(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख – फिटनेस जरूरी क्यों

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 211 ☆  

? आलेख फिटनेस जरूरी क्यों?

कहा गया है कि धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब कुछ गया. यद्यपि यह उक्ति चरित्र के महत्व को प्रतिपादित करते हुये कही गई है किन्तु इसमें कही गई बात कि “स्वास्थ्य गया तो कुछ गया” रेखांकित करने योग्य है. हमारा शरीर ही वह माध्यम है जो जीवन के उद्देश्य निष्पादित करने का साधन है. स्वस्थ्य तन में ही स्वस्थ्य मन का निवास होता है. और निश्चिंत मन से ही हम जीवन में कुछ अच्छा कर सकते हैं.

कला और साहित्य मन की अभिव्यक्ति के परिणाम ही हैं. स्वास्थ्य और साहित्य का आपस में गहरा संबंध होता है. स्वस्थ साहित्य समाज को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका अदा करता है. साहित्य में समाज का व्यापक हित सन्नहित होना वांछित है. और समाज में स्वास्थ्य चेतना जागृत बनी रहे इसके लिये निरंतर सद्साहित्य का सृजन, पठन पाठन, संगीत, नाटक, फिल्म, मूर्ति कला, पेंटिंग आदि कलाओ में हमें स्वास्थ्य विषयक कृतियां देखने सुनने को मिलती हैं. यही नहीं नवीनतम विज्ञान के अनुसार मनोरोगों के निदान में कला चिकित्सा का उपयोग बहुतायत से किया जा रहा है. व्यक्ति की कलात्मक अभिव्यक्ति के जरिये मनोचिकित्सक द्वारा विश्लेषण किये जाते हैं और उससे उसके मनोभाव समझे जाते हैं. बच्चों के विकास में कागज के विभिन्न आर्ट ओरोगामी, पेंटिग, मूर्ति कला, आदि का बहुत योगदान होता है.

स्वास्थ्य दर्पण, आरोग्य, आयुष, निरोगधाम, आदि अनेकानेक पत्रिकायें बुक स्टाल्स पर सहज ही मिल जाती हैं. फिल्में, टी वी और रेडियो ऐसे कला माध्यम है जिनकी बदौलत साहित्य और कला का व्यापक प्रचार-प्रसार हो रहा है.

जाने कितनी ही उल्लेखनीय हिन्दी फिल्में हैं जिनमें रोग विशेष को कथानक बनाया गया है. अपेक्षाकृत उपेक्षित अनेक बीमारियों के विषय में जनमानस की स्वास्थ्य चेतना जगाने में फिल्मों का योगदान अप्रतिम है.

फिटनेस उपकरणों, प्रोटीन, दवाओ, और नेचुरोपैथी, योग, जागिंग, जिम पर जनता करोड़ो रूपए प्रति वर्ष खर्च कर रही है, योग को वैश्विक मान्यता मिली है.

ये सब खान पान रहन सहन आखिर जन सामान्य में लोकप्रिय क्यों है? इसका कारण मात्र यही है की कहीं न कहीं हम सब फिटनेस का महत्व समझते हैं. भले ही आलस्य, समय की कमी या रुपए कमाने की व्यस्तता में हम फिटनेस प्रोग्राम को कल पर टालने की कोशिश करते हैं, क्योंकि शारीरिक मेहनत हमे सहज पसंद नही आती, उसकी जगह हम कोई रेडीमेड फार्मूला चाहते हैं जो हमे तन मन से फिट बनाए रखे. किंतु इस सत्य को स्वीकार कर लेने में ही भलाई है कि फिटनेस का कोई शॉर्ट कट नहीं होता, यह एक नियमित प्रक्रिया है जिसे दिनचर्या का हिस्सा बना लेने में ही भलाई है. स्वस्थ्य रहें, सबल बने, जीवन के हर मैदान में फिट रहें हिट रहें. निरोगी काया के प्रति जागरूख रहें, घर परिवार बच्चों अपने परिवेश में स्वच्छता, खान पान, लिविंग में फिटनेस का वातावरण सृजित बनाए रखें और चमत्कार देखें चिकत्सा में व्यय बचेगा, जीवन में सकारात्मक वैचारिक परिपक्वता के दृष्टिकोण से नौकरी, व्यवसाय, समाज में व्यवहारिक सफलता मिलेगी.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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