श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # ६ ☆

☆ लघुकथा ☆ ~ कृपाला ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

शिशु के क्षत -विक्षत शव को देखकर दुर्दांत का मन काँप उठा। उसके कम्पन मात्र से धरती के हर एक छोर में स्पंदन होने लगा।

शिशु के प्राणों को ले जाने के लिये आये, यमदूतों के भी पाँव धरती पर हो रहे इस कम्पन के कारण काँप रहे थे।

इधर कृपाला के बदन को नोचकर अपना हबस बनाने वाले दुर्दान्त के गुर्गो को यह पता था कि ऐसे अपराध की सजा उन्हें अपने प्राणों की कीमत चुका कर करनी पड़ सकती है। इसके वावजूद कामाग्नि में जल रहे पापीयों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

दुर्दान्त अपने दौहीत्र के क्षत -विक्षत शव को जोड़कर उसमे प्राण संचार करना चाहता था। शिशु के प्राण अभी भी यमदूतों के हाथों तक नहीं पहुँचे थे।

मेरे शरीर के इन क्षत- विक्षत टुकड़ो को छूकर हमें अपवित्र मत करिये, नानाश्री ! मुझे ईश्वर के पास जाना है..!! शिशु की आत्मा बड़े ही कड़े शब्दों में दुर्दांत से चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी।

.. यदि आपको किसी की मदद करनी ही है, तो मेरी माँ की मदद करिये, जिसकी ममतामयी गोद से मुझे छीनकर, आपके ही लोगों ने ही मेरी हत्या कर दी और मेरी माँ को घसीटते हुए पीछे खंडहर की ओर ले गए। 

जाइये, नानाश्री..जाइये !! जाइये अपनी बेटी यानि मेरी माँ के अस्मत् एवं प्राणों की रक्षा कर सके तो करिये।

दुर्दांत के लिये यह बहुत ही कठिन घड़ी थी। उसके पैर काँप रहे थे और वह आगे को ओर बढ़ नहीं पा रहा था। खँडहर तक पहुंचने के पहले उसकी स्वयं की पुत्री कृपाला की अस्मत् लूट चुकी थी। वह खँडहर में बेसुध नंग धडंग पड़ी थी तथा अपने जीवन की अंतिम श्वासें गिन रही थी। पिता दुर्दान्त को देखकर उसने अपनी आँखें मूँद लीं, मानों उसकी आँखें अपने पापी पिता को देखना ही नहीं चाह रही थी।

दुर्दांत ने कृपाला के आँखों को खोलकर, उसे होश में लाने का प्रयास किया, लेकिन कृपाला के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।

बच्चे को गोद में लेकर झूला झूला रही एक युवती को देखकर दुर्दांत ने ही अपने लोगो को उस अंजान युवती के साथ मनोरंजन करने की अनुमति दी थी।

काफी दूरी होने के कारण वह यह नहीं जान पाया था कि आखिर वह युवती है कौन है ?

दुर्दांत के पश्चाताप की कटार अब उसके स्वयं के गर्दन पर थी। यमदूतों के हाथों में अब मृत्युलोक की तीन आत्मायें आ चुकी थीं। यमराज को अब इन तीनों आत्माओं के लिये स्वर्ग और नर्क तय करना था।

इधर यमदूतों के बीच, आपसी चर्चा इस बात कि थी कि उन कामांध दुष्टों का क्या होगा। अभी और कितनी कृपाला उनके हवस की शिकार होंगीं।

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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