डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक सार्थक एवं विचारणीय आलेख  “74 वर्ष से प्रगति का यह कैसा राग?“)

☆ किसलय की कलम से # 28 ☆

☆ 74 वर्ष से प्रगति का यह कैसा राग? ☆

स्वतंत्रता के सही मायने तो स्वातंत्र्यवीरों की कुरबानी एवं उनकी जीवनी पढ़-सुनकर ही पता लगेंगे क्योंकि शाब्दिक अर्थ उसकी सार्थकता सिद्ध करने में असमर्थ है। देश को अंग्रेजों के अत्याचारों एवं चंगुल से छुड़ाने का जज्बा तात्कालिक जनमानस में जुनून की हद पार कर रहा था। यह वो समय था जब देश की आज़ादी के समक्ष देशभक्तों को आत्मबलिदान गौण प्रतीत होने लगे थे। वे भारत माँ की मुक्ति के लिए हँसते-हँसते शहीद होने तत्पर थे। ऐसे असंख्य वीर-सपूतों के जीवनमूल्यों का महान प्रतिदान है ये हमारी स्वतन्त्रता, जिसे उन्होंने हमें ‘रामराज्य’ की कल्पना के साथ सौंपा था। माना कि नवनिर्माण एवं प्रगति एक चुनौती से कम नहीं होती? हमें समय, अर्थ, प्रतिनिधित्व आदि सब कुछ मिला लेकिन हम संकीर्णता से ऊपर नहीं उठ सके। हम स्वार्थ, आपसी कलह, क्षेत्रीयता, जातीयता, अमीरी-गरीबी के मुद्दों को अपनी-अपनी तराजू में तौलकर बंदरबाँट करते रहे। देश की सुरक्षा, विदेशनीति और राष्ट्रीय विकास के मसलों पर कभी एकमत नहीं हो पाए।

आज केन्द्र और राज्य सरकारें अपनी दलगत नीतियों के अनुरूप ही विकास का राग अलापती रहती हैं। माना कि कुछ क्षेत्रों में विकास हो रहा है, लेकिन यहाँ भी महत्त्वपूर्ण यह है कि विकास किस दिशा में होना चाहिए? क्या एकांगी विकास देश और समाज को संतुलित रख सकेगा? क्या शहरी विकास पर ज्यादा ध्यान देना गाँव की गरीबी और भूख को समाप्त कर सकेगा? क्या मात्र देश की आतंरिक मजबूती देश की चतुर्दिक सीमाओं को सुरक्षित रख पाएगी? क्या हम अपने अधिकांश युवाओं का बौद्धिक व तकनीकि उपयोग अपने देश के लिए कर पा रहे हैं? हम तकनीकि, विज्ञान, चिकित्सा, अन्तरिक्ष आदि क्षेत्रों में आगे बढ़ें। बढ़ भी रहे हैं लेकिन क्या इसी अनुपात से अन्य क्षेत्रों में भी विकास हुआ है? क्या वास्तव में गरीबी का उन्मूलन हुआ है? क्या ग्रामीण शिक्षा का स्तर समयानुसार ऊपर उठा है? क्या ग्रामीणांचलों में कृषि के अतिरिक्त अन्य पूरक उद्योग, धंधे तथा नौकरी के सुलभ अवसर मिले हैं? क्या अमीरी और गरीबी के अंतर में स्पष्ट रूप से कमी आई है? क्या जातीय और क्षेत्रीयता की भावना से हम ऊपर उठ पाए हैं? यदि हम ऐसा नहीं देख पा रहे हैं तो इसका सीधा सा आशय यही है कि हम जिस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं वह स्वतंत्रता के बलिदानियों और देश के समग्र विकास के अनुरूप नहीं है।

आज राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी सोच एवं नीतियाँ बनाना अनिवार्य हो गया है, जो शहर-गाँव, अमीर-गरीब, जाति-पाँति, क्षेत्रीयता-साम्प्रदायिकता के दायरे से परे समान रूप से अमल में लाई जा सकें। आज पुरानी बातों का उद्धरण देकर बहलाना या दिग्भ्रमित करना उचित नहीं है। अब सरकारी तंत्र एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा असंगत पारंपरिक सोच बदलने का वक्त आ गया है। जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक हम नहीं बदलेंगे और जब हम नहीं बदलेंगे तो राष्ट्र कैसे बदलेगा? आज देश को विश्व के अनुरूप बदलना नितांत आवश्यक हो गया है। देश में उन्नत कृषि हो, गाँव में छोटे-बड़े उद्योग हों, शिक्षा, चिकित्सा, सड़क-परिवहन और सुलभ संचार माध्यम ही ग्रामीण एवं शहर की खाई को पाट सकेंगे। आज भी लोग गाँवों को पिछड़ेपन का पर्याय मानते हैं। आज भी हमारे जीवन जीने का स्तर अनेक देशों की तुलना में पिछड़ा हुआ है। ऐसे अनेक देश हैं जो हमसे बाद में स्वतंत्र हुए हैं या उन्हें राष्ट्र निर्माण के लिए कम समय मिला है, फिर भी आज वे हम से कहीं बेहतर स्थिति में हैं, इसका कारण सबके सामने है कि वहाँ के जनप्रतिनिधियों द्वारा अपने देश और प्रजा के लिए निस्वार्थ भाव से योजनाबद्ध कार्य कराया गया है।

आज स्वतन्त्रता के 74 वर्षीय अंतराल में कितनी प्रगति किन क्षेत्रों में की गई यह हमारे सामने है। अब निश्चित रूप से हमें उन क्षेत्रों पर भी ध्यान देना होगा जो देश की सुरक्षा, प्रतिष्ठा और सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य हैं। आज देश की जनता और जनप्रतिनिधियों की सकारात्मक सोच ही देश की एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान कर सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु कोई दबाव, कोई भूल या कोताही क्षम्य नहीं होना चाहिए। आज बेरोजगारी, अशिक्षा और भ्रष्टाचार जैसी महामारियों के उपचार तथा प्रतिकार हेतु सशक्त अभियान की महती आवश्यकता है। गहन चिंतन-मनन और प्रभावी तरीके से निपटने की जरूरत है। इस तरह आजादी के इतने बड़े अंतराल के बावजूद  देश की अपेक्षानुरूप कम प्रगति के साथ ही सुदृढ़ता की कमी भी हमारी चिंता को बढाता है। आईये आज हम “सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा” को चरितार्थ करने हेतु संकल्पित हो आगे बढ़ें।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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