श्री रमेश सैनी

( आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध लेखक/व्यंग्यकार श्री रमेश सैनी जी की  मानवीय संबंधों  और मशीनों पर निर्भर होती आने वाली पीढ़ी पर आधारित एक विचारणीय कहानी   – “आलू कैसे छीलें?”।  कृपया  रचना में निहित मानवीय दृष्टिकोण को आत्मसात करें )

☆ आलू कैसे छीलें? ☆

लॉक डाउन में समय काटने के लिए किचन में पुरुषों में आमद रफ़त बढ़ गई है. स्वादिष्ट खाना बनाने के नुस्खे आजमा रहे हैं. उनकी देखा देखी बच्चे भी माँओं  के काम में अड़ंगा डाल रहे हैं. अभी कल परसों की बात होगी.मेरा पौत्र आयुष अपनी माँ के पास किचन में खड़ा होकर सवाल पर सवाल पूछे जा रहा था. सामने उबले आलू रखे थे. आलुओं को देख वह बोला-“मम्मी पोटाटो का क्या बनेगा?

–आलू बण्डे. माँ ने कहा

— तो बनाओ! कैसे बनते हैं

–आलू को छीलना पड़ेगा.

–मैं छील दूं?

–ये बहुत गरम हैं. आपसे नहीं बनेंगे. जल जाओगे.

आयुष नहीं माना. तब आयुष ने आलुओं को उठाया. वे बहुत गर्म थे.वह सी सी करने लगा. फिर दौड़ा दौड़ा अपने कमरे में गया, और स्मार्ट डिजीटल डिवाइस अलेक्सा ले आया. उसको आन किया और पूछा .

–आंटी!गरम आलू कैसे छीलते हैं?

—“आलू कच्चे हैं या पके”? फोन से आवाज आयी.

— मम्मी!आंटी पूछ रही हैं, आलू कच्चे हैं या पके?

—“पके”- मम्मी ने बताया

–आंटी पके! -बच्चे ने माँ की बात दुहरा दी

—“छोटे हैं या बड़े?”- फिर आवाज आई.

—मम्मी! छोटे हैं या बड़े ?

—मँझले!- माँ ने कहा.

—आँटी! मँझले.

—“तय करके बताओ! कैसे हैं ?.”

—मम्मी !आँटी पूछ रहीं हैं कि कैसे हैं?

मम्मी ने भुनभुनाकर कहा, कह दे-“छोटे हैं, पर छोटे से थोड़े बड़े हैं.”

—-आँटी! मम्मी कह रही हैं -” छोटे से थोड़े बड़े.”

—-ठीक है,अभी आलू ठण्डे हैं या बहुत गरम?

—“-बहुत गरम.” बच्चे ने तुरंत जबाब दिया.

—-आलू को हाथ से मत उठाना. हर गरम चीज को उठाने से हाथ जल जाते हैं. आवाज ने आगाह किया.

—-जलने से क्या होता हैआंटी.? बच्चे ने सवाल किया.

—-जलने से फफोले पड़ जाते हैं.. फिर उसका इलाज लम्बे समय तक चलता है.

—- मासूम बच्चे ने पूछा, “आंटी! पड़ोस वाली सौम्या दीदी कह रही थी उनका दिल जल रहा है पर कहीं पर फफोले नहीं दिख रहे हैं. दिल कहाँ पर होता है ?

—-अभी तुम दिल के चक्कर में मत पड़ो. अपने टास्क पर ध्यान दो. बस तुम्हें गरम आलू छीलना है.

— ठीक है आंटी! मुझे भी दिल से क्या लेना है. जो दिखता नहीं. तो बताओ आलू कैसे छीलें?

—अच्छा बताओ, किचन में छोटी, बड़ी चिमटी,फोर्क हैं?

—मम्मी! चिमटी या फोर्क है? बच्चे ने माँ की ओर देखते हुए कहा.

—रैक में रखे हैं. मम्मी ने सामने की ओर इशारा किया.

— आयुष रैक से फोर्क ले आया. बोला, ‘बताओ.आंटी, अब क्या करना है?’

—पहले बाउल में रखे आलुओं में से एक में फोर्क को घुसाकर उठाओ.

—आंटी! घुसाया पर वह टूटकर टुकड़े टुकड़े हो गया.

—दूसरे आलू में घुसाओ.

—पल भर के बाद बच्चे ने बताया,’आंटी वह भी टुकड़े टुकड़े हो गया.

—‘एक बार और कोशिश करो’ आवाज आई.

—आंटी! फोर्क घुसाने से आलू टूट रहे हैं.

— चिंता मत करो.

–आंटी!अब मैं क्या करुं? मैं आलू छीलना चाहता हूँ.

—मुझे विश्वास है तुम आलू छील लोगे.

— मम्मी हैं?

—हाँ! पर वह फोन पर बात कर रही हैं.

—और पापा ?

—वे भी मोबाइल पर चैट कर रहे हैं.आंटी, मैं परेशान हो गया. मुझे आलू छीलना है. यह मेरा आज का टास्क है.

—धैर्य रखो! तुमनें धैर्य नहीं रखा, इसलिए आलू टुकड़े हो गए.

—आंटी! धैर्य किसे कहते हैं?

— धैर्य मीन्स पेशेन्स.

—ओह! समझ गया.

—अच्छा! अपनी दादी को बुलाओ.

—दादी मीन्स.

— ग्रैंड  मॉम .

—ओह! आंटी, पर ग्रैंड मॉम हमारे साथ नहीं रहती हैं. वे अलग अकेली रहती हैं.

— ‘अच्छा ! अब समझ गई. तभी आलू छीलने वाली मुसीबत साल्व नहीं हो रही है.’ फिर आवाज आईं.

—हाँ! प्लीज़ जल्दी से साल्यूशन बताइए.

—‘अच्छा ऐसा करो. तुम पापा से कहो. वे ग्रैंड मॉम को घर ले आएं.’आवाज ने सुझाया

—-आंटी! ग्रेंड माम को पता है. कि गरम आलू कैसे छीलते हैं?

—हाँ ! उन्हें ठण्डे, गरम, छोटे, बड़े आलू छीलने का अनुभव है. उनके पास आपके सभी प्रॉब्लम  का सोल्युशन है.

—‘थैंक यू,वेरी मच आंटी.’

आयुष चिल्लाते चिल्लाते पापा के पास गया – पापा ! आज हम ग्रैंड मॉम घर लाएंगे.

—क्यों? पापा ने पूछा.

—-बच्चे ने बताया,’अलेक्सा आंटी कह रही हैं कि – ग्रैंड मॉम के पास हर प्रोब्लेम्स का सोल्युशन है. आप लोगों के पास समय नहीं है कि मुझे बताएं कि आलू कैसे छीलें, कौन सा काम कैसे करें?

 

© श्री रमेश सैनी 

जबलपुर , मध्य प्रदेश 

मोबा. 8319856044  9825866402

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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subedar pandey kavi atmanand

वाह वाह बहुत खूब अतिसुंदर रचना ,दिल को भेदता
ब्यंग प्रस्तुति अनोखा अंदाज बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीय