श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “आदमी…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 45 ☆ आदमी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

एक मिट्टी का

घड़ा है आदमी

छलकते अहसास से रीता।

 

मुँह कसी है

डोर साँसों की

ज़िंदगी अंधे कुँए का जल,

खींचती है

उम्र पनहारिन

आँख में भ्रम का लगा काजल

 

झूठ रिश्तों पर

खड़ा है आदमी

व्यर्थ ही विश्वास को जीता।

 

दर्द से

अनवरत समझौता

मन कोई

उजड़ा हुआ नगर

धर्म केवल

ध्वजा के अवशेष

डालते बस

कफ़न लाशों पर

 

बड़प्पन ढोता

है अदना आदमी

बाँचता है कर्म की गीता।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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