श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक समसामयिक विषय पर विचारणीय रचना “हाशिए पर…”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 54 – हाशिए पर…

एक दिन पहले मैंने सुझाव देते हुए सहयोग की अपील की  और अगले ही दिन मुस्कुराते हुए कहा आप से बेहतर इसे कोई नहीं कर सकता अब इसे आप संभालें। जब डिब्बे में घुन का ही राज्य हो तो अनाज अपने आप ही पिस जायेगा। गेंहू के साथ घुन भी पिसता है,ये तो तब होगा जब गेंहू चक्की में पिसने हेतु जाए। पर यदि अनाजों में घुन लगा हो तो क्या होगा ?

आकर्षक रंग रोगन से युक्त डिब्बा है ही इतना सुंदर कि कोई ये देखता भी नहीं कि इसमें कीड़े तो नहीं पड़े हैं। बस सुंदरता पर मोहित हो भर दिया सारा अनाज, अब न तो रोते बन रहा है न हँसते। धीरे – धीरे बिना चक्की के सारा अनाज बुरादे में बदलता जा रहा है। वो कहते हैं न कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है। सो सकारात्मक सोच लेकर बढ़ते रहो। जो लोग सचेत नहीं होंगे उनका नुकसान तो बनता ही है। जब कुछ मिटेगा तभी तो नए का सृजन होगा। नए का दौर चलते ही रहना चाहिए वैसे भी रुका हुआ जल, पुरानी सोच व एक ही व्यक्ति इन सबको समय के साथ बदलना तो चाहिए। बदलाव तो उन्नति का चिन्ह है।

सबको बदलते हुए व्यक्ति ये भूल जाता है कि आज नहीं तो कल वो भी समय के तराजू में तौला जाने वाला है। क्या करें समय और बाँट किसी के सगे नहीं होते। ये तो वही दिखाते हैं जितना असली वज़न होता है।अब व्यवहार का क्या है ? ये तो कभी असली  कभी नकली मुखौटा पहन कर सबको धोखा देने में माहिर होता है। कई बार देखकर सब कुछ अनदेखा करना ही पड़ता है। शांति और सामंजस्य की कीमत चुकाना कोई आसान कार्य नहीं होता है इसके लिए तिल – तिल कर जलना होगा।

जलना और जलाना इन्हीं दो शास्त्रों पर तो पूरी दुनिया टिकी हुई है। बस कुछ न कुछ करते रहिए, क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। जब कर्म करेंगे तो कभी न कभी फल मिलेगा ही। हो सकता है सूद सहित मिले। वैसे भी गीता का गान तो यही कहता है कि फल की इच्छा न रखें। महँगाई और कीटनाशकों का प्रभाव फलों भी पड़ रहा है सो  फलों को खाकर ताकत आयेगी ये कहना भी आसान नहीं है।

चक्कर पर चक्कर चलाते हुए वे सबको घनचक्कर बना रहे हैं और एक हम हैं जो पृथ्वी गोल है ये मानकर ही हर बार अपनी धुरी पर घूमते हुए जहाँ से चले थे वहीं पहुँच कर अपना पुनर्मूल्यांकन करते नजर आते हैं। और हर बार स्वयं से प्रण करते हैं कि इस बार चौगुनी तेजी से कुछ नया कर गुजरेंगे। बस इसी जद्दोजहद में उम्र तमाम हुई जा रही है। जब कदम बढ़ते हैं, तभी न जाने कहाँ से हाशिया आ जाता है और हम स्वयं को हाशिए पर खड़ा पाते हैं। पर क्या करें, हम तो ठहरे भगवतगीता के अनुयायी सो कृष्ण मार्ग पर चलते हुए आज नहीं तो कल चक्रव्यूह भेद कर ही दम लेंगे और विजयी भव के साथ अपना परचम फहराते हुए कुछ नया कर गुजरेंगे।

जैसे ही कोई नया कार्य शुरू हुआ कि झट से कोई न कोई शिकारी बाज की तरह टपक पड़ता है, अब कार्य पर ध्यान दें या शिकारियों पर। खैर वही घिसा पिटा राग अलापते हुए उसी दौड़ में फिर से शामिल हो गए। जोड़- तोड़ में तो उनकी मास्टरी है। जहाँ उनको स्नेह से बुलाया नहीं कि  सारी योजना चौपट, फिर वही अपना रंग फैलाते हुए हर समय सबको अपने रंग में रंगने की अचूक कोशिश करने लगते हैं। यहाँ भी वही पृथ्वी गोल है का किस्सा, जिन नीतियों को कोई पसंद नहीं करता है, उसे फिर से चलाने लगे। अब क्या किया जाए चुपचाप देखते रहो क्योंकि जैसे ही सक्रियता बढ़ाई, सबके चहेते बनने की कोशिशें की, तभी पुनः हाशिए पर धकेलने हेतु कोई न कोई नयी योजना द्वार पर दस्तक देते हुए कह उठेगी आप लोग जागरूक बन कर चिंतन करें। स्वयं के साथ- साथ सबको जगाएँ।

कितना भी प्रयास करो हाशिए पर आना ही होगा,ये बात अलग है कि यदि पूरी ताकत से कोशिश की जाए तो हाशिए पर आप की जगह आपको हाशिए पर पहुँचाने वाला हो सकता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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