साहब बोले, ‘पेमेंट की चिन्ता मत करना। साहब ने कहा है कि हो जाएगा।’

सरदार जी ने फीकी मुस्कान के साथ जवाब दिया, ‘वो ठीक है सर। कोई बात नहीं है। इन्तजाम हो जाएगा। डिपार्टमेंट का काम अपना काम है।’

इंस्पेक्टर साहब ने पूछा, ‘कुछ एडवांस वगैरः की ज़रूरत है क्या?’

सरदार जी घबराकर बोले, ‘अरे नहीं सर। एडवांस का क्या होगा?कोई प्राब्लम नहीं है। आपका काम हो जाएगा।’

प्रीतमलाल संतुष्ट होकर लौट गये।

एस. पी. साहब के पुत्र की शादी हुई। इन्तज़ाम एकदम पुख्ता था। लंबा चौड़ा शामियाना लगा,नीचे कुर्सियों और सोफों की लम्बी कतार। जगमग करती रोशनी। खाने के लिए बड़े दायरे में फैले बूथ। आजकल के फैशन के हिसाब से तरह तरह की भोजन-सामग्री। सारा इंतज़ाम एस. पी.साहब की पोज़ीशन के हिसाब से। मेहमान खूब खुश होकर गये।

सबेरे सब काम सिमट गया। शामियाना, कुर्सियां, बूथ, देखते देखते सब ग़ायब हो गये।

चार पाँच दिन बाद इंस्पेक्टर प्रीतमलाल फिर सरदार जी के पास पहुँचे। बोले, ‘चलो सरदार जी, साहब ने हिसाब के लिए बुलाया है।’

सरदार जी सुनकर परेशान हो गये। बोले, ‘किस बात का हिसाब जी?’

इंस्पेक्टर ने कहा, ‘क्यों, शादी के इन्तज़ाम का हिसाब नहीं करना है?’

सरदार जी हाथ हिलाकर बोले, ‘कोई हिसाब नहीं है सर। आपका काम हो गया, हिसाब की क्या बात है?’

दरोगा जी बोले, ‘ये साहब ज़रा दूसरी तरह के हैं। धरम-करम वाले हैं। बिना हिसाब किये नहीं मानेंगे। चलो,हिसाब कर लो।’

सरदार जी और परेशान होकर बोले, ‘नईं सर,माफ करो। कोई हिसाब किताब नहीं है। आप खुश खुश घर जाओ। साहब से हमारा सलाम बोलना।’

प्रीतमलाल भी कुछ परेशान हुए। समझाकर बोले, ‘अरे चलो सरदार जी,साहब सचमुच हिसाब करना चाहते हैं।’

सरदार जी हाथ जोड़कर बोले, ‘जुरूर हमसे कोई गलती हुई है जो आप हिसाब की बात बार बार कर रहे हैं। बताओ जी क्या गलती हुई?’

प्रीतमलाल ने हँसकर जवाब दिया, ‘अरे   कोई गलती नहीं है। चलो, चल कर अपना पैसा ले लो।’

सरदार जी ने अपनी हिसाब की नोटबुक उठायी और उसके पन्ने पलटने लगे। फिर बोले, ‘सर जी, हमारे खाते में तो आपका कोई काम हुआ ही नहीं।’

प्रीतमलाल आश्चर्य से बोले, ‘क्या?’

सरदार जी पन्ने पलटते हुए बोले, ‘इसमें तो कहीं आपका हिसाब चढ़ा नहीं है। हमारी दुकान से तो आपका काम हुआ नहीं।’

प्रीतमलाल विस्मित होकर बोले, ‘शादी में इन्तज़ाम आपका नहीं था?’

सरदार जी फिर नोटबुक पर नज़र टिकाकर बोले, ‘इस नोटबुक के हिसाब से तो नहीं था, सर।’

प्रीतमलाल बोले, ‘लेकिन मैं तो आपको आर्डर देकर गया था।’

सरदार जी ने जवाब दिया, ‘जुरूर दे गये थे, लेकिन उस दिन की बुकिंग दूसरी जगह की पहले से थी। मैं आपको बताना भूल गया था। बाद में मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन आपसे कंटैक्ट नहीं हुआ।’

प्रीतमलाल परेशान होकर लौट गये।

एस.पी.साहब को बताया तो साहब ने सरदार जी को तलब किया। सरदार जी अपनी नोटबुक लिये पहुँचे।

साहब ने पूछा, ‘सरदार जी, अपना हिसाब क्यों नहीं बता रहे हैं?’

सरदार जी ने बड़ी सादगी से जवाब दिया, ‘सर जी, हमने तो आपका कोई काम किया ही नहीं। हिसाब कैसे बतायें?हमारी नोटबुक में तो कुछ चढ़ा ही नहीं। जुरूर कुछ गल्तफैमी हुई है।’

एस.पी. साहब हँसे, बोले, ‘हम खूब समझते हैं। नाटक मत करो,सरदार जी। अपना पैसा ले लो।’

सरदार जी अपने कानों को हाथ लगाकर बोले, ‘हम सच बोल रहे हैं, सर जी। हमारी दुकान से आपका काम नहीं हुआ।’

एस. पी. साहब बोले, ‘बहुत हुआ सरदार जी। अपने पैसे ले लो।’

सरदार जी दुखी भाव से बोले, ‘कैसे ले लें, सर जी?हम बिना काम का पैसा लेना गुनाह समझते हैं।’

एस.पी.साहब निरुत्तर हो गये। उसके बाद दो तीन बार इंस्पेक्टर प्रीतमलाल फिर गये, लेकिन सरदार जी की नोटबुक यही कहती रही कि उन्होंने एस.पी.साहब के यहाँ कोई काम नहीं किया। प्रीतमलाल ने उनसे कहा कि कई लोगों ने उन्हें वहाँ इन्तज़ाम में लगा देखा था तो उनका जवाब था कि कोई उनका हमशकल होगा, वे तो उस दिन एसपी साहब के बंगले के आसपास भी नहीं गये।

उनसे यह भी कहा गया कि शादी के दिन आये सामान पर ‘पंजाब टेंट हाउस’ लिखा देखा गया था। उस पर भी सरदार जी का जवाब था, ‘नईं जी। जुरूर आपको गल्तफैमी हुई होगी।’

उसके बाद पुलिस हल्के में चर्चा चल पड़ी कि कैसे जिन सरदार जी को काम दिया गया था वे तो एस. पी.साहब के बंगले पर पहुँचे ही नहीं और फिर भी किसी चमत्कार से सारा काम हो गया। पुलिस हल्के से निकलकर यह चर्चा पूरे शहर में फैल गयी। लोग पुरानी कथाओं के उदाहरण देकर सिद्ध करने लगे कि यह घटना नयी नहीं है। पहले भी भगवान ने आदमी का रूप धारण कर कई बार भक्तों को संकट से बचाया है। इस घटना से सिद्ध हुआ कि कलियुग में भी चमत्कार संभव है।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 115 ☆ तमसो मा ज्योतिर्गमय ☆ श्री संजय भारद्वाज

 

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 115 ☆ तमसो मा ज्योतिर्गमय 

अंधकार से प्रकाश की यात्रा मनुष्य जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। स्थूल के भीतर सूक्ष्म का प्रकाश है जो मनुष्य को यात्रा कराता है। यह यात्रा बाहर से भीतर की है। कभी-कभी कोई प्रसंग, कोई घटना अकस्मात एक लौ भीतर प्रज्ज्वलित कर देती है। यात्रा आरम्भ हो जाती है।

ब्रह्मा के मानसपुत्र प्रचेता के पुत्र थे रत्नाकर। किंवदंती है कि बचपन में इनका अपहरण एक भीलनी ने कर लिया था। कालांतर में परिवेश के प्रभाव में वे रत्नाकर डाकू हो गए। रत्नाकर डाकू वन में आते- जाते व्यक्तियों को लूट लेने के लिए कुख्यात हो चला। एक बार देवर्षि नारद उस मार्ग से निकले। रत्नाकर रास्ता रोककर खड़ा हो गया। देवर्षि ने पूछा, “यह पापकर्म क्यों करते हो?” उत्तर मिला, “अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए।” देवर्षि ने फिर प्रश्न किया, “तुम्हारे पाप में क्या तुम्हारे परिजन भागीदार होंगे?” ” निश्चित, उन्हीं के लिए तो करता हूँ।”….देवर्षि हँस पड़े। बोले,” चाहे तो मुझे बांध जाओ पर जाकर एक बार अपने परिजनों को पूछ तो लो, उनसे पुष्टि तो ले लो।” नादान रत्नाकर एक मोटी रस्सी से देवर्षि को बांधकर घर पहुँचा। सारा घटनाक्रम सुनाकर परिजनों से पूछा कि उसके पाप में वे सम्मिलित हैं या नहीं?” परिजन बोले, ” हम तुम्हारे पाप में भागीदार क्यों समझे जाएँगे? पाप तुम्हारा, दंड भी तुम्हारा ही।” बैरागी भाव लेकर रत्नाकर, देवर्षि के पास पहुँचा। पापों से मुक्त होने और अंधकार से प्रकाश की यात्रा का मार्ग जानना चाहा। मुनि ने कहा, “तपस्या करो। संभव है। सीधे राम राम तुमसे न जाय तो मरा-मरा से आरम्भ करो।” डाकू रत्नाकर पहला व्यक्ति हुआ जो मरा- मरा, से मराम-मराम होते-होते राम राम तक पहुँचा। प्रदीर्घ तपस्या में शरीर पर दीमकों ने बाँबी बना ली। रत्नाकर, उसी बाँबी में समाप्त हो गए और महर्षि वाल्मीकि ने जन्म लिया।

अज्ञान के तम की जानकारी प्रकाश की यात्रा में पहला चरण है।

 

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 68 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 68 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 68) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 68☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

बेवजह भारी बोझ

दिल पे मत रखिये,

ज़िन्दगी एक जंग है

हँसते-गाते जारी रखिये…

 

Don’t you unnecessarily

burden your heart heavily

If  life  is  a  battle,  then

keep fighting jubilantly..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

यूँ तो हम अपने…

आप में गुम थे,

मगर सच तो ये है…

वहाँ भी तुम थे…!

 

Well, as such I was

lost in myself only,

But the truth is that

you were there too…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

गर ढूँढना है तो सिर्फ चैन

और सुकून ढूँढ़िये, जनाब

कब किसी की  तमन्नाएं

और जरूरतें पूरी हुईं  हैं…

 

If you’ve to find then just try

finding peace and solace, Sir

When have anyone’s needs

and desires ever been fulfilled…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हर वक़्त नया चेहरा

हर वक़्त नया वजूद,

आदमी ने आईने को

हैरत में डाल दिया है…

 

A new face all the time,

A new entity every time,

The man has surprised

even  the  mirror…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 68 ☆ दोहे ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘गीतः श्रद्धा ने … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 68 ☆ 

☆ दोहे ☆

सलिल न बन्धन बाँधता, बहकर देता खोल।

चाहे चुप रह समझिए, चाहे पीटें ढोल।।

*

अंजुरी भर ले अधर से, लगा बुझा ले प्यास।

मन चाहे पैरों कुचल, युग पा ले संत्रास।।

*

उठे, बरस, बह फिर उठे, यही ‘सलिल’ की रीत।

दंभ-द्वेष से दूर दे, विमल प्रीत को प्रीत।।

*

स्नेह संतुलन साधकर, ‘सलिल’ धरा को सींच।

बह जाता निज राह पर, सुख से आँखें मींच।।

*

क्या पहले क्या बाद में, घुली कुँए में भंग।

गाँव पिए मदमस्त है, कर अपनों से जंग।।

*

जो अव्यक्त है, उसी से, बनता है साहित्य।

व्यक्त करे सत-शिव तभी, सुंदर का प्रागट्य।।

*

नमन नलिनि को कीजिए, विजय आप हो साथ।

‘सलिल’ प्रवह सब जगत में, ऊँचा रखकर माथ।।

*

हर रेखा विश्वास की, शक-सेना की हार।

सक्सेना विजयी रहे, बाँट स्नेह-सत्कार।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #98 ☆ -हिंदूधर्माचरण एक   संस्कारित  भारतीय जीवनशैली- ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 98 ☆ -हिंदूधर्माचरण एक   संस्कारित  भारतीय जीवनशैली- ☆

हमारा देश भारतवर्ष  पौराणिक कथाओं तथा धार्मिक मतों के अध्ययन के अनुसार आर्यावर्त के जंबूद्वीप  के एक खंड का हिस्सा है जिसे अखंडभारत  के नाम से पहचाना जाता है। जिसका सीमा विस्तार काफी लंबा था आर्य जहां निवास करते थे ऋग्वेद के अनुसार उस जगह को सप्तसैंधव अर्थात् सात नदियों वाले स्थान के नाम चिंन्हित किया गया। ऋग्वेद नदी सूक्त ( 1075 ) के अनुसार जिस जगह आर्य निवास किए वहां सात नदियां बहती थी, जिसमें 1कुंभा(काबुल नदी) 2- क्रुगु (कुर्रम)3–गोमती(गोमल)4–सिंधु

5–परूष्णी(रावी)6–सुतुद्री(सतलज)7–वितस्ता(झेलम) के अलावा गंगा यमुना सरस्वती तक था इनके आस-पास सीमा क्षेत्र में आर्य रहते थे। लेकिन जल प्रलय के समय आर्यो ने खुद को त्रिविष्टप( तिब्बत) जैसे ऊंचे क्षेत्र में खुद को सुरक्षित कर लिया।जल प्रलय के बाद उन्होंने दक्षिणी एशिया तक अपने देश का सीमा विस्तार किया।

स्वामी दयानंद सरस्वती इसी आधार पर आर्यों को तिब्बत का निवासी मानते हैं। ऋग्वेद काल में धरती का विस्तार से अध्ययन मिलता है उस समय आर्यो का एक समूह उन सात नदी क्षेत्रो तक फैला हुआ था , इतिहास कारों का मानना है कि वैदिक भारतीय जन समूह वहीं से घूमते हुए अन्य जगहों पर पहुंचा। तथा राजा प्रचेतस के जिनका वर्णन पांच पुराणों में आता है,वे प्रचेतस वंशजों के रूप में वे भारत के उत्तर पश्चिमी दिशाओं में फैल कर अपने राज्य स्थापित कर सीमा विस्तार किया। जानकारी स्रोत (बेव दुनिया डांट काम) से—

राजा दुष्यंत के महाप्रतापी पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।  लेकिन हमारे अध्ययन के अनुसार देश में तीन भरत चरित्र हमारे सामने है जो सामूहिक रूप से हमारे देश हमारी संस्कृति तथा हमारे समाज  के आचार विचार व्यवहार तथा मानवीय गुणों की आदर्श तथा अद्भुतछवि विश्व फलक पर प्रस्तुत करता है।

जिसमें समस्त मानवीय मूल्यों आदर्शों की छटा समाहित है जो हमें हमारे सांस्कृतिक संस्कारों की याद दिलाता रहता है, जो इंगित करता है कि बिना संस्कारों के संरक्षण के कोई समाज उन्नति नहीं कर सकता। संस्कार विहीन समाज टूट कर बिखर जाता है और अपने मानवीय मूल्य को देता है  वैसे तो हर धर्म और संस्कृति के लोग अपने देश काल परिस्थिति के अनुसार अपने अपने संस्कारों के अनुसार व्यवहार करते है  लेकिन हमारा समाज  सोडष  संस्कारों की आचार संहिता से आच्छादित है जिसमें मुख्य रूप से  1–गर्भाधान संस्कार 2–पुंशवन संस्कार 3–सीमंतोन्नयन संस्कार 4–जातकर्म संस्कार 5–नामकरण संस्कार 6–निष्क्रमण संस्कार 7–अन्नप्राशन संस्कार 8–मुण्डन संस्कार 9–कर्णवेधन संस्कार 10-विद्यारंभ संस्कार 11-उपनयन संस्कार 12-वेदारंभ संस्कार 13-केशांत संस्कार 14-संवर्तन संस्कार 15–पाणिग्रहण अथवा विवाह संस्कार 16-अंतेष्टि संस्कार।

इनमें से हर संस्कार का‌ मूलाधार आदर्श कर्मकांड पर  टिका हुआ है। हमारे आदर्श ही हमारी संस्कृति की जमा-पूंजी है , यही तो हर भरत चरित्र हम भारतवंशियो की आचार-संहिता की चीख चीख कर दुहाई देता है जिसका आज पतन होता दीख रहा है आज जहां भाई ही भाई के खून का प्यासा है। वहीं त्रेता युगीन भरत चरित भ्रातृप्रेम तथा स्नेह की अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है, तो द्वापरयुगीन भरत चरित सूर वीरता शौर्य तथा साहस की भारतीय परम्परा की गौरवगाथा की जीवंत  झांकी दिखाता है।

वहीं जड़भरत का चरित्र हमारी आध्यात्मिक ज्ञान की पराकाष्ठा को स्पर्श करता दीखता  है ये नाम हर भारतीय से आदर्श आचार संहिता की अपेक्षा रखता है जो हमारे समाज की आन बान शान के मर्यादित आचरण की कसौटी है।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 8 (36-40)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (36-40) ॥ ☆

ऋतुपुष्पों को लजाती मधुर महकती माल

इन्दुमती के वक्ष पर आ टपकी तत्काल ॥ 36॥

 

अनुपम कुसुमाघात से आकुल हो बिन त्राण

राहु ग्रसित सी चंद्रिका सी हो गई निष्प्राण ॥ 37॥

 

इन्दुमति को देख यों अज हो गये अचेत

तैल बिन्दु हर दीप की गिरती शिखा समेत ॥ 38॥

 

दम्पति के परिजनों की सुनकर आर्त पुकार

कमल ताल के पक्षी भी कूके कर चीत्कार ॥ 39॥

 

राजा चेते पा पवन – जल शीतोपचार

किन्तु न रानी में दिखा जीवन का संचार ॥ 40॥ अ

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २८ नोव्हेंबर – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? २८ नोव्हेंबर –  संपादकीय  ?

आज २८ नोहेंबर :- 

आपल्या कादंबरी-लेखनातून इतिहासाचे जणू पुनर्दर्शन घडवणारे नामांकित लेखक श्री. विश्वास पाटील यांचा आज जन्मदिन. भारतीय प्रशासकीय सेवेतील निवृत्त अधिकारी असणारे श्री पाटील यांनी ऐतिहासिक विषयांबरोबरच इतर वेगवेगळ्या विषयांवरही दर्जेदार लेखन केलेले आहे. पानिपत, महानायक, संभाजी, या त्यांच्या ऐतिहासिक कादंबऱ्या, आणि रणांगण हे नाटक प्रचंड लोकप्रिय झाले आहे. याचबरोबर, चंद्रमुखी, झाडाझडती, पांगिरा, लस्ट फॉर लालबाग, अशा त्यांच्या कादंबऱ्याही प्रसिद्ध आहेत. नॉट गॉन विथ द विंड हा त्यांचा लेखसंग्रह, आणि ‘  फ्रेडरिक नित्शे– जीवन आणि तत्वज्ञान ‘ हा अभ्यासपूर्ण चरित्रग्रंथ, या पुस्तकांनाही रसिक वाचकांची  पसंतीची पावती मिळालेली आहे. 

श्री. पाटील यांच्या चंद्रमुखी, पांगिरा आणि महानायक या कादंबऱ्या हिंदीत अनुवादित केल्या गेल्या आहेत, हेही विशेषकरून माहिती असायला हवे. 

त्यांच्या अतिशय गाजलेल्या ‘ पानिपत ‘ या कादंबरीला ‘ प्रियदर्शिनी पुरस्कार ’, गोव्याचा ‘ नाथमाधव पुरस्कार ‘, कलकत्त्याच्या ‘ भाषा परिषदेचा पुरस्कार ‘, यासह इतर पस्तीसपेक्षाही जास्त पुरस्कार मिळालेले आहेत. तसेच “ झाडाझडती “ या कादंबरीला लोकप्रियतेबरोबरच, अतिशय मानाचा समजला जाणारा ‘ साहित्य अकादमी पुरस्कार ‘ देऊन गौरविले गेले आहे ( सन १९९२ )

श्री. विश्वास पाटील यांच्याकडून यापुढेही अशीच उत्तमोत्तम आणि रसिकमान्य साहित्य-निर्मिती होवोया आजच्या त्यांच्या जन्मदिनी त्यांना हार्दिक शुभेच्छा.?

☆☆☆☆☆

चित्रपट अभ्यासक आणि अनेक मराठी संगीत-दिग्दर्शकांचे चरित्र-लेखक अशी खास ओळख असणारे श्री. मधू पोतदार यांचाही आज जन्मदिन. ( २८/११/१९४४ — ८/१०/२०२०). 

लोकप्रिय संगीतकारांबद्दल, त्यांच्या जीवनाबद्दल आणि कारकीर्दीबद्दल साद्यन्त माहिती देणारी त्यांची पुढील पुस्तके प्रसिद्ध झालेली आहेत. —-

जनकवी पी. सावळाराम, मानसीचा चित्रकार तो ( वसंत प्रभू ), संगीतकार राम कदम, वसंतलावण्य ( वसंत पवार ), वसंतवीणा ( वसंत देसाई ).

याव्यतिरिक्त,  विनोदवृक्ष ( वसंत शिंदे), कुबेर ( मास्टर अविनाश ), देवकीनंदन गोपाळा ( गाडगे महाराज ), अशी त्यांनी लिहिलेली चरित्रेही प्रसिद्ध झालेली आहेत. 

त्यांची इतर काही प्रसिद्ध पुस्तके अशी —– ‘ मराठी चित्रपट संगीतकार कोश  ‘, ‘ इतिहासातील वेचक आणि वेधक ‘, धर्मपथ ‘, तसेच ‘ शिक्कामोर्तब ‘ हा कथासंग्रह. 

“ छिन्नी हातोड्याचा घाव “ या संगीतकार राम कदम यांच्या आत्मचरित्राचे उत्तम शब्दांकन श्री पोतदार यांनीच केलेले आहे. 

एक अतिशय अभ्यासू, हसतमुख आणि उत्साही व्यक्तिमत्व ‘ म्हणून ओळखल्या जाणाऱ्या श्री. मधू पोतदार यांना मनःपूर्वक आदरांजली. ?

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महात्मा ज्योतिबा फुले यांचा आज स्मृतिदिन. ( ११/४/१८२७ — २८/११/१८९० ). 

महान विचारवंत, समाजसुधारक, शेतकरी, अस्पृश्य तसेच बहुजन समाजाच्या समस्यांना प्राधान्य देत पुरोगामी विचारांचा फक्त पुरस्कारच नाही, तर प्रत्यक्ष आचरणातून त्या विचारांचा सातत्याने पाठपुरावा करणारे खऱ्या अर्थाने समाजसेवक ठरलेले ज्योतिबा. — त्यांच्या या अद्वितीय कामाला त्यांच्या लेखनकार्याचीही भक्कम जोड होती. 

त्यांनी लिहिलेला ‘ सार्वजनिक सत्यधर्म ‘ हा त्यांच्या मृत्यूनंतर प्रकाशित झालेला महत्वाचा ग्रंथ, सत्यशोधक समाजाचा प्रमाणग्रंथ मानला जातो. फुले यांच्यातला उपजत थोर तत्वज्ञ या ग्रंथात ठळकपणे दिसून येतो. ‘ सत्यमेव जयते ‘ हे या ग्रंथाचे मूळ सूत्र होते, असे म्हणता येईल. नव्या सर्वसमावेशक धर्माचे तत्वज्ञान यात विशद केलेले आहे. हा ग्रंथ म्हणजे सत्यशोधकांचा आचारधर्म, जो माणसाला सुखाकडे नेणारा, विचारशक्तीला प्राधान्य देणारा, स्वातंत्र्य-समता-बंधुभाव या मूल्यांना मध्यवर्ती स्थान देणारा आहे, आणि म्हणूनच, त्यातले हे पायाभूत मौलिक विचार म्हणजे ज्योतिबांचे संपूर्ण व्यक्तिमत्व हुबेहूब साकारणारे चित्र आहे, असे म्हणणे वावगे ठरणार नाही.

 संत तुकारामांच्या अभंगांचा सखोल अभ्यास असल्याने त्यांनी त्या धर्तीवर अनेक रचना केल्या होत्या. जागतिक स्तरावरच्या सामाजिक विषमतेचे भान असल्याने, ‘ गुलामगिरी ‘ हा त्यांचा ग्रंथ त्यांनी अमेरिकेतील कृष्णवर्णीयांना समर्पित केला होता. त्याकाळच्या उपेक्षित बहुजन समाजाच्या उपेक्षित प्रश्नांकडे सरकारचे, आणि त्याहीपेक्षा एकूणच समाजाचे लक्ष वेधणे या हेतूने त्यांनी वृत्तपत्रातून लिखाणही केले होते. शेतकऱ्यांचा आसूड, गुलामगिरी, यासारख्या ग्रंथांमधून तेव्हाची चिंताजनक सामाजिक स्थिती आणि त्यातून बाहेर पाडण्याचे मार्ग यावर भाष्य करत, या क्रांतिकारी आणि सुधारणावादी लेखकाने तेव्हाचा उपेक्षित पण निद्रिस्त समाज, आणि त्या समाजाची शोषणाविरुद्ध बंड करण्याची ताकद, या दोहोंना जागृत करण्याचा जणू विडाच उचलला होता. या पुस्तकांव्यतिरिक्त त्यांनी नाटक, पोवाडे, निबंध, पत्रे, जाहीर प्रकटने, काव्यरचना, निवेदने, अशा विविध प्रकारच्या साहित्याचा जनजागृतीसाठीचे माध्यम म्हणून उपयोग करून घेतला होता. यापैकी ‘ नाटक ‘ हे माध्यम, परिवर्तनवादी चळवळ जास्त सशक्त आणि परिणामकारक व्हावी या हेतूने, त्यांनी एखाद्या शस्त्रासारखे वापरले होते. ‘ तृतीय नेत्र ‘ हे त्यांनी १८५५ साली लिहिलेले नाटक हे पहिले लिखित मराठी नाटक होते, आणि ज्योतिबा फुले हे पहिले मराठी नाटककार होते असे म्हटले जाते. पण या नाटकाचे प्रत्यक्ष किती प्रयोग झाले, त्याला कसा प्रतिसाद मिळाला, याची ठोस माहिती मात्र उपलब्ध नाही. १८५५ मध्ये लिहिलेल्या या नाटकाच्या हस्तलिखित प्रती  १९७९ साली प्रा. सीताराम रायकर यांना मिळाल्या ही एक नाट्यपूर्ण घटनाच म्हटली पाहिजे. 

फुले यांच्या सामाजिक कार्याचा गौरव करत १८८८ मध्ये त्यांना ‘ महात्मा ‘ ही उपाधी दिली गेली. 

महात्मा फुले यांच्यावरही असंख्य पुस्तके लिहिली गेली आहेत. तसेच त्यांचे एकूण व्यक्तिमत्व, अफाट समाजकार्य यावर बरीच नाटके आणि चित्रपटांचीही निमिर्ती केली गेली आहे. 

महात्मा फुले आणि पत्नी सावित्रीबाई फुले यांच्या नावाने अनेक संस्था उभारलेल्या आहेत. त्यांच्या नावाने बरीच साहित्य संमेलने नियमित भरवली जातात. त्यांच्यावर काढलेल्या चित्रपटाला राष्ट्रीय पुरस्कार मिळालेला आहे. त्यांच्या जीवनावर आधारित दूरदर्शन मालिकाही निर्मिलेल्या आहेत. अनेक ठिकाणी त्यांचे पुतळे स्थापन केले गेले आहेत.

भारतीय समाजक्रांतीचे जनक ‘ अशीच ज्यांची ख्याती मानली जाते, त्या महात्मा ज्योतिबा फुले यांना अतिशय भावपूर्ण श्रद्धांजली. ?

☆☆☆☆☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

ई – अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

माहितीस्रोत :- इंटरनेट

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कंटकांचा नियम येथे… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ कंटकांचा नियम येथे… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆ 

(वृत्त :व्योमगंगा)

(गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा)

कंटकांचा नियम येथे, फूल हा अपवाद होता

या फुलाच्या क्षणिकतेला,अमृताचा गंध होता

 

मिसळलो मातीत तेव्हा, बहरलो अंकूरलोही

सांडले मालिन्य सारे, अंबराचा स्पर्श होता !

 

भंगलेल्या गोकुळीही बासरीचा घोष चाले

विद्ध वेळूच्या क्षतांचा,आर्त तो उद्गार होता !

 

छेडिल्या माझ्या विणेच्या,मंद तू हळुवार तारा

जन्मले संगीत नाही,मान्य माझा दोष होता !

 

मंत्र आणी मांत्रिकाचा, संपलेला खेळ सारा

स्वप्नरम्या मंत्रबाधा, दो घडीचा स्वर्ग होता !

 

मित्र सारे पांगलेले,शून्यता ही जीवघेणी

रंगलेल्या मैफिलीला,भंगण्याचा शाप होता !

 

चिंब भिजतो मीच माझा,उत्सवी या रक्तरंगी

फक्त गर्दी, कोण दर्दी?पोरका आकांत होता !

© श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

 

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ तप्त धरा….. ☆ डॉ मेधा फणसळकर

डॉ मेधा फणसळकर

? कवितेचा उत्सव  ?

☆ तप्त धरा….. ☆ डॉ मेधा फणसळकर ☆ 

(मधुदीप रचना)

या

तप्त

झळांचा

पेटवला

अग्नीचा कुंड

ग्रीष्मासवे

रवीने

भला

सोडला सुस्कार धरतीने जणू अंगार

भासते रुष्ट विरहपीडिता नार

भेटण्या प्रियतमास आतुर

फेकला लाल शेला पार

पलाश वृक्षावर

क्रोध अपार

 

नि

पीत

सुवर्णी

कर्णफूल

झेली बहावा

कानातील

धरेचा

डूल

चैत्रात नेसली नवीन हिरवी वसने

सुरकुतली सजणाच्या विरहाने

अंगाग मृत्तिका धुसमुसळे

वेढली उष्ण धुरळ्याने

तरी करी अर्जवे

पुन्हा प्रेमाने

 

तो

चंद्र

प्रियेला

मनवित

संध्यासमयी

अळवितो

प्रीतीचे

गीत

रतीमदनाचा जणू हा मिलनसोहळा

पवन देतसे हलकेच हिंदोळा

चांदण्या न कुंदफुलांचा मेळा

धरेच्या ओंजळीत गोळा

तृप्त युगुल मग

मिटते डोळा

 

© डॉ. मेधा फणसळकर

मो 9423019961

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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