श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख – “बंदर के हाथ में उस्तरा।)

☆ आलेख ☆ बंदर के हाथ में उस्तरा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

कहावत हमारे देश की है, और बहुत पुरानी भी है। कहावत भले ही बंदर पर बनी हुई है, लेकिन मानव जाति इसका प्रयोग अपने दैनिक जीवन में यदा कदा करता रहता हैं। 

आज विश्व के सबसे संपन्न और शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका में एक अठारह वर्षीय युवा ने अपनी बंदूक से पाठशाला में पढ़ रहे करीब पच्चीस बच्चों की हत्या कर दी हैं। पचास से अधिक बच्चे हॉस्पिटल में इलाज़ करवा रहे हैं। युवा ने अपनी दादी और कुछ शिक्षकों को भी मौत के घाट उतार दिया।अमेरिका में ये घटनाएं आए दिन होती रहती हैं।हमारे देश में भी कुछ लोग मानसिक रूप से ग्रस्त होते हुए कभी कभार बंदूक/ तलवार इत्यादि से एक दो लोगों पर हमला कर देते हैं,और अधिकतर पकड़े जाते हैं।इस सब के पीछे उनकी गरीबी या किसी रंजिश ( आर्थिक,सामाजिक या धार्मिक) प्रमुख कारण रहता हैं।                                          

अमेरिका की संपन्नता में वहां के हथियार उद्योग का बड़ा हाथ है,ये सर्वविदित हैं।हमारे देश में भी कुछ स्थानों पर देसी कट्टे/ रामपुरिया चाकू इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, चुकीं उनकी मारक क्षमता अमरीकी हथियारों के सामने शून्य से भी कम होती हैं।इसलिए जन हानि कम होती हैं।                                      

हम,अमरीकी युवा को इस प्रकार के होने वाली घटनाओं के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं।वहां की जीवन शैली के सामाजिक / पारिवारिक मूल्यों में आई भारी गिरावट और आसानी से हथियारों की उपलब्धता ही पूर्ण रूप से जिम्मेवार हैं।अमेरिका पूरे विश्व में हथियारों की उपलब्धता सुनिश्चित कर अपनी तिज़ोरी भरता हैं।आज वो ही हथियार उसके अपने बच्चें इस्तमाल कर एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर रहे हैं।बड़े लोग ठीक ही कहते थे,जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वो एक दिन स्वयं भी उसी गड्ढे में गिर जाता हैं।

सत्तर के दशक  में पाठशाला में एक निबंध का विषय ” विज्ञान एक अभिशाप” हुआ करता था।अब लग रहा है,कहीं निबंध का विषय आज भी मान्य तो नहीं हैं ?

© श्री राकेश कुमार

संपर्क –  B  508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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