श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#कवि…#”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 108 ☆

☆ # कवि… # ☆ 

हे प्रगतिशील होने का

दावा करने वाले कवि

भूख, गरीबी, अन्याय पर

धावा करने वाले कवि

यहां सदियों से लोग

भीख मांगकर

पेट की आग बुझाते हैं  

गंदे नल का पानी पीकर

अपनी प्यास बुझाते हैं

खुले आसमान के नीचे

सोकर रात बिताते हैं

ठंड और बरसात में

पेपर ओढ़ते हैं

पेपर बिछाते हैं

हर मौसम लेता इम्तिहान है

वो तो कहने को इंसान है

अधनंगा तन, बेचैन मन

दर दर भटकता है

उन्हें दरवाजे पर देख

तुम्हें कितना खटकता है

वो हर गाली, दुत्कार सहते हैं

सहमी हुई आंखों से अश्रु बहते है

उनमें से ही कोई

जब आवाज उठाता है

अपना आक्रोश जताता है

उसे जेल में

डाल दिया जाता है

वो आजीवन बाहर नहीं आता है

 

उसके दुःख दर्द पर

तुमने कब कविता लिखी है

तुम्हारी लेखनी में

उनकी पीड़ा कब दिखी है

तुमने इस अन्याय के खिलाफ

कब मोर्चा खोला है

खुले आम अपनी कविता से

कब हल्ला बोला है

तुम्हारी चुप्पी

इस अन्याय का कारण है

क्योंकि तुम जैसे लोग

सरमायेदारों के चारण है

तुमको मैं कैसे

अंबर का प्रखर रवि लिखूं

तुमको मैं कैसे

महान कवि लिखूं

गर तुम इस व्यवस्था के

खिलाफ लिखते

तो हाथों हाथ बिकते

हमारी आने वाली पीढ़ियाँ

इससे ही कुछ सीखते

हे कवि!

तुमने अगर ये हुनर सीखा होता

तो आज तुम्हारा नाम

हमारे हृदय पर लिखा होता

हमारे हृदय पर लिखा होता//

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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