हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 31 ☆ फितरत ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता फितरत। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 31 ☆ फितरत

यह  मेरी  फितरत है,

जिससे धोखा खाता हूं भरोसा फिर भी उसी पर करता हूँ ||

 मेरा नसीब कुछ ऐसा है,

रोज जहां ठोकर खाता हूँ खुद को फिर वहीं पाता हूँ ||

दिल की अजीब दास्ताँ है,

जो दिल तोड़ता है  फिर भी उसे ही पाना चाहता हूँ ||

अपनों से बेतहाशा मोहब्बत है,

चाहे कोई नफरत करे फिर भी उन पर भरोसा रखता हूँ ||

अपनों का भरोसा नहीं तोड़ता,

चाहे अपने भरोसा तोड़ दे फिर भी अपनों पर विश्वास करता हूँ||

अपनों पर से कभी विश्वास ना उठे,

इसलिए सब कुछ जानते हुए भी अपनों पर यकीन रखता हूँ ||

ड़र है अजनबियों की भीड़ में कहीं,

अपनों को खो ना दूँ इसीलिए अपनों  पर एतबार करता हूँ ||

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३२॥ ☆

 

दीर्घीकुर्वन पटु मदकलं कूजितं सारसानां

प्रत्यूषेषु स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषायः

यत्र स्त्रीणां हरति सुरतग्लानिम अङ्गानुकूलः

शिप्रावातः प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकारः॥१.३२॥

 

जहां सारसों का कलित नादवर्धक

सदा प्रात प्रमुदित कमल गंधवाही

कि शिप्रा समीरण सुखद, तरुणियों के

मिटाता सुरति खेद प्रिय सम सदा ही

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 68 ☆ फ़कीरी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “फ़कीरी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 68 ☆

☆ फ़कीरी

कदम बोझिल भी नहीं, न ही उन्माद है

ये दिल उदास भी नहीं, न ही वो शाद है

 

नज़्म लिख रही हूँ कई, बिना रुके हुए

मांग रहा हर हर्फ़, कौन सी मुराद है?

 

साज़ से मन भर चुका, लगता है शोर सा

चटनी-अचार में भी, कहाँ अब स्वाद है?

 

टटोलना है जुस्तजू, कहीं तो मिलेगी वो

मिटती नहीं कभी वो, वही बुनियाद है

 

बहुत धनी हैं यूँ भी हम, क्यूँ भाये फ़कीरी

अलफ़ाज़ की पास हमारे, हसीं जायदाद है

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – सैनिक को हर पल नमन करते हैं ☆ डॉ अ कीर्तिवर्धन

डॉ अ कीर्तिवर्धन

 ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – सैनिक को हर पल नमन करते हैं ☆ डॉ अ कीर्तिवर्धन ☆

सीमा पर खड़ा है, नींद अपनी गंवाकर,

सुरक्षा मे देश की, निज परिवार भुलाकर,

बल की है शान, कर्तव्य की बातें,

देखता है हर पल, जो शांति के सपने,

सैनिक को हर पल नमन करते हैं।

 

चट्टानों को काटकर, जो नहरें बना देता है,

बाढ़ और सूखे मे, सहायता हेतु आता है,

मृत्यु के मुख से भी, जीवन छीन लाता है,

सीमा पर प्रहरी, सुरक्षा बल कहलाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

धार्मिक उन्माद मे, इंसान बनकर आता है,

असत्य पर सत्य की, विजय गाथा गाता है,

जाति-धर्म, छुआ छूत के, सारे बंधन तोड़कर,

राष्ट्र धर्म जिसके लिए, सर्वोपरि बन जाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

दुश्मन के वार को,तार तार करता है,

देश की सुरक्षा मे, जीवन वार देता है,

माता को जिसकी, अपने लाल पर गर्व है,

भारत का जन-जन, जिसे प्यार करता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

राणा सा शौर्य जिसकी, शिराओं मे दौड़ता है,

पाक के नापाक इरादे, बूटों तले रौंदता है,

हिमालय भी जिसकी, विजय गाथा गता है,

सम्मान मे जिसके, राष्ट्र ध्वज झुक जाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

सीमा के सैनिक का, आओ हम सम्मान करें,

सुरक्षा मे परिवार की, हाथ सब तान दें,

बल प्रहरी की पत्नी को, सैनिक सा मान दें,

मात पिता को सैनिक के, हम सब प्रणाम करें,

सैनिक को हम सब हर पल नमन करें।

 

© डॉ अ कीर्तिवर्धन

संपर्क – विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर -251001 ( उत्तर प्रदेश )

8 2 6 5 8 2 1 8 0 0

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #27 ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – आओ गणतंत्र दिवस मनाये ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “गणतंत्र दिवस”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 27 ☆ 

☆ गणतंत्र दिवस विशेष  – आओ गणतंत्र दिवस मनाये ☆ 

26 जनवरी हमारे महान

गणतंत्र का पावन पर्व है

हमें हमारें संविधान पर

अत्यंत गर्व है

इसी दिन लागू हुआ था

यह महान संविधान

जिसके सपने देख रहा था

हर इंसान

गणतंत्र का अर्थ ही है

जनता के लिए

जनता द्वारा शासन

जनता की भागीदारी से

प्रशासन

जब सबको मिला पूर्ण स्वराज

ना किसी धर्म ना

किसी समुदाय का राज

सबने खुशियाँ बांटी

मिठाईयां बांटी

नाच रहा था हर व्यक्ति

और हर समाज

सबको मिले अपने अधिकार

शिक्षा, स्वास्थ और रोजगार

कहीं भी कर सकते हो व्यापार

सारा देश बना एक घर-बार

मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी

पढ़ने-लिखने की आज़ादी

सुनने की, कहने की आज़ादी

न्याय पाने की,

ना कहने की आज़ादी

अब यह कैसा काल है आया

उमंगों पर मातम है छाया

जिव्हा पर ताले लगे हैं

आंखों में है एक डर समाया

आलोचना अपराध हो गया

सत्य कहना पाप हो गया

यह बलिदानों से मिली आजादी

क्या हम सबके लिए

श्राप हो गया ?

मिलकर इन जंजीरों को तोड़े

दिग्भ्रमित है बस कुछ थोड़े

हम सब है भाई-भाई

चलो संविधान से नाता जोड़े

आओ गणतंत्र दिवस मनाये

हर दुःखी पिड़ीत को गले लगाये

प्यार बांटे, खुशीयां बांटे

हर चेहरे पर मुस्कान लाये ।

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३१॥ ☆

 

प्राप्यावन्तीन उदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान

पूर्वोद्दिष्टाम उपसर पुरीं श्रीविशालां विशालाम

स्वल्पीभूते सुचरितफले स्वर्गिणां गां गतानां

शेषैः पुण्यैर हृतम इव दिवः कान्तिमत खण्डम एकम॥१.३१॥

अवन्ती जहां वृद्धजन ग्राम वासी

कुशल हैं कथाकार उदयन कथा के

विशद पूर्व वर्णित पुरी , पूर्ण वैभव

परं रम्य विस्तीर्ण उज्जैन जा के

जिसे पुण्य के क्षीण होते स्वतः के

गये स्वर्गजन ने धरा पर उतारा

कि मानो बचे पुण्य को मोल देकर

लिया पा यहां स्वर्ग का खण्ड प्यारा

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

कुछ भी रचता है नहीं, यह कैसा है दौर ।

नाम बहुत से ले लिए, मन कहता है और ।।

 

जूठन खाकर आपने, किया बड़ा अहसान ।

मुझे बनाया भीलनी, आप बने भगवान।।

 

ऐसा था सोचा नहीं, किया नहीं  अहसास ।

सागर ने भी कंठ में, जमा रखी है प्यास।।

 

सफर बहुत ही कम हुआ, छुआ न कोई छोर।

गर चाहे तो खींच ले, कठपुतली की डोर।।

 

है विशेष क्या मानना, शब्द हुए असमर्थ।

शायद वे भी सोचते, कहना भी है व्यर्थ।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 34 – सभी अधूरी इच्छायें …☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “सभी अधूरी इच्छायें… । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 34 ।। अभिनव गीत ।।

☆ सभी अधूरी इच्छायें … ☆

वह विस्थापित हँसी

पोपले मुँह में थी अटकी

जहाँ झुर्रियों को टटोलती

उम्र दिखी लटकी

 

सभी अधूरी इच्छायें

आँखों के गिर्द खड़ीं

संवेदन के साथ याद-

की थीं पंक्तियाँ बडीं

 

फिसल-फिसल जाती है

हाथों से, हिसाब ढोती

छड़ी स्वयम्‌ शब्दार्थ

खोजती, है भटकी-भटकी

 

रहे-सहे बालों से उलझे

वायुजनित झोंके

जहाँ याद आते हैं

रह-रह बीत चुके मौके

 

जो मूरत भविष्य की

गढ़ कर बड़े हुये सपने

वहीं लग रही समय गये

है वह चटकी- चटकी

 

इसी असंभव के विरुद्ध

जीवन भर लड़ा किये

और अँधेरों में बाले हैं

लाखों-लाख दिये

 

पड़े चारपाई पर बाकी

दिन गिनते-गिनते

जिसे देखने बेटे क्या

छाया तक ना फटकी

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 80 ☆ व्यंग्य कविता – आटा, डाटा और टाटा ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक व्यंग्य  कविता “आटा, डाटा और टाटा“। ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 80

☆ व्यंग्य कविता – आटा, डाटा और टाटा☆

देखिए एक रोटी का आटा

गरीब का,

जियो जी भर कर दे रही डाटा

अमीर का,

देखिए हो रहा है ये घाटा

जनता का,

देखिए कर रहे हैं आंटा-सांटा

नेताओं का,

देखिए हर दम मिले चांटा

बाबाओं का,

देखिए मंत्री कर रहे हैं टाटा

हर काम का,

देखिए हो रहा है ये घाटा

अपने देश का,

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३०॥ ☆

 

वेणीभूतप्रतनुसलिला ताम अतीतस्य सिन्धुः

पाण्डुच्चाया तटरुहतरुभ्रंशिभिर्जीर्णपर्णैः

सौभाग्यं ते सुभग विरहावस्थया व्यञ्जयन्ती

कार्श्यं येन त्यजति विधिना स त्वयैवोपपाद्यः॥१.३०॥

वेणि सृदश क्षीण सलिला वराकी

सुतनु पीत जिसका पके पत्र दल से

विरह में तुम्हारे , सुहागिन तुम्हारी

तजे क्षीणता दो उसे पूर जल से

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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