हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 4 ☆ पंद्रह अगस्त अति पुनीत पर्व है प्यारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  रचना पंद्रह अगस्त अति पुनीत पर्व है प्यारा। अब हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 4 ☆

☆ पंद्रह अगस्त अति पुनीत पर्व है प्यारा ☆

पंद्रह अगस्त अति पुनीत पर्व है प्यारा
आजाद हुआ था इसी दिन देश हमारा
फहराता तिरंगा इसी दिन आसमान में
सूरज ने नई रोशनी दी थी विहान में
मन को मिली खुशी और आंखों को एक चमक
सबकी जुबां पर चढ़ा जय हिंद का नारा

आजाद हुआ देश आजाद ही रहेगा
सदियों ने किया बर्बाद अब आबाद रहेगा
आई बहार कैसे यह सपने चमन में
ये लंबी कहानी है इतिहास है सारा
फिर मिलकर कसम आज यहां साथ में खाएं
मेहनत के बल पर देश को मजबूत बनाएं

सपना जो शहीदों का था साकार करें हम
अब चाहता है हमसे यह कर्तव्य हमारा
गांधी ने, शहीदों ने जो पौधे थे लगाए
होकर बड़े अब आज फलने को आए
हम इनको सींच देश को खुशहाल रखे अब
लू की लपट इनको नहीं होती है गवारा

जिस देश की धरती ने हमें इतना दिया है
उसके लिए अब तक भला हमने क्या किया है
हम खुद से करें सवाल और जवाब दें
हम से ही तो बनता है सदा देश हमारा

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ – 16 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ – 16 ☆

…कुछ कहो

तुम्हारी चुप्पी

बरदाश्त नहीं होती,

मैंने कोरा कागज़

मोड़कर थमा दिया,

..पढ़ लो, सारा कुछ

इस पर लिख दिया है,

ज़िंदगी भी

एक करवट ले चुकी,

उसका बाँचना

बदस्तूर जारी है,

सोचता हूँ

इतना ज़्यादा तो

नहीं लिखा था मैंने!

 

©  संजय भारद्वाज 

(2.9.2018, 12:25 बजे)

#आपका दिन सार्थक हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ एकाक्षी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ एकाक्षी ☆

 

एकाक्षी होना चाहता हूँ,

आवश्यक नहीं

एक आँख बंद कर लूँ,

वांछित है, दोनों में

समत्व विकसित कर लूँ!

 

©  संजय भारद्वाज 

10 अगस्त 17, संध्या 7.10

#आपका दिन सार्थक हो।

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष – तुम कहाँ छिपे हो मोहन …… ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आज प्रस्तुत है  श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर विशेष कविता   “तुम कहाँ छिपे हो मोहन….”। )

☆ श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष – तुम कहाँ छिपे हो मोहन…. ☆  

गीता के रचनाकार  कृष्ण,

हे दीनन के रखवाले

तुम कहाँ छिपे हो मोहन

प्यारे चक्र सुदर्शन वाले।

 

कितने ही लाक्षाग्रह धधके हैं,

पुनः इसी धरती पर

भीषण लपटों में जले जा रहे,

जलचर-थलचर-नभचर,

कौरव दल विध्वंसक बन कर

घेरा डाले चहुँ ओर खड़े

क्या और अभी भी खाली

इनके कुकर्मों के पाप घड़े,

है विदुर कहाँ जो गुप्त सुरंग से,

हमको आज निकाले

तुम कहाँ छिपे हो मोहन……

 

निशदिन कितनी ही द्रोपदियों

के चीर हरण होते हैं

जूएं में राजनीति के पांडव

लगा रहे गोते हैं

जिसका खा रहे नमक, विरुद्ध

उसके ही कैसे बोलें

है नेत्र बंद गुरु द्रोण-भीष्म  के

उनको कैसे खोलें,

है सचराचर दृष्टा!

इन ललनाओं की लाज बचा ले

तुम कहाँ छिपे हो मोहन……..

 

लावे की भांति असुर दलों के

निर्दय हाथ बढ़े हैं

इस पुनीत हिन्द-भूमि पर

दुष्कृत्यों के अंक चढ़े हैं,

शंकित मन, व्याकुल डरे हुए

गोकुल के ग्वाले-गौवें

कोयल बैठी गुमसुम

कर्कश स्वर गीत गा रहे कौवे,

दुष्टों का मद मर्दन कर प्रभु,

भक्तों की लाज बचा ले

तुम कहाँ छिपे हो मोहन…….

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

07/06/2020

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष – हे कृष्ण! तेरे एक अवतार में कितने किरदार ☆ श्री दिवयांशु शेखर

श्री दिव्यांशु शेखर 

(युवा साहित्यकार श्री दिव्यांशु शेखर जी ने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की।  आप  मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से  ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास  “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आज प्रस्तुत है श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर आपकी कविता   “हे कृष्ण! तेरे एक अवतार में कितने किरदार। )

☆ श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष – हे कृष्ण! तेरे एक अवतार में कितने किरदार 

देवकी सुत भी, यशोदा पुत्र भी,

मथुरा निवासी भी, सर्वत्र वासी भी,

हजारों परिणीता भी, एक पत्नीव्रता भी,

प्रेम की सूरत भी, त्याग की मूरत भी,

राधा के गीत भी, गोपियों के मीत भी,

रुक्मणी से योग भी, मीरा के संयोग भी,

यारों के यार भी, बह्मांड के सूत्रधार भी,

कमजोरों के सँरक्षक भी, दुष्टों के भक्षक भी,

दूसरों के दर्द से अधीर भी, अपने लिए सख़्त कर्मवीर भी,

शांति के लिए रण छोड़ते भी, धर्म के लिए सीमा तोड़ते भी,

त्रिलोक के सबसे बड़े महारथी भी, महज एक सारथी भी,

अनेकों आरोपों से युक्त भी, सबके पापों को करते मुक्त भी,

सबसे निर्लिप्त भी, सँसार के पालन में संलिप्त भी,

नादान भक्तों के लिए हमेशा खड़े भी, विद्वानों के समझ से परे भी।

 

©  दिव्यांशु  शेखर

दिल्ली

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ असंभव ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ असंभव ☆

उसका समय

आया नहीं

पर चलो

कुछ छल करें,

छिप जाओ तुम

तुम्हारी एवज़ में

उसके प्राण हरें,

गलती पकड़ी जाएगी

तब देखी जाएगी,

तब तक तुम्हारी

जीवन-नैया भी

खेई जाएगी,

मेरे नकार से

तमतमा गया,

क्रोध के साथ

अचरज आ गया,

जीवन भर

सिद्धांतों पर

चलता रहा,

छल को पास

फटकने न दिया,

अब मृत्यु से

रक्षा के लिए

सिद्धांतों से समझौता

संभव नहीं,

काल!

एक नहीं

अनेक बार

अकाल हरो

पर जीवन से

छल करुँ,

संभव नहीं!

 

©  संजय भारद्वाज 

( 3 अगस्त 2018, मध्याह्न)

#आपका दिन सार्थक हो।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सृष्टि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सृष्टि☆

तुम समेटती रही

अपनी दुनिया और

मुझ तक आकर ठहर गई,

मैं विस्तार करता रहा तुम्हारा

और दुनिया तुममें

सिमट कर रह गई,

अपनी-अपनी सृष्टि है प्रिये!

अपनी-अपनी दृष्टि है प्रिये!

©  संजय भारद्वाज 

सुबह 10.25 बजे, 17.6.19

#आपका दिन सार्थक हो।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ ब्लैक होल ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ ब्लैक होल ☆

कैसे जब्त कर लेते हो

इतने दुख, इतने विषाद

अपने भीतर..?

विज्ञान कहता है

पदार्थ का विस्थापन

अधिक से कम

सघन से विरल

की ओर होता है,

जमाने का दुख

आता है, समा जाता है,

मेरा भीतर इसका

अभ्यस्त हो चला है

सारा रिक्त शनैः-शनैः

ब्लैक होल हो चला है!

 

©  संजय भारद्वाज

आपका दिन सार्थक हो।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ शैवाली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

पुनर्पाठ में आज-

☆ संजय दृष्टि  ☆ शैवाली ☆

जैसे शैवाली लकड़ी,

ऊपर से एकदम हरी

कुरेदते जाओ तो

भीतर निविड़ सूखापन,

कुरेदना औरत का मन कभी,

औरत और शैवाली लकड़ी

एक ही प्रजाति की होती हैं..!

©  संजय भारद्वाज

रात्रि 8:37, 15.7.19

आपका दिन सार्थक हो।☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सम्पन्नता ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सम्पन्नता ☆

बूढ़े जीवन ने

यकायक पूछा,

कभी सोचा

अब तक

क्या खोया

क्या पाया,

अपनी संपन्नता पर

मैं इतराया,

मर्त्यलोक में

क्षरण के मूल्य पर

अक्षय पाता रहा,

साँसे खोता रहा

अनुभवी होता रहा,

रीता आया था

सृष्टि सम्पन्न लौट रहा हूँ,

सो खोया कुछ नहीं

बस, पाया ही पाया!

©  संजय भारद्वाज

30.7.2017, रात्रि 8.18 बजे

# आपका दिन सृजनशील हो।

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