श्री दिलीप भाटिया 

( श्री दिलीप भाटिया जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। 26 दिसंबर 1947 को जन्में भूतपूर्व परमाणु वैज्ञानिक  श्री दिलीप भाटिया जी ने अपना पूरा जीवन बच्चों के लिए समर्पित कर दिया है। एक अच्छे साहित्यकार के साथ ही वे बच्चों के लिए प्रेरक-मार्गदर्शक  भी हैं। वे स्वयं गायत्री नवचेतना केंद्र पर बाल संस्कारशाला का संचालन भी करते हैं। उनकी प्रेरक पुस्तकें ‘उपकार प्रकाशन, आगरा’ से प्रकाशित, कई उपन्यास, कथा संग्रह आदि प्रकाशित एवं 50 से अधिक आकाशवाणी से वार्ताएं प्रसारित। तीन पुस्तकें प्रकाशित एवं शताधिक पुरस्कार प्राप्त जिनमें प्रमुख केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा से आत्माराम पुरस्कार 2004 तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से प्राप्त।आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक लघुकथा  “ताना  बाना ”.)

☆ लघु कथा –  ताना बाना ☆

प्रिय  एकता,

उद्योग कुटीर पर प्रशिक्षण के पश्चात् बुनाई केंद्र पर आत्मनिर्भर बन कर अपनी नन्ही बिटिया शिल्पी का लालन पोषण करने का एक सकारात्मक प्रयास कर रही हूँ। ईश्वर के निर्णय से नन्ही बेटी के सिर पर अब उसके पापा की सशक्त छाया तो नहीं है, पर, फिर भी मेरा प्रयास रहेगा कि -उसे जीवन के तूफानों में भी अपनी सहनशीलता एवं विवेक का दीपक प्रज्वलित रखने की क्षमता पैदा कर सकूँ।

अभी केंद्र पर कार्य करते हुए स्वयं के जीवन के ताने-बाने स्वतः ही स्मरण हो गए। बुनाई मशीन पर उलझे धागे सुलझाना सरल है। पर, एकता, जीवन के उलझे हुए तानो-बानो को सुलझाना कठिन है।

मम्मी पापा के दिए हुए संस्कार अनुशासन, शिक्षा की शक्ति से ही जीवन के सबसे बड़े तूफान में भी हार नहीं मानी। तुम्हारे जीजाजी के असामयिक निधन के पश्चात भी हिम्मत बनाए रख रही हूँ। शिल्पी को मम्मी की ममता एवं वात्सल्य कुछ कम देकर उसके पापा की भूमिका का प्रतिशत बढ़ा कर अनुशासन नियम अधिक देकर उसे एक मजबूत इन्सान बनाने का प्रयास कर रही हूँ

जीवन का ताना बाना उलझे नहीं, बस, यही शेष जीवन का लक्ष्य है।

शेष फिर।

सस्नेह राशि।

 

©  दिलीप भाटिया

संपर्क-  238 बालाजी  नगर  रावतभाटा  323307 राजस्थान

मोबाइल –  9461591498.

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