अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (68) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता 

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18

( श्रीगीताजी का माहात्म्य )

य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति ।

भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः ॥

 

जो मुझमें अनुरक्त जन , को देगा यह ज्ञान

वह पा मेरी भक्ति, आ मिलेगा मुझे निदान ।।68।।

भावार्थ :  जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा- इसमें कोई संदेह नहीं है॥68॥

He who with supreme devotion to Me will teach this supreme secret to My devotees, shall doubtless come to Me.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’  

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

vivek1959@yahoo.co.in मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 60 ☆ शून्य ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “शून्य”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 60 ☆

☆ शून्य ☆

मैं शून्य हूँ-

हाँ, शून्य ही तो हूँ मैं!

 

न मेरा कोई रूप,

न ही मेरा कोई स्वरूप,

न मैं अधूरा,

न ही मैं पूरा,

न सोच के दायरे में बंधा हुआ,

न पानी में काई सा रुका हुआ,

न किसी सहर का इंतज़ार,

न कोई साहिल, न कहीं मझदार,

न मेरा सीना दरख़्त सा बड़ा,

न मैं किसी तमन्ना की आस में खड़ा,

न ख्वाहिशों के घेरे में क़ैद,

न चौकन्ना, न मुस्तैद…

 

आखिर मुझे कोई डर नहीं-

मैं तो शून्य हूँ,

मेरी कोई आरज़ू ही नहीं!

 

अब तो पसंद हो चला है मुझे

मुझे मेरा यूँ ही शून्य रहना,

न कुछ सुनना, न कुछ कहना;

पानी की एक बूंद सा

गिरकर आसमान से

कहीं भी बह लेता हूँ,

जो मुझे प्यार से बुलाता

उसी का हो लेता हूँ….

 

मैं शून्य हूँ!

 

कभी-कभी

कितना अच्छा होता है

शून्य हो जाना

और खो जाना

बहती सी हवाओं में…

तुम भी कभी

शून्य होकर देखो!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ ग्लानि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ ग्लानि  ☆

अखंड रचते हैं,

कहकर परिचय

कराया जाता है,

कुछ हाइकू भर

उतरे काग़ज़ पर

भीतर घुमड़ते

अनंत सर्गों के

अखंड महाकाव्य

कब लिख पाया,

सोचकर संकोच

से गड़ जाता है!

©  संजय भारद्वाज 

सुबह 9.24, 20.11.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ नोबेल पुरूस्कार मिला जीन एडिटिंग की कैंची पर, दो महिला वैज्ञानिकों का कारनामा। ☆ श्री अजीत सिंह

श्री अजीत सिंह जी

(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते हैं।  इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है एक नवीनतम जानकारी से परिपूर्ण आलेख  ‘नोबेल पुरूस्कार मिला जीन एडिटिंग की कैंची पर,  दो महिला वैज्ञानिकों का कारनामा ।  हम आपसे उनकी अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय समय पर साझा करते रहेंगे।)

☆ आलेख ☆ नोबेल पुरूस्कार मिला जीन एडिटिंग की कैंची पर,  दो महिला वैज्ञानिकों का कारनामा ☆ 

जीवन की आधारभूत इकाई को जीन कहा जाता है और इसे समझने व उपयोग में लाने के विज्ञान को जेनेटिक इंजीनियरिंग का नाम दिया जाता है। यह विज्ञान अब कपास जैसी जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों और लुलू-नाना की कहानी से इतना आगे बढ़ गया है कि  जीनोम एडिटिंग का एक नया, सरल और सस्ता उपाय ढूंढने के लिए दो महिला वैज्ञानिकों को इस वर्ष का केमिस्ट्री का नोबेल पुरुस्कार दिया गया है।

(सुश्री एमानुएल चरपैंटर और सुश्री जेनिफर डूडना)

एमानुएल चरपैंटर और जेनिफर डूडना की खोज को जीनोम की कांट छांट करने की ऐसी कैंची का नाम दिया गया है जो जीवन के किसी भी स्वरूप का एक नया कोड बना सकती है। इस कैंची का नाम क्रिस्पर कैस9 रखा गया है जिसकी मदद से वैज्ञानिक पशुओं, पौधों व सूक्ष्म जीवाणुओं का डीएनए बदल सकते हैं।

(हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो डॉ सुनीता जैन)

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ सुनीता जैन कहती हैं कि जीनोम एडिटिंग का सरल और सस्ता तरीका उपलब्ध होने से एड्स, कैंसर, मलेरिया, देंगी और चिकनगुनिया जैसी असाध्य बीमारियों के इलाज की संभावना बन चली है।

जीन एडिटिंग के सहारे वैज्ञानिक  वुली मैमथ और डायनासोर जैसे लुप्त जानवरों के जीवाश्मों से पुन: इन जीवों को ज़िंदा कर सकने की संभावना को देख रहे हैं। पशुओं और पौधों की बीमारियां उनके बीमार जीन निकाल कर दूर की जा सकेंगी।

मच्छर के जीन बदल कर उनकी अगली पीढ़ी को मलेरिया फैलाने के अयोग्य बना दिया जाएगा।

फसलों की पैदावार भी बढ़ाई जा सकेगी। पर क्या जीन एडिटिंग के प्रयोग मनुष्यों पर भी किए जाएंगे और उन्हे बेहतर या दुष्कर बनाया जा सकेगा?

इसका सभी सरकारें व वैज्ञानिक विरोध कर रहे हैं। इसी संदर्भ में लूलू और नाना की कहानी उभरती है। चीन के एक वैज्ञानिक ही जियानकुई ने  एड्स की बीमारी से ग्रस्त एक व्यक्ति और उसकी सामान्य पत्नी के सीमन व अंडे से तैयार भ्रूण की जीनोम एडिटिंग कर एड्स बीमारी के जीन निष्क्रिय कर दिए और भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थापित कर दिया। उसने दो स्वस्थ बेटियों को जन्म दिया जो एड्स मुक्त थीं। इन्हीं बच्चियों को लूलू और नाना के नाम से पुकारा जाता है। वैज्ञानिक ही जियानकुई ने जब अपनी इस उपलब्धि की घोषणा की तो हर तरफ से घोर विरोध हुआ। चीन की सरकार ने वैज्ञानिक ही जियानकुई पर मुकद्दमा चलाया  और उन्हे तीन साल की कैद की सज़ा सुनाई  गई

पर इस तकनीक के दुरुपयोग की संभावनाएं भी हैं। क्या इसके सहारे डिजाइनर बेबी तैयार किए जाएंगे? क्या मनुष्यों की अपार शक्ति बढ़ा कर उन्हे लड़ाई में उपयोग लाया जाएगा? क्या कुछ मानव प्रजातियों को समाप्त कर सभी को एक समान बनाया जाएगा? जैविक इंजीनियरिंग के उपयोग से कुछ जन्मजात बीमारियां जैसे अंधापन, थैलेसीमिया, सिक्कल सैल अनेमिया, सिस्टीक फाइब्रोसिस  का इलाज ढूंढने की कोशिश की जा रही है। दुनिया में हर चालीस हजार बच्चों में से एक बच्चा जन्मजात अंधा होता है।

पर जीन एडिटिंग का उपयोग जैविक युद्ध करने के लिए भी किया जा सकता है। और सबसे ख़तरनाक होगा डिजाइनर बेबी तैयार करना। फिलहाल सभी वैज्ञानिक और सरकारें इसके खिलाफ हैं, पर टेक्नोलॉजी सुलभ होने पर इसके दुरुपयोग को रोकना हमेशा के लिए शायद संभव न हो। यह मानवता के सामने एक नैतिक प्रश्न रहेगा।

©  श्री अजीत सिंह

पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन

संपर्क: 9466647037

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Hypocrisy… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem “पाखंड”.  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

संजय दृष्टि  पाखंड

मुखौटों की

भीड़ से घिरा हूँ,

किसी चेहरे तक

पहुँचूँगा या नहीं

प्रश्न बन खड़ा हूँ,

मित्रता के मुखौटे में

शत्रुता छिपाए,

नेह के आवरण में

विद्वेष से झल्लाए,

शब्दों के अमृत में

गरल की मात्रा दबाए,

आत्मीयता के छद्म में

ईर्ष्या से बौखलाए,

मनुष्य मुखौटे क्यों जड़ता है,

भीतर-बाहर अंतर क्यों रखता है?

मुखौटे रचने-जड़ने में

जितना समय बिताता है

जीने के उतने ही पल

आदमी व्यर्थ गंवाता है,

श्वासोच्छवास में कलुष ने

अस्तित्व को कसैला कर रखा है,

गंगाजल-सा जीवन जियो मित्रो,

पाखंड में क्या रखा है..?

 

©  संजय भारद्वाज 

रात्रि 11.52 बजे,15.10.19

☆ Hypocrisy ☆

Surrounded by the

crowd of masks

I’m perplexingly

standing as a question,

Will I ever reach or not

the real face…

Under the mask of friendship,

hiding the impious enmity…

Under the garb of cordiality

soaring with rancour,

Under  the elixir of words

hiding the vicious poison,

Why does mankind,

fueled by jealousy,

dons the masks?

Keeps the split personalities…

The time he spends in

creating and wearing masks,

That many moments of life

he loses in vain,

Wickedness in every breath

pollutes the very existence…

Friends! Keep the life

pure as Ganges water,

What is there in the hypocrisy…?

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ My Mother’s hands ☆ Ms. Sulakshana Misra

Ms. Sulakshana Misra

☆ Poetry – My Mother’s hands ☆

I held her hands

As I learnt to walk.

She had magic in her hands

Which she would always

Transfer to my plate.

I grew up seeing her

Working round the clock.

She was always on her feet

And she tirelessly ensured

That the ends meet.

But, as her age advanced

She had wrinkled skin

All over her face, palm and feet.

Now she holds my hands

And struggles to stand.

She sees the world all over again

Through her diminishing eyesight in vain.

Once, while holding her hands

I felt happy and safe.

Now when she holds my hands

She feels the same.

Though life has come a full circle

But my mother’s hands are

Always raised for me to be blessed.

 

© Sulakshana Misra

Contact – 5/241, Viram Khand, Gomtinagar, Lucknow-226010

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शांति शांति ☆ सुश्री अंजली श्रीवास्तव

सुश्री अंजली श्रीवास्तव

☆ कविता ☆ शांति शांति ☆ सुश्री अंजली श्रीवास्तव☆

बहुत हुआ रक्तपात अब ,वसुंधरा पुकारे शांति शांति,

हाहाकार मचा चतुर्दिक, अब हृदय पुकारे शांति शांति!

 

धुएँ में घुटता वायुमंडल, अब गगन पुकारे शांति शांति,

जीव जंतु कर रहे त्राहि त्राहि,वनस्पतियाँ पुकारें शांति शांति!

 

इस विनाश में कहाँ संभव है, मानव का कल्याण कभी,

अब तो युद्ध समाप्त करो, मानवता पुकारे शांति शांति!

 

© सुश्री अंजली श्रीवास्तव

26/11/2020

संपर्क – सी-767सेक्टर-सी, महानगर, लखनऊ – 226006

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 74 ☆ अंधाराचे चित्र ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 74 ☆  अंधाराचे चित्र

अंधाराचे चित्र काढणे अवघड नाही

रंग एकला दुजा कुणाची लुडबुड नाही

 

मिसळुन गेले काळ्या रंगा तुझ्यात पाणी

ओठी त्याच्या फक्त तुझी रे दंगल गाणी

झुळझुळ टपटप अशी करत ते बडबड नाही

अंधाराचे चित्र काढणे अवघड नाही

 

केस रेशमी छान ब्रशाचे आहे काळे

काळ्या रंगा तुझेच त्यावर आहे जाळे

शांत पहुडला कोरा कागद फडफड नाही

अंधाराचे चित्र काढणे अवघड नाही

 

सूर्यावरती मात करोनी जमले ढग हे

शेतावरती तुटून पडले काळे ठग हे

कुणास येथे ऐकू आली गडगड नाही

अंधाराचे चित्र काढणे अवघड नाही

 

प्रवास आहे अखेरचा हा अंधारातुन

मार्ग शोधने अवघड नसते बिलकुल त्यातुन

ओझे नाही खांद्यावरती कावड नाही

अंधाराचे चित्र काढणे अवघड नाही

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

ashokbhambure123@gmail.com

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भावसंभ्रम ☆ श्रीशैल चौगुले

☆ कवितेचा उत्सव ☆ भावसंभ्रम ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

पाण्यात छटा कुणाच्या

लयींचे कि रेत खुणांचे  ?

डोळ्यात रंग कुणाचे

तैलचित्र कि माझ्या मनाचे !

हृदयात भाव भक्तिचे

कृष्ण कि जन्म आसक्तीचे ?

ओठांवर नाव सखयाचे

राधीका कि मिरा प्रीतीचे !

गाण्यात स्वर शब्दांचे

कोकिळ कि धून बासरीचे ?

आसवात मधूर मूग्धाली

दुःख कि विरह आनंदाचे.

 

© श्रीशैल चौगुले

९६७३०१२०९०

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ अजि म्या भूत पाहिले (भाग दुसरा) ☆ सौ. दीपा नारायण पुजारी

सौ. दीपा नारायण पुजारी

☆ जीवनरंग ☆ अजि म्या भूत पाहिले (भाग दुसरा) ☆ सौ. दीपा नारायण पुजारी

परवाच तर heart attack ने अचानक गेल्या पंचावन्न च्या आसपासच्या बकूमावशी आख्ख्या कॉलनीत ख्यातनाम होत्या. बडबड्या, विनोद करून सगळ्यांना हसवणार्‍या, कुणाच्याही मदतीला तत्पर!सगळी कॉलनी हळहळली. मलाही दोन दिवस झोप नाही लागली.

म्ह.. म्ह.. म्हण… म्हणजे… म्हणजे …. माझी दातखिळी बसली. पाय लटपटू लागले.

मी धाडकन खाली कोसळले… जाग आली तेंव्हा माझे डोके बकूमावशींच्या मांडीवर होते. ताडकन ऊडी मारुन ऊठले. मोठ्याने ओरडणार एव्हढ्यात त्यांनी मला ओठावर बोट ठेऊन गप्प राहण्याची खूण केली! आणी कॉफीचा कप पुढ केला! काही कळण्याआधी मी कॉफी पिऊन टाकली. ‘वा! काय पर्फेक्ट जमलीय!’ त्याही स्थितीत माझ्या मनात विचार आला. ‘जमलीय ना?दे टाळी!’ बकूमावशींचा हात पुढं आला. मा..झा..हा.. त आखडला. गरमागरम कॉफी पिऊन सुध्दा गारे sगा ss र .

मावशी म्हणाल्या,  “होय, बरोबर आहे तुझा अंदाज. मी अजून भूतच आहे बकूचं.” ?

“खूप भूक लागली म्हणून आले. पिठलं झकास होत हं!”

माझा चेहरा भितीनं अजूनही पांढरा फटक__

“काय करणार?  स्वर्गात जागाच नाही. यमराजाने पावती तर फाडली पण स्वर्गाचे दार बंदच !.. एकदम हाऊसफुल्ल !! वेटिंग वर आहे!!! मेल्या त्या कोरोना मुळे नुसती गर्दी च गर्दी !!!! तिथेही सगळे मास्क घातलेले लोक रांगेत ऊभे. ब्रम्हदेवही घाबरून PPE kit घालून बसलेत.”ही… ही… ही .. ??

“आणी अगो तो अश्विनी देव तो दारातच  थांबलाय किट घालून. या कोरोन्याने देवालापण घाबरवलं बघ. “पुन्हा ही . .ही. . ही. . ही. .

“तुल सांगते स्वर्गाच्या दारातच digital gun ने temp. चेक करून ‘PO2 बघून च आत घेतायत.”

“मला काही प्रॉब्लेम नाही ग. वेटिंग लिस्ट मोठी आहे म्हणून खाली पाठवल त्या यम्यानं.पाठवतो म्हणाला रेडा नंबर आलाकी.”

माझ्या पोटात कोपर ढोसून म्हणतात कशा — “मी ही माझी ‘बकेट लिस्ट’ पुरती करुन घेईन .”?  बापरे मी अजूनही श्वासहीन!?संध्याकाळी  बागेत पाणी  घालत होतीस ना  sss तेंव्हाच हळूच आत आले.चहा काय फक्कड होता म्हणून सांगू. पूर्ण दोन दिवस ऊपाशी होते ग.”

“अस्सं! म्हणजे वासूचा चहा तुम्ही  प्यायलात तर?” मी आवंढा  गिळत म्हंटलं.

असं म्हणताना मी हळूच त्यांची पावलं ऊलटी आहेत का हे चोरून बघत होते. त्या अगदी नेहमीसारख्या नीटनेटक्या दिसत होत्या.केसात मोगऱ्याचा गजरा सुध्दा होता. मावशींनी माझी नजर हेरली होती. पटकन साडी वर करून त्यांनी पावलं दाखवली. ती नॉर्मल होती.माझ्या खांद्यावर हात ठेऊन मावशी म्हणाल्या, “त्या सगळ्या ‘भूतश्रध्दा’ असतात गं. आम्ही माणसां सारखेच दिसतो. हां पण सगळीच माणसं नशीबवान नसतात!!”

 क्रमश: ….

© सौ. दीपा नारायण पुजारी

फोन.नं:    ९६६५६६९१४८

Email:  deepapujari@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

Please share your Post !

Shares