श्रीमती उज्ज्वला केळकर

☆ लघुकथा ☆ गानसमाधि ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆ 

मंचपर से वह युवा गायक गा रहा था। अभी अभी एक अच्छे गायक के रूप में उसकी पहचान होने लगी थी । महफिल में अब वह बागेश्री का आवाहन कर रहा था। बागेश्री ने धीरे धीरे आँखे खोली। विलंबित गत में आलाप के साथ साथ अलसाई बागेश्री, अंगडाई लेने लागी। धीरे धीरे उठ खड़ी हुई। हर लम्हे, जर्रा जर्रा खिलने लगी। हर आलाप के साथ विकसित होने लगी। पदन्यास करने लगी। थिरकने लगी। आलाप, सरगम, मींड, नज़ाकती ठहराव, बागेश्री का रूप निखरने लगा। द्रुत बंदिश … नभ निकस गायो चंद्रमा… बागेश्री की मनमोहक अदा, उसका तेज नर्तन, और सम के साथ साथ उस का खूबसूरत ठहराव… अब तानों की बौछारें होने लगी। वह चक्राकार फेरे लेने लगी। सुननेवाले संगीत का लुफ्त उठा रहे थे। गायक तल्लीन हो कर गा रहा था। रसिक गाने में समरस हो रहे थे।

सभागृह में पहली पंक्ती में एक अधेड उम्र का व्यक्ति बैठा था। उसने अपनी आँखें मूँद ली थी। गायक का ध्यान जब जब उस की तरफ जाता, गायक विचलित हो जाता। राग के बढत के साथ साथ, उस के दिमाग में गुस्सा और विषाद भर जाता। सोचने लगता, ‘अरे, सोना है जनाब को तो घर में ही आराम से सोते। यहां आने की परेशानी क्यौं उठायी? वैसे रियाज और अभ्यास के कारण, आदतानुसार गायक गाए जा रहा था, किन्तु मन में कुंठा जरूर पली हुई थी।

तालियों की बौछार के साथ बागेश्री का समापन हुआ। उस अधेड व्यक्ति ने अपनी आँखे खोली। गायक ने उसे अपने पास बुलाया और उन्हें पूछने लगा,

“महाशय, क्या आप को मेरे गाने में कोई कमी महसूस हुई?”

“नहीं तो…”

“फिर क्या आप की नींद पूरी नहीं हुई थी?”

“नहीं… नहीं… ऐसा भी नहीं…”

“तो फिर सारा समय आप नें अपनी आँखे क्यों मूँद ली थी?”

“उस का क्या है बेटा, जब हम आँखे मूँद लेते है, तब पंचेंद्रियों की सारी शक्ति कानों में समाई जाती है। फिर एक एक सुर अंतस तक उतरता जाता है। जब आँखे खुली होती है, तब वह यहां-वहां दौड़ती है। जिस की जरूरत हो, वह देखती है, ना हो उसे भी देखती है। मन को विचलित करती है। स्वर परिपूर्णता से अंतस में समाए नहीं जाते।”

बाते करते करते, अभी थोडी ही देर पूर्व गायक ने लिया हुआ एक कठिन आलाप, वह आदमी उसी नज़ाकती मींड के साथ गुनगुनाने लगा। गायक आलाप सुनते ही विस्मित हुआ।

वह अधेड व्यक्ति आगे कहने लगा, “तुम बहुत अच्छा गाते हो, लेकिन गायक की गाने में इतनी समरसता होनी चाहिये की सामने बैठे श्रोता क्या कर रहे हैं, दाद दे रहे है, या नहीं, आपस में बोल रहे है, या सो रहे है, इससे उसे बेखबर होना चाहिये। इसे गानसमाधि कहते है।  तुम्हारा गायन इस अवस्था तक पहुँचे, यह मेरी कामना है।” अधेड व्यक्ति नें गायक के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। गायक नें उन का चरणस्पर्श किया।

आज उस अधेड व्यक्ति नें, उस के मन में रियाज के लिए एक नया बीज डाला था।

© श्रीमती उज्ज्वला केळकर

सम्पादिका ( ई- अभिव्यक्ति मराठी)

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन के पास, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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Hemant Bawankar

अतिसुन्दर रचना। इस प्रकार की समाधि प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है