श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आचार्य देवो भव ।)

?अभी अभी # 344 ⇒ आचार्य देवो भव? श्री प्रदीप शर्मा  ?

संस्कृत में आचार्य को गुरु भी कहते हैं। तब गुरुकुल होते थे, आज संकुल होते हैं। आचार्य का संबंध शिक्षा से है। आज की भाषा में हम इन्हें शिक्षक, टीचर, प्रोफेसर, डॉक्टर और रीडर भी कह सकते हैं।

मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव। यानी माता को देवता समझो, पिता को देवता समझो, आचार्य को देवता समझो, अतिथि को भी देवता समझो। माता पिता और आचार्य तक तो ठीक है, लेकिन अतिथि को भी देवता समझना, कुछ हजम नहीं होता।।

जहां जहां भी देव और असुर आमने सामने हुए हैं, असुरों के गुरु शुक्राचार्य जरूर बीच में आए हैं। द्वापर में कौरव पांडव दोनों के गुरु द्रोणाचार्य ही थे। जो आचार्य अमात्य होते थे, वे राजाओं के सलाहकार होते थे। आज वे ही मंत्री कहलाते हैं। जो शिक्षा प्रदान करे वह शिक्षक यानी आचार्य और जो नीति बनाए, वह अमात्य अर्थात् मंत्री।

शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में आचार्यों की कोई कमी नहीं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, और सर्व श्री आचार्य नंददुलारे बाजपेई, जैसे विद्वान साहित्यकारों ने अगर साहित्य की विधा को संपन्न किया है तो वल्लभाचार्य, निंबाकाचार्य ने पुष्टिमार्ग और द्वैताद्वैत मार्ग का प्रतिपादन किया। आदि शंकराचार्य और आज के शंकराचार्यो की यशकीर्ति से कौन परिचित नहीं।।

शिक्षा के क्षेत्र में आज आपको आचार्य ही नहीं प्राचार्य भी नजर आ जाएंगे। आचार्यों में भी विशेषज्ञ होते हैं ; मसलन, आयुर्वेदाचार्य, व्याकरणाचार्य और ज्योतिषाचार्य। योगाचार्य, धर्माचार्य तो एक ढूंढों हजार मिलेंगे। याद आते हैं आचार्य कृपलानी जैसे लोग। मंगल कार्य संपन्न करवाने वाले भी पहले आचार्य और जोशी ही कहलाते थे। पंडित, पुजारी शब्द में वह गरिमा कहां, जो आचार्य शब्द में है।

जब से उपाधियों का अलंकरण होने लगा है, लोग डॉक्टर, प्रोफेसर और साहित्यरत्न कहलाना अधिक पसंद करने लगे हैं। कहीं आचार्य नाम के आगे शोभायमान है तो कहीं पीछे। आज आपको डा .भोलाराम आचार्य भी नजर आ जाएंगे और योग गुरु आचार्य बालकृष्ण भी।

कुछ आचार्य बिना पेंदे के लोटे की तरह भी होते हैं।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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