आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।

मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌।।7।।

 

इससे मुझको याद कर हर दम लड़ संग्राम

ऐसी मन औ” बुद्धि रख निश्चित आठों याम।।7।।

 

भावार्थ :  इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा।।7।।

 

Therefore, at all times remember me only and fight. With mind and intellect fixed (or absorbed) in me, thou shalt doubtless come to me alone.।।7।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – आउट ऑफ बॉक्स ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  आउट ऑफ बॉक्स

 

माप-जोखकर खींचता रहा

मानक रेखाएँ जीवन भर

पर बात नहीं बनी..,

निजी और सार्वजनिक

दोनों में पहचान नहीं मिली,

आक्रोश में उकेर दी

आड़ी-तिरछी, बेसिर-पैर की

निरुद्देश्य  रेखाएँ

यहाँ-वहाँ अकारण,

बिना प्रयोजन..,

चमत्कार हो गया!

मेरा जय-जयकार हो गया!

आलोचक चकित थे-

आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग का

ऐसा शिल्प आज तक

देखने को नहीं मिला,

मैं भ्रमित था,

रेखाएँ, फ्रेम, बॉक्स,

आउट ऑफ बॉक्स,

मैंने यह सब

कब सोचा था भला?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सुबह 10.45 बजे,27.11.19

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 23 – राजनीति ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक कविता  “राजनीति। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 23 ☆

 

☆ कविता – राजनीति  

 

राजनीतिज्ञ

हाथ देखकर

भूत भविष्य

और वर्तमान

बता सकता है।

राजनीतिज्ञ

ऐसे हाथ

उठा देता है

और

कई बार हाथ

देखने के पहले

काट भी देता है।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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हिन्दी साहित्य – नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 6 ☆ विचार ☆ – श्री प्रयास जोशी

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आदरणीय श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। 

ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे ।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने यात्रा संस्मरण श्री सुरेश पटवा जी की कलम से आप तक पहुंचाई एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक सतत पहुंचा रहे हैं।  हमें प्रसन्नता है कि  श्री प्रयास जोशी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार कर यात्रा  से जुडी अपनी कवितायेँ  हमें,  हमारे  प्रबुद्ध पाठकों  से साझा करने का अवसर दिया है। इस कड़ी में प्रस्तुत है उनकी कविता  “विचार ”। 

☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 6 – विचार  ☆

 

तुम्हारे साथ

तुम्हारे

लेखक की

दो बड़ी

दिक्कत हैं

 

एक तो यह

कि तुम्हारा

लेखक

किसी को

स्वर्ग का

रास्ता

नहीं  बताता

और दूसरा

यह कि

दूसरों की तरह

यह

अमर भी

नहीं

होना चाहिता

 

ऐसा किसलिये?

ऐसा

इसीलिये।

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश

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सूचनाएं /Information – ☆ हिंदी आंदोलन परिवार – रजतजयंती समारोह, पुणे ☆

 ☆ सूचनाएं /Information ☆

 ☆ हिंदी आंदोलन परिवार – रजतजयंती समारोह के अंतर्गत

*हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे, राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई और महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, पुणे के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी*

*हिंदी: घोषित राजभाषा, उपेक्षित राष्ट्रभाषा*

शनि  दि. 14 दिसम्बर 2019

समय- प्रात: 10 बजे

स्थान- लकाकी सभागृह, मराठा चेंबर ऑफ कॉमर्स, स्वारगेट कॉर्नर, पुणे

 

*पंजीकरण एवं जलपान* –  प्रातः 9:30 से 10:00

*उद्घाटन सत्र* –  प्रातः 10:00 बजे

*उद्घाटनकर्ता- डॉ. सदानंद भोसले* (हिंदी विभागाध्यक्ष, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय)

*अध्यक्ष*- *डॉ. सुशीला गुप्ता* (उपाध्यक्ष, राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई)

 

*वक्तव्य*- 

*श्री ज. गं. फगरे*   (संचालक, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, पुणे)

*श्री संजय भारद्वाज* (अध्यक्ष, हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे)

 

*संचालन- सौ.स्वरांगी साने*

*प्रथम सत्र* 11.45 से 1.45 बजे तक

 

*अध्यक्ष- डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय* (हिंदी विभागाध्यक्ष, मुंबई विश्वविद्यालय)

*विशेष अतिथि- डॉ. दामोदर खडसे* (प्रसिद्ध साहित्यकार)

 

*वक्तव्य-*

*डॉ. नीला बोर्वणकर*  ( पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, आबासाहेब गरवारे महाविद्यालय)

*डॉ. शशिकला राय* (एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय)

*डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव* सहायक महाप्रबंधक (हिंदी), बैंक ऑफ महाराष्ट्र

*श्री महेश अग्रवाल* (ट्रस्टी एवं संरक्षक, राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई)

 

*संचालन- डॉ. अनंत श्रीमाली*

 

*भोजनावकाश* –  अपराह्न 1.45 से 2.30 बजे

*द्वितीय सत्र* –  अपराह्न 2.30 से 3.30 बजे

 

*मेरी भाषा के लोग* – ‘क्षितिज’ द्वारा साहित्यिक रचनाओं की प्रस्तुति।)

*समापन सत्र* – *प्रतिनिधि प्रतिक्रियाएँ एवं प्रश्नोत्तर*

*चायपान-* – संध्या 4:45 बजे

 

*विनीत*

*सुधा भारद्वाज* (कार्यकारिणी संयोजक, हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे)

*डॉ. अनंत श्रीमाली* (महासचिव, राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई)

*ज. गं फगरे* (संचालक, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, पुणे)

सम्पर्क- *9890122603, 9819051310*

 

*नोट-* 

1) पंजीकरण पहले आएँ, पहले पाएँ के आधार पर। आसनक्षमता पूरी हो जाने पर पंजीकरण की प्रक्रिया रोक दी जाएगी।

2) कुछ आसन आरक्षित हैं।

3) विद्यार्थियों के लिए आई कार्ड लाना अनिवार्य है।

4) कार्यक्रम को सुचारू रखने के लिए समयपालक की व्यवस्था की गई है।

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 25 – मासिक पाळी ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से  तरुण युवतियों के लिए एक शिक्षाप्रद भावप्रवण कविता  – “मासिक पाळी। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 25 ☆ 

 

 ☆ मासिक पाळी

 

तारूण्याच्या उंबऱ्यावर

स्त्रीत्वाची ही निशाणी।

म्हणे कोणी ओटी आली

लेक झाली हो शहाणी।

 

जुने नवे घाल मेळ

भावनांचा नको खेळ।

योग्यतेच ठेवी ध्यानी ,

होई व्यर्थ जाता वेळ।

 

नको जाऊ गोंधळून

सुचिर्भुत रहा दक्ष

जरी धोक्याचे हे वय

ध्येयावरी ठेवी लक्ष।

 

लागू नये नजर दुष्ट

तुला जपते जीवापाड।

जरी जाचक भासली

माझी बंधने ही  द्वाड।

 

हवे मर्यादांचे भान

घेता उंच तू भरारी।

श्रेष्ठ संस्कृती सभ्यता

सदा जपावी अंतरी।

 

जप तारूण्याचा ठेवा

जाण जीवनाचे मोल।

प्रकृतीने दिले तुज

असे स्त्रीत्व अनमोल।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जीवन पथ ☆ – सुश्री शुभदा बाजपेई

सुश्री शुभदा बाजपेई

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी  हिंदी साहित्य  की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी  एक  अतिसुन्दर कविता “जीवन पथ ”. )

☆  जीवन  पथ  ☆

छोड़ो किस्से बात पुरानी

नया जमाना नई कहानी

 

गाँव बन गए भूल भुलैया

शहर बहुत भाता है भैया

रोजी रोटी के जुगाड़ में

दिन भर खटता है रामैया

नियति रोज उसको दौड़ाती

तब जुड़ता है दाना पानी!

 

झूठे वादों ने लूटा है

खुशियों का दामन छूटा है

व्याकुल  मन अब क्यों रोता है

सगा नहीं कोई होता है

जीवन पथ पर निकल पड़े हैं

चलती मन मे खींचा तानी।।

 

कहीं बबूलों के जंगल हैं

कहीं महकती अमराई है

पीले करने हाथ सिया के

उर में चिंता गहन समाई है

किससे मन की व्यथा बताये

दुनिया लगती है वीरानी।।

 

© सुश्री शुभदा बाजपेई

कानपुर, उत्तर प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #26 – विज्ञापनवादी अभियान ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “विज्ञापनवादी अभियान”।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 26 ☆

☆ विज्ञापनवादी अभियान

 

इन दिनो राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता अभियान के लिये शहरो के बीच कम्पटीशन चल रहा है. किसी भी शहर में चले जायें बड़े बड़े होर्डिंग, पोस्टर व अन्य विज्ञापन दिख जायेंगे जिनमें उस शहर को नम्बर १ दिखाया गया होगा, सफाई की अपील की गई होगी. वास्तविक सफाई से ज्यादा व्यय तो इस ताम झाम पर हो रहा है, कैप, बैच, एडवरटाइजमेंट, भाषणबाजी खूब हो रही है. किसी सीमा तक तो यह सब भी आवश्यक है जिससे जन जागरण हो, वातावरण बने, आम आदमी में चेतना जागे. किन्तु इस सबका अतिरेक ठीक नही है. यह गांधी वादी सफाई नहीं है. शायद यह बढ़ती आबादी और विज्ञापनवादी आधुनिकता के लिये जरूरी बन चला हो पर है गलत.

यह जुमलेबाजी और ढ़ेर से विज्ञापन राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा अनावश्यक खर्च है, राष्ट्रीय अपव्यय है. थोड़ा अंदर घुसकर विवेचना करें तो सफाई की जो मूल आकांक्षा है इस सबसे उसे ही हानि हो रही है, पोस्टर फटकर कचरा ही बनेंगे. पोस्टर बैनर बनाने में लगी उर्जा पर्यावरण को हानि ही पहुंचा रही है.

इससे तो विज्ञापन का कोई इलेक्ट्रानिक तरीका जैसे टी वी, रेडियो पर चेतना अभियान हो तो वह बेहतर हो. न केवल स्वच्छता अभियान के लिये बल्कि हर अभियान में कागज की बर्बादी गलत है. यदि इस तरह पोस्टरबाजी से जनता के मन में संस्कार पैदा किये जा सकते तो अब तक कई क्रातियां हो चुकी होती. वास्तव में हर शहर अपनी तरह से नम्बर वन ही होता है.

जरूरत है कि शहर की अस्मिता की पहचान हो, सादगी से भी स्थाई व वास्तविक सफाई हो सकती है. देश में तरह तरह के अभियान चल रहे हैं आगे भी अनेक जनचेतना अभियान चलेंगे, उनके संचालन हेतु बौद्धिक विष्लेशण करने के बाद ही नीति तय करके तरीके व संसाधन निर्धारित किये जाने चाहिये.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (6) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्‌।

तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ।।6।।

 

जो जो जिसको याद कर तजते है यह देह

वे उसको ही पाते है क्योंकि उस पर स्नेह।।6।।

 

भावार्थ :  हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है।।6।।

 

Whosoever at the end leaves the body, thinking of any being, to that being only does he go, O son of Kunti (Arjuna), because of his constant thought of that being!।।6।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – डॉ.भावना शुक्ल

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

( ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है।  इस श्रंखला के माध्यम से  हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर चरण स्पर्श है जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं एवं हमें हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। इस पीढ़ी के साहित्यकारों को डिजिटल माध्यम में ससम्मान आपसे साझा करने के लिए ई- अभिव्यक्ति कटिबद्ध है एवं यह हमारा कर्तव्य भी है। इस प्रयास में हमने कुछ समय पूर्व आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एकआलेख आपके लिए प्रस्तुत किया था जिसे आप निम्न  लिंक पर पढ़ सकते हैं : –

हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर

इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ इस रविवार से प्रारम्भ कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा  कि आपको प्रत्येक रविवार एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।

इस शृंखला की पुनः शुरुआत गुरुवर डॉ राजकुमार सुमित्र जी से प्रारम्भ कर रहे हैं। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में उनकी सुपुत्री एवं प्रसिद्ध साहित्यकार  डॉ भावना शुक्ल से बेहतर कौन लिख सकता है। आज प्रस्तुत है “डॉ.राजकुमार तिवारी सुमित्र – व्यक्तित्व एवं कृतित्व”

☆ डॉ.राजकुमार तिवारी सुमित्र – व्यक्तित्व एवं कृतित्व

संस्कारधानी जबलपुर के यशस्वी साहित्यकार, साहित्याकाश के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र, संवेदनशील साहित्य सर्जक, अनुकरणीय, प्रखर पत्रकार, कवि, लेखक, संपादक, व्यंग्यकार, बाल साहित्य के रचयिता, प्रकाशक अनुवादक, धर्म, अध्यात्म, चेतना संपन्न, तत्वदर्शी चिंतक, साहित्यिक-सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं के प्रणेता डॉ.राजकुमार तिवारी “सुमित्र” बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। सुमित्र जी में सेवा भावना, सहानुभूति, विनम्रता, गुरु-गंभीरता तथा सहज आत्मीयता की सुगंध उनके व्यक्तित्व में समाहित है।

उन्होंने लगभग छह दशकों तक जन मन को आकर्षित एवं प्रभावित किया। साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की है और अनवरत करते जा रहे हैं। नगर ही नहीं देश तथा विदेशों तक उनकी यश पताका लहरा रही है।

जबलपुर के राष्ट्र सेवी साहित्यकार एवं पत्रकार स्वर्गीय पंडित दीनानाथ तिवारी के पौत्र तथा भोपाल के ख्याति लब्ध अधिवक्ता “ज्ञानवारिधि” स्वर्गीय पंडित ब्रह्म दत्त तिवारी के सुपुत्र डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” का जन्म 25 अक्टूबर 1938 को जबलपुर नगर में हुआ।

साहित्य और पत्रकारिता के संस्कार उत्तराधिकार में प्राप्त हुए. मानस मर्मज्ञ डॉ ज्ञानवती अवस्थी की प्रेरणा से सन 1952 से काव्य रचना प्रारंभ की। मध्य प्रदेश के अनेक शिक्षण संस्थानों में अध्ययन करते हुए पीएचडी तक की उपाधियाँ ससम्मान प्राप्त की। शिक्षकीय अध्यापन-कर्म से जीवनारंभ कर सुमित्र जी बहुमुखी प्रतिभा साहित्य साधना तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में सतत गतिशील रहे…

सुमित्र जी के शब्दों में…

मित्रों के मित्र सुमित्र का व्यक्तित्व ‘यथा नाम तथा गुण’ की उक्ति को चरितार्थ करता है, धन से ना सही किंतु मन से तो वे ‘राजकुमार’ ही है। उन्होंने लिखा है…

” मेरा नाम सुमित्र है, तबीयत राजकुमार।

पीड़ा की जागीर है, बांट रहा हूँ प्यार।”

जबलपुर से प्रकाशित नवीन दुनिया के साहित्य संपादक के रूप में उन्होंने समर्पित होकर पत्रकारिता और साहित्य की सेवा की और ना जाने कितने नवोदित सृजन-धर्मी पत्रकार, कवि, लेखक सुमित्र जी के निश्चल स्नेह और आशीष की छाया तले पल्लवित पुष्पित हुए. जो आज साहित्य की विभिन्न विधाओं में एक समर्थ रचनाकार के रूप में गिने जाते हैं।

साहित्य की शायद ही कोई ऐसी विधा है जिसमें सुमित्र जी ने अपनी लेखनी को ना चलाया होगा इनका कौशल बुंदेली काव्य सृजन में भी देखने को मिलता है।

आपके शब्दों में…वीणा पाणि की आराधना- सुफलित  नाद

“शब्द ब्रह्म आराधना, सुरभित सफेद नाद।

उसका ही सामर्थ्य है, जिसको मिले प्रसाद।“

सुमित्र जी की रचनात्मक उपलब्धियाँ अनंत है। पत्रकार साहित्यकार डॉ राजकुमार तिवारी सुमित्र ने पत्रकारिता के क्षेत्र को भी गौरवान्वित किया वहीं दूसरी ओर आपने हिन्दी साहित्य के कोष की श्री वृद्धि भी की है। छंद बद्ध कविता, छंद मुक्त कविता, कहानी, व्यंग, नाटक आदि सभी विधाओं में आपने लिखा है इसके साथ ही आपने श्री रमेश थेटे की मराठी कविताओं का रूपांतर‘अंधेरे के यात्री’ तथा पीयूष वर्षी विद्यावती के मैथिली गीतों का हिन्दी में गीत रूपांतर आपको मूलतः रस प्रवण साहित्यकार सिद्ध करता है आपकी इस साहित्य साधना और साहित्यिक पत्रकारिता अक्षुण्ण  है।

सुमित्र जी के काव्य रस की बौछार …

प्रिय के सौंदर्य को लौकिक दृष्टि से देखते हुए भी उसमें अलौकिकता कैसे आभास किया जा सकता है इस भाव को बड़े ही पवित्र प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया।

नील झील से नयन तुम्हारे

जल पाखी-सा मेरा मन है….

दांपत्य जीवन में रूठना मनाना का क्रम चलता है ऐसे में पत्नी की पति को कुछ कहने के लिए विवश करती है… गीत की कुछ पंक्तियाँ

 

बिछल गया माथे से आंचल

किस दुनिया में खोई हो

लगता है तुम आज रात भर

चुपके चुपके रोई हो।

रोना तो है सिर्फ़ शिकायत

इसकी उम्र दराज नहीं

टूट टूट कर जो ना बजा हो

ऐसा कोई साज नहीं

मैं तुमसे नाराज नहीं।

 

दूसरों के सुख दुख में अपने सुख-दुख की प्रतिछाया…

 

दूसरों के दुख को पहचान

उसे अपने से बड़ा मान

तब तुझे लगेगा कि तू

पहले से ज़्यादा सुखी है

और दुनिया का एक बड़ा हिस्सा

तुझ से भी ज़्यादा दुखी है…

 

नई कविता के तेवर को अत्यंत मार्मिक ढंग से कविता में प्रस्तुत किया है…

 

तुमने

मेरी पिनकुशन-सी

जिंदगी से

सारे ‘पिन’ निकाल लिए

बोलो।

इन खाली जख्मों को लिए

आखिर कोई कब तक जिए;

काव्य शिल्प लिए…

 

अंतहीन गंधहीन मरुस्थल में

भटकता

मेरा तितली मन

दिवास्वप्न देखता देखता

मृग हो जाता है।

कल्पना का वैशिष्ट…

मेरी दृष्टि

मलबे को कुरेद रही है-

आह! लगता है-

गांधी के रक्त स्नात वस्त्र

काले पड़ गए हैं

पंचशील के पांव में

छाले पड़ गए हैं।

 

यादें नामक कविता का अंश…

 

जैसे बिजली कौंधती है

घन में,

यादें कौंधती हैं

मन में।

 

प्रेम तो ईश्वरीय वरदान है। इनको केंद्रित कर दोहे…

 

“नहीं प्रेम की व्याख्या, नहीं प्रेम का रूप।

कभी चमकती चांदनी, कभी देखती धूप।“

0000

“स्वाति बिंदु-सा प्रेम है, पाते हैं बड़भाग।

प्रेम सुधा संजीवनी, ममता और सुहाग।“

 

प्रिय की दूरी की पीड़ानुभूति—-

 

“तुम बिन दिन पतझड़ लगे, दर्शन है मधुमास।

एक झलक में टूटता, आंखों का उपवास.. ।”

सुमित्र जी ने स्मृति को, याद को विभिन्न कोणों से चित्रित किया है———

 

“याद हमारी आ गई, या कुछ किया प्रयास।

अपना तो यह हाल है, यादें बनी लिबास।”

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“फूल तुम्हारी याद के, जीवन का एहसास।

वरना है यह जिंदगी, जंगल का रहवास।”

अहंकार के विसर्जन के बिना प्रेम का कोई औचित्य नहीं है।

 

“सांसो में तुम हो रचे, बचे कहाँ हम शेष।

अहम समर्पित कर दिया, करें और आदेश।”

“फूल अधर पर खिल गए, लिया तुम्हारा नाम ।

मन मीरा-सा हो गया, आँख हुई घनश्याम।“

 

साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में सुमित्र जी ने जो जीवन जिया वह घटना पूर्ण चुनौतीपूर्ण रहा। सुमित्र के जीवन को सजाया संवारा और उसे गति दी …जीवनसंगिनी स्मृति शेष डॉ.गायत्री तिवारी ने। सुमित्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के इन गुणों का प्रवाह निरंतर बना रहे ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि वह दीर्घायु हो। मैं अपने आप को बहुत ही सौभाग्यशाली मानती हूँ कि मैं डॉ. राजकुमार ‘सुमित्र’ और डॉ गायत्री तिवारी की पुत्री हूँ।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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