(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक समसामयिक विषय पर आधारित त्वरित व्यंग्य – करवट बदल राजनीति)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 257 ☆

? त्वरित व्यंग्य – करवट बदल राजनीति ?

(रचना में उल्लेखित विचार व्यंग्यकर के व्यक्तिगत विचार हैं।)

पलट पलट कर पलटूराम जो कुछ भी करते हैं जनता के लिये करते हैं। सोते जनता के हित के लिये हैं, जागते जनता के भले के लिये हैं। करवट भी जनता के हितार्थ ही बदलते हैं। एक करवट लेते हैं तो लालटेन की रोशनी में लालू दिखते हैं। उन्हें सुनाई देता है, “जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू”। कोई उनके कान में कहता है, अरे ये तो चारा खाते हैं। वे उसे समझाते हुये कहते हैं ये बोलो कि, “चारा तक खाते हैं, हवालात जाने को तैयार रहते हैं, पक्के समाजवादी जो हैं “। वे गठबंधन कर डालते हैं। जनता यह सोचकर खुशियां मनाती है कि अब दो धुर्र समाजवादी जुड़े हैं अब समाजवाद आयेगा।

वे जगती आंखों सपना देखते हैं। उन्हें लगता है बिस्तर कुछ छोटा है, गद्दा आरामदेह नहीं है। मखमली गद्दे, गुदगुदी रजाई में बिना चूं चर्र किये बड़े पलंग पर बिना करवट बदले चैन की नींद लेने का ख्वाब हकीकत में बदलने के लिये जनता को जगाना होगा। समझ आता है यह अकेले तो न हो पायेगा। वे अपनी कुर्सी पर बैठे बैठे ही अगली बड़ी कुर्सी की लड़ाई लड़ने के लिये अपने जैसे कई छोटे छोटे जनता के सेवको को जोड़ने के लिये बुलौआ करते हैं। सबको बात जंचती है। गठबंधन हो भी जाता है। पर गठबंधन में सभी खुद को बाकी से बड़ा समझते हैं। कोई इनकी अगुवाई मानने को तैयार नहीं होता इसलिये यह सारी मशक्कत बेअसर रह जाती है।

इससे पहले कि जनता के भले का कुछ हो पाता उन्हें भान होता है कि लालू तो अपने बेटे को ओढ़ाने के लिये उनकी ही रजाई खींच रहा है। वे चेत जाते हैं। करवट बदलते हैं। वे पक्के समाजवादी हैं, उन्हें बंद दरवाजे खोलने की कला आती है। उन्हें जनता की सेवा से मतलब है, किसके साथ रहकर यह हो सकता है यह उनके लिये गौंण है। आलाकमान, विधायक दल, कोर कमेटी, आत्मा की आवाज, आम आदमी की आकांक्षा वगैरह वगैरह उनके निर्णय को अमली जामा पहनाने के शगल बन जाते हैं। लिए कचौड़ी का नया आफर  लिये वे मजे से आलू वाला समोसा प्लेट से अलग कर देते हैं। रबड़ी जलेबी का मजा मार के पलट गये पलटूराम के ताने सहते,  मुख्यमंत्री रहते हुये मुख्यमंत्री बनने के लिये, मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर उसी दिन फिर मुख्यमंत्री बन जाते हैं। जनता अलट पलट की  खुशियों में खो जाती है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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