श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक लघुकथा – “रहस्य”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 136 ☆
☆ लघुकथा- “रहस्य” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
अ ने चकित होते हुए कहा, “यह तो चमत्कार हो गया!”
इस पर ब ने कहा, “यह तो होना ही था।”
“मगर कैसे?” अ ने पूछा, “ये हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ाते हैं। सोचते हैं कि प्राथमिक शाला के शिक्षक कुछ नहीं जानते हैं। इस कारण नमस्कार तक नहीं करते हैं।”
ब ने कुछ नहीं कहा।
“आपने ऐसा क्या किया जो ये हमारा नमस्कार करके आदर करने लगे हैं।”
“कुछ नहीं। इनका स्वार्थ है इसलिए,” ब ने कहा तो अ ने पूछा, “क्या स्वार्थ है जिसकी वजह से ये नमस्कार करने लगे हैं।”
“12वीं बोर्ड की परीक्षा में पर्यवेक्षक के रुप में मेरी ड्यूटी लगी हुई है इस कारण,” कहते हुए ब ने अपने मुंह को झटका दिया। मानो नमस्कार रुपी चांटे के दर्द को दूर करना चाह रहा हो, इसलिए अपने मुंह को एक ओर झटके से उचका दिया।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
28-04-2023
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