श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री प्रतुल श्रीवास्तव जी द्वारा रचित पुस्तक  मौनपर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 144 ☆

“मौन” – लेखक – श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक – मौन

लेखक – श्री प्रतुल श्रीवास्तव

प्रकाशक – पाथेय प्रकाशन जबलपुर

संस्करण – २०२३

अजिल्द, पृष्ठ – ९६, मूल्य – १५०रु

चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

किताब के बहाने थोडी चर्चा पाथेय प्रकाशन की भी हो जाये. पाथेय प्रकाशन, जबलपुर अर्थात नान प्राफिट संस्थान. डॉ राजकुमार ‘सुमित्र’ जी और कर्ता धर्ता भाई राजेश पाठक का समर्पण भाव. बहुतों की डायरियों में बन्द स्वान्तः सुखाय रचित रचनाओ को साग्रह पुस्तकाकार प्रकाशित कर, समारोह पूर्वक किताब का विमोचन करवाकर हिन्दी सेवा का अमूल्य कार्य विगत अनेक वर्षों से चल रहा है. मुझे स्मरण है कि मैंने ही राजेश भाई को सलाह दी थी कि आई एस बी एन नम्बर के साथ किताबें छापी जायें जिससे उनका मूल्यांकन किताब के रूप में सर्वमान्य हो, तो प्रारंभिक कुछ किताबों के बाद से वह भी हो रहा है. तेरा तुझ को अर्पण वाले सेवा भाव से जाने कितनी महिलाओ, बुजुर्गों जिनकी दिल्ली के प्रकाशको तक व्यक्तिगत पहुंच नही होती, पाथेय ने बड़े सम्मान के साथ छापा है. विमोचन पर भव्य सम्मान समारोह किये हैं. आज पाथेय का कैटलाग विविध किताबों से परिपूर्ण है. अस्तु पाथेय को और उसके समर्पित संचालक मण्डल को वरिष्ट पत्रकार एवं समर्पित साहित्य साधक श्री प्रतुल श्रीवास्तव जो स्वयं एक सुपरिचित साहित्यिक परिवार के वारिस हैं उनकी असाधारण कृति “मौन” के प्रकाशन हेतु आभार और बधाई.

किताब बढ़िया गेटअप में चिकने कागज पर प्रकाशित है.

अब थोड़ी चर्चा किताब के कंटेंट की. डा हरिशंकर दुबे जी की भूमिका आचरण की भाषा मौन पठनीय है. वे लिखते हैं छपे हुये और जो अप्रकाशित छिपा हुआ सत्य है उसे पकड़ पानासरल नहीं होता.

श्री प्रतुल श्रीवास्तव

बिटवीन द लाइन्स के मौन का अन्वेषण वही पत्रकार कर सकता है जो साहित्यकार भी हो. प्रतुल जी ऐसे ही कलम और विचारों के धनी व्यक्तित्व हैं. श्री राजेश पाठक ‘प्रवीण’ ने अपनी पूर्व पीठिका में लिखा है कि बोलना एक कला है और मौन उससे भी बड़ी योग्यता है. मौन एक औषधि है. समाधि की विलक्षण अवस्था है. वे लिकते हें कि प्रतुल जी की यह कृति आत्म शक्ति, आत्म विस्वास और अंतर्मन की दिव्य ढ़्वनि को जगाने का काम करती है.

स्वयं प्रतुल श्रीवास्तव बताते हैं कि जो क्षण मुखर होने से अहित कर सकते थे उन्हें मौन सार्थक अभिव्यक्ति देता है. मौन अनावश्यक आवेगों पर नियंत्रण और संकल्प शक्ति में वृद्धि करता है. मौन के उनके अपने स्वयं के अनुभव तथा साधकों के कथन किताब में शामिल हैं. मौन के रहस्य को समझकर जीवन को तनाव मुक्त और ऊर्जावान बनाना हो तो यह किताब जरूर पढ़िये. पुस्तक में छोटे छोटे विषय केंद्रित रोचक पठनीय तथा मनन करने योग्य २८ आलेख है.

मौन, चुप्पी मौन नहीं, स्वाभाविक मौन छिना, मौन से ऊर्जा संग्रहण, मौन एक साधना, मौन और सृजन, चार तरह के मौन, मौन से जिव्हा परिमार्जन, मौन पर विविध अभिमत, मन के कोलाहल पर नियंत्रण, मौन से शांति-ध्यान और ईश्वर, क्या है अनहद नाद ?, हिन्दू धर्म में मौन का महत्व, मुस्लिम धर्म में मौन, मौन एक महाशक्ति, शब्द संभारे बोलिये, मौन की मुखरता, मौन जीवन का मूल है, मौन से प्रगट हुई गीता, मौन स्वयं से जुड़ने का तरीका, मौन का संबंध मर्यादा से

बातों से प्राप्त क्रोध बर्बाद करता है समय, मौन है मन की मृत्यु, चित्त की निर्विकार अवस्था है मौन, मौनं सर्वार्थ साधनम्, मौन की वीणा से झंकृत अंतस के तार, मौन साधना तथा उसका परिणाम, तथा मौन ध्यान की ओर पहला कदम

शीर्षकों से मौन पर अत्यंत्य सहजता से सरल बोधगम्य भाषा में मौन के लगभग सभी पहलुओ पर विषद विवेचन पुस्तक में पढ़ने को मिलता है.

मौन व्रत अनेक धार्मिक क्रिया कलापों का हिस्सा होता है. हमारी संस्कृति में मौनी एकादशी हम मनाते हैं. राजनेता अनेक तरह के आंदोलनों में मौन को भी अपना अस्त्र बना चुके हैं. गृहस्थी में भी मौन को हथियार बनाकर जाने कितने पति पत्नी रूठते मनाते देखे जाते हैं. पुस्तक को पढ़कर मनन करने के बाद मैं कह सकता हूं कि मौन पर इतनी सटीक सामग्री एक ही जगह इस किताब के सिवाय अंयत्र मेरे पढ़ने में नहीं आई है. प्रतुल श्रीवास्तव जी के व्यंग्य अलसेट, आखिरी कोना, तिरछी नजर तथा यादों का मायाजाल, और व्यक्तित्व दर्शन किताबों के बाद वैचारिक चिंतन की यह पुस्तक मौन उनके दार्शनिक स्वरूप का परिचय करवाती है . वे जन्मना अन्वेषक संवेदना से भरे, भावनात्मक साहित्यकार हैं. यह पुस्तक खरीद कर पढ़िये आपको शाश्वत मूल्यों के अनुनाद का मौन मुखर मिलेगा जो आपके रोजमर्रा के व्यवहार में परिवर्तनकारी शक्ति प्रदान करने में सक्षम होगा.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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