श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “नजरअंदाज नजर से”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 44 – नजरअंदाज नजर से ☆

एक ही ढर्रे पर चलते रहने से बात नहीं बनती। जब तक कुछ नया न हो मन ऊब जाता है। ये दुनिया का सबसे बड़ा सत्य है। इस सबसे शुरू होता है। किसी को भी नजरअंदाज करने का दौर। अब नजर का क्या करें। नजरबट्टू काला टीका लगाकर तो जीवन गुजारा नहीं जा सकता। सो हम सबको अपनी सोच  बदलनी ही पड़ती है। इसके साथ ही साथ हम अपना व्यवहार भी बदल लेते हैं। जो उपयोगी हुआ उसी के साथ चल दिये। इस जगत में यदि कुछ स्थायी है, तो वो स्वार्थ सिद्धि है। चाहें इसके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े, इसे पूरा करना ही अंतिम लक्ष्य होता है। ऐसा अनोखे लाल जी का मानना है।

बात जब नारी से सम्बंधित हो, तो ये किसी का भी जीवन बदलने के लिए काफी होती है। सोचिए, जब श्रद्धा,नम्रता, योग्यता ये तीनों मिल बैठीं तो क्या होगा … ?

तब तो गाड़ी सरपट दौड़ पड़ेगी, कभी झगड़ा, कभी प्यार, कभी मान- मनुहार। बस धैर्य रूपी अस्त्र- शस्त्र का प्रयोग भी हो जाय तो सोने पे सुहागा हो जायेगा।

सुखीराम जी के जीवन का यही मूलमंत्र था, वे तो आनन्द के साथ रंगरेलियाँ मानते हुए, इंसानियत के साथ जीवन बिता रहे थे, कि तभी अहम अपनी कार लेकर आ धमका और उन्हें उनके अधिकारों की याद दिलाने लगा कि उनको योग्यता के साथ ही निर्वाह करना चाहिए। दौलतरानी भी उनकी बातें सुनकर एक सच्चे सलाहकार की तरह समझाने लगी,  कि आपको अपने रुतबे का ध्यान रखना चाहिए , ये क्या आप तीन लोगों के सामने हार गए ?

मुस्कुराते हुए अनोखेलाल जी ने कहा, अरे जिसके पास विद्या का धन है, वो तो कुछ भी हासिल कर सकता है। विधा, विवेक , धीरज ये सब तो अपने  सखा हैं, बस कैसे  समझदारी दिखाएँ, ये तो विश्वास ही बता सकता है।

विश्वास ने मुस्कुराते हुए कहा, आप लोग दिमाग़ लगाना बंद करें, मेरी तरह श्रद्धा,नम्रता व योग्यता की शरण में जाएँ सुखी रहेंगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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