डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘ठूंठ’।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 102 ☆

☆ लघुकथा – ठूंठ — ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

वह घना छायादार वृक्ष था हरे -भरे पत्तों से भरा हुआ। न जाने कितने पक्षियों का बसेरा, कितनों का आसरा। आने जानेवालों को छाया देता,शीतलता बिखेरता। उसकी छांव में कुछ घड़ी विश्राम करके ही कोई आगे जाना चाहता,उसकी माया ही कुछ ऐसी थी। ऐसा लगता कि वह अपनी डालियों में सबको समा लेना चाहता  है निहायत प्यार और अपनेपन से।  धीरे-धीरे वह  सूखने   लगा? उसकी पत्तियां पीली  पड़ने लगी,बेजान सी। लंबी – लंबी बाँहों जैसी डालियाँ  सिकुड़ने लगीं। अपने आप में सिमटता जा रहा हो जैसे। क्या हो गया उसे? वह खुद ही नहीं समझ पा रहा था। रीता -रीता सा लगता, कहाँ चले गए सब? अब वह  अपनों की नेह भरी नमी और  अपनेपन की गरमाहट के लिए  तरसने लगा।  गाहे-बगाहे पशु – पक्षी आते। पशु उसकी सूखी खुरदरी छाल से पीठ रगड़ते और चले जाते। पक्षी सूखी डालों  पर थोड़ी देर बैठते और कुछ न मिलने पर फुर्र से उड़ जाते। वह मन ही मन कलपता कितना प्यार लुटाया  मैंने सब पर,  अपनी बांहों में समेटे रहा, दुलराता रहा पक्षियों को अपनी पत्तियों से। सूनी आँखों से देख रहा था वह दिनों का फेर। कोई आवाज नहीं थी, न पत्तियों की सरसराहट और न पक्षियों का कलरव। न छांव तले आराम करते पथिक  और न  इर्द गिर्द खेलते बच्चों की टोलियां, सिर्फ सन्नाटा, नीरवता पसरी है चारों ओर। काश!  कोई उसकी शून्य में निहारती  आँखों की भाषा पढ़ ले, आँसुओं का नमक चख ले। पर सब लग्गी से पानी पिला रहे थे। वह दिन पर दिन सूखता जा रहा था अपने भीतर और बाहर के सन्नाटे से।  आसपासवालों के लिए तो  शायद वह जिंदा था नहीं। सूखी लकड़ियों में जान  कब तक टिकती ?  हरा-भरा वृक्ष धीरे – धीरे ठूंठ  बन रह  गया |

एक अल्जाइमर पीड़ित माँ धीरे – धीरे मिट्टी में बदल गई।

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shringar

वाह! बहुत खूब लिखा आपने लेकिन रुला दिया!