श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “तर्क यह भी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 156 ☆

 ☆ लघुकथा- तर्क यह भी  ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

जैसे ही मेहमान ने सीताफल लिए वैसे ही दूर से आते हुए मेजबान ने पूछा, “क्या भाव लिए हैं?”

“₹40 किलो!” मेहमान ने जवाब दिया।

यह सुनते ही मेजबान सीताफल बेचने वाली पर भड़क उठे, “अरे! थने शर्म नी आवे। नया आदमी ने लूट री है।”

वे कहे जा रहे थे, “दुनिया ₹20 किलो दे री है। थूं मेह्मना ने ₹40 किलो दे दी दा। घोर अनर्थ करी री है।

” वह थारे भड़े वाली ने देख। ₹20 किलो बची री है।”

वह चुपचाप सुन रही थी तो मेजमैन भड़क कर बोले, ” माँका मोहल्ला में बैठे हैं। मांने ही लूते हैं। थेने शर्म कोणी आवेला। ₹20 पाछा दे।”

“नी मले,” उसने संक्षिप्त उत्तर दिया। सुनकर मेजबान वापस भड़क गए। जोर-जोर से बोलने लगे। वहां पर भीड़ जमा हो गई।

भीड़ भी उसे फल बेचने वाली को खरी-खोटी सुनाने लगी। वह लोगों को लूट रही है। तभी मेजबान ने मेहमान से कहा, “ब्याईजी साहब, आपको तो स्वयं को लुटवाना नहीं चाहिए।”

यह सुनकर मेहमान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,”ब्याईजी सा! जाने दो। ऐसे गरीब लोगों को हमारे जैसे लोगों से ही थोड़ी खुशी मिल जाती है।”

यह सुनकर मेजबान, मेहमान का मुंह देखने लगे और भीड़ चुपचाप छट गई।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

28-11-2023

संपर्क – पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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