श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# सत्यमेव जयते… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 123 ☆

☆ # सत्यमेव जयते… # ☆ 

मै एक पहाड़ी के चोटी पर खड़ा हूँ 

हाथ जोड़कर आंखें मूंदा पड़ा हूँ

चारों तरफ घंटियां बज रहीं हैं

आरतियां प्रार्थना की सज रही है

रंग बिरंगे परिधानों में

धरती और आसमानों में

रून-झुन पांव चल रहे हैं

संग संग गांव चल रहे हैं

आंखों में एक आस है

मन में कुछ पानें की प्यास है

भीनी भीनी सुगंध है

पवन चल रही मंद मंद है

थाल रखा जब मूर्ति के आगे

उसको लगा भाग है जागें

भक्ति मे लीन वो अनंत में खो गई

अपनें आराध्य के हृदय में सो गई

तंद्रा टूटी और वो जागी

अकेली खड़ी थी वो अभागी

वो सीढ़ियां चढ़ कर पहाड़ी पर आई

मुझको प्रसाद देकर मुस्कुराई

मुझसे पूछा –

क्या मांगा आपने?

क्या चाहा आपने?

मैं बोला –

मांगने तो तुम गई थी

अपने मन की बात तुमने कही थी

मै तो निसर्ग के सौंदर्य में मगन था

फैली सुंदरता का  मन में लगन था

वो बोली –

मैंने तो अपने लिए मांगा सब कुछ

मेरे जीवन में ना आए कोई दुःख

और तुमने –

मैंने कहा –

प्रेम ही जीवन है

जीवन में प्रेम की लगन हो

धीमे धीमे तपिश दे

ऐसी मधुर अगन हो

बस प्रभु –

झूठ  कभी ना सर चढ़ पाए 

असत्य कभी सत्य से ना लढ़  पाए 

झूठ, पाखंड, मक्कारी के युग में

असत्य कोई इतिहास ना गढ़ पाए 

आखरी सांस के रहते तक

हम सब कहे,

सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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