प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “जिसके आध्यात्मिक वैभव की चर्चा देश-विदेश है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘स्वयं प्रभा’ से – “जिसके आध्यात्मिक वैभव की चर्चा देश-विदेश है” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

इस दुनियाँ में सबसे सुन्दर अनुपम भारत देश है

 अपने में अपना सा प्यारा इसका हर परिवेश है ।।

 पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण बिखरा अति सौंदर्य है

 वन, मरूथल, पर्वत, नदियों मंदिरों में भी आश्चर्य है

 प्राकृत सुषमा, हरे भरे खेतों में अजब मिठास है

 हर प्रदेश का खान-पान कुछ भिन्न है, मोहक वेश है || 1 ||

 

उत्तर, ओड़ीसा, कर्नाटक अलग नृत्य संगीत है

खान पान जीवन पद्धति में सबकी अपनी रीति है

फिर भी सब हैं सरल भारतीय, संस्कृति अनुपम एक सी

गंगोत्री से रामेश्वर तक धार्मिक भाव विशेष है || 2 ||

 

इस दुनियाँ में.

राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत हर मन की पावन चाह है

प्रगति हिमालय सी संवृद्धि हो जैसे सिन्धु अथाह है

जीवन सबका निर्मल मन पावन हो कर्मठ भावना

भारत का युग युग से “बंधुता’ प्रेम रहा संदेश है ||3||

 

इस दुनियाँ में..

सकल देश में दूर छोर तक सरल सादगी व्याप्त है।

अभ्यागत का स्वागत मन से करना सबको आप्त है।

धार्मिक मर्यादाओं का सभी निर्वाह सदा हर हाल में

हरेक निवासी के मन में बैठा पूर्वज आदेश है ||4||

 

इस दुनियाँ में सबसे सुंदर अनुपम भारत देश है।

जिसके आध्यात्मिक वैभव की चर्चा देश-विदेश है ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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