श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 189 परिदृश्य ?

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।

न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।

अर्थात ‘न ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था या तू नहीं था अथवा ये सारे राजा नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।’

श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के द्वादशवें श्लोक के माध्यम से आया यह योगेश्वर उवाच मनुष्य जीवन के शोध और सरल बोध का पाथेय है। 

मनुष्य जीवन यद्यपि सहजता और सरलता का चित्र है पर मनुष्य विचित्र है। वह सरल को जटिल बनाने पर तुला है। इस सत्य के अवलोकन के लिए किसी प्रकार के प्रज्ञाचक्षु की आवश्यकता नहीं है। जीवन का अपना अनुभव पर्याप्त है। केवल अपने अनुभव  को पढ़ा जाय, अपने अनुभव को गुना जाय तो प्रकृति की सरलता में विद्यमान गूढ़ रहस्य सहज ही सुलझने होने लगते हैं।

एक उदाहरण मृत्यु का लें। मृत्यु अर्थात देह से चेतन तत्व का विलुप्त होना। कभी ग़ौर किया कि किसी एक पार्थिव के विलुप्त होने पर एक अथवा एकाधिक निकटवर्ती मानो उसका ही प्रतिबिम्ब बन जाता है। कई बार अलग-अलग परिजनों में दिवंगत के स्वभाव, शैली, व्यक्तित्व का अंश दिखने लगता है।

“इसका चेहरा दिवंगत जैसा दिखता है। वह दिवंगत की तरह बातें करता है, हँसता है, नाराज़ होता है। उसकी लिखाई दिवंगत जैसी है, वह उठता-बैठता स्वर्गीय जैसा है।”  ऐसा नहीं है कि ये बातें केवल मनुष्य तक सीमित हैं। देखें तो पक्षियों और प्राणियों पर, चर और अचर पर भी लागू है यह सूत्र। 

विज्ञान इसे डीएनए का प्रभाव जानता है, अध्यात्म इसे अमरता का सिद्धांत मानता है।

सत्य यही है कि जानेवाला कहीं नहीं जाता पर किसी एक या अनेक में बँटकर यहीं विद्यमान रहता है। विचार करने पर पाओगे कि विधाता ने तुम्हें सूक्ष्म की अमरता दी है पर तुम स्थूल की नश्वरता तक सीमित रह जाते हो। अपनी रचना ‘सुदर्शन’ में इस अमरता को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया था,

जब नहीं रहूँगा मैं

और बची रहेगी सिर्फ़ देह,

उसने सोचा….,

सदा बचा रहूँगा मैं

और कभी-कभार नहीं रहेगी देह,

उसने दोबारा सोचा…,

पहले से दूसरे विचार तक

पड़ाव पहुँचा,

उसका जीवन बदल गया…,

दर्शन क्या बदला,

जो नश्वर था कल तक,

आज ईश्वर हो गया..!

स्मरण रहे, जब कोई एक होता अदृश्य है तो दूसरा हो जाता उसके सदृश्य है। हर ओर यही दृश्य है, जगत का यही परिदृश्य है।…इति।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

💥 अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक 💥

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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