हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 29 ☆ ग़ज़ल – – अगर हो भावना मन की…☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की “ग़ज़ल – अगर हो भावना मन की…।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 29 ☆

☆ ग़ज़ल – अगर हो भावना मन की…  ☆

सदा परिवेश से सबको स्वाभाविक प्यार होता है

मनोहर कल्पना मे सुख भरा संसार होता है

पडोसी से हुआ करती सुखद सदभाव की आशा

अगर बिलभाव होता तो सतत दुखभार होता है

 

हरेक की शांति सुख के हित भला लगता सहारा है

अगर विश्वास उठ जाता तो सब सुखचैन खोता है

हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ घटता है बरसो से

पडोसी की नियत खोटी है निश्चित भास होता है

 

सदाचाहा रहे हिलमिल के सब साथ खुशियो से

मगर सब चाह कर भी अब नही विश्वास होता है

 

मिलाकर हाथ जब भी साथ बढने की की गई कोशिश

तो देख उस तरफ से पीठ पर फिर वार होता है

समझ गई अब तो दुनिया भी कि उसका क्या इरादा है

पडोसी से हमे धोखा ही बारम्बार होता है

 

हमारी हर भलाई का मिला बदला बुराई से

सुहानी सरहदो पर नित ही अत्याचार होता है

जहाॅ होता है मन मे मैल कटुता बढती जाती है

निरंतर द्वेष से किसका कही उद्धार होता है

 

अगर हो भावना मन की मिलन उत्सव मनाने की

तो अपने आप ही सबसे सदय व्यवहार होता है

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – रंगमंच-सिनेमा ☆ दर्शकों को हंसा कर खुशी मिलती है पर सुकून संगीत में  : सुगंधा मिश्रा ☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता

 ☆ रंगमंच-सिनेमा ☆ दर्शकों को हंसा कर खुशी मिलती है पर सुकून संगीत में  : सुगंधा मिश्रा ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆ 

कॉमेडी कर दर्शकों को हंसा कर खुशी मिलती है लेकिन खुद को सुकून संगीत में मिलता है। यह कहना है कपिल शर्मा शो, कॉमेडी सर्कस, कॉमेडी क्लासिक, लॉफ्टर चैंपियन और लॉफ्टर के फटके आदि अनेक कॉमेडी शोज में हंसाने वाली सुगंधा मिश्रा का।

सुगंधा मिश्रा मूल रूप से जालंधर पंजाब से हैं और जालंधर व हिसार दूरदर्शन केंद्रों के निदेशक रह चुके संतोष मिश्रा की बेटी हैं। सुगंधा ने बताया कि जब पापा हिसार दूरदर्शन के निदेशक थे तब वह हिसार भी कुछ दिनों के लिए आई थीं। जालंधर के एपी जे कॉलेज से एम ए गायन किया। सुगंधा का परिवार संगीतमय परिवार है और चौथी पीढ़ी है जो इंदौर घराने से जुड़ी हुई है। जालंधर में बिग एफ एम में रेडियो जॉकी का काम भी किया कुछ समय।

-किससे प्रेरणा मिली संगीत में आने की?

-वैसे तो पूरा परिवार ही संगीत से जुड़ा हुआ है लेकिन चौथी कक्षा में थी जब दादा शंकरलाल मिश्रा जी ने सिखाना शुरू कर दिया था।

-कॉलेज में क्या योगदान रहा?

-युवा समारोहों में राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची और पुरस्कार प्राप्त किये। कपिल शर्मा और भारती भी गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी की टीम में होते थे।

-और क्या क्या किया मंच पर?

-थियेटर, मिमिक्री। एक बार में पचास पचास आवाजें निकाल लेती थी। शास्त्रीय, पाश्चात्य गायन और सबमें पुरस्कार।

-फिर कॉमेडी में कैसे?

-सन् 2009 में युवा समारोह की वजह से ही अवसर मिला। ऑफर आया जब प्रतिभा खोज के लिए बुलाया मुम्बई से। लॉफ्टर चैलेंज के लिए। कहा कि पसंद न आए तो एक एपीसोड के बाद निकल जाना।

-फिर क्या रहा?

-आपके सामने है मेरी यात्रा। वहां मैंने म्यूजिकल कॉमेडी बनाई बिना किसी स्क्रिप्ट के। ऐसे मैं सेमीफाइनल तक पहुंच गयी। शत्रुघ्न सिन्हा जी आए थे। इस तरह कॉमेडी में मेरी पहचान बन गयी। वैसे सा रे ग म प में भी गयी और सेकेंड रनर अप रही। वैसे भी यदि पंजाब में अगर रहती तो एक संगीत प्राध्यापिका ही बन कर रह जाती। वह मेरी मंजिल नहीं थी।

-गायन का मौका नहीं मिला?

-दो साल बहुत संघर्ष किया लेकिन एक दो मूवीज में मौका मिला भी तो गाने हिट नहीं हुए।

– और किन किन कॉमेडी शोज में आईं?

-कपिल शर्मा के शो में लगभग डेढ़ साल। कॉमेडी सर्कस, कॉमेडी क्लासिज, लॉफ्टर चैंपियन, लॉफ्टर के तड़के आदि। फिर तो कॉमेडी मे गाड़ी चल निकली। मुम्बई में ही ठिकाना हो गया और विदेशों में भी लाइव शोज मिलने लगे। मम्मी पापा भी साथ देते रहे।

-संगीत की दुनिया से कॉमेडी में आ जाने से कैसा लगा?

-लक्ष्य तो आज भी संगीत और गायन ही है। एक म्यूजिक एप खोलना चाहती हूं। दर्शक जब मेरी कॉमेडी पर हंसते हैं तो खुशी होती है। हो सकता है यह कला मुझमें छिपी हो जिसे मुम्बई ने पहचान लिया। पर सुकून संगीत में ही मिलता है।

-कौन पसंदीदा गायिका?

-लता जी तो हैं ही। उनके अंदाज को फॉलो करके दिखाया। ऑल टाइम फेवरिट किशोर दा, आशा भौंसले। वे गज़ल भी उतनी ही खूबसूरती से गाती हैं।

– कॉमेडी मे कौन पसंद?

-श्रीदेवी। उतनी ही बढ़िया कॉमेडी करती थी जितना भावपूर्ण अभिनय।

-पुरस्कार?

-युवा समारोहों में राष्ट्रीय पुरस्कार तक। हरबल्लभ संगीत सम्मेलन में गाना भी किसी पुरस्कार से कम नहीं। पंडित रवि शंकर जी से जूनियर आर्टिस्ट पुरस्कार। प्राचीन कला केंद्र और रेडियो मिर्ची से भी।

-अपने आप को क्या कहना पसंद करोगी -गायिका या कमेडियन?

-एक एंटरटेनर। फुल एंटरटेनर। जो संगीत, अभिनय, गायन और कॉमेडी सब कर सकती है और कर रही है।

हमारी शुभकामनाएं सुगंधा मिश्रा को।

© श्री कमलेश भारतीय

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धरना ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – धरना ☆

वह चलता रहा

वे हँसते रहे..,

वह बढ़ता रहा

वे दम भरते रहे..,

शनै:-शनै: वह

निकल आया दूर,

इतनी दूरी तय करना

बूते में नहीं, सोचकर

सारे के सारे ऐंठे हैं..,

कछुए की सक्रियता के विरुद्ध

खरगोश धरने पर बैठे हैं..!

©  संजय भारद्वाज

(3.01.2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

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हिंदी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – प्रेमार्थ  –  श्री सुरेश पटवा ☆ प्रस्तावना – श्री युगेश शर्मा

श्री सुरेश पटवा 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। 

ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री सुरेश पटवा जी  जी ने अपनी शीघ्र प्रकाश्य कथा संग्रह  “प्रेमार्थ “ की कहानियां साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार किया है। इसके लिए श्री सुरेश पटवा जी  का हृदयतल से आभार। इस सन्दर्भ में आज प्रस्तुत है  सुप्रसिद्ध कहानीकार, नाटककार एवं समीक्षक श्री युगेश शर्मा जी की प्रेमार्थ पुस्तक की प्रस्तावना। अगले सप्ताह से प्रत्येक सप्ताह आप प्रेमार्थ  पुस्तक की एक कहानी पढ़ सकेंगे ।  )

☆ कथा संग्रह – प्रेमार्थ  –  श्री सुरेश पटवा ☆ प्रस्तावना   – श्री युगेश शर्मा

मैंने साहित्य की विभिन्न विधाओं की लगभग सवा सौ पुस्तकों की प्रस्तावना, टिप्पणी, समीक्षा लिखी है। इनमें बहुसंख्यक पुस्तकें वे हैं, जो कल्पना के धरातल पर साकार हुई हैं। साहित्यिक लेखन के क्षेत्र में सतत अध्ययन से अर्जित ज्ञान की बुनियाद पर अनुभवों का पुट देते हुए लिखने वाले लेखक कम ही हुए हैं, जिनके लेखन को कल्पना तो संपूरित मात्र करती है। इस श्रेणी के लेखकों का सृजन एकदम अल्हदा रंग और तेवर लिए हुए होता है। इन लेखकों की रचनाओं को पढ़ते समय पाठक रचना से सीधे जुड़कर लेखक के साथ-साथ चलता है और लेखक एवं पाठक के बीच कोई दूरी नहीं रह जाती। नर्मदा अंचल की ऐतिहासिक बस्ती शोणितपुर वर्तमान सोहागपुर में जन्मे श्री सुरेश पटवा की अब तक प्रकाशित छह: पुस्तकों के आधार पर नि:संकोच भाव से कहा जा सकता है कि वे साहित्य जगत में अपनी पृथक साहित्यिक पहचान रखने वाले साहित्यकार हैं। सुरेश पटवा लेखन ने ज़ाहिर कर दिया है कि उनका लेखन अल्हदा क़िस्म का है।

किसी भी विषय पर लेखक की पकड़ उसके स्पष्ट नज़रिए से अंजाम पाती  है। सुरेश पटवा की अब तक प्रकाशित पाँच किताबों 1757 से 1857 तक का रोचक सच “ग़ुलामी की कहानी”, जेम्स फ़ारसायथ का रोमांचक अभियान “पचमढ़ी की खोज”, रिश्तों के दैहिक भावनात्मक मनोवैज्ञानिक रहस्य “स्त्री-पुरुष”, सौंदर्य, समृद्धि, वैराग्य की नदी “नर्मदा” और सैद्धांतिक प्रबंधन की साहसिक दास्तान “तलवार की धार” से यह पता चलता है कि सम्बंधित विषय की गम्भीरता पूर्ण गहराई से जानकारी  के उपरांत ही उनकी कलम चलती है जो पाठक को बाँधने में सक्षम है। सुरेश पटवा भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत सहायक-महाप्रबंधक हैं। पर्यटन और कालजयी पुस्तकों का अध्ययन उनके रुचिकर विषय व शौक़ रहे हैं।

प्रेमार्थ” कहानी संग्रह उनकी सातवीं कृति है। इसमें आपकी पंद्रह कहानियाँ शामिल हैं। कुछेक रचनाएँ बुनावट, तथ्यों और शैली के आधार पर संस्मरण और रिपोर्टाज के निकट परिलक्षित होती हैं परंतु साथ ही यह बात भी स्वीकार करना होगी कि इसमें कहन का पर्याप्त पुट है जो पाठक को पूरी कहानी पढ़ने को प्रेरित करता है।

श्री पटवा के लेखन में यह अल्हदापन अनायास नहीं अपितु सायास आया है। उन्होंने पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ व्यापक स्तर पर साहित्य और वांग्यमय का अध्ययन भी किया है। नया से नया ज्ञान अर्जित करने के लिए वे सदैव तत्पर, लालायित और उत्साहित बने रहते हैं। आपके अध्ययन के विषय विविध आयामी और गम्भीर होते हैं। इतिहास से सम्बंधित पुस्तकों और दस्तावेज़ों के अध्ययन में आपकी विशेष दिलचस्पी है। आपकी दिलचस्पी देशी और विदेशी दोनों प्रकार की पुस्तकों को स्पर्श करती है। आपने “स्त्री-पुरुष” पुस्तक में देशी-विदेशी विद्वानों के काफ़ी उद्धरण दिए हैं जो उनके मंतव्यों एवं निष्कर्षों को सिद्दत के साथ प्रस्तुत करने में समर्थ हैं। श्री पटवा के साथ एक ख़ास बात यह भी जुड़ी हुई है कि वे अध्ययन के साथ पर्यटन के भी बहुत शौक़ीन हैं। उन्होंने बैंक से मिली पर्यटन सुविधा का उपयोग प्रमुख रूप से ज्ञानार्जन में किया। पर्यटन वृत्ति ने उनको ज्ञान सम्पदा के विभिन्न रूपों से परिचित कराने के साथ-साथ विस्तार से मानव प्रवृत्तियों को समझने का अवसर भी दिया है। ज्ञानार्जन की इस लम्बी प्रक्रिया ने उनके भीतर इतिहास दृष्टि पैदा की है। यह इतिहास दृष्टि उनके शोध परक लेखन को परिपुष्ट और सम्बंधित करने का साधन बनी है। इस कहानी संग्रह की कहानियों में पटवा जी के गहन गम्भीर इतिहास बोध के दर्शन होते हैं।

शोणितपूर, जो कि सौभाग्यपूर, सुहागपुर होता हुआ सोहागपुर  हो गया, के संदर्भ में आपने जो इतिहास सम्मत सटीक ब्योरे दिए हैं, वे प्रमाणित करते हैं कि इतिहास की दुनिया में श्री पटवा की गहरी पैठ है। सोहागपुर से जुड़ी कहानियों में आपने विभिन्न काल खंडों के ऐसे तथ्यों को शामिल किया है, जो आश्चर्यचकित करते हैं। मैं तो यह कह सकता हूँ कि शायद ही कोई दूसरा लेखक होगा जिसने अपनी जन्मभूमि के इतिहास और महात्म्य के बारे में इतनी व्यापक और सूक्ष्म खोज कर काफ़ी विश्वसनीय तथ्य जुटाए हों।

आजकल  कहानी जीवन की प्रतिच्छाया के रूप में लिखी जा रही है। यह सब कुछ होते हुए भी सामान्य पाठक कहानी में मनोरंजन के तत्त्वों को भी ढूँढता है। लेखक की सभी कहानियाँ भारतीय सामाजिक मूल्यों के आसपास मनोरंजक कौतूहल जागती प्रेरक संदेश देती हैं इसलिए यह पुस्तक एक उच्च कोटि का संग्रहणीय कहानी संग्रह है।

इस कहानी संग्रह की कहानियों से गुज़रते हुए कहानीकार श्री सुरेश पटवा के लेखन की दो और विशेषताओं से साक्षात्कार हुआ है। पहली, उनकी अनुभूतियों में गहराई है। उन्होंने अपनी अनुभूतियों को लेखन में उतारने में अच्छी महारत हासिल की है। “गेंदा-गुलाबो” कहानी को लें  अथवा “शब्बो-राजा” कहानी को या फिर “एक थी कमला” या “ग़ालिब का दोस्त” को लें, उनकी अनुभूतियों में गहराई के साथ प्रचुर संवेदनशीलता भी विद्यमान है। दूसरी विशेषता मुझे उनकी प्रखर स्मृति के रूप में दिखाई दी। सोहागपुर की पृष्ठभूमि पर लिखी गई कहानियों में उनके स्मृति सामर्थ्य का आल्हादकारी चमत्कार देखने को मिलता है। वे अपने बचपन के मित्रों, सोहागपुर के बुजुर्गों, ख़ास व्यक्तियों और स्थानों के नामों का यथार्थ उल्लेख करते हैं। अचरज तो यह पढ़कर होता है कि वे छोटी जातियों के संगी साथियों का संदर्भ एवं नामोल्लेख करने में भी उदारता का भरपूर परिचय देते हैं। इन्ही वास्तविक ब्योरों के कारण कहानियाँ अधिक पठनीय और रोचक बन पड़ी हैं। वे स्वयं के शुरुआती जीवन की सच्चाइयों को भी यथाप्रसंग प्रस्तुत करने में चूकते नहीं है।  वे इस सच को भी नहीं छुपाते कि बचपन में रेल्वे स्टेशन पर मेहनत मज़दूरी करते और चाय बेचा करते थे। उन्होंने अपने खून के रिश्तों के खुरदरेपन को भी प्रस्तुत करने में गुरेज़ नहीं किया है। “एक थी कमला” कहानी इसका प्रमाण है।

मुझे यह कहने में क़तई संकोच नहीं है कि संग्रह की दो-तीन कहानियाँ कथाशिल्प की कसौटी पर चाहे शत-प्रतिशत खरी न उतर रही हों, लेकिन उनमें रोचकता और कहन की कोई कमी नहीं प्रतीत होती। इन कहानियों की कथावस्तु की नव्यता और नैसर्गिकता निस्संदेह आकर्षित करती है। इन कहानियों के पठनोपरांत पाठक निश्चित ही अनुभव करेंगे कि उन्होंने ऐसा कुछ पढ़ा है, जो उनको कुछ ख़ास दे रहा है। एक बड़ी बात तो यह है कि संग्रह की कोई भी कहानी पाठक को शिल्पगत चमत्कार पैदा करने के लिए न तो यहाँ-वहाँ भटकाती है और न ही किसी प्रकार की उपदेशबाज़ी के फेर में पड़ती है। यह बात उल्लेखनीय है कि प्रत्येक कहानी में ऐसा कुछ ख़ास अवश्य है, जो पढ़ते-पढ़ते नए ज्ञान के साथ-साथ जीवनोपयोगी मंत्र भी सौंप जाती है। इन कहानियों को पढ़ते-पढ़ते पाठक के मन में यह अहसास अवश्य जागेगा कि उसने जीवन के एक यथार्थ से साक्षात्कार किया है।

संग्रह की कहानियों की मौलिकता और जीवंतता भी बरबस आकर्षित करती है। कुछ कहानियों में आंचलिकता उनकी प्रमुख विशेषता के रूप में उभर कर आई है। विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी श्री आर. के. तलवार की महानता को संग्रह की प्रथम कहानी “अहंकार” में रेखांकित किया गया है। लेखक सुरेश  पटवा अस्सी वर्षीय यशस्वी जीवन यात्रा पूर्ण करने वाले श्री तलवार की दिव्य चेतना से अभिभूत है। पुदुच्चेरी में श्री अरविंद आश्रम में लेखक की उस महामानव से भेंट हुई थी। कहानी में अहंकार को बहुत ही अच्छी तरह समझाया गया है। “ग़ालिब का दोस्त” कहानी में महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब और धनपति बंशीधर की आदर्श दोस्ती को बड़ी कुशलता के साथ कहानी में ढाला गया है। सच्ची मित्रता न तो जाँत-पाँत देखती है और न अमीर गरीब। दिनों मित्रों का वार्तालाप मन में आत्मीयता का रस घोल देता है। “अनिरुद्ध ऊषा” कहानी में भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और शोणितपुर की राजकुमारी ऊषा की प्रेम कहानी को ऐतिहासिकता के पुट के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह कहानी इतनी विकट है कि श्रीकृष्ण और शिवजी को युद्ध में आमने सामने खड़ा कर दिया है। “कच-देवयानी” भी शोणितपुर की ही प्रेम कहानी है। कहानी में बहुत अंतर्द्वंद है। यह कहानी महाभारत में भी वर्णित है। कच बृहस्पति के पुत्र थे और देवयानी शुक्राचार्य की पुत्री। जब कच ने देवयानी का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया तो उसने कच को श्राप दे दिया था। कच भी शांत नहीं रहा उसने भी देवयानी को श्राप दिया कि कोई भी ऋषि पुत्र उससे विवाह नहीं करेगा और वह पति प्रेम को तरसेगी। “गेंदा और गुलाबो” कहानी भी कम रसभरी नहीं है। इस कहानी के साथ प्रख्यात सोहागपुरी सुराही की अंतर्कथा भी चलती है। सतपुड़ा अंचल में परवान चढ़ी एक और प्रेम कहानी “शब्बो-राजा” शीर्षक से संग्रह में शामिल है। कहानी में प्रेम, षड्यंत्र और हत्या का त्रिकोण है। उसमें प्रतिशोध की आग भी है। “सोहिनी और मोहिनी” कहानी में राजाओं की रंगीन ज़िंदगी का चित्रण है। कहानी के केंद्र में सोहिनी और मोहिनी नाम की दो युवा नर्तकियाँ हैं। हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि रीवा के राजा मोहिनी से और शोभापुर के राजा सोहिनी से विवाह रचाते हैं।

एक थी कमला” एक दर्द भरी कहानी है। कमला के जीवन की त्रासदी उद्वेलित करती है। वह जी जान से सबकी सेवा करती है, किंतु उसको जीवन में वांछित सुख नहीं मिलता। “अंग्रेज़ी बाबा से देसी बाबा” कहानी अन्य कहानियों से भिन्न पृष्ठभूमि की कहानी है। यह कहानी प्रख्यात समाज सेवी मुरली धर आमटे द्वारा की गई अद्वितीय कुष्ठ सेवा का इतिहास बयान करती है। उन्होंने सम्पन्न परिवार एवं अंग्रेज सरकार के महत्वपूर्ण सुख सुविधाओं की छोड़कर खुद को कुष्ठ मुक्ति आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया था। बड़ी प्रेरक कहानी है यह। “गढ़चिरोली की रूपा” एक ऐसी हथिनी की कहानी है, जिसको अनेकों कोशिशों के बाद भी मातृत्व सुख नहीं मिला। वह बसंती नामक दूसरी हथिनी की सौतिया डाह की शिकार बनी। कहानी बताती है कि सौतिया डाह मनुष्यों की तरह जानवरों में भी व्याप्त है। “बीमार-ए-दिल” एक रोचक कहानी बन पड़ी है। कहानीकार सुरेश पटवा को दिल के आपरेशन से गुजरना पड़ा। जिसकी अनुभूति तटस्थ मौज मस्ती में लिखी है। आपरेशन के भय का चित्रण तो पढ़ते ही बनता है। “साहब का भेड़ाघाट दौरा” शरद ऋतु की चाँदनी रात में अतीव सौंदर्य प्रकटन के वर्णन समेटे है। “सभ्य जंगल की सैर” वनीय सौंदर्य को समेटे उत्कृष्ट व्यंगात्मक कहानी है। “भर्तृहरि वैराग्य” कहानी में उज्जैन के राजा भर्तृहरि के वैराग्य-पथ पर अग्रसर होने का चित्रण है। राजा की पत्नी की बेवफ़ाई उसका कारण बनी। यह कहानी मित्रों की उज्जैन से भोपाल की यात्रा के दौरान संवाद शैली में आकार लेती है। चार दोस्तों में एक स्वयं लेखक भी है। “ठगों का काल कैप्टन स्लीमैन” बहुत रोचक अन्दाज़ में लिखी गई एतिहासिक कहानी है।

इन कहानियों की रचना में श्री सुरेश पटवा का श्रम प्रणम्य और कहानियों के लिए शोध कार्य अभिनंदनीय है। संग्रह की कहानियाँ पठन आनंद और प्रेरणा दोनों से पाठकों को आनंदित करेंगी, ऐसा विश्वास है।

© श्री युगेश शर्मा

कहानीकार, नाटककार एवं समीक्षक

‘व्यंकटेश कीर्ति’, 11 सौम्या एनक्लेव एक्सटेंशन, चूना भट्टी, भोपाल-462016 मो 9407278965

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार#2 – समाधान ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं।  आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।” )

 ☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार#2 – समाधान ☆ श्री आशीष कुमार☆

एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।

एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।

बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।

फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो।

एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो ?

पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग -9 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी

सुश्री शिल्पा मैंदर्गी

(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)

☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग – 9 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆ 

(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)

(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका  हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )  

अंडमान जाने को मिलना मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात थी। यह सब यादें मैंने  अपने मन में अभी भी संभाल कर रखी है।

अंडमान जाने के लिए मैंने पूरी तरह से तैयारी की थी। मेरे पापा की मदद़ से सावरकर जी की ‘जन्मठेप’ किताब का प्र.के. अत्रेजी द्वारा किया हुआ संक्षिप्त रूप मैने सुना। इसलिये मेरी मन की तैयारी हो गई। हम सिर्फ सफर पर नहीं जा रहे हैं बल्कि एक महान क्रांतिकारक के स्पर्श से पावन हुई भूमि को प्रणाम करने जा रहे हैं, यह मैंने मन में ठान लिया और वैसा अनुभव भी किया। लगभग १२८ सावरकर प्रेमी, सावरकर जीं के लिए आदर रखने वाले वहां गए थे। महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली ऐसे प्रांतों से प्रेमी इकट्ठे हुए थे। ऐसा लग रहा था कि सब लोगों की एकता जागृत हो गई है। हम सब लोग हरिप्रिया एक्सप्रेस से पहली बार तिरुपति गए। बेलगाम स्टेशन पर सब का भव्य स्वागत हुआ। सावरकर जी के तस्वीर को फूलों की माला चढ़ाई। छोटा सा भाषण भी हुआ। नारेबाजी से बेलगाम स्टेशन हिल गया, आवाज गूंजने लगी। वह अनुभव बहुत रोमांचक था। हम चेन्नई पहुंच गए। चेन्नई से अंडमान हमारा ‘किंगफिशर’ का हवाई जहाज था। मेरे साथ मेरी बहन तो थी ही लेकिन बाकी लोगों ने भी मुझे संभाल लिया।

एयर होस्टेस ने भी बहुत मदद की। वह मेरे साथ हिंदी में बोल रहे थे। उन्होंने हवाई जहाज का बेल्ट कसने के लिए मेरी मदद की। इस सफर के कारण मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी ऊंचाई को छू लिया। हवाई जहाज का सफर अच्छी तरह से हो गया और सावरकर जी जिस कमरे में कैद थे वहां उनको प्रणाम करने का अवसर मिला।

अंडमान में उतरने के बाद हम सब सावरकर प्रेमियों को फिर एक बार सावरकर युग का अवतार हुआ है ऐसा लगा। हम सब सावरकर प्रेमियों ने तीन दिन के कार्यक्रम की तैयारी की थी। अंडमान में ‘चिन्मय मिशन’ का एक बहुत बड़ा सभागार है।वहाँ बाकी सब लोगों के कार्यक्रम हो गए। पहले दिन बेलगाम का विवेक नाम का लड़का था। उसका कद सावरकरजी की तरह ही था, वैसा ही दुबला पतला। उसके हाथ पैर में फूलों की माला डालकर जेल तक हमने जुलूस निकाला। सावरकर जी को जैसा ध्वज अपेक्षित था, वैसा ही केसरी ध्वज और उस पर कुंडलिनी शक्ति लेकर गए थे। वही ध्वज लेकर सब लोगों ने बड़े आदर के साथ प्यार से सावरकर जी के उस कमरे तक जाकर उनको प्रणाम किया। वह जेल बहुत ही भयावह लग रही था। वह बड़ी जेल, बड़ी जगह, फांसी का फंदा, जहां कैदियों को मारते थे वह जगह, सब सुनकर मैं हैरान हो गई। सावरकर जी जो पहनते थे उस कोल्हू को मैंने हाथ लगा कर देखा तो मैं हैरान हो गई। कोल्हू याने कि जिसे बैल को बांधकर जिससे तेल निकाला जाता है, उसी कोल्हू को बैल की जगह सावरकर जी को बांधकर ३० पौंड तेल निकाला जाता था। अपनी भारत माता के लिए उन्होंने कितने कष्ट उठाए, अत्याचार सहे, कितनी चोटें खाई उसकी याद आयी तो मेरे शरीर पर रोमांच उठ गए। आंखों से आंसू आते थे। उनके त्याग की कीमत हम लोगों ने क्या की? ऐसा ही लगता था, अफसोस होता है।

हमारे साथ दिल्ली के श्रीवास्तव जी थे। वे ७५ साल के थे। आश्चर्य की बात यह है कि उनके ५२ साल तक उनको सावरकर जी कौन थे यह मालूम ही नहीं था। उनका कार्य क्या है यह भी मालूम नहीं था। लेकिन एक बार उनके कार्य की महानता, उनका बड़प्पन मालूम पड़ा तो वह इतने प्रभावित हो गए कि उन्होंने सावरकर जी के कार्यों पर पी.एच.डी. हासिल की।

श्रीवास्तव दादाजी नें हमें जेल के उस जगह पर सावरकर जी की खूब यादें बताई। उस में से एक बताती हूं, अपने एक युवा क्रांतिकारी को दूसरे दिन फांसी देना था, तो जल्लाद ने उनको पूछा “तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है?”, उस पर वह बोले, “मुझे उगता हुआ सूरज दिखाओ”। तो जल्लाद ने हँसकर कहा, “तुम लोगों के लिए मैं ही सूरज हूँ।”  उस पर वह क्रांतिकारक ने तुरंत उत्तर दिया “तुम डूबता हुआ सूरज हो,  मुझे उगता हुआ सूरज दिखाओ, मुझे सावरकर जी को देखना है”, धन्य है वह क्रांतिकारी ।

वहाँ के हॉल में कोल्हापुर के पूजा जोशी ने, ‘सागरा प्राण तळमळला’ यह गीत पेश किया। रत्नागिरी के लोगों ने सावरकर और येसु भाभी में जो वार्तालाप था वह पेश किया। इसलिए मैंने कहा कि उधर सावरकर युग छा गया था।

अपनी मातृभूमि को परतंत्रता के जंजीरों से मुक्त करने के लिए सावरकर जी ने कितने कष्ट उठाए, अत्याचार सहे; यह सब आज की युवा पीढ़ी को समझना ही चाहिए। इसीलिए हमारे सांगली के ‘सावरकर प्रतिष्ठान’ के लोग आज भी नए-नए कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं।

सब लोगों ने सावरकर जी की ‘माझी जन्मठेप’ यह किताब पढ़नी चाहिए, ऐसी मैं सबसे विनम्र प्रार्थना करती हूँ।

प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे 

मो ७०२८०२००३१

संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी,  दूरभाष ०२३३ २२२५२७५

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४९॥ ☆

 

आराद्यैनं शरवणभवं देवम उल्लङ्घिताध्वा

सिद्धद्वन्द्वैर जलकणभयाद वीणिभिर मुक्तमार्गः

व्यालम्बेथाः सुरभितनयालम्भजां मानयिष्यन

स्रोतोमूर्त्या भुवि परिणतां रन्तिदेवस्य कीर्तिम॥१.४९॥

तब “स्कंद ” को अर्घ्य दे देवगिरि पार

करते समय सिध्दगण वीणधारी

वर्षा सलिल भीति से वे युगल पुंज

देंगे तुम्हें मार्ग वनपंथ चारी

सुरभि धेनु की पुत्रियो के सतत मेघ

से बन गई भूमि पर है नदी जो

रुकना उसे मान देने कि रतिदेव की

कीर्ति को .. नदी चर्मण्वती को

शब्दार्थ … चर्मण्वती = चंबल नदी

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ नेत्रदान… ☆ सौ.अस्मिता इनामदार

सौ.अस्मिता इनामदार

☆ कवितेचा उत्सव ☆ नेत्रदान… ☆ सौ.अस्मिता इनामदार ☆ 

कर्णासारखा उदार दाता

आजच्या कलियुगात नाही

माझे ते माझे, तुझे तेही माझे

असेही म्हणणारे आहेत काही…

 

तीर्थक्षेत्री करूनी दान

पुण्य मिळवती सारेजण

इतर वेळी पापे करूनी

आनंद मिळवती काहीजण…

 

देवा-धर्माच्या नावाखाली

लूटच करती या जगती

दानाच्या त्या पावित्र्याला

नष्ट करणे ही प्रगती…

 

यापरतेही अनेक दाने

जगी आहेत, जाणूनी घ्या

त्या दानातून मिळणाऱ्या

समाधानाचा लाभही घ्या…

 

दानाचेही प्रकार अगणित

द्रव्यदान वा रक्तदान

या साऱ्याहून श्रेष्ठतम ते

ते म्हणजे हो नेत्रदान…

 

अंधकार तो नयनापुढचा

क्षणात एका होईल दूर

नेत्रदानाचे पुण्य घेऊनी

आनंदाला येईल पूर…

 

त्या दानातून कुणी अभागी

पाहील जग हे डोळेभरूनी

आयुष्याच्या वाटेवरती

चालत राहील दुवा देऊनी…

 

© सौ अस्मिता इनामदार

पत्ता – युनिटी हाईटस, फ्लॅट नं १०२, हळदभवन जवळ,  वखारभाग, सांगली – ४१६ ४१६

मोबा. – 9764773842

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ पानोपानी वनोवनी – कवी सुहास रघुनाथ पंडित ☆ कवितेचे रसग्रहण☆ प्रस्तुति – प्रा. तुकाराम दादा पाटील

कवी सुहास रघुनाथ पंडित

☆ कवितेचा उत्सव ☆ पानोपानी वनोवनी कवी सुहास रघुनाथ पंडित ☆ सौ. ज्योत्स्ना तानवडे

 

धून बासरीची येता माझ्या कानावर

नकळत डोळ्यांपुढे येई बन्सीधर

 

सरल्या आषाढाच्या धारा आला श्रावण मास

अवचित का गं होती

सांग मला असे भास

हुरहूर वाटे फार

मनोमनी एक आस

जिथे तिथे डोळा दिसे

मला माझ्या श्री निवास

 

प्राण आणून डोळ्यात वाट पाहते तयाची

जीव लावून जीवास जावे सवयही त्याची

कोण घालील फुंकर आता माझ्या मनावर

झाले वेडी मी म्हणती जगसारे जगभर

 

नाही समोर तयाचे

आज रूप जरी माझ्या

चित्र चितारण्या  त्याचे

माझी अपुरी ही वाचा

उगवावा जन्मामध्ये दिसून सोनियाचा एक

त्याच्या दर्शनाने व्हावे माझ्या जन्माचे सार्थक

 

नाही गोकुळची राधा

नाही सखा श्री सुदाम

पण घालू कसा आता

माझ्या मनात लगाम

त्याचे रुपडे दिसावे म

नामध्ये हीच आशा

आळविण्या त्याला आता बोलू कोणती भाषा

 

हृदयाची भाषा माझ्या अधरी येईना

शामवर्ण मेघांचा हा मला जगू ही देईना

हरित जगात हरि भरून राहिला

पानोपानी वनोवनी त्याला मी पाहिला

 

© कवी सुहास रघुनाथ पंडित

सांगली मो. – 9421225491

(या कवितेचे रसग्रहण काव्यानंद मध्ये दिले आहे.)

प्रस्तुति – प्रा. तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३  दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 59 – सारे सुखाचे सोबती ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 59 – सारे सुखाचे सोबती ☆

काठी सवे देते राया

हात तुज सावराया।

बेइमान दुनियेत

आज नको बावराया।

 

थकलेले गात्र सारे

भरे कापरे देहाला।

अनवाणी पावलांस

नसे अंत चटक्याला।

 

तनासवे मन लाही

आटलेली जगी ओल।

आर्त घायाळ मनाची

जखमही किती खोल।

 

मारा ऊन वाऱ्याचा रे।

जीर्ण वस्त्राला सोसेना।

थैलीतल्या संसाराला

जागा हक्काची दिसेना।

 

कृशकाय क्षीण दृष्टी

वणवाच भासे सृष्टी।

निराधार जीवनात

भंगलेली स्वप्नवृष्टी।

 

वेड्या मनास कळेना

धावे मृगजळा पाठी।

सारे सुखाचे सोबती

दुर्लभ त्या भेटीगाठी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित≈

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