श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  “नयन हँसे तो दिल हँसे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 102 – नयन हँसे तो दिल हँसे… ☆

नयन हंँसें तो दिल हँसे, हँसें चाँदनी – धूप।

नयन जलें क्रोधाग्नि से, देख डरें सब भूप।।

नयन विनोदी जब रहें, करें हास परिहास।

व्यंग्य धार की मार से, कर जाते उपहास।।

नयन रो पड़ें जब कभी,आ जाता तूफान।

पत्थर दिल पिघलें सभी, बन आँसू वरदान।।

नयनों की अठखेलियाँ, जब-जब होतीं तेज।

नेह प्रीत के सुमन से, सजती तब-तब सेज।।

इनके मन जो भा गया, खुलें दिलों के द्वार।

नैनों की मत पूछिये, दिल के पहरेदार ।।

नयनों की भाषा अजब, इसके अद्भुत ग्रंथ।

बिन बोले सब बोलते, अलग धर्म हैं पंथ।।

बंकिम नैना हो गये, बरछी और कटार।

पागल दिल है चाहता, नयन करें नित वार।।

प्रकृति मनोहर देखकर, नैना हुए निहाल।

सुंदरता की हर छटा, मन में रखे सँभाल।।

नैंना चुगली भी करें, नैना करें बचाव।

नैना से नैना लड़ें, नैंना करें चुनाव।।

नैना बिन जग सून है, अँधियारा संसार।

सुंदरता सब व्यर्थ है, जीवन लगता भार।।

सम्मोहित नैना करें, चहरों की है जान ।

मुखड़े में जब दमकतीं, बढ़ जाती है शान।।

प्रभु की यह कारीगिरी, नयन हुए वरदान।

रूप सजे साहित्य में, उपमाओं की खान।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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