डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं अनुकरणीय लघुकथा  नया पाठ। यह लघुकथा हमें वर्तमान को सुधारकर अतीत को भुलाने की प्रेरणा देती हैं। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस अनुकरणीय लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 63 ☆

☆ नया पाठ ☆

बचपन से ही वह सुनती आ रही थी कि ’तुम लडकी हो, तुम्हें ऐसे बैठना है, ऐसे कपडे पहनने हैं, घर के काम सीखने हैं’और भी ना जाने क्या – क्या। कान पक गए थे उसके यह सब सुनते – सुनते। ’सारी सीख बस मेरे लिए ही है, भैया को कुछ नहीं कहता कोई’ – बडी नाराजगी थी उसे।

आज बच्चों को आपस में झगडते देखकर सारी बातें फिर से याद आ गईं। झगडा खाने के बर्तन उठाने को लेकर हो रहा था। ‘माँ देखो मीता अपनी प्लेट नहीं उठा रही है। उसे तो मेरा काम करना चाहिए, बडा भाई हूँ ना उसका।‘ तो – उसने गुस्से से देखा। ‘बडा भाई छोटी बहन के काम नहीं कर सकता क्या? जब मीता तेरा काम करती है तब? चल बर्तन उठा मीता के।‘

वह वर्तमान को सुधारकर अतीत को भुला देना चाहती थी।

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Bandhan Mukesh

कितनी ही लड़कियाँ आज भी इस असमानता को सहन कर रही हैं। अंत सुंदर है । नारी को नारी ही समझ सकती है । एक और अच्छे कथ्य के लिये बधाई ।- Vandana Mukesh

Last edited 3 years ago by Bandhan Mukesh