हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – मोर्चा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि –  लघुकथा – मोर्चा ☆

आज फिर एक घटना घटी थी। आज फिर वह उद्वेलित हुआ था। घटना के विरोध में आयोजित होने वाले मोर्चों, चर्चाओं, प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए हमेशा की तरह वह आज भी तैयार था। कल के मोर्चा, प्रदर्शन की योजना बनी। हर प्रदर्शन में उसकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती। उसके दिये नारे मोर्चों की जान थे। रोड मैप बनाने में सुबह से शाम हो गई। वह थककर चूर हो गया।

सारी तैयारी कर बिस्तर पर लेटा। आँखों में मोर्चा ही था। बड़ी देर लगी नींद को अपनी जगह बनाने में। फिर स्वप्न में भी मोर्चा ही आ डटा। वह नारे उछालने लगा। भीड़ उसके नारे दोहराने लगी। नारों की गति बढ़ने लगी। एकाएक मानो दिव्य प्रकाश फूटा। अलौकिक दृष्टि मिली। इस दृष्टि में भीड़ के चेहरे धुंधले होने लगे। इस दृष्टि में मोर्चे के आयोजकों के पीछे खड़ी आकृतियाँ धीरे-धीरे उभरने लगीं। लाइव चर्चाओं से साधी जाने वाली रणनीति समझ में आने लगी। प्रदर्शनों के पीछे की महत्वाकांक्षाएँ पढ़ी जा सकने लगी। घटना को बाजार बनाने वाली ताकतों और घटना के कंधे पर सवार होकर ऊँची छलांग लगाने की हसरतों के चेहरे साफ-साफ दिखने लगे। इन सबकी परिणति में मृत्यु, विकलांगता, जगह खाली कराना, पुरानी रंजिशों के निबटारे और अगली घटना को जन्म दे सकने का रॉ मटेरिअल सब, स्लाइड शो की तरह चलने लगा। स्वप्न से निकलकर वह जागृति में आ पहुँचा।

सुबह उसके घर पर ताला देखकर मोर्चे के आयोजक मायूस हुए।

उधर वह चुपचाप पहुँचा पीड़ित के घर। वहाँ सन्नाटा पसरा था। नारे लगाती भीड़ की आवाज़ में एक कंधे का सहारा पाकर परिवार का बुजुर्ग फफक-फफक कर रो पड़ा।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ आत्मकथ्य – ‘गांधी के राम’ ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

☆ पुस्तक चर्चा ☆ आत्मकथ्य – ‘गांधी के राम’ ☆ श्री अरुण कुमार डनायक ☆

पुस्तक – गांधी के राम 

लेखक – श्री अरुण कुमार डनायक

प्रकाशक – ज्ञानमुद्रा पब्लिकेशन, भोपाल (मो- 8815686059)  

मूल्य – 350 रु (सजिल्द) 

पृष्ठ संख्या –  180

ISBN – 978-93-82224-21-1

(वर्तमान में आप यह पुस्तक ज्ञानमुद्रा पब्लिकेशन (मोबाइल नं 8815686059) से अथवा श्री अरुण कुमार डनायक जी  (मोबाइल नं 9406905005) से सीधे संपर्क कर प्राप्त कर सकते हैं । शीघ्र ही यह पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध होगी जिसका लिंक हम आपसे शेयर करेंगे।)

श्री अरुण कुमार डनायक

? इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए ई-अभिव्यक्ति परिवार की और से श्री अरुण कुमार डनायक जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ?

लेखक परिचय

जन्म स्थान – हटा, जिला दमोह मध्य प्रदेश जन्म तिथि 15 फरवरी 1959

पिता – स्वर्गीय श्री रेवा शंकर डनायक माता – स्वर्गीय श्रीमती कमला डनायक

शिक्षा – शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दमोह से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि एवं सीएआईआईबी

सम्प्रत्ति –  भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त सहायक महाप्रबंधक, उन्तालीस वर्षों की सेवा के दौरान  दूरदराज के ग्रामीण व आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कार्य करने का अवसर तथा बैंक की कृषि, लघु उद्योग व व्यवसाय, औद्योगिक वित्त आदि  विभिन्न गतिविधियों में ऋण आकलन व वितरण का अनुभव ।

स्टेट बैंक से सेवानिवृति उपरान्त विभिन्न सामाजिक सरोकारों में संलग्न, कुछ  सेवानिवृत्त मित्रों के साथ मिलकर मध्य प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा की पैदल खंड परिक्रमा, स्कूली विद्यार्थियों, ग्रामीणों व युवाओं के बीच  गान्धीजी  के विचारों को पहुंचाने की दिशा में पहल और ग्रामीण अंचलों में स्वच्छता, वृक्षारोपण, बालिका शिक्षा, ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण हेतु प्रयासरत श्री डनायक ने, गांधी जयन्ती के दिन 02 अक्टूबर 2019 से प्रारम्भ,  स्वप्रेरित प्रकल्प के तहत भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त साथियों व अन्य मित्रों  के सहयोग से दो दर्जन से अधिक शासकीय शालाओं  में स्मार्ट क्लास शुरू करने में सफलता पाई है । आजकल अमरकंटक में बैगा आदिवासियों के बीच सक्रिय हैं।

आत्मकथ्य

पुस्तक में मैंने गांधी जी के ईश्वर के अस्तित्व संबंधी विचारों को लिपिबद्ध करने की शुरुआत राम के प्रति उनकी भक्ति को प्रदर्शित करती हुई नवजीवन में प्रकाशित एक लेख से की है। यह लेख उन्होंने 1924 में एक वैष्णव भाई को, इस उलाहने का जवाब देने के लिए लिखा था कि वे राम आदि अवतारों के लिए एकवचनी प्रयोग क्यों करते हैं? लेखन आगे बढ़ता है और हम पाते हैं कि रामनाम पर गांधी जी की अटूट श्रद्धा इतनी जबरदस्त थी कि वे अपने बीमार पुत्र मणिलाल का इलाज प्राकृतिक जल चिकित्सा से करते हुए भी राम के आसरे रहते हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के प्रेरणास्रोत  तो जन-जन के नायक, निर्बल के बल राम हैं, जिनकी भक्ति में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस जैसे अमर महाकाव्य की रचना कर रामचरित्र को विश्वव्यापी बना दिया,  हमारी विरासत की अनमोल धरोहर बना दिया। चाहे गोखले जी की सलाह पर भारत भ्रमण हो, हरिजन कल्याण के लिए देश व्यापी दौरा हो, नमक कानून के विरोध में दांडी मार्च हो सबकुछ राम के वन गमन से मेल खाता दिखता है।अपने हर कदम की अग्रिम सूचना अंग्रेजों को देने वाले गांधी जी यहां  हनुमान और अंगद जैसे रामदूतों से प्रेरित दिखते हैं, जो रावण को न केवल चेतावनी देते हैं वरन राम से संधि न करने के दुष्परिणाम भी बताते हैं । ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले गांधी जी नास्तिकों की शंकाओं का भी समाधान करते हैं और विभिन्न धर्मों  के प्रति अपने विचारों को भी बिना किसी भय के प्रस्तुत करते हैं। गांधी जी का सर्वधर्म समभाव के प्रति समर्पण उन्हें हिंदू धर्म से विमुख नहीं करता वरन यह भावना उन्हें श्रेष्ठ हिंदू बनाने में मदद करती है। वे सनातनी हिन्दू क्यों हैं? इसे भी वे बड़ी स्पष्टता के साथ स्वीकार करते हैं। एकादश व्रत तो उनके आध्यात्मिक जीवन की कुंजी है।

माँ सरस्वती जी की अनुकम्पा से कल 16 फ़रवरी 2021 वसंतोत्सव पर्व पर ही ‘गांधी के राम’ के प्रकाशक श्री वरुण माहेश्वरी और श्री प्रयास जोशी हमारे निवास पुस्तक की पांच प्रतियां लेकर आए। इस प्रसन्नता को आप सभी मित्रों एवं ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 34 ☆ सबको गले लगाऊं ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सबको गले लगाऊं। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 34  ☆

☆ सबको गले लगाऊं ☆

अपनों के साथ उनकी जीत का जश्न मनाऊँ,

अपनों से जो मिला प्यार उसे कर्ज समझूं ,

जो अपनों के लिए किया उसे क्या अपना फ़र्ज़ समझूं ||

जिंदगी तो रुआँसी हो जाती है हर कभी,

दुख दर्द और बेरुखी जो अपनों से मिली,

उसकी शिकायत यहां किसको दर्ज कराऊँ ||

भले ही अपनों से खुशियां मिली हो,

मगर परायों से कोई कम धोखे नहीं खाये,

जब धोखे ही खाने हैं तो क्यों ना अपनों से ही धोखा खाऊं ||

जीवन को शतरंज की बाजी समझूं ,

यहाँ जब बाजी अपनों के साथ ही खेलनी है,

तो हारकर भी क्यों ना अपनों के साथ उनकी जीत का जश्न मनाऊं ||

अगर ऐसा ही है जिंदगी तो तेरी बातों में क्यों आऊं,

लाख अपने नाराज होकर पराये हो जाये,

उनकी बेरुखी को नजरअंदाज कर उनको गले लगाऊं ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -6 – नंदा देवी – अलमोड़ा ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है  “कुमायूं -6 – नंदा देवी – अलमोड़ा”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -6 – नंदा देवी – अलमोड़ा  ☆

अल्मोड़ा नगर उत्तराखंड  राज्य के कुमाऊं मंडल  में स्थित है। यह समुद्रतल से 1646 मीटर की ऊँचाई पर लगभग  12 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह नगर घोड़े की काठी के आकार की पहाड़ी की चोटी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। कोशी  तथा सुयाल नदियां नगर के नीचे से होकर बहती हैं।

अल्मोड़ा  की चोटी के पूर्वी भाग को तेलीफट, और पश्चिमी भाग को सेलीफट के नाम से जाना जाता है। चोटी के शीर्ष पर, जहां ये दोनों, तेलीफट और सेलीफट, जुड़ जाते हैं, अल्मोड़ा बाजार स्थित है। यह बाजार बहुत पुराना है और सुन्दर कटे पत्थरों से बनाया गया है। इसी नगर के बीचोंबीच उत्तराखंड राज्य के पवित्र स्थलों में से एक “नंदा देवी मंदिर” स्थित है जिसका विशेष धार्मिक महत्व है। इस मंदिर में “देवी दुर्गा” का अवतार विराजमान है । समुन्द्रतल से 7816 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर चंद वंश की “ईष्ट देवी” माँ नंदा देवी को समर्पित है । माँ दुर्गा का अवतार, नंदा देवी भगवान शंकर की पत्नी है और पर्वतीय आँचल की मुख्य देवी के रूप में पूजनीय हैं । दक्षप्रजापति की पुत्री होने की मान्यता के कारण कुमाउनी और गढ़वाली उन्हें पर्वतांचल की पुत्री मानते है ।

नंदा देवी मंदिर के पीछे कई ऐतिहासिक कथाएं हैं  और इस स्थान में नंदा देवी को प्रतिष्ठित  करने का श्रेय चंद शासको का है। सन 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से माँ नंदा देवी की सोने की मूर्ति लाये और उस मूर्ति को मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्टर परिसर, अल्मोड़ा) में स्थापित कर दिया , तब से चंद शासको ने माँ नंदा को कुल देवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया । इसके बाद बधाणकोट विजय करने के बाद राजा जगत चंद  ने माँ नंदा की वर्तमान प्रतिमा को मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित करा दिया । सन 1690 में तत्कालीन राजा उघोत चंद ने पार्वतीश्वर और चंद्रेश्वर नामक “दो शिव मंदिर” मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए । सन 1815 को मल्ला महल में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को कमिश्नर ट्रेल ने चंद्रेश्वर मंदिर में प्रतिष्ठित करा दिया ।

अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है। पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं । नंदादेवी भाद्रपद के कृष्णपक्ष में जब अपनी माता से मिलने पधारती हैं तो इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है और  राज राजेश्वरी नंदा देवी की यात्रा  को राजजात या नन्दाजात कहा जाता है । आठ दिन चलने वाली इस  “देवयात्रा” का समापन  अष्टमी के दिन मायके से विदा कराकर  किया जाता है । राजजात या नन्दाजात यात्रा के लिए देवी नंदा को दुल्हन के रूप में सजाकर  डोली में बिठाकर एवम् वस्त्र ,आभूषण, खाद्यान्न, कलेवा, दूज, दहेज़ आदि उपहार देकर अपने मायके से पारंपरिक रूप में विदाई देकर  ससुराल भेजते हैं । नंदा देवी राज जात यात्रा हर बारह साल के अंतराल में एक बार आयोजित की जाती है ।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५३॥ ☆

हित्वा हालाम अभिमतरसां रेवतीलोचनाङ्कां

बन्धुप्रीत्या समरविमुखो लाङ्गली याः सिषेवे

कृत्वा तासाम अधिगमम अपां सौम्य सारस्वतीनाम

अन्तः शुद्धस त्वम अपि भविता वर्णमात्रेण कृष्णः॥१.५३॥

 

गृहयुद्ध रत बन्धुजन प्रेम हित हो

विमुख युद्ध से त्याग मादक सुरा को

जिसे रेवती की मदिर दृष्टि ने

प्रेमरस घोलकर और मादक किया हो

बलराम ने जिस नदी नीर का सौभ्य

सेवन किया औ” लिया था सहारा

उसी सरस्वती का मधुर नीर पी

श्याम रंगतन ! हृदय शुद्ध होगा तुम्हारा

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 86 – मदिरा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा सोनवणे जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 86 ☆

☆ मदिरा?☆

(हरिभगिनी मात्रा वृत्त ८+८+८+६)

मदिरेचा भरला प्याला या रंभेची मदहोश अदा

जरा बहकता या वाटेवर कायम ती देईल सदा

 

मधुशाळेची वाट दाखवी तो सांगाती हा बहुदा

फिरून यावे त्या वाटेने, एखादा भेटेल खुदा

 

खैय्यामाची मस्त रुबाई जिची जगाला चढे नशा

सुरई मधल्या सर्व कहाण्या सदासर्वदा  धुंद कशा?

 

या मदिरेचा ध्यास ज्यास तो रंक असो वा धनी कुणी

इथे रंगला, त्यास नको ते तख्त ताज वा शिरोमणी

 

रंग हजारो, या मदिरेचे  एक साजिरा सा  निवडा

स्वच्छच राहो तुमची प्रतिमा, कुठलाही जावो न तडा

 

मद्याचे गुणगान असे का? सवाल तुमचा असे खरा

गुलाम अलिच्या गजलेमध्ये अंगूरीचा कैफ पुरा

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ बाजी जीवाची… ☆ श्री बिपीन कुलकर्णी

 ☆ कवितेचा उत्सव ☆ बाजी जीवाची… ☆ श्री बिपीन कुलकर्णी ☆ 

दीन दीन ऐकून आरोळी

दाट अंधाऱ्या गडद राती |

सुन्न जाहली शिव छावणी…

आवस अवतरली चेहऱ्यावरती ||

 

चिंता रायांची बाजीला पडली,

कसा वाचवू रयतेचा वाली |

घालमेल उडाली त्या देहाची …

क्षणात नजरेत ठिणगी लकाकली ||

 

सत्य वचन जणू मुखी हुंकारले,

विजेसम अल्लद रंध्री भडकले |

अवघ्या देहात व्यापून राहिले …

सूर्यतेजा सम धरणी अवतरले ||

 

निश्चयी नेत्र भिडले शिव नेत्राला,

संकेत समजले केवळ एकमेकांना |

शिवराय उमगले  तो इशारा …

जणू हुकूम  त्या रणमर्दाचा ||

 

पाठीवर साक्षात मृत्युचा घाला

वीस कोसावरचा गड विशाळ दिसला |

आज्ञा मानुनी बाजी आलिंगिला …

जड अंतःकरणे राजा निघाला ||

 

यवनी वेढा पडता  खिंडीला,

उभ्या देही नृसिंह अवतरला |

दोनशे हातांचा चुडा फुटला …

पाहुनी बाजी बेभान झाला ||

 

रक्तरंजित त्या समशेर हातात,

नजरेतून जणू ओसंडता जाळ |

यवन टाकती अचूक फास

वर्मी बैसला लोहाचा फाळ ||

 

धिप्पाड देह कोसळला धरणी,

जणू मदमस्त गज पडती  |

काळ बिलगला  त्या देहासी…

थक्क झाला पाहुनी स्वामी-भक्ती ||

 

राजा सुखरूप विशाळ गडी,

खबर पोचली त्या नरवीरासी |

प्रसन्न हसूनी निश्चिन्त होई …

रक्तवर्णी मुजरा शिव चरणासी ||

 

लज्जित होउनी यवन माघारी,

देहावर भगवा कवटाळूनी |

रक्त-पुष्पे खिंडीत पसरुनि…

बाजी निघाला खिंड पावन करुनी ||

 

© श्री बिपीन कुळकर्णी

मो नं. 9820074205

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विशाल खंत ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

☆ कवितेचा उत्सव ☆ विशाल खंत ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर ☆ 

(नेहमीपेक्षा “वसंत हा ऋतु” वेगळ्या पध्दतीने मांडला आहे. एका कैदीच्या नजरेतून हा वसंत कसा आणि का वेगळा वाटतो हे या कवितेतून तो व्यक्त करताना जाणवतो.)

 

गजाआड असताना

तुझा जन्म झाला रे

येई चैतन्याचा वारा

हितगुज करण्या रे,१

कोवळा तुझा ऋतू

जैलमध्ये डोकवायचा

कैदी मी असल्याचा

तेव्हा विसर पडायचा, २

 

लतिकेची पालवी

अप्रुप वाटे लोचनांना

रोजचे पक्षीकूजन

मधूर वाटे कर्णांना,३

 

तुझ्यासम सोशीक

कोणी कसं असावे

तळत्या उन्हांतही

धुंदीत बहरावे,४

हो आपल्यातला

संवाद लागला झुलू

जन्मठेपेची शिक्षा

कसं,केव्हां रे बोलू?,५

तुझ्यासारखे नाही

माझे निसर्गाशी नातं

पुन्हा माझा जन्म नाही

हीच विशाल खंत ,६

अढळ मोहोरचा अंत

येतो जेव्हा जवळ

वसंता तू रे रडतो

तेव्हा कुणाजवळ ,७

© सुश्री स्वप्ना अमृतकर

पुणे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ गंमत ब्लड डोनेशनची – भाग – 3 ☆ सौ.अंजली दिलिप गोखले

सौ.अंजली दिलिप गोखले

☆ जीवनरंग ☆  गंमत ब्लड डोनेशनची – भाग – 3 ☆ सौ.अंजली दिलिप गोखले ☆

तेव्हड्यात डॉक्टर चेकिंगला आले. तोपर्यंत सरही आले होते. मित्र म्हणाला, ‘डॉक्टर, आमचा मित्र ठीक तर झालाय. पण असे का करतोय बघा जरा. चांगले तपासा’. तपासा म्हंटल्या बरोबर त्याने आपले दोन्ही हात क्रॉस करून खांद्यापाशी धरले. ‘नको, नको. डॉक्टर मी बरा आहे. काही झालं नाही मला. फक्त आता घरी जाऊ दे माझ्या मैत्रिणी बरोबर, याच्या बरोबर नको.’

सर सुद्धा आश्चर्याने पहात राहिले. सगळी ट्रीप याने ठरवली. आता हा असे का बोलतोय त्यानाही समजेना. तेही डॉक्टरना म्हणाले,”डॉक्टर, प्लिज बघा बर जरा, हा असे का बोलतोय. अहो, आमच्या कॉलेजचा जी.एस. आहे हा. ऑल राउंडर. सगळी कामे धडाडीने करणारा. मैत्रिणी आहेत त्याला. पण त्यांच्या बरोबर घरी जाणं असलं काही नाही आवडणार त्याला.

डॉक्टरही संभ्रमात पडले.अशा कारणासाठी तपासायचे तरी कसे? याची पर्सनॅलिटी का बरे अशी चेंज झाली आहे? आपण याला ब्लेड दिले ते लेडीज कॉलेजच्या कॅम्पसमधून कलेक्ट केलेले आहे. त्याचा हा परिणाम तरी नाही? त्यांना मनोमन हसू आले. पण ते हसू चेहऱ्यावर उमटू न देता सरांना म्हणाले, “पेशंट आत्ता ओके दिसत असला, तरी त्याला अजुन ब्लड द्यायला लागणार आहे. याचे दोन तीन मित्र थांबू देत इथे. आज रात्री आणि उद्या सकाळी येऊन दुपारी डिस्चार्ज देतो. बाकी तुम्ही सगळे गेलात तरी चालेल. त्याच्या बरोबर मी मेडिकल सर्टिफिकेट देतो. काळजी करू नका.”

अन दुसऱ्या दिवशी दुपारपर्यंत त्याच्या मित्रांचे मॅच होणार ब्लड डॉक्टरांनी पेशंटला दिलं. पेशंट एकदम नॉर्मल झाला. जाताना डॉक्टरांना शेक हॅन्ड केले.आणि मित्रांच्या खांद्यावर हात टाकून डौलात पायऱ्या उचलून गेला.

डॉक्टर अजूनही आपल्या विचारावर, आपण केलेल्या निदानावर आणि पुन्हा दिलेल्या ब्लड ट्रीटमेंट वर विचार करत बसलेत. या ब्लड डोनेशन च्या गमतीचा तेढा अजूनही त्यांना सुटला नाही.

कथा संपूर्ण

© सौ.अंजली दिलिप गोखले

मो  8482939011

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ आमची‌ अंदमान सफर… भाग-2 ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

 ☆ विविधा ☆ आमची‌ अंदमान सफर… भाग-2 ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆ 

 अंदमानची उर्वरित सफर…

हॅवलॉक आयलंड..

पोर्ट ब्लेअर च्या सावरकरांच्या वास्तव्याने पुनीत झालेल्या सेलर जेलच्या दर्शनाने भारावून गेलो होतो. पण आता निसर्गाच्या सानिध्यात समुद्रावर फिरून काही दिवस तोही अनुभव घ्यायचा होता. पोर्ट ब्लेअरच्या आसपास समुद्रात बरीच बेटे आहेत. त्यापैकी हॅवलॉक आयलंड  या ठिकाणी आम्ही जाणार होतो. एक दिवस माउंट हॅरियट येथे जाऊन आसपासचा अप्रतिम सुंदर निसर्ग पाहिला. गन पॉईंटवर फोटो काढले. ‘सागरिका’ म्युझियम पाहिले आणि हॅवलॉक आयलँड ला जाण्यासाठी तयार झालो.

हाय लॉक आयलँड ला जाण्यासाठी प्रथम समुद्रातून बोटीने साधारणपणे दीड तास प्रवास केला व पुढे कारने काही अंतर जाऊन ब्ल्यू रिझाॅर्ट या ठिकाणी पोहोचलो. इथून अगदी जवळ होता. त्यामुळे संध्याकाळी साधारणपणे एक किलोमीटर अंतरावर असणाऱ्या बीचवर आम्ही चालत गेलो. सेल्युलर जेल पाहून आलेला गंभीरपणा नकळत जाऊन  निसर्गाच्या या रम्य रूपात रमून गेलो. समुद्रकिनाऱ्यावर बरीच गर्दी होती. पाण्यात खूप वेळ खेळायला मिळाले. सूर्यास्त होत आल्यावर  दिसणारे सागराचे घनगंभीर रूप डोळ्यात साठवले गेले. सूर्यास्त लवकर म्हणजे साडेपाच वाजता  सूर्यास्त झाला की बीच बंद होत असल्याने पोलीस गाडी घेऊन सर्वांना बाहेर काढले जाते! आम्ही येताना गोड पाणी आणि खोबरे खाऊन रेसोर्ट वर आलो. त्या दिवशीचा मुक्काम तिथेच होता. सकाळी  लवकर उठून पुन्हा एकदा समुद्राला भेटायला जाऊन आलो. सकाळी नाश्ता करून एलिफंटा बीचवर जाण्यासाठी प्रथम कारने आणि पुढे छोट्या बोटी ने एक दीड तास प्रवास करायचा होता. समुद्राचे रूप कितीदा आणि कितीही पाहिले तरी मनोहारी वाटते. इथे तर पाण्याचा रंगही बदलताना दिसत होता. कुठे पाचू सारखा हिरवा रंग तर कुठे निळा, ग्रे कलर दिसत होता.

क्रमशः…

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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