॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (31 – 35) ॥ ☆

सर्ग-19

 

जब ऊबकर पास बैठे किसी के वह अन्यत्र जाने का करता बहाना।

‘‘अभी आया मैं कार्यवश जा रहा हूँ’-तो रमणी पकड़ रुद्ध करती थी जाना।।31।।

 

सघन रति थकित कामनियां वक्ष अपने बना कंठ-सूत्री मिलन का बहाना।

रगड़ उसकी छाती पै हर अगरू चंदन स्व अनुराग से चाहती लेट जाना।।32।।

 

मिलन कामना से चले उसके संचार की सूचना चेरियों से सब पाकर।

आ सामने अंधेरे में उसे रोक, ताने दे घर खुद ले जाती छुपाकर।।33।।

 

पा चंद्र किरणों सी रमणियों का स्पर्शसुख वह कुमद सम रात भर जागता था।

औ’ दिन में सो कुमुदिनी सा सही में वह दूसरा कुमुदाकर हो गया था।।34।।

 

थे दतक्षत से अधर दर्द देते औ’ नखक्षतों सै दुखी जंघिकायें।

पर वेणु-वीणा सजा गायिकायें, रिझाने सुरतहित थी करती अदायें।।35।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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