श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 199 तुम कब लौटोगे मनुज..? ?

किसी विवाह के सिलसिले में एक बैंक्वेट हॉल में जाना था। हॉल के सामने के भाग की ओर रेस्टोरेंट है। दोनों के लिए स्वतंत्र दरवाज़ा है पर  कैब ने मुझे रेस्टोरेंट के सामने उतारा। मैं रेस्टोरेंट से होता हुआ बैंक्वेट की ओर बढ़ चला। सुंदर सजा हुआ रेस्टोरेंट है। देखता हूँ कि कृत्रिम तालाब बना हुआ है। तालाब में स्वच्छ पानी है और बड़ी-बड़ी, लंबी और चपटी मछलियाँ तैर रही हैं। मछलियाँ गहरे नारंगी और काले रंग की हैं। ग़ौर से देखने पर समझ में आता है कि इस उथले कृत्रिम तालाब में मुश्किल से  एक से सवा फीट तक ही पानी है। मछलियाँ थोड़ा-सा ऊपर उठ जाएँ तो सतह से ऊपर आ जाएँगी और ज़रा सा नीचे उतर जाएँ तो तल से लग जाएँगी। लगा जैसे  वे तैरने के बजाय पेट के बल रेंग रही हों।

सोचा कि बीज के रूप में नन्ही-नन्ही मछलियाँ कभी इस तालाब में उतारी गई होंगी। तब से वे जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं। जीने का उनका हौसला है, बढ़ने का उनका संकल्प है। ये मछलियाँ निरंतर जी रही हैं, निरंतर आगे बढ़ रही हैं। उनकी दुनिया इस नाम मात्र के कृत्रिम सरोवर तक सीमित है पर इस सीमा में ही असीम भाव से जीवन और सृजन चल रहे हैं।

फल के भीतर पलने वाले कीट का जीवन फल तक ही सीमित रहता है। फल कटा तो कीट के जीवन के भी परखच्चे उड़ जाते हैं। तथापि सारी विसंगतियों के बीच सृजन अविराम है, निरंतर है।

कोई छोटा-बड़ा जलचर, कुआँ, तालाब, ताल, तलैया, पोखर, बावड़ी, नदी, समुद्र इनमें से जहाँ भी है, वहीं जी रहा होता है। जल यदि सूखने लगे तब भी अंतिम बूंद तक संघर्ष करता है, सृजन जारी रखता है।

नभचर पक्षी तीव्र धूप, मूसलाधार बारिश, तूफान, सब सहते हैं पर जुटे रहते हैं जीवन में, सृजन में।

इन सब की तुलना में मनुष्य सबसे बुद्धिमान है, उसका विस्तार बहुत अधिक है। मनुष्य यूँ तो थलचर है पर अपने बनाए साधनों से जल और नभ दोनों में विचरण कर सकता है। उसने थल, जल, थल, नभ सब पर एक तरह से आधिपत्य कर लिया है पर सृजन की तुलना में विध्वंस अधिक किया है।

समुद्र के गर्भ में न्यूक्लियर हथियार लिए पनडुब्बियाँ घूम रही है। अंतरिक्ष, विनाशकारी शस्त्रास्त्रों से भरा पड़ा है। तोप और मिसाइलों के मुँह एक दूसरे के विरुद्ध खोलकर मनुष्य तैयार है युद्ध के लिए। मनुष्य जानता है कि युद्ध में अकल्पनीय हानि होती है तब भी युद्ध जारी हैं।

एक और अपनी क्षमता से निरंतर निर्माण में जुटे ये सारे जीव हैं जिन्हें हम बुद्धिहीन मानते हैं। दूसरी और हम मनुष्य हैं जो बुद्धि का वरदान लिए हैं पर विध्वंस बो रहे हैं।

एक और अखंड सृजन, दूसरी ओर अखंड विखंडन। असमय बरसात, बदलता मौसमचक्र, ग्लोबल वॉर्मिंग इसी विध्वंसक वृत्ति का परिणाम हैं। आश्चर्य है कि विध्वंसक वृत्ति के परिणाम निरंतर भोगने के बाद भी मनुष्य रुकने या लौटने के लिए तैयार नहीं है।

इस चिंतन के लगभग समानांतर चलती अपनी एक कविता स्मरण हो आई है,

अंजुरि में भरकर बूँदें / उछाल दी अंबर की ओर,

बूँदें जानती थीं / अस्तित्व का छोर,

लौट पड़ी नदी की ओर..,

मुट्ठी में धरकर दाने/ उछाल दिए आकाश की ओर,

दाने जानते थे/ उगने का ठौर

लौट पड़े धरती की ओर..,

पद, धन, प्रशंसा, बाहुबल के/ पंख लगाकर

उड़ा दिया मनुष्य को/ ऊँचाई की ओर..,

……….,………..,

तुम कब लौटोगे मनुज..?

स्मरण रहे, विखंडन से सृजन की ओर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।.. तुम कब लौटोगे मनुज?

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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