(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख शहीद भगत सिंह की माँ विद्यावती। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 275 ☆

? आलेख – शहीद भगत सिंह की माँ विद्यावती ?

हाँ हाँ अभिमन्यु की माँ सुभद्रा की सम धर्मिणी हूं मैं विद्यावती ! हाँ मैं सम गामिनी हूं रानी लक्ष्मीबाई की माँ की, तात्याटोपे की माँ की, नाना साहेब की माँ की, मंगल पांडे की माँ की उन जाने अनजाने वीर राजपूतो, योद्धाओ की माताओं की जो युगो युगो से देश की माटी के लिये आक्रांताओ से लड़ते अपने बेटों की शहादत की राह में कभी रोड़ा नहीं बनीं. मैं उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हूं जहाँ भाषा, नदियाँ, देश, गाय, तुलसी जैसे पौधे, मंदिरो में विराजित देवी सबको माँ निरूपित किया गया है. माँ निहित स्वार्थो से परे व्यापक कल्याणी होती है. सृष्टि के बाद कोई अन्य यदि सृजन की क्षमता रखता है तो वह केवल माँ है. मुझे गर्व है अपने माँ होने पर, अमर शहीद भगत सिंह की माँ होने का मतलब है, बेटे की शहादत की अनुगूंज से राष्ट्र कल्याण.

देश के लिये कुर्बानी देने वालो के प्रति श्रद्धा और सम्मान  तो बहुत होता है. देश कुर्बानी मांगता है. राष्ट्रध्वज में लिपटे, गौरव गाथायें कहते, शौर्य कथायें समेटे वीर युगो से शहीद होते रहे हैं. वीर रण बांकुंरे किसी न किसी प्रयोजन, किसी आदर्श पर कुर्बान होते हैं. शहीदो को देर सबेर तमगों से सम्मानित करती रही है सत्तायें. क्या सचमुच शहीद के परिवार को उसके  घर के मुखिया या बेटे की मृत्यु से वरण पर कुछ आर्थिक लाभ देकर  देश, सरकार या समाज शहादत के ॠण से मुक्त हो सकता है ?
शहीदों की चिता के शोले समय के साथ ठंडे होने लगते हैं. शहीद जीवनियां बनकर सजिल्द किताबों में समा जाते हैं. फिर कुछ वर्षो में किताबो पर भी धूल जमा होने लगती है. इतिहास बनाने वाले शहीद स्वयं ही इतिहास में तब्दील हो जाते हैं. यदि कौम सक्षम होती है तो शहीद की शहादत को किसी स्मारक में संजो कर याद करती है. शहादत स्थल राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाता है. शहीद की जन्म तिथि व पुण्य तिथि पर समारोह होते हैं. नई पीढ़ी को शहीद की वीरता के किस्से, पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ाये जाते हैं. शहीद होने वाले कथाओं में नायक बन कर राष्ट्रभक्ति के भाषणो में, अमर हो जाते हैं . शहीदों पर फिल्में बनती हैं, देश भक्ति के गीत लिखे जाते हैं. नई पीढ़ी के बच्चे सूरज की नई किरण के साथ प्रभात फेरियों में शहीद की जय जय कार के नारे लगाते हैं. पर फिर भी अधिकांश यही सोचते हैं, देश के लिये शहीद हों तो, पर मेरे घर से नहीं हाँ मुझे आप पन्ना धाय भी कह सकते हैं. मैने खुद अपने बेटे को शहादत का पाठ पढ़ने दिया. मैं चाहती तो नन्हें भगत को तब ही रोक सकती थी जब उसने घर की क्यारी में जुल्मी अंग्रेजो से लड़ने के लिये, खिलौने की पिस्तौल बीजो की तरह बोई थी जिससे वह क्रांति के लिये हथियार उपजा सके. मैं चाहती तो तब ही उसे रोक सकती थी जब वह दुनियां भर की क्रांति की किताबें पढ़ता था और जुल्मी साम्राज्यवाद से लड़ने की बातें करता था. मैं चाहती तो जबरदस्ती भगत की शादी करवा देती और उसके जीवन के लक्ष्य बदल देती पर इसके लिये  मुझे अपने ही बेटे से प्रतिद्वंदिता करनी पड़ती. मैं भला कैसे सह सकती थी मेरा बेटा आजीवन अपने आपसे ही लड़ता रहे, छटपटाता रहे. सब कुछ कैसा निस्तब्ध था ! कितना व्याकुल था ! हम दोनो माँ बेटे बिना एक शब्द एक दूसरे से कहे कितनी बातें करते रहे थे रात भर. मैंने उसे अपने आगोश में भर लिया था और फिर जो उसे पाश मुक्त किया तो वह सीधा भारत माँ की गोद में जा बैठा, अपने  क्रांतिकारी भाईयों के संग.

मैं तो उस वीर शहीद भगतसिंह की माँ हूँ, जिसने युवाओ में क्रांति के बीज बोये वह भी तब, जब भारत माँ की धरती पर शोषण की फसलें पक रही थी. सर्वहारा बेसहारा खण्ड खण्ड था. मेरे बेटे ने नारा दिया मजदूरो एक हो ! मेरे बेटे ने नारा दिया इंकलाब जिंदाबाद ! मेरे भगत ने यह सब किया बिना किसी अपेक्षा के. बिना किसी प्रतिसाद की कामना के. जानते हैं  मुझे उससे शहादत की सुबह मिलने तक न दिया गया, क्योकि जुल्मी सरकार मेरे बेटे की ताकत पहचान गई थी. मेरे बेटे ने जो नारा लगाया था कैद खाने से, फांसी के फंदे पर चढ़ने से पहले “इंकलाब जिंदाबाद” उसकी अनुगूंज सारे हिंदुस्तान में हो रही है. लगातार बार बार “इंकलाब जिंदाबाद”, इंकलाब जिंदाबाद !

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

इन दिनों, क्रिसेंट, रिक्समेनवर्थ, लंदन

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments