श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल एक दिन तेरा तो पक्का ठहरा है…” ।)

? ग़ज़ल # 114 – “एक दिन तेरा तो पक्का ठहरा है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मौत आती है मगर नहीं आती,

ठीक से क्यूँ एक बार नहीं आती।

*

खैर मनाती  ज़िंदगी तब तक,

आहट तेरी जब तक नहीं आती।

*

दिल से दिल लगाती है बेवफ़ा,

सिर पर चढ़ क्यों नहीं आती।

*

झलक दिखा कर छुप जाती है,

रास्ता देखे महबूब नहीं आती।

*

दिन किसी तरह कट जाता है,

नीद मगर रात भर नहीं आती।

*

हो रहे सभी परेशान घर बाहर,

मुसीबत एक बारगी नहीं आती।

*

एक दिन तेरा तो पक्का ठहरा है,

काश तड़पा-तड़पा के नहीं आती।

*

आ जाए अगर एक बार ठीक से,

आतिश को फिर याद नहीं आती।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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