श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चिंतन मनन।) 

? अभी अभी # 120 ⇒ चिंतन मनन? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

इस सृष्टि में सभी प्राणियों में से केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जो न केवल बोल सकता है, अपितु सोच विचार कर सकता है, अपना अच्छा बुरा और हित अहित भी समझ सकता है। वह आहार, भय, निद्रा के वशीभूत होकर भी यह अच्छी तरह से जानता है कि चिंता से चिंतन भला, चिंता चिता समान।

जहां सोचने विचारने की शक्ति है, वहां मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार भी मौजूद हैं। भला बुरा और पाप पुण्य तराजू के दो पलड़े हैं और उनका हिसाब रखने वाला कोई तीसरा ही है। ।

कहते रहें इसे ईश्वर की माया, जीव ने अगर जन्म लिया है तो इस संसार को उसे तैरकर ही पार करना है। कब तक चलेंगे किनारे किनारे, जरा सा पांव फिसला और हर हर गंगे।

जहां मनुष्य में मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार है, वहीं उसके पास ज्ञान, बुद्धि, विवेक और वैराग्य की बैसाखी भी है। वह पढ़ लिखकर एक अच्छा इंसान बन सकता है। सभी अवतार इस धरती पर ही प्रकट होते हैं, हे भगवान ! कितने भगवान हैं इस धरती पर, कुछ स्वयंभू और कुछ स्वयंसिद्ध। ।

हम जो पढ़ते, सुनते और समझते हैं वह हमारे चित्त में प्रवेश कर जाता है, बुद्धि उसे ग्रहण कर लेती है, और वह हमारी चिंतन प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन जाता है। हम जो पढ़ते हैं, हमें याद हो जाता है, जो सुनते हैं, मन में बैठ जाता है, और जो सुनते हैं, वह भी स्मृति कोष में एकत्रित होता चला जाता है। किसी भंडार से कम नहीं हमारा चित्त।

चिंतन से आगे की प्रक्रिया मनन कहलाती है। जो पढ़ा अथवा सुना है, उस पर बार बार मनन भी आवश्यक है, वर्ना आगे पाट और पीछे सपाट वाली स्थिति बन जाती है। मनन को पढ़े अथवा सुने हुए को हम बार बार दोहराना भी कह सकते हैं। बचपन से ही हमें हर पाठ को दोहराने का अभ्यास कराया जाता है।।

जिस विषय में हम कमजोर होते थे, वह सबक पच्चीस बार दोहराने का सबक किसे याद नहीं। हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन आवश्यक हो जाता है। अंग्रेजी में एक शब्द है cotemplation !

बार बार का अभ्यास ही अध्ययन है, स्वाध्याय है, चिंतन मनन है। सभी तत्वज्ञ, योगी महात्मा और वैज्ञानिक इसी चिंतन, मनन, contemplation और मेडिटेशन की राह से गुजरे हैं। जो प्रकट है, वह प्रत्यक्ष है, जो अप्रकट है, उसका प्रकट होना शेष है। धारणा, ध्यान और समाधि केवल शब्दांडर नहीं, एक जन्म की उपलब्धि नहीं, कई जन्मों के चिंतन मनन का परिणाम है। जानिये, जितना जान सकते हैं, सीमाएं अनंत आकाश है। सितारों के आगे जहान और भी हैं। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments