श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 27 – किसान बाज़ार ☆ श्री राकेश कुमार ☆

विगत गुरुवार के दिन यहां विदेश में किसान बाज़ार जाने का अवसर मिला तो लगा की अपने देश के समान छोटे किसान गठरी में अपने उत्पाद विक्रय करने आते होंगे। जो अधिकतर मुख्य सब्जी मंडी के आस पास सुबह के समय आकर ताज़ी सब्जियां सस्ते में विक्रय कर देते हैं।

यहां का माहौल कुछ अलग ही है। किसान अपने-अपने तंबू नुमा काउंटर में कुर्सी पर बैठ कर सब्जियों, अंडे, शहद इत्यादि विक्रय कर रहे थे। उनका विक्रय मूल्य सामान्य से कुछ अधिक था। बाज़ार बंद होने के समय उनसे पूरा ढेर के लिए छूट पूछी तो बताया यहां के भाव तय हैं। सभी किसान अपने समान सहित छोटे वातानुकूलित ट्रक/वैन इत्यादि में भरकर रवाना हो गए। हमारे किसान तो लाए गए उत्पाद को औने पौने दाम में विक्रय कर ही वापिस जातें हैं। यहां के किसान के पास वातानुकूलित स्टोरेज की उत्तम व्यवस्था जो उपलब्ध हैं।

किसान बाज़ार के प्रचार में भी “स्थानीय खरीद को प्राथमिकता दिए जाने ” का संदेश है,हमारे देश में भी आजकल “Vocal for Local” की ही बात हो रही हैं।

एक चीज़ और हमारे देश जैसी अवश्य देखने को मिली,यहां भी एक वृद्ध सज्जन अपने तंबू में चाकू/ छुरियां की धार तेज कर रहे थे। उनसे बातचीत हुई तो जानकारी मिली कि वे एक सेवानिवृत हैं, और अपने को व्यस्त रखने के लिए ये रोज़गार अपना लिया है। वो भी अपना ताम झाम समेट अपनी वैन से चले गए। हमारे देश में तो चाकू तेज़ करने वाले पैदल या साइकिल का ही उपयोग कर अपना जीवकोपार्जन करते हैं। यहां पर जीवन और व्यवसाय में सुविधायुक्त साधन उपलब्ध है,इसलिए श्रम का उपयोग सीमित हैं। विदेश में श्रम को सबसे मूल्यवान माना जाता हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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