श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल वायदों  के  परिंदे  फुर्र  से उड़  जाएँगे…” ।)

? ग़ज़ल # 102 – “वो यूँ मिलता था  कभी ना बिछड़ेगा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जनादेश मिला अब तो हाते खुल जाएँगे,

ख़ाली हुए ख़ज़ाने अब जल्दी भर जाएँगे।

सुचिता संहिता चुनाव होने तक ही लागू,

रेत भू माफिया अब हरकत में आ जाएँगे,

हर चुनाव के बाद ऐसा ही होता आया है,

पक्ष विपक्ष नेता पाँच साल को सो जाएँगे।

आ गये  जो चुनकर  पाल रहे  हैं सपने,

वायदों  के  परिंदे  फुर्र  से उड़  जाएँगे।

पक्ष विपक्ष खेल रहे साँप सीढ़ी का खेल,

निन्यानवे वाले दो नंबर पर उतर आयेंगे।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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