श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “कितना चढ़ा उधार…”।)
☆ तन्मय साहित्य #129 ☆
☆ कविता – कितना चढ़ा उधार… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
एक अकेली नदी
उम्मीदें
इस पर टिकी हजार
नदी खुद होने लगी बीमार।
नहरों ने अधिकार समझ कर
आधा हिस्सा खींच लिया
स्वहित साधते उद्योगों ने
असीमित नीर उलीच लिया
दूर किनारे हुए
झाँकती रेत, बीच मँझधार।
नदी खुद…..
सूरज औ’ बादल ने मिलकर
सूझबूझ से भरी तिजोरी
प्यासे कंठ धरा अकुलाती
कृषकों को भी राहत कोरी
मुरझाती फसलें,
खेतों में पड़ने लगी दरार।
नदी खुद……
इतने हिस्से हुए नदी के
फिर भी जनहित में जिंदा है
उपकृत किए जा रही हमको
सचमुच ही हम शर्मिंदा हैं
कब उऋण होंगे
हम पर है कितना चढ़ा उधार
नदी खुद होने लगी बीमार।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
भाई साहब सच है इस उधार को इस जन्म में उतारना मुश्किल है. काश आने वाली पीढ़ी यह पीड़ा समझ सके 🙏